![बाजरे की खेती](https://farm1.staticflickr.com/676/21803192954_0edc624c61.jpg)
यहाँ बरसात के सीजन में किसान ज्यादातर बाजरा की खेती करते हैं जो खाने और पशु चारे दोनों के काम आता है। चम्बल में जब सिंचाई की पर्याप्त सुविधा नहीं थी, तबसे बाजरा यहाँ की मुख्य फसल होती थी और घर-घर में पूरे साल लोग बाजरा की रोटी खाते थे लेकिन अब स्थिति ऐसी नहीं है। आज यह इलाका सरसों और गेहूँ का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है। फिर भी यहाँ बाजरा की खेती आज भी प्रमुखता से होती है। इस बार पानी की उपलब्धता कम होने के कारण बाजरा कम हुआ है। इसके चलते पशुओं के लिए चारे का भी संकट खड़ा हो गया है। नये आये कलेक्टर विनोद शर्मा अपना कार्यभार सम्भालनें के बाद से ही सुखे की समस्या से जूझ रहे हैं। उन्होंने सबसे पहले जिले से चारे के निर्यात पर रोक लगा दी है।
समस्या मौजूदा रवि के सीजन में बोई गई सरसों, गेहूँ और चना की फसलों को लेकर ज्यादा है। यहाँ का किसान पहले नम्बर पर सरसों, फिर गेहूँ और फिर चना की बुवाई करता है। कृषि विभाग ने इस साल जितने हेक्टेयर में इन फसलों की बुवाई का लक्ष्य रखा था पानी के अभाव में किसान ने उतनी तादाद में फसलें नहीं बोई हैं। अनुमान है कि इस बार किसानों ने 95 हजार हेक्टेयर के सरकारी लक्ष्य के विपरीत मात्र 70 या 75 हजार हेक्टेयर में ही गेहूँ बोया है। सरसों के लिए रखे गए एक लाख 70 हजार हेक्टेयर लक्ष्य को पाना कृषि विभाग को मुश्किल दिख रहा है। सरसों की कम पैदावार का असर यहाँ के तेल उद्योग पर भी पड़ेगा। इससे सरसों का तेल महँगा होगा और उसमें व्यापारी ज्यादा मिलावट करके मांग पूरी करने की कोशिश करेंगे।
नहरों की सिंचाई की व्यवस्था भी इस बार संकट में है। आमतौर पर सरसों के लिए चारा पानी की जरूरत होती है। सिंचाई विभाग नहरों में पर्याप्त पानी छोड़े जाने के लिए अभी से प्रयासरत हो गया है। लेकिन नहर में पानी का नियन्त्रण राजस्थान के पास रहता है। कोटा में चम्बल नदी पर बने गाँधी सागर नहर से चम्बल नहर में पानी छोड़ा जाता है। इस बार राजस्थान में भी पानी की कमी है। ऐसे में वह चम्बल नहर में पर्याप्त पानी छोड़ेगा इसमें सन्देह है। चम्बल नहर से श्योपुरकलां, मुरैना और भिंड जिले को सिंचाई के लिए पानी मिलता है। पर्याप्त पानी न मिलने पर 50 जिलों में सरसों की फसल बोने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। आगामी फसलों की सुरक्षा और पीछे फसलों को हुए नुकसान से किसानों को राहत देने के लिए प्रशासन ने अपने स्तर पर कोशिशें शुरू कर दी है। किसानों को फसल बीज योजना का लाभ ज्यादा से ज्यादा देने की कोशिश हो रही है। रोजगार से जुड़े कामों को शुरू किया जा रहा है।
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