चित्रकोट-बस्तर का नयनाभिराम जलप्रपात

चित्रकोट जलप्रपात
चित्रकोट जलप्रपात

आपको यदि वाटर-फॉल्स के बाबत पूछा जाए तो यकीनन आप दुनियाभर में मशहूर नियाग्रा के जलप्रपात की ही चर्चा में मशगूल हो जाएंगे, लेकिन भारत में ही टूरिज्म के इतने अनछुए स्पॉट्स हैं और सदियों से अनछुए पड़े हैं कि भारत के लोग भी उनके बारे में कम ही जानते हैं। छत्तीसगढ़ में बस्तर अंचल में जगदलपुर का 'चित्रकोट जलप्रपात' इतना मनमोहक और आकर्षक है कि इसे भारत का नियाग्रा कहने वालों की भी कमी नहीं है। बस्तर में वैसे तो जलप्रपातों की लंबी श्रृंखला है, चित्रकोट इनमें अनूठा है। टूरिज्म विभाग के मुताबिक यह देश भर में सबसे चौड़ा माना गया है।

सभी मौसम में भरापूरा रहनेवाला यह वाटरफॉल पौन किलोमीटर चौड़ा और 90 फीट ऊंचा है। खासियत यह है कि बारिश के दिनों में यह रक्तिम लालिमा लिए हुए होता है तो गर्मियों की चांदनी रात में यह झक सफेद दूधिया नजर आता है। अलग-अलग मौकों पर इस जलप्रपात से कम से कम तीन और अधिकतम सात धाराएं गिरती हैं। बस्तर के ही एक अन्य जलप्रपात की खासियत यह मानी गयी है कि देश का सबसे ऊंचा जलप्रपात भी यहां है। यह जल प्रपात है तीरथगढ़ का जलप्रपात जो कि 300 फीट गहराई तक चट्टानों के सहारे कहीं झरने तो कहीं प्रपात के रूप में बहता है।

वास्तव में छत्तीसगढ़ एक वनाच्छादित प्रदेश है। यहां आदिवासी सभ्यता और संस्कृति आज भी कायम है जिनको करीब से जानने और देखने के लिए विदेशी भारत आते हैं लेकिन जब तक छत्तीसगढ़ राज्य (2000) गठित नहीं हुआ तब तक छत्तीसगढ़ की कई नामचीन और पर्यटन महत्व की जगहों को डिस्कवर नहीं किया जा सका था। मसलन हाल में यह तथ्य रेखांकित हुआ है कि चित्रकोट का जलप्रपात देशभर में मौजूद सभी जलप्रपातों में चौड़ा है।

पूरे बस्तर में कई और जलप्रपात भी अपार जलराशि के कारण एक विहंगम अनुभूति से भर देते हैं जिनमें 'तीरथगढ़ का जलप्रपात' भी प्रसिद्ध है। यह जगदलपुर से 25 किलोमीटर दूर कांगेर (फूलों की घाटी) वैली राष्ट्रीय उद्यान में है। यहां का नैसर्गिक सौंदर्य शहरी सैलानियों को रोमांच और कौतूहल से भर देता है। जगदलपुर के समीप 30 किलोमीटर की दूरी पर प्राकृतिक रूप से बनी कोटमसर गुफा भी है। यह विश्व प्रसिद्ध है। पाषाणयुगीन सभ्यता के चिन्ह आज भी यहां मिलते हैं। गुफा के भीतर जलकुण्ड तथा जलप्रवाह अवशैल-उत्शैल (स्टेलेग्माइट-स्टेलेक्टाईट) की रजतमय संरचनाएं किसी भी सैलानी को ठिठक कर निहारते रहने के लिए बाध्य कर देती हैं। बस्तर के अलावा अंबिकापुर से 80 किलोमीटर दूर अंबिकापुर-रामानुजगंज मार्ग के समीप तातापानी नामक झरना क्षेत्र है। यहां गर्मजल के 8-10 स्रोत हैं।

रायगढ़ जिले में घने वनों के बीच केंदई ग्राम में एक पहाड़ी नदी लगभग 100 फीट की ऊँचाई से गिरकर एक खूबसूरत प्रपात बनाती है। इसे केंदई जलप्रपात के नाम से जाना जाता है। एडवेंचरस ईको-टूरिज्म के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ अब तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। यहां कोटमसर गुफा के अलावा कैलाश गुफा, दण्डक गुफा, अरण्यक गुफा और चारों तरफ हरीतिमा के साथ फैली घाटियां प्रकृतिप्रेमियों का मन मोह लेती हैं। केशकाल घाटी में सर्पीली सड़कों से गुजरते हुए इसके रोमांच को महसूस किया जा सकता है। बस्तर घाटियों के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर में केशकाल व चारामा घाटी, दक्षिण में दरभा की झीरम घाटी, पूर्व में आरकू घाटी, पश्चिम में बंजारिन घाटी समेत पिंजारिन घाटी, रावघाट, बड़े डोंगर (छत्तीसगढ़ में डोंगर, पर्वत को कहा जाता है) प्रसिद्ध हैं।

बहुत सी किवदंतियां भी इन प्राकृतिक झरनों के साथ जनमानस में रची-बसी हैं। मसलन, रायगढ़ जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल रामझरना के बारे में यह प्रसिद्ध है कि सावन माह में इस कुंड में स्नान करने से त्वचा संबंधी रोग-दोष दूर हो जाते हैं। इसकी वैज्ञानिक वजह यह मानी जाती है कि इस झरने का जल पहाड़ियों की सैकड़ों जड़ी-बूटी की झाड़ियों के बीच से बहकर स्वयं में काफी रोगप्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेता है। क्षेत्र में आयुर्वेदिक औषधियां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।

जलाशय पर्यटन में दिलचस्पी रखने वालों के लिए धमतरी (रायपुर से 70 किलोमीटर दूरस्थ) का गंगरेल जलाशय एक आकर्षक टूरिस्ट स्पॉट बन चुका है। गंगरेल बांध में लाखों क्यूसेक पानी जमा करके रखा जाता है। इसे काफी व्यवस्थित तरीके से विकसित किया गया है। पानी के नीचे एक गुफा भी बनायी गयी है और आसपास पिकनिक स्पॉट विकसित किया गया है। छत्तीसगढ़ वायुमार्ग और रेलमार्ग से जुड़ा है। राजधानी रायपुर में आकर शेष राज्य के लिए घूमने का इंतजाम किया जा सकता है। यहाँ संस्कृति और पर्यटन विभाग का मुख्यालय भी है।
 

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