चिरस्थायी ग्रामीण विकास के लिये कृषि को बढ़ावा

कृषि
कृषि

सरकार के चिरस्थायी ग्रामीण विकास के लिये निवेश वृद्धि, बुनियादी ढाँचे के बेहतर विकास और कृषि अभिशासन में सुधार की तीन सूत्री नीति अपनाई है। इसके अन्तर्गत जहाँ उत्पादन सम्बनधी मूल गतिविधियों को केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित मौजूदा योजनाओं की मुख्यधारा में लाकर उनकी पहुँच का दायरा बढ़ाया गया है वहीं कृषि विपणन, अनुबन्ध पर खेती, जमीन की पट्टेदारी, कीमत और व्यापार नीति तथा कृषि ऋण जैसे क्षेत्रों में भी सुधार किये गए हैं ताकि देश में न केवल खेती का विकास हो बल्कि समूचे ग्रामीण भारत का समावेशी विकास हो सके।

कृषि और सम्बन्धित गतिविधियाँ भारत के 6.40 लाख से अधिक गाँवों में रह रही देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी की आजीविका का मुख्य स्रोत हैं (2011 की जनगणना)। इस तरह कृषि का विकास ग्रामीण विकास की रणनीति का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। भारत की कुल श्रमशक्ति का करीब आधा हिस्सा खेती में लगा है क्योंकि यहाँ रोजगार के वैकल्पिक साधन सीमित हैं और हमारे जैसे कम आमदनी वाले देश में फिलहाल इनके कम ही रहने की सम्भावना है।1 ग्रामीण भारत में पिछले दशक में बड़ा सकारात्मक घटनाक्रम देखा गया है जहाँ लोग दुग्ध उत्पादन, मुर्गीपालन, बागवानी और जलजीव पालन जैसी अधिक आमदनी वाली गतिविधियों के साथ-साथ समूह निर्माण को भी अपनाने लगे हैं।

आमदनी बढ़ाने वाले उपक्रमों में भी बाजार सम्बन्धी नवसृजन से सकारात्मक गतिशीलता दिखाई दी है। खाद्य सुरक्षा सम्बन्धी सरोकारों के दबाव में अतीत में नीतियाँ हरितक्रान्ति सम्बन्धी टेक्नोलॉजी और क्षेत्रों पर अधिक केन्द्रित रहीं जिसका नतीजा यह हुआ कि पानी की कमी वाले बड़े इलाके फायदों से वंचित रह गए। सिंचित कमान विकास क्षेत्रों में औसत निवेश 2.5 से 3 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर था वहीं वर्षाधीन खेती वाले इलाकों में प्रति हेक्टेयर 0.12 से 0.15 लाख रुपए का ही निवेश समन्वित जल प्रबन्धन कार्यक्रम के जरिए किया गया। अनुमानों से पता चलता है कि बारानी खेती की क्षमताओं का पूरा फायदा उठाने के लिये 0.50 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता है। बीज, उर्वरक, विपणन सेवाओं, आधारभूत ढाँचे और फसल कटाई के बाद की गतिविधियों से सम्बन्धित ढाँचे में भी भारी क्षेत्रीय असमानताएँ पाई गईं। सरकार ने चिरस्थायी ग्रामीण विकास के लिये निवेश बढ़ाने और कृषि के क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे और अभिशासन में सुधार के लिये तीन सूत्री रणनीति अपनाई। जहाँ एक ओर केन्द्र द्वारा प्रायोजित मौजूदा योजनाओं का दायरा बढ़ाकर इनके माध्यम से मूल उत्पादन गतिविधियाँ बनाए रखी गईं, वहीं कृषि विपणन ठेके पर खेती, जमीन की पट्टेदारी, कीमत और व्यापार नीति तथा कृषि ऋणों के माध्यम से न सिर्फ कृषि के विकास के लिये बल्कि समूचे ग्रामीण क्षेत्र के समावेशी विकास के प्रयास किये गए।

कृषि और ग्रामीण खुशहाली

गाँवों में आमूलचूल परिवर्तन लाने में कृषि के विकास का महत्त्व नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (National Sample Survey Organisation) के आँकड़ों से भी स्पष्ट हो जाता है। देश में खेती को आजीविका का मुख्य जरिया मानने वाले कृषक परिवारों से सम्बन्धित आँकड़ों के अनुसार देहाती इलाकों में 92 प्रतिशत से अधिक परिवारों की आय की प्रमुख गतिविधि कृषि थी। खेती और पशुपालन से कृषक परिवारों को 67.2 प्रतिशत आय प्राप्त हो रही थी। (चित्र 1) हर महीने करीब 60 प्रतिशत आय खेती और उससे सम्बन्धित गतिविधियों से प्राप्त हो रही थी और मजदूरी 32 प्रतिशत आमदनी प्राप्त हो रही थी। गैर-कृषि कारोबार से कृषक परिवारों को केवल 8 प्रतिशत मासिक आय प्राप्त हो रही थी।

समावेशी विकास के लिये उच्चतर निवेश

2014 से 2018 के दौरान कृषि और इससे सम्बन्धित क्षेत्र में केन्द्र सरकार के सार्वजनिक व्यय में काफी वृद्धि हुई है। कृषि मंत्रालय का संचयी आवंटन, खर्च पिछले तीन साल के दौरान 153100 करोड़ रुपए से अधिक रहा है। कृषकों की आमदनी बढ़ाने के लिये पशुपालन क्षेत्र के निवेश में काफी बढ़ोत्तरी की गई है। 2011 में नई विनिर्माण नीति में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की पहचान सघन रोजगार सृजन वाले प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में की गई। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की प्रधानमंत्री सम्पदा योजना के माध्यम से उत्पादकों और उद्यमियों को प्रोत्साहनों की व्यवस्था की गई है। वर्ष 2018-19 के दौरान खाद्य प्रसंस्करण का बजट आवंटन लगभग दोगुना कर दिया गया है ताकि इससे ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो। समावेशी ग्रामीण विकास के लिये कृषि में आमूल परिवर्तन की प्रमुख पहलों के बारे में नीचे के अनुच्छेदों में चर्चा की गई है।

एक कृषि परिवार की मासिक आय (रुपए में)एक कृषि परिवार की मासिक आय (रुपए में)फोकस्ड फंड का विस्तार

1. नाबार्ड ने 2015-16 में करीब 20,000 करोड़ रुपए की प्रारम्भिक निधि से दीर्घावधि सिंचाई कोष बनाया जिसे 2016-17 में 20,000 करोड़ रुपए और देकर सुदृढ़ किया गया।

2. चुने हुए फूड पार्कों को और उनमें कार्य करने वाली खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को वाजिब दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के लिये नाबार्ड में 2000 करोड़ का खाद्य प्रसंस्करण कोष।

3. पानी की हर बूँद से अधिक-से-अधिक फसल प्राप्त करने का लक्ष्य हासिल करने के लिये नाबार्ड में 5,000 करोड़ रुपए का सूक्ष्म सिंचाई कोष।

4. नाबार्ड में 8,000 करोड़ रुपए का डेरी प्रसंस्करण और आधारभूत ढाँचा विकास कोष का गठन। प्रारम्भ में यह कोष 2000 करोड़ रुपए की निधि से प्रारम्भ किया जाएगा। दुग्ध उत्पादन किसानों के लिये अतिरिक्त आमदनी का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। दुग्ध प्रसंस्करण और बुनियादी ढाँचे की अन्य सुविधाएँ उपलब्ध हो जाने से दुग्ध उत्पादकों को मूल्य संवर्धन का फायदा मिलेगा। इससे अॉपरेशन फ्लड कार्यक्रम के तहत गठित दुग्ध प्रसंस्करण इकाइयों में नई जान डाली जा सकेगी।

5. मत्स्य पालन और जलजीव पालन क्षेत्र की वित्तीय और बुनियादी ढाँचे सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये मत्स्यपालन और जलजीव पालन अवसंरचना विकास निधि (fisheries and aquaculture infrastructure development fund - FAIDF) और पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (Animal husbandry infrastructure development fund - AHIDF) का गठन। इन दो नई निधियों की समग्र निधि 10,000 करोड़ रुपए।

प्राकृतिक संसाधनों को अधिक उत्पादक और फायदेमन्द बनाना

ग्रामीण आबादी का बड़ा हिस्सा अपनी रोजी-रोटी के लिये मुख्य रूप से कृषि-आधारित गतिविधियों पर निर्भर है। लेकिन जमीन और पानी जैसे संसाधनों के छीजने और विकृत होने से खेती में ज्यादा सम्भावनाएँ नहीं बची हैं। ग्रामीण विकास के लिये भूमि और जल का समन्वित विकास बहुत जरूरी है। भारत में प्रति परिवार भूमि की उपलब्धता 1.16 हेक्टेयर और पानी की प्रति व्यक्ति वार्षिक उपलब्धता 1544 घनमीटर है। एक और जमीन एक सामान्य परिवार के भरण-पोषण के लिये पर्याप्त नहीं रह गई है वहीं भारत पानी की कमी वाला देश भी हो गया है जहाँ साल में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1544 घनमीटर है। दुनिया के कई इलाके आज जल की कमी की स्थिति का सामना कर रहे हैं (1000 घनमीटर से कम प्रति व्यक्ति उपलब्धता)। उत्पादक कृषि जोतों को बढ़ावा देने के लिये नीति आयोग ने कृषि भूमि की पट्टेदारी हासिल करने के लिये के एक आदर्श कानून बनाने का सुझाव दिया है। इसके परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड ने जमीन की पट्टेदारी सम्बन्धी अपने कानूनों में संशोधन किया है। मध्य प्रदेश ने भी जमीन के बेहतरीन उपयोग और व्यावसायिक विविधता लाने के उद्देश्य से जमीन की पट्टेदारी के बारे में अलग विधेयक पेश किया है। इन उपायों का ग्रामीण विकास पर जोरदार असर पड़ने की सम्भावना है क्योंकि देश में पट्टे पर जमीन लेकर खेती करने वाले काश्तकार बड़ी तादाद में हैं। अध्ययनों से पता चला है कि ग्रामीण गरीबी और सिंचाई सुविधाओं के विकास के बीच विपरीत सम्बन्ध है और एक के बढ़ने से दूसरा कम होता है। बारानी खेती वाले इलाकों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो जाने से उत्पादकता में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि होती है। सिंचाई में जमीन की उत्पादकता बढ़ने के साथ-साथ खेती में विविधता लाने की सम्भावना भी बढ़ जाती है। वर्ष 2011-12 के दौरान देश में सिंचित क्षेत्र में 1.14 करोड़ हेक्टेयर की शुद्ध बढ़ोत्तरी हुई जिसमें से 63.6 प्रतिशत ट्यूबवेल और अन्य संसाधनों से हुई। सिंचाई क्षमता का लाभ उठाने की दृष्टि से सतही जल संसाधनों के उपयोग में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई। ग्रामीण क्षेत्रों में आमूल परिवर्तन लाने में पानी के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (pradhan mantri krishi sinchai yojana - PMKSY) के माध्यम से जल क्षेत्र में तालमेल कायम करने के लिये चिर-प्रतीक्षित कदम उठाए गए हैं।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना कृषि, जल संसाधन और ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों के बीच व्यापक समन्वय कायम करती है। इसका उद्देश्य सिंचाई की सप्लाई-चेन में स्रोत से लेकर खेत तक के उपयोगों में समस्याओं का आद्योपांत समाधान करना है। 2020 तक 80.6 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता के सृजन का लक्ष्य रखा गया है। हर साल करीब 5 लाख तालाबों के निर्माण के लिये मनरेगा के साथ तालमेल की व्यवस्था की गई है। सूक्ष्म सिंचाई के तहत ‘हर बूँद से अधिक-से-अधिक फसल’ प्राप्त करने पर जोर दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अन्तर्गत सूक्ष्म सिंचाई कार्यक्रमों में उपकरणों और तकनीक पर स्पष्ट रूप से जोर दिया जा रहा है जिससे संरक्षित सिंचाई और खेत में पानी के उपयोग की दक्षता बढ़ाने में मदद मिली है। वर्ष 2015-16 से करीब 17 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के अन्तर्गत लाया गया है। 5000 करोड़ रुपए की निधि के अलावा सूक्ष्म सिंचाई के सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल को क्षेत्रीय दृष्टिकोण के साथ कई राज्यों में मुख्य रूप से अपनाया जा रहा है। ग्रामीण परिवारों की आमदनी बढ़ाने और सूक्ष्म सिंचाई के जरिए कृषि में विविधता लाने में सफलता उत्साहवर्धक रही है। इससे आमदनी में खेती के पारम्परिक तरीके अपनाने वाले कृषक परिवारों के मुकाबले 69 प्रतिशत से लेकर 348 प्रतिशत तक (1 लाख रुपए से 1.5 लाख रुपए प्रति एकड़) की बढ़ोत्तरी हुई है और छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना और अन्य राज्यों के किसानों ने ड्रीप सिंचाई के जरिए फलों, सब्जियों और मसालों की खेती शुरू कर दी है। गाँवों के गरीबों को सबसे उत्साहजनक फायदा वहाँ हुआ है जहाँ सिंचाई के लिये पानी की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। (ग्राफ-4)। इसके फायदे विविधतापूर्ण कृषि जलवायु वाले 13 राज्यों में देखे जा सकते हैं। सिंचाई की वजह से किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी ने यह बात साबित कर दी है कि प्रधानमंत्री किसान सिंचाई योजना के तहत सूक्ष्म सिंचाई का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त असर पड़ने वाला है।

ग्रामीण परिवारों की आमदनी बढ़ाने के लिये कृषि उत्पादकता बढ़ाना जरूरी

उत्पादकता की दृष्टि से लगभग सभी कृषि जिंसों की पैदावार के लिहाज से दुनिया में हमारी उत्पादकता सबसे कम है। उत्पादकता बढ़ाने में बीज और उर्वरकों का महत्त्व सबसे अधिक होता है। सरकार ने देश भर में राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के संस्थानों के बीज केन्द्र बनाए हैं ताकि दलहनी फसलों के बीजों की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी हो। इसके अलावा 2018-19 में भी 25 अतिरिक्त बीज केन्द्र खोले गए हैं ताकि उच्च पौष्टिकता वाली फसलों के उच्च गुणवत्ता के बीज उपलब्ध कराए जा सकें। उर्वरकों के उपयोग में कमी लाने के लिये मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil health card scheme) चलाई जा रही है। इस कार्ड से किसानों को अपनी जमीन की उर्वरता के स्तर की जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है और वह अधिक उपज प्राप्त करने के लिये फसल की जरूरत के हिसाब से सही मात्रा में उर्वरक और अॉर्गेनिक खाद का उपयोग कर सकता है। सन्तुलित मात्रा में उर्वरक का पता चल जाने से न केवल खेती की लागत में कमी आएगी बल्कि मिट्टी की उर्वराशक्ति को बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।

अब तक 10.73 कृषक परिवारों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड बाँटे जा चुके हैं (तालिका-1) यूरिया के दुरुपयोग को नियंत्रित करने के लिये नीम लेपन की शुरुआत की गई है ताकि इसका उपयोग कृषि कार्यों में ही सुनिश्चित किया जा सके और किसानों की लागत में कमी आये। बायो टेक्नोलॉजी विभाग ने आधार समन्वित मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की है ताकि उर्वरकों के सन्तुलित उपयोग को बढ़ावा मिले और उनके वितरण और बिक्री में पारदर्शिता आये। इस समय खेती मे बिजली का औसत उपयोग 1.84 किलोवाट प्रति हेक्टेयर है जिसे 2020 तक बढ़ाकर 2.2 किलोवाट हेक्टेयर किया जाना है। यह बात साबित हो चुकी है कि कृषि उत्पादकता और खेती के लिये बिजली की उपलब्धता का सीधा सम्बन्ध कृषि में यंत्रों और उपकरणों के उपयोग में वृद्धि से है।

कृषि परिवार का रोजगार और आय वितरणकृषि परिवार का रोजगार और आय वितरणपंजाब हरियाणा जैसे राज्यों में खेती का यंत्रीकरण अधिक होने से उत्पादकता कम यंत्रीकरण वाले राज्यों के मुकाबले बहुत अधिक है। राष्ट्रीय कृषि प्रसार और टेक्नोलॉजी मिशन के अन्तर्गत कृषि मशीनरी को बढ़ावा देने के लिये कस्टम हायरिंग सेंटरों (CHC) को बढ़ावा दिया जा रहा है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में फसल अपशिष्ट प्रबन्धन को सर्वोच्च प्राथमकिता दी जा रही है जिसके अन्तर्गत यांत्रिक विधियों का उपयोग करके किसानों के खेतों में ही फसलों के अपशिष्ट पदार्थों का निपटान कर दिया जाता है। सरकार ने ग्रामीण उद्यमियों के जरिए फसलों के अपशिष्ट के खेतों में ही निपटान के लिये 1151.80 करोड़ रुपए लागत की एक योजना प्रारम्भ की है।

 

तालिकाः1 मृदा स्वास्थ्य कार्ड की अखिल भारतीय स्थिति

विवरण

प्रथम चक्र (2015-2017)

द्वितीय चक्र (2017-2019)

मिट्टी के नमूने एकत्र करने और उनके परिक्षण का लक्ष्य (सं.)

25349546

28011869

एकत्र किये नमूनों की संख्या

25349546 (100 प्रतिशत)

23316624 (83.24 प्रतिशत)

परीक्षण किये गए नमूनों की संख्या

25349546 (100) प्रतिशत

14549698 (51.94 प्रतिशत)

मृदा स्वास्थ्य कार्डों के मुद्रण और वितरण का लक्ष्य

107389421

122045175

मुद्रित मृदा स्वास्थ्य कार्डों की संख्या

107389421 (100 प्रतिशत)

50580440 (41.44 प्रतिशत)

वितरित मृदा स्वास्थ्य कार्डों की संख्या

107389421 (100 प्रतिशत)

46083032 (37.76)

 

ग्रामीण परिवारों को जोखिम से मुक्त कराना

फसल खराब होना एक ऐसा संकट है। जिसका सामना भारत में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कभी-न-कभी करना ही पड़ता है। बारानी खेती वाले इलाकों में इसकी तीव्रता और बारम्बारता अधिक होती है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों और उपभोक्ताओं, दोनों पर ही असर पड़ता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (pradhan mantri fasal bima yojana) जनवरी 2016 में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (rashtriya krishi bima yojana) संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना जैसी कई बीमा योजनाओं को समाहित कर प्रारम्भ की गई।

ग्रामीण इलाकों में खेती के जोखिमों के असर को दूर करने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना एक कारगर और कुशल औजार है। इसे और अधिक समावेशी बनाने के लिये कई उपाय किये गए हैं जिनके तहत जुताई योग्य भूमि पर की जाने वाली खेती के लिये प्रीमियम की दर सिर्फ 1.5 से 2.0 प्रतिशत और फलों, सब्जियों तथा बागानी फसलों, के लिये बीमित राशि के 5 प्रतिशत के बराबर निर्धारित की गई है। वर्ष 2016-17 के बाद प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिये आवंटन लगभग तीन गुना कर दिया गया है। अब तक 24 राज्यों और 3 केन्द्र शासित प्रदेशों में यह योजना लागू है और 2016-17 में खेती वाले करीब 58 लाख हेक्टेयर इलाके को इसके दायरे में लाया गया है। इसकी एक दिलचस्प बात यह है कि योजना के तहत जिन किसानों ने आवेदन किया उनमें से 24 प्रतिशत कर्जदार नहीं रहे हैं।

तालिकाः 2 2016-17 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की उपलब्धियाँ

2016-17 के दौरान कवरेज का ब्यौरा

खरीफ फसल 2016

रबी फसल 2016-17 (अन्तिम)

कुल

कर्जदारों के आवेदन (लाख में)

299.05

139.92

438.97

गैर-कर्जदारों के आवेदन (लाख में)

102.48

32.8

135.28

किसानों के कुल आवेदन (लाख में)

401.53

172.78

574.25

बीमित क्षेत्र (लाख हे.)

385.34

195.82

581.16

बीमित राशि (करोड़ रुपए में)

134582

66837

201420

भुगतानशुदा दावे (करोड़ रुपए में)

6233.69

1493.38

7727.07

लाभान्वित किसान (लाख में)

84.9

5.89

90.79

ग्रामीण और कृषि वित्तीय समावेश

पिछले अनुभवों पर आधारित अध्ययनों से संकेत मिलता है कि संस्थागत ऋणों से किसान परिवारों की आमदनी में प्रति व्यक्ति 2 डॉलर की मासिक वृद्धि होती है। वर्ष 2000-01 से किसानों के संस्थागत ऋणों में 18 गुना बढ़ोत्तरी हुई है और उन्हें कम ब्याज पर कर्ज मिलने लगे हैं (ग्राफ-3)। लेकिन छोटे और सीमान्त किसानों की ऋणों तक पहुँच और ऊँची ब्याज दरें चिन्ता का विषय हैं।

हाल में इसी सिलसिले में दो महत्त्वपूर्ण निर्णय किये गए हैं जिनके अनुसार 3 लाख रुपए तक के अल्पावधि फसली ऋणों पर ब्याज में छूट दी गई है और किसान क्रेडिट कार्य योजना का दायरा बढ़ाकर आवधिक ऋणों, उपभोग सम्बन्धी खर्च हेतु लिये गए ऋणों और दुर्घटना में मृत्यु की स्थिति में जोखिम सुरक्षा को भी इसमें शामिल कर लिया गया है। जो किसान समय पर अपने ऋणों की अदायगी कर देता है वह 4 प्रतिशत की ब्याज दर पर फसली ऋण पाने का पात्र हो जाता है। नेगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स (negotiable warehouse receipt - NWR) के आधार पर भी फसल कटाई के बाद दिये जाने वाले ऋणों का वितरण भी किया जा रहा है और इनमें ब्याज में रियासत का फायदा भी दिया जा रहा है। सरकार ने कृषि ऋणों को और अधिक समावेशी बनाया है और काश्तकार या बटाईदार, पशुपालकों और मछलीपालन करने वालों को भी संस्थागत ऋण देने का प्रावधान किया है। जमीन के मालिकाना हक की हिफाजत के लिये कानूनी व्यवस्था के साथ-साथ काश्तकारों को उनके कार्य में सहायता देने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए नीति आयोग ने कृषि भूमि को पट्टे पर देने के लिये 2016 में एक आदर्श कानून पर प्रारूप तैयार किया। राज्य इसके आधार पर जमीन को पट्टे पर देने का कानून बना सकते हैं। इससे कृषि क्षेत्र में बढ़ोत्तरी के साथ ही खेती में निवेश में भी बढ़ोत्तरी की सम्भावना है।

आमदनी बढ़ाने की गतिविधियों में विविधता के प्रयास

शहरी इलाकों में ऊँची आमदनी का आकर्षण और ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसरों की कमी की वजह से लोग गाँव छोड़कर शहरों को पलायन कर रहे हैं। इससे कृषि में वाणिज्यिक तौर-तरीकों को बढ़ावा मिला है। ठेके पर खेती, शुल्कों व कर प्रणाली, निर्यात संवर्धन और ऋण उपलब्ध कराने जैसी गतिविधियों में सुधार से खेती में व्यावसायीकरण को अनुकूलतम बनाने को बढ़ावा मिला है और मूल्य शृंखला को राष्ट्रीय आय और रोजगार के अनुरूप बनाने में मदद मिली है। उच्च लागत वाली वस्तुओं को अपनाने के रुझान से किसानों की आमदनी में काफी वृद्धि हो सकती है, जैसाकि वर्ष 2013-14 के उत्पादन के आँकड़ों से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है। (सीएसओ 2013-14)।

वर्ष 2018-19 में आवंटन/खर्च में बदलाववर्ष 2018-19 में आवंटन/खर्च में बदलावफल और सब्जियों की फसल से प्रति हेक्टेयर औसतन 3.30 लाख रुपए का उत्पादन होता है जबकि इतनी ही जमीन पर अनाज उगाने से 0.38 लाख रुपए, दलहन उगाने से 0.29 लाख रुपए और तिलहन उगाने से 0.49 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर प्राप्त होते हैं। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अनाज जैसी फसलें उगाने की बजाय फल और सब्जियाँ उगाकर किसान अपनी उपज की लागत बढ़ा सकते हैं। आन्ध्र प्रदेश और गुजरात में ग्रामीण गरीबी में तेजी से गिरावट का कारण यही है कि वहाँ पिछले 15 वर्षों में खेती में विविधता आई है। छोटे किसान भी उच्च लागत वाले उत्पादों को अपनाकर कम जमीन पर अधिक पारिवारिक श्रमशक्ति का उपयोग करते हुए अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। औषधीय और सुगन्धित पौधों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। जिससे पारिवारिक आय बढ़ाने में मदद मिली है। देश में जड़ी-बूटियों की 8,000 किस्में पाई जाती हैं और सुगन्ध वाली सामग्री बेचने वाले बाजार के आँकड़ों से इनके उत्पादन में लगातार वृद्धि होने का संकेत मिलता है।

भारत में इत्र और सुगन्धि का कारोबार करीब 3.17 अरब डॉलर का बताया गया है। औषधीय और सुगन्ध वाले पेड़-पौधों की खेती को संगठित रूप से बढ़ावा देने और इनसे सम्बद्ध सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लाभ के लिये 200 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। किसानों को सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिये प्रोत्साहित करके और उनके द्वारा उत्पादित अतिरिक्त बिजली को विद्युत ग्रिड या वितरण कम्पनियों को बेचकर किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ कृषि सम्बन्धी गतिविधियों में चिरस्थायित्व का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। मवेशियों के गोबर और कृषि के ठोस अपशिष्ट का उपयोग करके कम्पोस्ट, बायोगैस और बायो-सीएनजी जैसे कार्बनिक बायो-एग्रो संसाधन बनाने की ‘गोवर्धन योजना’ की भी घोषणा की गई है।

ग्रामीण बुनियादी ढाँचे का विकास

ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कृषि पर आधारित स्वरूप अब बदलने लगा है और कई तरह की गतिविधियाँ इसमें शामिल हो रही हैं। लेकिन बुनियादी ढाँचे की कमी इसमें बड़ी बाधा है जैसाकि ग्रामीण सड़कों की सघनता, सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता, बिजली आपूर्ति, विपणन सुविधाएँ व नेटवर्क, गोदान, शीत भण्डार, शीतगृह शृंखला और प्रसंस्करण अवसंरचना से बात स्पष्ट हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार फलों की पैक हाउस सुविधाओं में 99 प्रतिशत, रीफर वैन में 85 प्रतिशत, कोल्ड स्टोर्स में 10 प्रतिशत और फलों को पकाने की सुविधा में 91 प्रतिशत की कमी आई है। विपणन के लिये बुनियादी स्थान मंडियों के बिक्री स्थल हैं। औसतन ये करीब 463 वर्ग किलोमीटर की दूरी 12 किलोमीटर के दायरे में) पर पाये जाते हैं इनका वांछित स्तर हर 80 वर्ग किलोमीटर (करीब 5 किमी. के दायरे में) होना चाहिए। विभिन्न राज्यों के बीच भी व्यापक असमानताएँ पाई गई हैं। पंजाब में हर 6 किमी. के दायरे मे एक थोक मंडी है तो असम में 45 किमी. में यह सुविधा मिलती है। बिजली की खपत के लिहाज से खेती में यंत्रों का उपयोग भी काफी कम है। इसका स्तर 1.84 किलोवाट प्रति हेक्टेयर है जबकि विशेषज्ञों के अनुसार इसे 2.2 किलोवाट हेक्टेयर होना चाहिए। इसी सिलसिले में केन्द्र द्वारा प्रायोजित कई योजनाएँ और केन्द्रीय क्षेत्र की योजना चल रही हैं जिनमें किसानों और उद्यमियों को बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये प्रोत्साहन दिये जाते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में मूल्य-शृंखला में नई जान फूँकने के प्रयास

सुगम और विकेन्द्रित बाजार-ढाँचे के निर्माण के लिये किसान और थोक मंडियों के बीच मजबूत सम्पर्क की आवश्यकता लम्बे समय से महसूस की जाती रही है। सरकार ने गाँवों के 22,000 हाट बाजारों को उन्नत कर उन्हें ग्रामीण कृषि बाजारों (GRAMS) में बदलने का एक महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम प्रारम्भ किया है जो किसानों के इकट्ठा होने, उनकी उपज के समेकन और स्थानीय खुदरा बाजार की तरह कार्य करेगा। इसके लिये प्रारम्भ में 2000 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। ग्राम्स (grams) एकीकृत राष्ट्रीय बाजार की परिकल्पना को साकार करने के लिये व्यवस्थित सम्पर्क कायम करेगा जिसके तहत फसल समेटने के बाद की बुनियादी गतिविधियों को ग्राम-स्तर पर किसानों द्वारा निपटाया जा सकेगा। इन ‘ग्राम्स’ के निर्माण के लिये कृषि योजनाओं और मनरेगा के साथ इसका तालमेल कायम करने की बात भी सोची जा रही है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तृतीय चरण में ग्रामीण बस्तियों को साल भर खुली रहने वाली सड़कों के जरिए ‘ग्राम्स’ से जोड़ने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

ग्रामीण परिवारों को लाभप्रद मूल्य

मूल्य नीति का उद्देश्य न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के जरिए उत्पादकों को लाभकारी मूल्य प्रदान करना है। लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति का कार्यान्वयन कुछ ही उत्पादों (चावल, गेहूँ, कपास और गन्ने) में मूल्य निर्धारण तक सीमित रहा है और भौगोलिक विस्तार की दृष्टि से भी यह पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश तक सीमित है। इसे समावेशी बनाकर सभी राज्यों और उत्पादों को इसके दायरे में लाने की आवश्यकता है। देखा गया है कि सभी राज्यों के किसान सभी प्रमुख कृषि जिंसों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी गारंटी की माँग कर रही हैं। सरकार न उत्पादन लागत के 150 प्रतिशत के समतुल्य या इससे अधिक का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का क्रान्तिकारी निर्णय लिया है। इस तरह घोषित समर्थन मूल्य से ग्रामीण आय का समूचा परिदृश्य ही बदल जाएगा। पहली बार न्यूनतम समर्थन मूल्य के क्रियान्वयन को समावेशी बनाया जा रहा है। सभी राज्यों में 25 अधिसूचित फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की प्रणाली के बारे में विचार किया गया है। इस सम्बन्ध में नीति आयोग ने तीन प्रणालियों का सुझाव दिया है जिनमें बाजार आश्वासन, मूल्य में कमी के लिये भुगतान और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर निजी आढ़तियों द्वारा खरीद की प्रणाली शामिल है। इन तीनों का समन्वय करके बनाई गई एक विस्तृत प्रणाली जल्द ही शुरू किये जाने की सम्भावना है जिसके तहत इन फसलों के विपणन योग्य कम-से-कम 40 प्रतिशत अतिशेष की खरीद की जा सकेगी।

कृषि से फार्म परिवार की आय में वृद्धि (प्रतिशत में)कृषि से फार्म परिवार की आय में वृद्धि (प्रतिशत में)कृषि बाजारों और विपणन के आधुनिकीकरण के लिये नया आदर्श कृषि और कृषि उत्पाद तथा पशुधन विपणन अधिनियम (Agricultural Produce and Livestock Market Committee), 2017 का सुझाव दिया गया। इस आदर्श कानून में मंडी से बाहर के सौदों और जल्दी नष्ट हो जाने वाले बागानी उत्पादों को बाजार शुल्क से छूट देने के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक विपणन आदि के बारे में भी स्पष्ट प्रावधान किये गए हैं। सरकार ने मई 2018 में अनुबन्धित खेती के बारे में भी आदर्श अधिनियम जारी किया है ताकि राज्यों को उत्पादकों और खरीदारों (प्रायोजकों) के हितों के संरक्षण के लिये कानून बनाने में मदद मिले। आदर्श अधिनियम किसानों को अपनी उपज के दामों के बारे में स्वयं फैसला करने और दामों की गारंटी हासिल करने के लिये प्रायोजकों के साथ मोल-भाव करने का अवसर प्रदान करता है।2 राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) की शुरुआत 14 अप्रैल, 2016 को 200 करोड़ रुपए के आवंटन से हुई। इसमें अॉनलाइन ई-मंडियों को आपस में जोड़ दिया गया है। इसका लक्ष्य चिर-प्रतीक्षित कृषि विपणन सुधारों की शुरुआत करना है ताकि किसानों को उनकी उपज के बेहतर दाम दिलाए जा सकें। इसमें कृषि उपज विपणन समितियों से सम्बन्धित तमाम सूचनाएँ और सेवाएँ एक ही स्थान पर उपलब्ध करा दी गई हैं। किसान अपने निकट की किसी मंडी से अपने उत्पादों को अॉनलाइन दिखा सकते हैं और व्यापारी किसी भी स्थान से बोली लगा सकते हैं। मार्च 2018 तक देश भर में राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेशों की 585 विनियमित थोक मंडियाँ साझा ई-मार्केट प्लेटफार्म से जुड़ चुका थीं।

छोटे और सीमान्त किसानों को मूल्य शृंखला में शामिल करना

देश में विभिन्न कार्यक्रमों के तहत 3500 से अधिक किसान उत्पादक संगठन (Farming productivity organization - FPO) बनाए जा चुके हैं। ये ग्रामीण भारत में छोटे और सीमान्त किसानों के लिये सही मायने में क्रान्तिकारी बदलाव के संवाहक हैं। नाबार्ड ने अपने उत्पादक संगठन विकास निधि (Productive organization development fund - PODF) के अन्तर्गत पिछले 4-5 साल में 200 से अधिक उत्पादक संगठनों को ऋण के साथ-साथ अन्य सहायता भी उपलब्ध कराई हैं। पीओडीएफ कार्यक्रम से प्राप्त अनुभव के आधार पर सरकार ने 2000 नए एफपीओ के निर्माण और विकास के लिये 2014-15 में नाबार्ड में 200 करोड़ रुपए का समर्पित कोष बनाया। बाद में नाबार्ड ने 29 राज्यों में 2174 नए एफपीओ का विकास किया। एग्रीबिजनेस यानी कृषि-व्यापार के क्षेत्र में भविष्य की निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की संयुक्त पहल में क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण पर स्पष्ट रूप से ध्यान केन्द्रित कर कृषि का विस्तृत विकास किया जा सकता है। इसके अलावा किसान उत्पादक कम्पनियों को समन्वित करके सरकार ने 100 करोड़ से कम करोबार वाली फार्मर-प्रोड्यूसर कम्पनियों (farmer producer companies - FPC) को अगले पाँच साल में करों में शत-प्रतिशत छूट देने की घोषणा की है। एफपीओ देश में पूरे साल टमाटर-प्याज-आलू (टीओपी) की आपूर्ति के प्रबन्ध के लिये हाल में शुरू किये गए अॉपरेशन ग्रीन कार्यक्रम (Operation Green Program) की आधारशिला हैं। अॉपरेशन ग्रीन के लिये 500 करोड़ रुपए रखे गए हैं जिसके माध्यम से कृषि लॉजिस्टिक्स, प्रसंस्करण सुविधाओं और टमाटर, प्याज और आलू की फसलों की प्रसंस्करण सुविधाओं तथा उनके व्यावसायिक प्रबन्धन को बढ़ावा दिया जाएगा।

कृषि हेतु ऋण प्रवाहकृषि हेतु ऋण प्रवाह निष्कर्ष

व्यवसाय के रूप में ग्रामीण क्षेत्र में कृषि का विकास हो रहा है हालांकि यह और बात है कि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले खेती के विकास की दर धीमी है। हाल में खाद्य सुरक्षा और आमदनी सुरक्षा की प्राथमिकताओं को भी इसमें शामिल करने के लिये की गई पहलों ने कृषि को और भी समावेशी बना दिया है। ग्रामीण परिवारों की आमदनी बढ़ाने के लिये माहौल तैयार करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल और कार्यक्रम प्रारम्भ किये गए हैं। इनका असर तभी चिरस्थायी बना रहेगा जब इन्हें विकास योजनाओं की मुख्यधारा में शामिल किया जाये। ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों और प्राथमिकताओं को आधान-लागत में किफायत करने वाली कृषि टेक्नोलॉजी के साथ समेकित किये जाने से कम प्राकृतिक संसाधनों से अधिक पैदावार ली जा सकेंगी जिससे गाँवों में खुशहाली आएगी और कृषि के क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव आएगा।

फुटनोट

1. खाद्य और कृषि संगठन की रिपोर्ट 2011-12।
2. महाराष्ट्र ने दलहनों और कुछ अन्य फसलों की अनुबन्ध आधार पर खेती की शुरुआत की है।

(लेखक नीति आयोग, नई दिल्ली में कृषि सलाहकार हैं।)

ई-मेलःmishrajaip@gmail.com


TAGS

rural development, investment in agriculture, trades related to agriculture, agriculture on lease, agricultural loan, trade policies, labour used in agriculture, dairy farming, aqua farming, horticulture, hatchery, food security, irrigated command area development, use of fertilizers, dairy processing, food processing industries, sustainable development of villages, minimum support price, operation green upsc, operation green gktoday, operation green pib, operation green in hindi, operation green related to which vegetables, operation greens ministry, operation greens upsc, operation green gold, What are farmer producer organizations?, What is the meaning of producer company?, What is the meaning of FPO?, list of farmer producer companies in india, farmer producer company wiki, farmer producer company ppt, farmer producer company meaning, farmer producer company examples, list of farmer producer companies in india 2017, successful farmer producer companies in india, farmer producer company guidelines in hindi, nabard producer organisation development fund, farmer producer organization ppt, farmer producer organizations (fpo), farmer producer organization pdf, farmer producer company guidelines in hindi, farmer producer organization registration process, farmer producer organisation registration, sfac fpo guidelines, Page navigation, apo secretariat, national productivity council, international productivity organization, apo training courses, apo guide for participants, apo website, agricultural produce and livestock marketing act 2017 prs, agricultural produce market committee, model apmc act 2017 pib, model apmc act 2017 pdf, model apmc act 2017 prs, aplm act 2017 pib, agriculture market committee, model apmc act 2017 summary, model apmc act 2017 pib, model apmc act 2017 pdf, agricultural produce and livestock marketing act 2017 prs, model apmc act 2017 prs, model apmc act 2017 summary, apmc act pdf, model apmc act 2003, model aplm act 2017, agricultural produce and livestock marketing act 2017 prs, model apmc act 2017 pib, aplm act 2017 pib, agricultural produce market committee, model apmc act 2017 pdf, aplm act 2017 in hindi, apmc act 2018, aplm act 2017 upsc, gobardhan yojana ministry, gobardhan yojana in hindi, gobardhan yojana pib, gobardhan yojana full form, gobardhan yojana state, gobar dhan yojana wikipedia, gobardhan yojana wiki, gobardhan yojana in gujarat, Is warehouse receipt a negotiable instrument?, What is warehouse receipt financing?, What is Wdra?, negotiable warehouse receipt pib, negotiable warehouse receipt india, negotiable warehouse receipt gktoday, negotiable warehouse receipt example, non negotiable warehouse receipt, negotiable warehouse receipt upsc, negotiable warehouse receipt regulated by, negotiable vs non-negotiable warehouse receipt, rashtriya krishi bima yojana was introduced in which year, rashtriya krishi bima yojana launched, rashtriya krishi bima yojana in hindi, rashtriya krishi bima yojana kab prarambh hui, rashtriya krishi bima yojana 1999, rashtriya krishi bima yojana online, rashtriya krishi bima yojana wikipedia, rashtriya krishi bima yojana kab lagu kiya gaya, pradhan mantri fasal bima yojana details, pradhan mantri fasal bima yojana online registration, pradhan mantri fasal bima yojana in karnataka, pradhan mantri fasal bima yojana 2018, pradhan mantri fasal bima yojana wiki, pradhan mantri fasal bima yojana 2017, pradhan mantri fasal bima yojana form pdf, pradhan mantri fasal bima yojana pdf, crop insurance online, crop insurance benefits, crop insurance portal, crop insurance maharashtra, pradhan mantri fasal bima yojana details, pradhan mantri fasal bima yojana in karnataka, pmfby kharif 2017, crop insurance odisha 2017, custom hiring centre wiki, custom hiring centre haryana, custom hiring centre rajasthan, custom hiring centre west bengal, custom hiring centre in up, custom hiring centres in andhra pradesh, custom hiring centre scheme, custom hiring definition, soil health card scheme pib, soil health card scheme upsc, soil health card scheme gktoday, soil health card scheme pdf, soil health card scheme launched in which state, soil health card scheme guidelines, soil health card scheme in hindi, soil health card ministry of agriculture, indian agricultural research institute, icar exam syllabus, indian agricultural research institute admission 2018, icar 2018 application form, icar entrance exam 2018, icar exam 2018 syllabus, icar colleges, www.icar.org.in 2018, private agriculture university in india, top agriculture university in india, how many central agricultural university in india, agriculture university in maharashtra, top 10 agricultural university in india 2017, government agriculture colleges in india, agriculture university in up, first agriculture university in india, Which is the first agricultural university in India?, What is BSC agriculture course?, What is agriculture college?, Where was the first agricultural university of India established?, pradhan mantri krishi sinchai yojana gktoday, pradhan mantri krishi sinchai yojana pib, pradhan mantri krishi sinchai yojana upsc, pradhan mantri krishi sinchai yojana objectives, pradhan mantri krishi sinchai yojana in hindi, pradhan mantri krishi sinchai yojana launch date, pradhan mantri krishi vikas yojana, pradhan mantri krishi sinchayee yojana pdf, animal husbandry infrastructure development fund pib, animal husbandry infrastructure development fund ahidf, fisheries and aquaculture infrastructure development fund, fisheries infrastructure development fund, animal husbandry minister, agri market infrastructure fund, fisheries and aquaculture infrastructure development fund (faidf), fishery and aquaculture infrastructure development fund, fisheries and aquaculture infrastructure development fund upsc, fisheries and aquaculture infrastructure development fund pib, fisheries and aquaculture infrastructure development fund (faidf), fisheries and aquaculture infrastructure development fund gktoday, animal husbandry infrastructure development fund, agri market infrastructure fund, agri market infrastructure fund pib, agri market development fund.


Path Alias

/articles/cairasathaayai-garaamaina-vaikaasa-kae-laiyae-karsai-kao-badhaavaa

Post By: editorial
×