मराठवाड़ा समेत सभी सूखाग्रस्त जिलों में पिछले 8-10 दिनों की बरसात ने जो राहत दी है उसके कारण हताश और निराश किसानों की जिन्दगी में फिर से खुशियाँ लौट आई हैं। मौसम विभाग के अनुसार लौटते मानसून की बरसात अभी बाकी है। सच तो यह है कि आज तक हुई बरसात ने ही सूखाग्रस्त मराठवाड़ा की चिन्ता दूर की है। हालाँकि अभी और बारिश हुई तो बचे-खुचे बाँध भी लबालब हो जाएँगे। निरन्तर सूखे में झुलसते मराठवाड़ा को और क्या चाहिए?
महाराष्ट्र में इन दिनों जो सुखद तस्वीर दिखाई दे रही है उसे देखकर प्रकृति और इंद्रदेव का आभार जताना चाहिए। सितम्बर का दूसरा पखवाड़ा कुछ ऐसी बरसात लेकर आया कि महाराष्ट्र का सूखा, खासतौर पर मराठवाड़ा पर मँडराते सूखे के बादलों को तड़ीपार कर गया। कोंकण, मुम्बई, पश्चिम महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र, विदर्भ पर तो पिछले सप्ताह बारिश ने जलाभिषेक किया ही, साथ ही लगातार 4 वर्षों से सूखे की आग में झुलसते मराठवाड़ा पर भी वह प्रसन्न हो गई। इस बार मृगनक्षत्र से ही इंद्रदेव ने अपनी कृपा-दृष्टि बरकरार बनाए रखी थी। आमतौर पर दक्षिण की ओर से आने वाला मानसून इस साल पहली बार पश्चिम की ओर से दाखिल हुआ। जून के पहले सप्ताह में बंगाल के उपसागर पर से आए बादलों ने मराठवाड़ा और खानदेश को भिगो दिया। उसके बाद भी बिना किसी रूठा-रूठी के निश्चित अन्तराल पर बारिश होती रही। अच्छी बरसात के कारण पिछले 4 वर्षों से रेगिस्तान बनी खेती लहलहा उठी, खेत-खलिहान हरे-भरे हो गए। गरीब किसानों के चेहरों पर एक बार फिर खुशी चमक उठी।समाधानकारक बारिश होने के बावजूद मराठवाड़ा को एक चिन्ता सतत सता रही थी। जिले के तालाब, छोटी-बड़ी परियोजनाएँ और बाँध तकरीबन सूखे ही थे। उस पर बारिश के खत्म होने का समय आ गया और तभी बरखा रानी कुछ ऐसी बरसीं कि इस चिन्ता को उन्होंने चुटकियों में खत्म कर दिया। 15 दिन पूर्व जो परियोजनाएँ सूखी पड़ी थीं वे चार दिनों की बारिश में ओवरफ्लो हो गईं। जिन बाँधों में नाममात्र का पानी था वे भी लबालब भर गए। सूखे को धो डालनेवाली बरसात ने सालाना औसत तो हासिल कर ही लिया, साथ ही पीने के पानी की समस्या को भी काफी हद तक सुलझा दिया। लातूर, धाराशिव और बीड इन तीन जिलों में पिछले तीन-चार वर्षों से लगातार सूखा पड़ रहा था। हालाँकि इन सर्वाधिक सूखाग्रस्त जिलों में सितम्बर के आखिर में हुई बरसात ने चमत्कार कर दिया। कई तहसीलों में अतिवृष्टि हुई। माजलगाँव, माँजरा, मानार बाँध लबालब भर गए। कभी न भरनेवाला तेरणा बाँध भी इस बार 50 प्रतिशत तक भर गया। रेणा, मांजरा और तेरणा नदी पर बनाए गए बाँधों में भी 75 प्रतिशत जलसंचय हो गया है।
जिन लातूर, धाराशिव और बीड जिलों में चार माह पहले जहाँ दूर-दूर तक पानी की बूँद तक नजर नहीं आ रही थी उन जिलों में आज जहाँ देखो वहाँ पानी ही पानी दिखाई दे रहा है। ऐसा ‘छप्पर-फाड़’ चमत्कार सिर्फ प्रकृति ही कर सकती है। सरकार कितना ही पैबंद लगाने की कोशिश क्यों न करे फिर भी प्रकृति के समान चमत्कार मानव निर्मित प्रयत्नों से साधना असम्भव ही है। लातूर, बीड और धाराशिव जिलों में हुई बरसात ने यही साबित कर दिया है। नासिक और नगर जिलों में भी इस बार अच्छी ही बरसात हुई, जिससे गोदावरी, प्रवरा, मुला, मुठा और अन्य नदियाँ उफान पर हैं। नगर और नासिक के बाँध भी लबालब भर गए हैं। गर्मी में जिस सूखाग्रस्त मराठवाड़ा को पानी देने के मुद्दे पर नगर और नासिक में आंदोलन हो रहे थे, उसी जिले के पानी को बाढ़ के डर से न माँगने पर भी मराठवाड़ा के जायकवाड़ी बाँध में पानी प्रचण्ड गति से दाखिल हो रहा था। इसे भी एक तरह से प्रकृति का चमत्कार ही मानना होगा।
आज जायकवाड़ी बाँध का जलस्तर 71 प्रतिशत तक पहुँच गया है। गोदावरी नदी के 11 बाँधों में भी जलसंचय 62 प्रतिशत है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के चलते बाभली के बाँध से आज भी मराठवाड़ा के अधिकार का पानी तेलंगाना में बहकर जा रहा है। 28 अक्टूबर तक बाँध के दरवाजे खुले ही रहने चाहिए ऐसा अदालती फरमान है। इसी वजह से मराठवाड़ा की गोदावरी के पानी से तेलंगाना का पोचमपाड बाँध भी लबालब भर गया है। अक्टूबर के आखिर में जब सारा पानी बह जाएगा तब बाँध के दरवाजों को बंद करने का भला क्या लाभ। पानी को यदि तेलंगाना में ही बह जाने देना हो तो बाभली बाँध के निर्माण पर जो खर्च हुआ वह भी पानी में बह गया, यही अब कहना पड़ेगा।
अब भी यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में प्रलम्बित है। इस साल भर में महाराष्ट्र हित में निर्णय हो गया तो गोदावरी का आँखों के सामने से बह जानेवाला पानी देखने की नौबत नांदेड जिले पर नहीं आएगी। मराठवाड़ा समेत सभी सूखाग्रस्त जिलों में पिछले 8-10 दिनों की बरसात ने जो राहत दी है उसके कारण हताश और निराश किसानों की जिन्दगी में फिर से खुशियाँ लौट आई हैं। मौसम विभाग के अनुसार लौटते मानसून की बरसात अभी बाकी है। सच तो यह है कि आज तक हुई बरसात ने ही सूखाग्रस्त मराठवाड़ा की चिन्ता दूर की है। हालाँकि अभी और बारिश हुई तो बचे-खुचे बाँध भी लबालब हो जाएँगे। निरन्तर सूखे में झुलसते मराठवाड़ा को और क्या चाहिए?
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