चीन का खतरनाक रुख


अभी चन्द रोज पहले ही भारत ने उरी हमले की प्रतिक्रिया में गुलाम कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। भारत की इस साहसिक कार्रवाई से सिर्फ पाकिस्तान ही विचलित नहीं हुआ है, बल्कि चीन की भी असहजता बढ़ी है। दूसरी ओर भारत द्वारा सिन्धु जल समझौते पर पुनर्विचार के ऐलान पर भी चीन की भौहें तनी हैं। ऐसे में यह सम्भव है कि उसने पाकिस्तान की मदद में आगे बढ़ ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी के पानी को रोककर भारत को दबाव में लेने की कोशिश की हो।

आक्रामकता चीन का स्वभाव है। आक्रामकता का मतलब प्रहार या हमला ही नहीं, बल्कि ऐसी स्थितियाँ पैदा करना भी होता है, जिनसे तनाव उत्पन्न हो। चीन द्वारा ऐसा बार-बार किया जाता है। कभी सीमा का उल्लंघन कर तो कभी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों का जल रोककर। उसने एक बार फिर इसी तरह का तनाव उत्पन्न करने की कोशिश की है। उसने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी का पानी रोक दिया है। उसने अपनी सबसे बड़ी परियोजना हाइड्रो प्रोजेक्ट की आड़ लेते हुए दलील दी है कि वह इससे बिजली का उत्पादन करेगा और पानी का इस्तेमाल सिंचाई कार्यों में करेगा, लेकिन सच यह नहीं है।

सच तो यह है कि उसका यह रवैया भारत के हितों के विरुद्ध एक शातिराना षडयंत्र है। मौजूदा परिस्थितियों पर गौर करें तो उसने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के बीच तनाव है। अभी चन्द रोज पहले ही भारत ने उरी हमले की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया जिसमें पाकिस्तान पोषित 40 आतंकी मार गिराए।

भारत की इस साहसिक कार्रवाई से सिर्फ पाकिस्तान ही विचलित नहीं हुआ है, बल्कि चीन की भी असहजता बढ़ी है। दूसरी ओर भारत द्वारा सिन्धु नदी जल समझौते पर पुनर्विचार के ऐलान पर भी चीन की भौहें तनी हैं। ऐसे में यह सम्भव है कि वह पाकिस्तान की मदद में आगे बढ़ ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी के पानी को रोककर भारत को दबाव में लेने की कोशिश की हो, ताकि भारत सिंधु जल समझौते को निलम्बित न करे।

यह आशंका इसलिये कि पाकिस्तान पहले ही भारत को धमकी दे चुका है कि अगर सिन्धु नदी जल समझौते को निलम्बित किया तो वह भी चीन के जरिए ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोकवा देगा। कहना गलत नहीं होगा कि चीन की यह कार्रवाई पाकिस्तान के इशारे पर ही हुई है।

बहरहाल चीन द्वारा पानी रोके जाने से भारत के असम, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में पानी की आपूर्ति बाधित होने और निचले इलाकों में बाढ़ आने की सम्भावना बढ़ गई है। गौर करें तो ब्रह्मपुत्र नदी के जल को लेकर चीन की कुटिलता पहली बार उजागर नहीं हुई है। वह अरसे से ब्रह्मपुत्र नदी की धारा को मोड़कर अपने उत्तर-पूर्व या उत्तर-पश्चिम में शिनजियांग राज्य तक ले जाने की चाह पाले हुए है, लेकिन भारत के कड़े ऐतराज के बाद वह इस मकसद में कामयाब नहीं हुआ।

हालांकि ब्रह्मपुत्र नदी पर कई बाँध निर्मित कर और अब उसकी सहायक नदी का पानी रोककर भारत को मुश्किल में जरूर डाल दिया है। इसलिये कि इस इलाके में भारत और बांग्लादेश के लाखों लोग रहते हैं और जल प्रवाह रोके जाने से उनकी पानी की आपूर्ति बाधित होनी तय है।

ब्रह्मपुत्र नदी की भौगोलिक संरचना पर दृष्टिपात करें तो वह चीन से निकलकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए बांग्लादेश तक जाती हैं। ब्रह्मपुत्र का उद्गम तिब्बत के दक्षिण में मानसरोवर के निकट चेमायुंगदुंग नामक हिमवाह से हुआ है। इसकी लम्बाई तकरीबन 2900 किलोमीटर है। इसका नाम तिब्बत में सांगपो, अरुणाचल में दिहंग तथा असम में ब्रह्मपुत्र है।

यह नदी बांग्लादेश की सीमा में जमुना के नाम से दक्षिण में बहती हुई गंगा की मूल शाखा पद्मा के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। सुवनसिरी, तीस्ता, तोर्सा, लोहित, बराक इत्यादि इसकी उपनदियाँ हैं। हालांकि अभी इस निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाजी होगा कि नदी के जल प्रवाह रोके जाने से नदी के निचले बहाव वाले इलाकों में जल प्रवाह पर क्या असर होगा। लेकिन चिन्ता की बात यहीं तक सीमित नहीं है।

चिन्ता की बात यह भी है कि भारत के लगातार विरोध के बाद भी चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्मित हाइड्रो पावर स्टेशन निर्मित कर चुका है। यही नहीं उसकी छह इकाइयों ने भी काम करना शुरू कर दिया है।

गौरतलब है कि चीन ने तिब्बत के शिगाजे में यारलुंग झांगबो की सहायक नदी जियाबुकू पर चीन ने लाल्हो परियोजना शुरू की है जिसे 2019 तक पूरा करना है। उसने इस परियोजना पर तकरीबन 74 करोड़ डॉलर का निवेश किया है। यहाँ निर्मित जिएशु, जांगमू और जियाचा बाँध महज 25 किमी की रेंज में हैं जो भारतीय सीमा से महज 550 किमी ही दूर है।

अगर पानी बाधित हुआ तो अरुणाचल प्रदेश की अपर सियांग और लोअर सुहासिरी परियोजना प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा असम में भी कुछ जलविद्युत केन्द्र बनाए गए हैं जो प्रभावित हो सकते हैं।

चिन्ता की बात यह है कि भारत और चीन के बीच कोई जल समझौता नहीं है और भारत सीमित रूप से ही चीन निर्मित बाँधों का निरीक्षण कर सकता है। चीन के अड़ियल रुख के कारण नदियों के बारे में परस्पर सहमति व विचार-विमर्श के लिये जल आयोग गठित करने या संस्थागत उपाय करने के सभी प्रयास विफल हो चुके हैं।

इन परिस्थितियों के बीच चीन की मनमानी पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता और न ही पानी रोके जाने पर उसे अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में घसीटा जा सकता है। हाँ, यह सही है कि दोनों देशों ने सीमा के दोनों ओर बहने वाली नदियों को लेकर विशेषज्ञ स्तर का तंत्र बनाया है और उसके अनुपालन पर सहमति भी जताई है। इसके अलावा 2013 में दोनों देशों ने नदियों पर आपसी सहयोग बढ़ाने के लिये एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर भी हस्ताक्षर किये हैं।

याद होगा मई, 2013 में जब चीनी शासनाध्यक्ष ली केकियांग भारत आये थे तो उम्मीद जगी थी कि दोनों देशों के बीच नदी जल समझौते का रोडमैप खींचा जा सकेगा, लेकिन कुल मिलाकर चीन के साथ नदी के जल सम्बन्धी आँकड़ा वितरण की पिछली व्यवस्था को ही लागू किया गया।

इस व्यवस्था में दोनों देशों के बीच सिर्फ इस बात पर सहमति है कि जून और अक्टूबर के बीच बाढ़ के मौसम के दौरान जल सम्बन्धी आँकड़ा दिन में दो बार जारी किये जाएँगे, लेकिन सच तो यह है कि चीन ने विशाल ब्रह्मपुत्र के फैलाव को हाइड्रो पॉवर हाउस में बदल देने की ठान ली है।

अगर चीन अपने मंसूबे में कामयाब रहा तो ब्रह्मपुत्र नदी की पारिस्थितिकीय अखण्डता प्रभावित होगी और इसका बुरा असर मछली पालन और कृषि तथा अन्य छोटे-छोटे धंधों पर पड़ेगा। ब्रह्मपुत्र के आसपास की उपजाऊ जमीन से अनेक प्रकार की जलीय वनस्पतियाँ नष्ट हो जाएँगी और लोगों की आजीविका छिन्न-भिन्न हो जाएगी।

सच तो यह है कि लोगों की आजीविका तभी सुरक्षित रहेगी जब नदी का जल प्रवाह अबाधित रहेगा। तिब्बत की बड़ी नदियों पर बाँधों के जरिए बने विशालकाय जलाशयों को लेकर भारत पहले भी चीन के समझ अपनी चिन्ता जाहिर कर चुका है, लेकिन चीन द्वारा बार-बार यही तर्क दिया जाता रहा है कि इन बाँधों से न तो भारी मात्रा में जल का भण्डारण होगा और न ही नदियों के जल प्रवाह में किसी तरह की रुकावट आएगी।

बहरहाल चीन ने ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का जल रोककर एक तरह से भारत के भरोसे का कत्ल कर दिया है। इसलिये और भी कि ब्रह्मपुत्र अरुणाचल ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये प्राणदायिनी है। चीन का यह कृत्य भारत से टकराव मोलने जैसा है और स्वाभाविक है कि भारत भी इसे हल्के में नहीं लेगा।

ब्रह्मपुत्र मसले पर चीन भारत की आँखों में किस तरह धूल झोंकता रहा है। इसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की बीजिंग की यात्रा के दौरान चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी के जल सम्बन्धी आँकड़ों को साझा करने को राजी हुआ था, लेकिन उसने ऐसा किया नहीं। ऐसे में चीन से किसी तरह की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह अपने वादे पर खरा उतरेगा।

दरअसल उसकी शीर्ष प्राथमिकता में भारत से सम्बन्धों को मजबूती देना नहीं, बल्कि पाकिस्तान को खुश कर अपने पाले में बनाए रखना है। अन्यथा कोई कारण नहीं कि जब भारत अपने पड़ोसी चीन से बेहतर सम्बन्धों को आकार दे रहा हो और चीन अचानक कुटिलता दिखाते हुए ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का जल प्रवाह रोक दे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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