चेर्नोबिल का दर्द

तेईस साल पहले 26 अप्रैल की सुबह (ठीक 01.24 बजे) दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा घटित हुआ। युक्रेन स्थित चेर्नोबिल पावर प्लांट का एक रिएक्टर फट गया। दो धमाकों ने रिएक्टर की छत को उड़ा दिया और उसके अंदर के रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर को बह निकले। बाहर की हवा ने टूटे रिएक्टर के अंदर पहुँच कार्बन मोनोऑक्साइड को ज्वलित कर दिया। इसके फलस्वरूप आग लग गयी जो नौ दिन तक धधकती रही। क्योंकि रिएक्टर के चारों ओर कांक्रीट की दीवार नहीं बनी थी, इसलिए रेडियोधर्मी मलबा वायुमंडल में फैल गया।

इस दुर्घटना में जो रेडियो धर्मी किरणें निकली वे हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए ऎटम बम से 100 गुना अधिक थी। अधिकतर मलबा, चेर्नोबिल के आस पास के इलाकों में गिरा, जैसे युक्रेन, बेलारूस और रूस। परन्तु रेडियो धर्मी पदार्थों के कण, उत्तरी गोलार्ध के तकरीबन हर देश में पाये गए।

इस हादसे में 32 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी तथा अगले कुछ महीनों में 38 अन्य व्यक्ति रेडियो धर्मी बीमारियों के कारण मर गए। 36 घंटों के अंदर करीब 59430 लोगों को वहाँ से निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया।

इस भयानक दुर्घटना के कारण 200,000 व्यक्तियों को विस्थापित होना पड़ा, धरती का एक बड़ा भाग प्रदूषित हुआ और अनेको की रोज़ी रोटी का नुकसान हुआ। सन 2005 की एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 600,000 लोग तीव्र रेडियोधर्मिता के शिकार बने तथा इनमें से 4000 लोग कैंसर से मृत्यु के शिकार हुए। इस पूरे प्रकरण में 200 अरब डॉलर का संभावित नुकसान हुआ।

इसके अलावा, जीवित व्यक्तियों की मानसिकता पर जो प्रभाव पड़ा उसको नहीं मापा जा सकता है। हादसे के बाद कई लोग शराबी हो गए और कई लोगों ने आत्म हत्या कर ली।

चेर्नोबिल दुर्घटना के अलावा अन्य कई परमाणु संयंत्र हादसे हो चुके हैं। सबसे पहली दुर्घटना 12.3.1952 को कनाडा स्थित ‘चाक रिवर फसिलिटी’ में घटी। एक कर्मचारी ने गलती से दाब नियंत्रक संयत्र के चारों वाल्व खोल दिए। परिणाम स्वरुप, संयंत्र का ढक्कन उड़ गया और बहुत अधिक मात्रा में परमाणु कचरे से दूषित शीतलन जल बाहर फैल गया।

दूसरा हादसा 29.9.1957 को रूस के पहाड़ी इलाके में स्थित ‘मायक प्लुटोनियम फसिलिटी’ में हुआ। यह हादसा तो चेर्नोबिल से भी खतरनाक माना जाता है। शीतलन संयंत्र में खराबी आ जाने के कारण, गर्म परमाणु कचरा फट पड़ा। 270,000 व्यक्ति एवं 14,000 वर्ग मील क्षेत्र रेडियो धर्मी विकिरण की चपेट में आ गए। इतने वर्षों के बाद भी, इस क्षेत्र के विकिरण स्तर बहुत अधिक हैं। और वहाँ के प्राकृतिक जल स्त्रोत आज भी नाभिकीय कचरे से दूषित हैं।

इंगलैंड स्थित ‘विंड स्केल न्यूक्लिअर पॉवर प्लांट' के हादसे में विकिरण रिसाव के कारण, 200 वर्ग मील क्षेत्र दूषित हो गया।

07.12.1975 को जर्मनी में ‘लुब्मिन न्यूक्लिअर प्लांट' में खराबी आ गयी। परन्तु शीतलक प्रवाह हो जाने के कारण, एक बड़ी दुर्घटना होते-होते बच गयी।

29.03.1979 के दिन अमरीका में पेन्सिल्वेनिया का ‘थ्री माइल आइलैंड’ हादसा भी शीतलन संयंत्र में खराबी आ जाने के कारण हुआ। आस-पास के निवासियों को समय रहते वहाँ से निकाल लिया गया। परन्तु फिर भी इस इलाके में कैंसर और थायरोइड के रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है तथा बच्चों की मृत्यु डर में भी इजाफा हुआ है।

'तोकैमुरा हादसा' जापान में 30.09.1999 को घटित हुआ जब आडविक ईंधन बनाने हेतु गलती से नाइट्रिक एसिड में बहुत अधिक मात्रा में युरेनियम मिला दिया गया ---- 5.2 पाउंड के स्थान पर 35 पाउंड। इसके फलस्वरूप नाभिकीय विखंडन विस्फोट 20 घंटों तक अनवरत होता रहा। संयंत्र के 42 कर्मचारी हानिकारक विकिरण के शिकार हुए, जिनमें 2 की मृत्यु हो गयी।

परमाणु ऊर्जा समर्थक चाहे कुछ भी कहें, परन्तु किसी भी आडविक संयंत्र का सौ प्रतिशत सुरक्षित होना असंभव है, चाहे जितने भी कड़े सुरक्षा प्रबंध किए जाएँ। ये मनुष्यों, पशुओं एवं वातावरण को दूषित करते ही हैं। हानिकारक नाभिकीय विकिरणों का कुप्रभाव लंबे समय तक चलता है तथा इसका प्रमात्रण करना कठिन होता है। डॉक्टर जॉन गोफमान (जो परमाणु ऊर्जा विरोधी अभियान के जनक माने जाते हैं) के अनुसार, ‘ विकिरण की कोई सुरक्षित मात्रा होती ही नही है। कोई न्यूनतम सुरक्षित सीमा नहीं है। यदि यह सत्य सबको विदित हो, तो कोई भी अनुग्यापित विकिरण वास्तव में हत्या के परमिट के समान है।’

सन 1996 में किए गए डॉक्टर गोफमान के अनुमान के अनुसार, अमेरिका में कैंसर का एक प्रमुख कारण चिकित्सीय विकिरण है। अमेरिकन सरकार ने उनके इस दावे का खंडन तो किया है, परन्तु ध्यान देने योग्य बात यह है कि, सन 1979 के हादसे के बाद अमेरिका में कोई भी परमाणु ऊर्जा संयंत्र नहीं लगाया गया है।

जब परमाणु ऊर्जा का तथाकथित शांतिमय प्रयोग इतना विनाश कर सकता है, तो फिर परमाणु शस्त्रों की विध्वंसकारी शक्ति के बारे में सोच कर ही डर लगता है। परमाणु अस्त्र मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। इस समय, सम्पूर्ण विश्व में 26,000 परमाणु अस्त्र हैं, जिनमें से 96% अमेरिका और रूस के नियंत्रण में हैं। उनमें इतनी शक्ति है कि कुछ ही मिनटों में, हिरोशिमा विभीषिका का 70,000 गुना विनाश करके हमारी सुंदर धारा को पूर्ण रुप से ध्वस्त कर दें। हम भले ही, जान बूझ कर छेड़े गए परमाणु युद्ध की संभावना को नकार दें, परन्तु दुर्घटना वश आरम्भ हुए आडविक हादसे की सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता।

‘स्टोक होल्म इन्टरनेशनल पास रिसर्च इंस्टिट्यूट’ के अनुसार, सन 2007 में वैश्विक सैन्य व्यय $1.3 खरब था। दस साल पहले किए गए एक और सर्वेक्षण के अनुसार अमेरिकी परमाणु अस्त्रों का मूल्य $5.8 खरब से भी अधिक है। ये सब बहुत ही भारी मात्रा के निवेश हैं, तथा इनका प्रयोग मानव उत्थान के कार्यों के लिए होना ही श्रेयस्कर है।

अभी हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रपति, श्री बराक ओबामा ने घोषणा करी है कि वो पृथ्वी से परमाणु अस्त्रों का नामोनिशाँ तक मिटा देना चाहते हैं। इस निर्भीक वक्तव्य के लिए उन्हें वाह-वाही भी मिली है। परन्तु यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा कि ये सब कोरी लफ़्फ़ाज़ी है, या वास्तव में वे अपने देश के विनाशकारी अस्त्रों का अंत करने के सफल प्रयास करेंगें।

यूनाइटेड नेशन के सेक्रेटरी जनरल, बन की मून, भी मानते हैं कि परमाणु अस्त्रों से रहित विश्व की रचना ही वैश्विक जनता की सबसे क्षेष्ट सेवा है। वो यह भी स्वीकार करते हैं कि परमाणु अस्त्रों का इतना विरोध होने पर भी, नि:शस्त्रीकरण केवल एक इच्छा मात्र है। केवल विरोध करने से कुछ नहीं होगा। और भी ठोस कदम उठाने होंगें।

धार्मिक गुरु, श्री दलाई लामा वाह्य नि:शस्त्रीकरण के रूप में सभी परमाणु हथियारों पर रोक लगाने का निवेदन करते हैं। उनके अनुसार, इस कार्य को आतंरिक नि:शस्त्रीकरण के द्बारा ही किया जा सकता है। अर्थात हमें मन, वचन और कर्म से हिंसा का त्याग करना होगा। हिंसात्मक व्यवहार से केवल कष्ट मिलता है। दूसरों के प्रति संवेदनशीलता एवं प्रेम से ही खुशी मिलती है। यदि हम सभी एकजुट होकर शांती की आकांक्षा रखें तो युद्ध के खतरे को रोका जा सकता है तथा शस्त्र नियंत्रण भी किया जा सकता है। परमाणु युद्ध के भय से स्थाई शांती नहीं स्थापित की जा सकती है। सैन्य शक्ति के बल पर विश्व एवं मानव सुरक्षा नहीं प्रदान की जा सकती है। हमें यह याद रखना होगा कि नि:शस्त्रीकरण का वास्तविक अर्थ है हिंसा एवं युद्ध का न होना। इसका वास्तविक अर्थ है, एक शांतिप्रिय जीवन, मानव अधिकारों के प्रति आदर भाव और एक बेहतर पर्यावरण सुरक्षा।

(लेखक सिटिज़न न्यूज़ सर्विस की संपादिका हैं)

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