चेन्नई का सबक किसके लिये


चेन्नई में बाढ़ से परेशान लोगसाल का अंत चेन्नई के लिये किसी प्रलय के गुजर जाने सा रहा। करीब एक महीने तक लगातार हुई बारिश से 50 हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ। साथ ही चार सौ से ज्यादा मौतें, नुकसान का आँकड़ा एक लाख करोड़ तक भी पहुँच सकता है, हालाँकि ये प्राकृतिक आपदा उतनी विनाशक थी नहीं जितनी बन गयी, शहर का अनियंत्रित, अनियोजित विकास और बारिश के पानी को सोख लेने वाले झीलों, जलाशयों और दलदलों को पाट दिया जाना इस बाढ़ के ज्यादा बड़े कारण रहे। चेन्नई की दो नदियाँ अड्यार और कुवम के प्राकृतिक मार्गों को भी अवरुद्ध कर दिया गया । इनके जलग्रहण इलाकों को इमारतों से पाट दिया गया और एक बार भी शहरी नियोजन जैसे शब्द को पलट कर देखने की जहमत नहीं उठायी गयी। नतीजा अब सबके सामने हैं। वैसे ये केवल चेन्नई के लिये ही नहीं है, भारत का कोई भी शहर हो, औसत से थोड़ी ज्यादा बारिश होने पर हालात ऐसे ही होंगे, तर्क की बात ये हो सकती है कि अब से किसी भी शहर में निर्माण से पहले शहरी नियोजन के बारे में गम्भीरता से सोचा और सख्ती से पालन किया जाने लगे।

दरअसल, नवंबर में चेन्नई में 1218.6 मिमी या 47.98 इंच बारिश दर्ज हुई जो पिछले सौ साल में कभी नहीं दर्ज हुई थी। हालात और खराब हुए जब एक और दो दिसम्बर को 24 घंटे के भीतर कुल 345 मिमी बारिश हो गयी। श्रीलंका के आस-पास कम दवाब का क्षेत्र बन जाने के कारण चेन्नई में लगातार पाँच हफ्ते तक बारिश होती रही। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सैटेलाइट मैप के मुताबिक एक और दो दिसम्बर को चेन्नई और आसपास के इलाकों में 48 घंटे के दौरान 400 मिमी वर्षा हुई यानी करीब 16 इंच बारिश हुई।

भारतीय मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार अत्यधिक गर्म समुद्र और अल-नीनो के प्रभाव से उत्तर-पूर्वी मानसून अत्यधिक सक्रिय हो उठा और रिकार्ड बारिश हुई 2015 अल-नीनो वर्ष भी था। आमतौर पर सर्दियों में लौटते मानसून से दक्षिण भारत में 50-60 फीसद बारिश होती है।

बारिश के कारण चेन्नई में सबसे अधिक नुकसान हुआ लेकिन सर्वाधिक तबाही कुड्डालोर जिले में हुई है, विल्लुपुरम, कन्याकुमारी, कांचीपुरम और पुडुचेरी में भी हालात उतने ही खराब हैं। अकेले चेन्नई में 90 लाख से ज्यादा आबादी करीब महीने भर तक बारिश से प्रभावित रही। इसमें आखिरी दो हफ्ते पूरा शहर आठ फीट पानी में डूबा रहा, बारिश का पानी, सप्लाई का पानी, सीवर और नालों का गंदा पानी सब मिल गये। बिजली की आपूर्ति ठप हो जाने के कारण आईसीयू में भर्ती 18 मरीजों की मौत हो गयी। केवल आईटी कम्पनियों का नुकसान ही 40,200 करोड़ से ऊपर का है। टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, काग्नीजेंट जैसी कम्पनियाँ काम का नुकसान न हो इसके लिये बसों से अपने कर्मचारियों को कोयंबटूर, बंगलूरु और हैदराबाद भेज रही है ताकि वे वहाँ से काम कर सकें। अब तक दो हजार से ज्यादा कर्मचारी बंगलूरु आ चुके हैं।

दूसरी ओर डेढ़ लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर लगी सांबा और थालडी धान की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है, राज्य के किसान संगठन इन सभी किसानों के लिये उचित मुआवजा चाह रहे हैं लेकिन खाद्य मन्त्री आर कामराज के मुताबिक लगभग सत्तर हजार हेक्टेयर की फसल बर्बाद हुई है, जाहिर है इन आँकलनों और बाकी किसानों को मुआवजा नहीं मिलने पर भी एक अलग किस्म का असंतोष पैदा होगा, आईटी के बाद दूसरा सबसे प्रभावित उद्योग ऑटोमोबाइल है, जिसे करीब 15 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। दक्षिण रेलवे का नुकसान भी 115 करोड़ रुपए से ज्यादा का है। चेन्नई, कांचीपुरम और तिरुवल्लूर में पटरियों और पुलों को काफी क्षति पहुँचती है। चेन्नई हवाईअड्डा पाँच दिन तक सात फीट पानी में डूबा रहा और हवाई सेवाएं एकदम ठप्प रहीं। बीमा कम्पनियों को औद्योगिक कम्पनियों और लोगों की ओर से तीन हजार करोड़ के दावे प्राप्त हो चुके हैं। वैसे धीरे- धीरे चीजों को ठीक करने की कोशिशें जारी हैं। यातायात, टेलीफोन, इंटरनेट जैसी सेवाएं बहाल हो चुकी हैं। सेना और एनडीआरएफ ने अब तक 16 हजार लोगों को बचाया है, तमिलनाडू सरकार के मुताबिक करीब 11.53 लाख लोगों को बचाया जा चुका है, और उन्हें 5,009 राहत शिविरों में पहुँचाया गया है, कुल 50 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है।

दूसरी ओर बाढ़ पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है लेकिन डीएमके सवाल गैरवाजिब नहीं हैं, डीएमके ने चेम्बरम्बक्कम बाँध से समय रहते पानी नहीं छोड़े जाने के मुद्दे पर राज्यपाल के.रोसइया को ज्ञापन सौंपा है, क्योंकि यहाँ से बाद में पानी छोड़े जाने पर ही बाढ़ के हालात बनें। खबरों के मुताबिक अक्तूबर में ही मौसम विभाग की ओर से नवम्बर में अप्रत्याशित बारिश होने की सूचना दे दी गयी थी। लेकिन इस सूचना को गम्भीरता से नहीं लिया गया और न निपटने की तैयारी की गयी। एक और दो दिसम्बर को 500 मिमी बारिश की चेतावनी के बावजूद पुलिस विभाग की ओर से निचले इलाकों में रहने वाले लोगों के लिये कोई चेतावनी नहीं जारी की गयी। पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने भी समय पूर्व चेतावनी मिलने के बावजूद चेमबरम्बक्कम बाँध से तय तारीख से पहले धीरे-धीरे पानी निकाल कर उसे बाद में बारिश का पानी जमा करने के लिये तैयार नहीं किया, जबकि घोषित रूप से 2015 अल-नीनो का साल रहा है। सरकार के कई विभागों में कोई सामंजस्य नहीं था। पिछले साढ़े चार साल से अडयार नदी और चेमबरम्बक्कम बाँध दोनों की तली के गाद को भी साफ नहीं किया गया। अडयार नदी के मुहाने पर भारी गाद के कारण समुद्र में पानी निकलने का रास्ता अवरुद्ध हो गया। फिलहाल राज्य सरकार चेमबरम्बकक्म बाँध से प्रति सेकेंड बीस हजार घनमीटर पानी अडयार नदी में निकाल रही है।

हालाँकि इस संकट से निपटने का जयललिता सरकार का शुरुआती रवैया बहुत सुस्त रहा, लोगों में इस वजह से नाराजगी भी है। राहत सामग्री पर अम्मा की तस्वीर के स्टीकर ने लोगों को और हैरान किया। राहत और पुनर्वास कार्यों के संदर्भ में तमिलनाडू सरकार के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर मद्रास उच्च न्यायालय ने सुओमोटो संज्ञान लेते हुए 16 दिसम्बर तक राज्य सरकार को बाढ़ प्रभावित इलाकों में बचाव व राहत के लिये क्या-क्या किया गया ये सारी जानकारी मुहैया कराने का आदेश दिया है। जाहिर है पिछले कुछ सालों से लोकप्रियता के शिखर पर आसीन जयललिता के लिये बाढ़ के बाद राहत और पुनर्वास बहुत बड़ी चुनौती साबित होगा, जयललिता यह बात समझती हैं इसलिए उन्होंने केन्द्र से 10,250 करोड़ रुपये की सहायता राशि की माँग की है फिलहाल केन्द्र सरकार की ओर से 940 करोड़ की मदद की गयी है। राज्य आपदा बल कोष के तहत 133 करोड़ रुपये जारी किये गये हैं। हालाँकि प्रधानमन्त्री मोदी ने राज्य को हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त मदद का एलान किया है।

लेकिन ज्यादा जरूरी सवाल ये है कि आगे फिर ऐसा नहीं हो, क्योंकि चेन्नई की बाढ़ प्राकृतिक से ज्यादा मानवीय गलतियों का नतीजा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरन्मेंट (सीएसई) के मुताबिक भी चेन्नई में अगर उसके प्राकृतिक जलाशय और जल निकासी नाले सुरक्षित व संरक्षित होते तो आज हालात कुछ और होते। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण कहती हैं कि दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, श्रीनगर और अन्य शहरों में उनके प्राकृतिक जलाशयों पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है, ये जलाशय प्राकृतिक रूप से बाढ़ का पानी निकालने के माध्यम हैं, जिन पर आज इमारतें खड़ी कर दी गयी है। चेन्नई मेट्रो डेवलपमेंट अथॉरिटी के मुताबिक शहर में 1.5 अवैध इमारतें हैं, चेन्नई के 300 के करीब तालाब, टैंक और छोटी झीलें इन्हीं इमारतों में समा गयीं। चेन्नई महानगर जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड के आँकड़ों के मुताबिक 16 नवंबर और पहली दिसम्बर को आयी बाढ़ बाँध से पानी छोड़े जाने की वजह से आयी थी।

चेन्नई में बाढ़ से परेशान लोगजब करीब 18 हजार क्यूसेक पानी चेम्बरमबक्कम बाँध से छोड़ा गया था। मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के प्रोफेसर एस जनकराजन के मुताबिक चेम्बरमबक्कम बाँध की स्टोरेज क्षमता को बहुत उपर रखने से दिक्कतें हुई हैं। जबकि इसे 75 फीसद से भी नीचे रखना चाहिए। इससे थोड़ा सा ज्यादा पानी होने पर पहले ही निकाल देना चाहिए। प्रो. जनकराजन भी मानते हैं कि चेन्नई में बाढ़ को रोका जा सकता था अगर प्रशासन ने चेम्बरमबक्कम बाँध को अलग-थलग न रखा होता। चेम्बरमबक्कम बाँध और अडयार नदी 200 टैंकों से जुड़े हुए हैं। इन सभी का प्रबंधन होने पर चेम्बरमबक्कम बाँध से 33,500 क्यूसेक पानी छोड़े जाने पर भी पानी की निकासी बेहतर तरीके से हो जाती। दरअसल, चेन्नई कांचीपुरम और तिरुवल्लूर के बीच करीब 3,600 तालाब, पोखर और टैंक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। सरकार अगर इन सबकी सफाई और रख-रखाव कर दे तो इनमें तीस हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी जमा हो सकता है। बाढ़ के हालात को आराम से रोका जा सकता है।

चेन्नई में प्रत्येक दस साल के अन्तराल पर भारी बारिश का रिकॉर्ड रहा है। पिछली बार 2005 में यहाँ बाढ़ आयी थी लेकिन निर्माण और बुनियादी ढाँचा खड़ा करने के नाम पर तब इतनी अव्यवस्था नहीं थी। जाहिर है इसका सबसे ज्यादा श्रेय सरकारों, नेताओं, उनकी राजनीति, नौकरशाही और नगर नियोजन करने वालों को ही जाता है। चेन्नई में कभी 50 वर्ग किलोमीटर में पाल्लीकरनाई दलदल फैला हुआ था, जो बारिश का पानी सोख लेता था अब ये सिमट कर 4.3 वर्ग किलोमीटर रह गया है और उसके आस-पास भी कचरे का ढेर है। मदुरावोयेले झील भी 120 एकड़ से सिमट कर 25 एकड़ में रह गयी है। अंबातूर, कोदूनगईवूर और अदम्बाक्कम टैंक भी सिमट कर बहुत छोटे हो गए हैं। एनएच 45 और एनएच 4 को जोड़ने वाले चेन्नई बायपास की पूर्व की ओर बहने वाले नालों के प्रवाह को अवरुद्ध करता है, जिससे अन्नानगर, पोरुर, वनाग्रम, मुग्गापैर और अंबातूतर बाढ़ प्रभावित हो जाते हैं। चेन्नई के नक्शे में अब भी 250 जलनिकाय दिखते हैं लेकिन हकीकत में केवल 27 बच गये हैं और वो भी बुरी हालत में। सच तो ये है कि चेन्नई महानगर विकास प्राधिकरण की ओर से किसी भी इमारत के लिये जल प्रबंधन या जल विज्ञान का कोई ध्यान नहीं रखा गया है। कुल मिलाकर चेन्नई की बाढ़ रियल स्टेट के लिये भी एक सीख साबित हो सकती है। ऐसे में उन्हें अंदाजा होना चाहिए कि जल निकासी व्यवस्था और पर्यावरण को समायोजित किये बगैर कितनी भी आकर्षक, खर्चीली इमारतें या बुनियादी ढाँचा क्यों न खड़ा कर लिया जाये, प्राकृतिक आपदाएं उन्हें पल में मटियामेट कर सकती हैं।

वैसे चेन्नई की बाढ़ के बाद एक पहल ये हुई कि सरकार ने देशभर में बाढ़ पर नजर रखने के लिये सौ केन्द्र स्थापित करने का फैसला लिया है। जल संसाधन मन्त्रालय के अनुसार मौजूदा पंचवर्षीय योजना के तहत पहले चरण में तमिलनाडू में 14 केन्द्र समेत कुल 40 केन्द्र स्थापित किये जायेंगे। इसके अलावा इस घटना ने लोगों को जलवायु परिवर्तन और इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के लिये तैयार रहने जैसे जरूरी मसलों पर सोचने को मजबूर कर दिया है। हाल ही 9 और 10 दिसम्बर को आवाज, ग्लोबल सिटीजन मूवमेंट के किये गये एक सर्वेक्षण में करीब 73 फीसद लोग शहर नियोजन और बुनियादी ढाँचा में बदलाव देखना चाहते हैं और मानते हैं कि उनका शहर विपरीत मौसमी हालातों के हिसाब से तैयार नहीं है। आवाज की वरिष्ठ सदस्य अलाफिया जोयब के मुताबिक अब चेन्नई के ज्यादातर निवासी जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिये ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और 2050 तक पूरी तरह से खत्म करने की प्रतिबद्धता खुद से और सरकार से दोनों से चाहते हैं। जाहिर है ऐसे मौसमी हालातों को रोका नहीं जा सकता लेकिन पिछले अनुभवों से सबक लेकर जल निकासी की तैयारी जरूर की जा सकती है। फिर भारी बरसात होने पर तमिलनाडू सरकार कैसे उससे निपटती है इससे उसकी गम्भीरता, तैयारी और तत्परता का बहुत कुछ अंदाजा मिल जायेगा।
 

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