चेन्नई का पानी अब धीरे-धीरे उतरने लगा है। अब इस भयावह प्राकृतिक आपदा के वजह की तलाश की जा रही है। इस तलाश में यह बात अब धीरे-धीरे स्पष्ट हो गई है कि चेन्नई में आई बाढ़ प्राकृतिक आपदा नहीं थी। यह मानव निर्मित आपदा थी।
यह सच है कि कई दशकों से चेन्नई में इतनी बारिश नहीं हुई थी। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं था कि जलाशय और नदियों की ज़मीन पर अनधिकृत कॉलोनियों का निर्माण बिना रोक-टोक के होने दिया जाये? बहुमंजिली इमारतों की कतार खड़ी कर दी जाये? और एक-एक करके चेन्नई में जलनिकासी के सभी रास्ते अवरुद्ध कर दिये जाएँ।
चेन्नई में हुई भारी बारिश के दबाव ने ही अधिकारियों को मजबूर किया कि उन्हें 30,000 क्यूसेक पानी चेम्बरक्कम जलाशय से अड्यार नदी में छोड़ना पड़ा। बताया जा रहा है कि यह छोड़ा गया पानी भी आपदा की एक वजह बना।
अड्यार नदी ना चौड़ी है और ना गहरी है। इसका जो फैलाव था, उस पर जबरदस्त किस्म का अतिक्रमण है। यह अतिक्रमण एक या दो दिन का परिणाम है। सालों से यह होता आ रहा था।
2015 की बाढ़ ने सिर्फ इस अतिक्रमण की पोल खोल कर देश के सामने रख दी है। चेम्बरक्कम की तरह पूंडी और पुझल जलाशय का पानी कूवम नदी में छोड़ा गया। इस पानी ने अपने निकलने का रास्ता शहर से होते हुए निकाला।
पिछले महीने जब मानसून अपने प्रारम्भिक अवस्था में तमिलनाडु में प्रवेश कर रहा था। उस वक्त मुख्यमंत्री जे जयललिता का बयान आया था- मानसून के बाद होने वाला नुकसान स्वाभाविक है। यह सच है कि पिछले दो दशकों से चेन्नई का विकास बिना किसी योजना के हुआ हैै।
खाल की ज़मीन, नालों और पानी निकलने के रास्तों को बिना किसी विचार के भर दिया गया और बराबर कर दिया गया। जबकि जलनिकासी की व्यस्था बाढ़ से लड़ने की सबसे बड़ी जरूरत होती है।
जबकि चेन्नई महानगर विकास प्राधिकरण (सीएमडीए) के विशेषज्ञों ने बारिश की तीव्रता मापने के पैमाने - जो प्रतिघंटा कम-से-कम एक इंच होना चाहिए- की तरफ ध्यान दिलाया था। जिसे नजरअन्दाज किया गया। क्योंकि चेन्नई उन दिनों जलनिकासी के करोड़ों रुपए की परियोजनाओं पर काम कर रहा था।
शहरों में नालों का निर्माण जलनिकासी के लिये जहाँ पूर्वयोजना से करना चाहिए था। नालों और जलाशयों का नदियों से योजनाबद्ध तरीके से मिलना और उसके अनुरूप शहर में सड़कों की उपस्थिति मुश्किल से पूरे शहर में दिखाई देता है। इसलिये दशकों पहले जो नाले तैयार किये गए थे, वे शहर में भर गए पानी को बाहर निकालने के लिये पर्याप्त साबित नहीं हुआ।
इन्हीं अपर्याप्त नालों की कमी को हर एक साल मानसून में चेन्नई भुगतता है। महानगर की विकास की योजनाओं से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक जिन ठेकेदारों को काम का टेंडर मिलता है। उन्हें जल्दी-से-जल्दी अपना काम करना होता है। इस जल्दबाजी में वे ना बाढ़ के पानी का चरित्र समझ पाते हैं और ना उन्हें पिछले दस सालों में चेन्नई में हुई बारिश के रिकॉर्ड से कोई मतलब होता है।
ठेकेदारों की सबसे बड़ी चिन्ता आया हुआ सरकारी पैसा वापस ना चला जाये होती है। इसलिये उनकी प्राथमिकता योजना नहीं बल्कि निर्धारित समय से पहले काम पूरा करना होता है।
चेन्नई महानगर विकास प्राधिकरण से जुड़े लोग भी मान रहे हैं कि निर्माण के समय समुद्र तल से ऊँचाई और दूसरे नियमों को ताक पर रख कर ही निर्माण किया गया।
इसी का परिणाम है कि चेन्नई का पानी निकालने के लिये करोड़ों की परियोजना पर काम हो रहा है। बीस साल पहले चेन्नई में जहाँ, नाला, तालाब, झील या नहर था, वहाँ अब बहुमंजिली आवासीय परिसर या औद्योगिक क्षेत्र बन गया है।
मद्रास उच्च न्यायालय में चेन्नई महानगर विकास प्राधिकरण द्वारा जमा कराई गई रिपोर्ट के अनुसार पूरे महानगर में लगभग डेढ़ लाख घर अनधिकृत और गैर कानूनी तरीके से बने हैं। उनमें सैकड़ों को गिराने का आदेश न्यायालय ने दिया है लेकिन उस पर गैर कानूनी इमारत बनाने वाले भी स्थगन आदेश ले आये। कथित विकास और गैर कानूनी निर्माण के मलबे में चेन्नई अपने लगभग 300 जलस्रोत को पूरी तरह खो चुका है।
एओन बेनीफिल्ड की रिपोर्ट की माने तो पूरी दुनिया में 2015 में सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने वाली बाढ़ चेन्नई की बाढ़ साबित हुई। जिसमें लगभग 20,034 करोड़ रुपए का नुकसान तमिलनाडु को हुआ है। एओन बेनीफिल्ड की रिपोर्ट की माने तो इस भारी बारिश ने भारत और श्रीलंका दोनों को नुकसान पहुँचाया है। दोनों देशों के लगभग 400 लोगों की जान गई और लगभग एक लाख घर, दुकान, कारखाने तबाह हुए।
भारत के दक्षिणी हिस्से के तटीय क्षेत्र में आई तबाही को हम कम कर सकते थे इस बात पर एक राय होने के बाद भी तमिलनाडु की भारी बारिश, बाढ़ और तबाही से दूसरे राज्य कितना सबक लेते हैं और खुद तमिलनाडु कितना सीखता है, यह देखना अभी बाकी है।
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