चारधाम यात्रा को लेकर आपदा प्रबंधन हाई अलर्ट पर

हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ चार धाम
हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ चार धाम

चारधाम यात्रा शुरू हो चुकी है। यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को लेकर तीर्थयात्रियों को कुल 1400 किमी की लंबी यात्रा तय करनी पड़ती है। सरकार बार-बार यह दावा जरूर कर रही है कि उसने चारधाम यात्रा की पूरी तौयारी कर ली है। चारधाम यात्रा से जुड़े सभी विभाग आपस मे सामंजस्य बिठाकर कार्य कर रहे हैं। चारधाम यात्रा के दौरान सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आपदा प्रबंधन विभाग की होती है। आपदा प्रबंधन को लेकर भी सरकार यही बात कर रही है कि आपदा प्रबंधन अलर्ट पर है। लेकिन अचरज की बात यह है कि वर्ष 2013 की आपदा के बाद गठित कमेटी ने कई अत्याधुनिक उपकरणों की आवश्यकता महसूस की और सरकार से खरीदने की सिफारिश भी की, लेकिन विडम्बना यह है कि केदारनाथ आपदा के छह साल बाद भी आपदा प्रबंधन अत्याधुनिक उपकरणों की कमी महसूस कर रहा है। स्पष्ट है कि सरकार ने कमेटी के सुझावों पर खास ध्यान नहीं दिया। 

वर्ष 2013 में आई भीषण आपदा के बाद वैज्ञानिकों की कमेटी गठित की गई

वर्ष 2013 में आयी भीषण आपदा के बाद सरकार ने भू-वैज्ञानिकों की तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया। कमेटी ने सरकार को सुझाव दिया कि तत्काल प्रभाव से जनपदों में तैनात आपदा प्रबंधन विभाग में रिक्त पदों पर नियुक्तियां की जाएं। इसके अतिरिक्त आपदा के लिहाज से संवेदनशील जनपदों में वाहनों की संख्या बढ़ाई जाए। साथ ही पुराने वाहन बदले जाएं। इसके अलावे पुराने मॉडल के सेटेलाइट फोन बदल कर नए अत्याधुनिक सेटेलाइट फोन की खरीद की जाए। हैवी क्रेन, जेसीवी, हैवी सर्च लाइट और प्रचुर मात्रा में मोटे रस्सों के अलावा डाप्लर रडार भी स्थापित किए जाएं।

चारधाम यात्रा शुरू होने के पहले डीएमएमसी अपने उपकरणों की समीक्षा करता है। लेकिन इस बार आचार संहिता लगने की वजह से उपकरणों की खरीद में दिक्कत आयी है। चारधाम यात्रा छह महीने तक चलेगी। इस बीच आवश्यक उपकरण खरीदे जाएंगे। सर्च लाइट आपदा प्रबंधन और एसडीआरएफ दोनों की ओर से क्रय किया जाता है। वर्ष 2013 में आयी आपदा के बाद गठित कमेटी के सुझावों पर अमल किया जा रहा है। वैसे भी आपदा प्रबंधन यात्रा के दौरान अलर्ट पर ही रहता है। - एस. खंडूड़ी, वैज्ञानिक, आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र

इसके अतिरिक्त संवेदनशील जनपदों के सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या बढ़ाने और झीलों की निगरानी के लिए प्रदेश स्तर पर भू-वैज्ञानिकों की एक कमेटी का गठन किया जाए। खास बात यह है कि कमेटी के सुझावों में से अधिकतर मामलों पर सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया। लंबे समय बाद जनवरी 2019 में कमेटी के सुझावों पर अमल करने के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक हुई लेकिन उसके बाद ही आचार संहिता लग जाने के कारण इस पर ज्यादा कुछ नहीं किया जा सका।

कमेटी के सुझावों की सरकार ने की अनदेखी 

कमेटी में शामिल वैज्ञानिक प्रो. भूपेश गैरोला के मुताबिक आज तक सरकार रिक्त पड़े पदों को नहीं भर पाई है। डाप्लर रडार को लेकर मुक्तेश्वर और सुरकंडा में भूखण्ड का चयन जरूर किया गया है। झीलों की निगरानी के लिए किसी भी तरह की कोई निगरानी कमेटी का गठन नहीं किया गया। वहीं आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के वैज्ञानिक एस. खंडूड़ी का कहना है कि चारधाम यात्रा शुरू होने के पहले डीएमएमसी अपने उपकरणों की समीक्षा करता है। लेकिन इस बार आचार संहिता लगने की वजह से उपकरणों की खरीद में दिक्कत आयी है। चारधाम यात्रा छह महीने तक चलेगी। इस बीच आवश्यक उपकरण खरीदे जाएंगे। सर्च लाइट आपदा प्रबंधन और एसडीआरएफ दोनों की ओर से क्रय किया जाता है। वर्ष 2013 में आयी आपदा के बाद गठित कमेटी के सुझावों पर अमल किया जा रहा है। वैसे भी आपदा प्रबंधन यात्रा के दौरान अलर्ट पर ही रहता है।

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