अभी तक हम अलग –अलग माध्यमों पर तरह –तरह का सिनेमा देखते आये हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि जो सिनेमा हमें देखने को मिलता रहा है क्या उसके अलावा भी सिनेमा की कोई अलग दुनिया है. और यह भी कि सिनेमा की अलग दुनिया से आपका भी रिश्ता बन सकता है। दोस्तों, प्रतिरोध का सिनेमा अभियान सम्भावना ट्रस्ट के साथ मिलकर आगामी 18 से 21 नवम्बर हिमांचल के पालमपुर शहर में चार दिनी वर्कशॉप आयोजित कर रहा है। जिसके लिए हम आपको न्योता दे रहे हैं। अगर आप कुछ ऐसा करते हैं जिसमें सिनेमा माध्यम आपके काम को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है तो आप जरूर यहाँ आयें। हम आपको सिनेमा की एक एकदम नयी दुनिया से परिचित करवाएंगे जिससे परिचित होने पर आपको शर्तिया मजा आएगा। यह जरूर है कि हम आपका परिचिय किसी नामचीन सिने सितारे से नहीं करवाने जा रहे हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि यहाँ जो लोग आपके साथ समय बिताएंगे। वे महत्वपूर्ण नहीं है। वे महत्वपूर्ण भी हैं, नामचीन भी लेकिन स्टार नहीं। इन चार दिनों के बाद आप पूरी तरह से इस सिनेमा माध्यम के प्रति उत्साहित होंगे और अपने इलाके से सिनेमा दिखाने के तकनीकी और कंटेंट उस्ताद भी बन जायेंगे। एक चीज और आपको मिलेगी और वह होगी देश के अलग–अलग इलाकों से आने वाले दूसरे उत्साही प्रतिभागियों का साथ जिनमें से हर कोई अपने –अपने क्षेत्र में कमाल का काम कर रहा है जैसे कि आप खुद भी. और दूसरी बात यह कि यहाँ की कमाल की लोकेशन जिसकी वजह से आपका दिलो-दिमाग तरोताज़ा हो जाएगा। स्वागत है सिनेमा की अद्भुत दुनिया में।
कार्यशाला के उद्देश्य
कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य है प्रतिभागियों को इस नए और दस्तावेजी सिनेमा सन्दर्भ से परिचित करवाने के साथ –साथ उन्हें इसे अपनाने और आम जीवन में इसको लोकप्रिय बनाने के लिए प्रेरित करना भी है .
●इन फिल्मों को कैसे देखना–दिखाना
●इस सिनेमा को संगठनात्मक और सामाजिक संवाद की प्रक्रिया में कब और कैसे ले जाना
●जो सिनेमा हमें देखने को मिलता रहा है क्या उसके अलावा भी सिनेमा की कोई अलग दुनिया है
●नए दस्तावेजी सिनेमा को सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच ले जाना
●नए हिन्दुस्तानी दस्तावेज़ी सिनेमा के जन संघर्षों के प्रति सहज झुकाव को समझना
स्रोत व्यक्ति
संजय काक एक स्वतंत्र दस्तावेजी फिल्म निर्माता और लेखक हैं, जिनके हालिया काम में रेड एंट ड्रीम (2013), जश्न-ए-आज़ादी (हाउ वी सेलिब्रेट फ्रीडम, 2007) और वर्ड्स ऑन वॉटर (2002) शामिल हैं। उन्होंने एंथोलॉजी का संपादन किया है जब तक कि माई फ्रीडम हैज़ कम – द न्यू इंतिफाडा इन कश्मीर (पेंगुइन इंडिया 2011, हेमार्केट बुक्स यूएसए 2013), और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फोटोबुक के संपादक, 'गवाह – कश्मीर 1986-2016, 9 फोटोग्राफर, छाप के तहत स्वतंत्र रूप से प्रकाशित यारबल बुक्स की। यारबल में उन्होंने अलाना हंट द्वारा हाल के 'कप्स ऑफ नन चाय' का संपादन और प्रकाशन भी किया है।
एक स्व-सिखाया फिल्म निर्माता, वह कभी-कभार कमेंट्री लिखते है, और उन पुस्तकों की समीक्षा करते है जिनसे वह जुडे हुए है। वह भारत में वृत्तचित्र सिनेमा आंदोलन और प्रतिरोध के सिनेमा परियोजना के साथ सक्रिय रहे हैं।
अमुधन आरपी एक दस्तावेजी फिल्म निर्माता और मीडिया कार्यकर्ता हैं। स्थानीय युवाओं के साथ, उन्होंने एक मीडिया सक्रियता समूह मारुपक्कम की स्थापना की, जो मदुरै और उसके आसपास दस्तावेज बनाने, नियमित स्क्रीनिंग, फिल्म समारोह और मीडिया कार्यशालाओं का आयोजन करने में शामिल है। उन्होंने 1998 में मदुरै अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेजी और लघु फिल्म महोत्सव की स्थापना की।
संजय जोशी एक पूर्णकालिक सिनेमा ऑफ रेजिस्टेंस एक्टिविस्ट हैं और एक प्रकाशन गृह नवारुण भी चलाते हैं।
फातिमा निजारुद्दीन एक अकादमिक और दस्तावेजी फिल्म निर्माता हैं। उनकी आखिरी फिल्म, न्यूक्लियर हेलुसिनेशन (2016), जो उनके अभ्यास-आधारित पीएच.डी. वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में। वह एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली में सहायक प्रोफेसर हैं।
अश्वथी सेनन एक स्वतंत्र शोधकर्ता, अनुवादक और कार्यकर्ता हैं। वह एक फिल्म उत्साही हैं और एक यात्रा फिल्म समारोह पहल, चलती तस्वीरियन की समन्वयक रही हैं ।
सौरभ कुमार एक मल्टीमीडिया पत्रकार और मुंबई, महाराष्ट्र के दस्तावेजी फिल्म निर्माता हैं। उन्होंने ओपिया फिल्म्स, एक स्वतंत्र प्रोडक्शन हाउस और पब्लिक बोल्टी की सह-स्थापना की, जो कोरोनवायरस लॉकडाउन के कारण होने वाले व्यवधानों को उजागर करने के लिए एक स्वयंसेवक के नेतृत्व वाली पहल है। वह एक सांस्कृतिक पहल ‘सिनेमा ऑफ रेजिस्टेंस’ से गहराई से जुड़े हुए हैं, जिसका उद्देश्य सिनेमा और कला तक पहुंच बढ़ाना है जो समाज के सामने आने वाले मुद्दों से जुड़ा हुआ है।
यह कार्यशाला किसके लिए
यह कार्यशाला उन व्यक्तियों और कार्यकर्ताओं के लिए काम की है जो मुख्यधारा के अलावा किसी और भी तरह के मीडिया विकल्पों के बारे में सोचते हों और उसकी निर्मिती, उसको देखने-दिखाने की प्रक्रिया पर चिंतन करना चाहते हैं
कार्यशाला के लिए योगदान राशि
कार्यशाला में जुड़ने के लिए सहयोग राशि के रूप में रुपए 3800/- दे सकते हैं | जो साथी यह शुल्क देने में असमर्थ हैं वो आंशिक योगदान कर सकते हैं | आर्थिक सहयोग की आवश्यकता को आवेदन पत्र में यह स्पष्ट कर दें।
कब और कहाँ
18 से 21 नवम्बर 2021, संभावना संस्थान, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश
अधिक जानकारी और आवेदन पत्र भरने के लिए यहाँ क्लिक करें
अधिक जानकारी के लिए संपर्क व्हाट्सप्प/कॉल – शशांक : +91-889 422 7954, ईमेल programs@sambhaavnaa.org
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