चांद पर पानी बनाएगा नासा

नासा चांद और मंगल की सतह पर पानी, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन उत्पन्न करने की तैयारी कर रहा है। यदि हमें दूसरे ग्रहों पर मानव बस्तियां बसानी हैं तो, हमें सबसे पहले उपग्रहों और ग्रहों पर महत्वपूर्ण गैसों और द्रव्यों को निर्मित करने का तरीका खोजना होगा। क्योंकि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण इन्हें अंतरिक्ष में ले जाना बहुत महंगा पड़ता है। नासा ने अपने भावी अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रमों के लिए जो रणनीति तैयार की है, उसमें दूसरे ग्रहों के स्थानीय संसाधनों के दोहन पर मुख्य जोर दिया गया है। इसी रणनीति के तहत नासा 2018 में चांद पर एक रोवर भेजने की योजना बना रहा है जो वहां हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और पानी निकालने की कोशिश करेगी। रिसॉर्स प्रॉस्पेकटर नामक इस रोवर में लगे रिजॉल्व पेलोड के उपकरण चांद पर उपलब्ध संसाधनों के इस्तेमाल के लिए कई प्रयोग करेंगे।

इन उपकरणों के जरिए चांद की मिटटी को गर्म करके उसमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अंश खोजे जाएंगे। इन दोनों गैसों की मौजूदगी के संकेत मिलने पर रोवर के उपकरण इनसे पानी बनाने की चेष्टा भी करेंगे। चांद पर बर्फ की मौजूदगी के प्रमाण पहले से मिल चुके हैं। नासा के उपकरण यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि क्या सचमुच चांद की मिटटी को गर्म करने से जल वाष्प बनती हैं। वाशिंगटन में नासा के मुख्यालय से जुड़े एक वैज्ञानिक जेसन क्रूसन के अनुसार इस रोवर द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों के विविध उपयोग संभव है। दरअसल चांद स्थानीय साधनो के इस्तेमाल की तकनीक प्रदर्शित करने के लिए सबसे सुविधाजनक स्थान है। चांद के अलावा नासा इसी तरह की एक रोवर मंगल पर भेजेगा। यह रोवर इस समय मंगल पर सक्रिय क्यूरिऑसिटी रोवर का उन्नत रूप होगी। इसे संभवत: 2020 में रवाना किया जाएगा। इस रोवर पर लगे उपकरण मंगल के वायुमंडल से कार्बन डायऑक्साइड एकत्र करेंगे, वहां की मिट्टी को छानेंगे तथा कार्बन डाईऑक्साइड की प्रोसेसिंग करके ऑक्सीजन बनाने की कोशिश करेंगे।

चांद और मंगल पर उपलब्ध संसाधनों के इस्तेमाल की तकनीक के सिद्ध होने के बाद भावी मिशनों में बड़े- बड़े उपकरणों को शामिल किया जाएगा। ये उपकरण चांद और मंगल पर बड़े पैमाने पर पानी और महत्वपूर्ण गैसों के उत्पादन में सक्षम होंगे। साठ के दशक में चांद पर मानव के उतरने की ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद वहां के संसाधनो का इस्तेमाल अंतरिक्ष अन्वेषण का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव होगा। अंतरिक्ष में यात्रा करने के लिए हमें बहुत ज्यादा पानी, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन की जरुरत है। रॉकेट ईंधन के लिए ऑक्सीजन और हाइड्रोजन चाहिए जबकि पानी के बगैर अंतरिक्ष यात्रियों को जीवित नहीं रखा जा सकता। पानी बहुत भारी होता है और उसे कम जगह में नहीं रखा जा सकता।

इस वजह से पानी को भारी मात्रा में अंतरिक्ष में पहुंचाना तकनीकी दृष्टि से बहुत कठिन है और इस तरह की कसरत बहुत महंगी पड़ेगी। गुरुत्वाकर्षण के कारण भी ऐसा करना बड़ा मुश्किल होता है। हमारे लिए गुरुत्वाकर्षण बेहद जरूरी है, लेकिन पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण चांद के गुरुत्वाकर्षण से काफी अलग होता है। इसके अलावा दोनों के गुरुत्वाकर्षण में कई कारणों से उतार चढ़ाव भी आते रहते हैं। जब तक हमें अंतरिक्षयानों के संचालन के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्नेत नहीं मिलता, हमारे लिए पृथ्वी से रॉकेट ईंधन ढो कर ले जाना अव्यावहारिक होगा। दिक्कत यह है कि समुचित मात्रा में रॉकेट ईंधन के बिना हम अंतरिक्ष का अन्वेषण नहीं कर सकते और हर चीज को पृथ्वी से ही भेजना बहुत खर्चिला है।

अध्ययनों ने एक बात साफ कर दी है कि मंगल पर मानव मिशन भेजने और वहां से नमूने एकत्र कर पृथ्वी पर लाने के लिए हमारे सामने वहां के स्थानीय संसाधनों के इस्तेमाल के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। स्थानीय संसाधनों के इस्तेमाल के दूसरे भी फायदे हैं। ह्यूस्टन के लूनर एंड प्लेनेटरी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक पाल स्पूडिस का कहना है कि हम अंतरिक्षयान में पानी और ईंधन का वजन घटा कर उसकी जगह अधिक उन्नत कंप्यूटरों और उपकरणों की मात्रा बढ़ा सकते हैं।

अधिक बुद्धिमान और चतुर उपकरणों से लैस अंतरिक्षयान खगोलीय पिंडो का ज्यादा कारगर ढंग से सर्वेक्षण कर सकते हैं। यदि मनुष्य को अंतरिक्ष में लंबे डग भरने हैं और दूसरे ग्रहों पर बस्तियां बसानी हैं तो हमें पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर कोई उपयुक्त अड्डा बनाना पड़ेगा। चांद इसके लिए उपयुक्त स्थान हो सकता है। आगे चल कर मंगल पर भी अड्डा बनाया जा सकता है। लेकिन पृथ्वी से बाहर दूसरे खगोलीय पिंडों पर अड्डे तभी बन सकते हैं जब हम वहां के संसाधनों के उपयोग की तकनीकों में दक्षता प्राप्त कर लें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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