चांद का पानी और धरती की प्यास

नासा ने कुछ समय पहले एक रिपोर्ट जारी की कि चांद की सतह पर मिट्टी में काफी पानी है और इसकी उपलब्धता से अंतरिक्ष यात्री चांद पर काफी दिन बिता सकते हैं।

यहां लगभग एक टन मिट्टी में 11-12 गैलन पानी मिलने की संभावना आंकी गई है। अनुसंधानकर्ताओं ने विश्लेषण के बाद बताया है कि चांद के कुछ क्षेत्र में मिट्टी में पांच प्रतिशत वजन के हिसाब से जमा पानी बर्फ के दानों के रूप में मौजूद है। इस बर्फ का उपयोग पानी के रूप में हो सकेगा और इसे कमरे के तापक्रम पर पिघला सकते हैं। अमेरिका की एक दूसरी अंतरिक्ष ऐजेंसी अमेस अनुसंधान केंद्र के ऐंथनी कोलाप्रेट ने भी इन बिंदुओं का खुलासा किया है।

बताया गया है कि चांद पर बर्फ रूप में मौजूद यह पानी पूरी सतह पर एक समान दक्षिणी ध्रुव में नहीं फैला है बल्कि अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न अनुपात में है। चांद के दक्षिणी ध्रुव में अंधेरा और ठंडा क्रेटर है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह सहारा के रेगिस्तान से भी अधिक पनीला है। जिस उपकरण ने यहां बर्फ ढूंढी है, उसी ने वहां का तापमान माइनस 244 डिग्री सेल्सियस नापा। इस स्थिति में बर्फ अरबों वर्षों तक उसी अवस्था में रह सकती है।

डेविड पैग जो डाइवनेर्स के प्रमुख अनुसंधानकर्ता हैं, की यह खोज सांइस पत्रिका में प्रकाशित हुई है। यदि अंतरिक्ष यात्री इस क्रेटर में अपनी गतिविधि तेज करेंगे, तो उन्हें 10 से 15 गैलन पानी मिश्रित मिट्टी को गलाकर मिल सकता है और उसको शोधित कर पीने योग्य बनाया जा सकता है। इस पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैस में भी बदला जा सकता है जिनका उपयोग राकेट के ईंधन के लिए हो सकेगा। इस प्रकार पृथ्वी पर उतरे बगैर चांद से दूसरे ग्रह की यात्रा की शुरुआत की भी संभावना बन सकती है। जैसे यात्री वहीं से मंगल जैसे ग्रह के लिए प्रस्थान कर सकते हैं।

सहारा रेगिस्तान की बालू में 2 से 5 प्रतिशत पानी की मात्रा है लेकिन यह पानी खनिज पदार्थों के साथ इस तरह घुला-मिला है कि उसे अलग करना बहुत मुश्किल है जबकि चंद्रमा के क्रेटर में जहां अंधेरा है, पानी बर्फ के दानों के रूप में है जो मिट्टी में मिश्रित है और इसका शोधन आसानी से किया जा सकता है। मिट्टी में बर्फ का मिश्रण 5.6 प्रतिशत तक है।

संभव है यह 8.5 प्रतिशत तक भी हो। कोलाप्रेट ने यह संभावना जताई है। नये अनुसंधानों के परिणाम पानी के अनुमान को बढ़ा भी सकते हैं और यह चालीस गैलन तक भी हो सकता है। चांद पर पानी की सांद्रता की गणना पहली बार हो सकी है। यहां बर्फ रूप में पानी अधिक मात्रा में कार्बन मोनो आक्साइड, अमोनिया और चांदी धातु के साथ मिश्रित है।

चंद्रमा पर पानी होने का विचार काफी पुराना है। पहली शताब्दी में ग्रीक इतिहासकार प्लुटार्क की परिकल्पना थी कि चांद के अंधेरे क्षेत्रों में सागर थे। गैलीलियो ने 400 वर्ष पहले अपनी दूरबीन द्वारा चांद पर पहाड़ और क्रेटर देखे। उसको इस पर आश्चर्य हुआ कि चांद के काले धब्बे सागर के हैं।

बहरहाल, चांद पर पानी का सदियों पुराना विचार अंतरिक्ष यात्रियों और लेखकों ने जीवित रखा और भारत के चंद्रयान मिशन ने अंतत: चांद पर पानी की खोज में सफलता पाई। उसके बाद नासा ने वहां पानी होने की पूरी पुष्टि की। उसने अपने एक यान से चांद के दक्षिण ध्रुव में जहां कभी सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती थी, धमाके किये। और कुछ मात्रा में बर्फ खोदी। उससे सुनिश्चित हुआ कि चांद पर पानी है।

विज्ञान की इस महानतम खोज के बाद निश्चित ही इस पर भी विचार होगा कि चांद का पानी धरती की प्यास कब बुझाएगा और धरती इसका किस प्रकार उपयोग कर पाएगी। वैसे 1979 की संधि में कहा गया है कि चांद का प्रयोग सारी मानवता करेगी और इसका दायरा संयुक्त राष्ट्र के तहत सागरों के उपयोग के लिए बने कानून की तरह होगा।

चांद का पानी धरती के काम कब आएगा यह बात तो समय के गर्भ में हैं पर फिलहाल, दुनिया में पीने के पानी की लगातार होती कमी सर्वाधिक चिंतनीय विषय है। चांद के पानी की चिंता से पहले हमें अपनी धरती पर मौजूद मीठे और खारे पानी के सदुपयोग की कोशिश करनी होगी और इसके लिए अपनी यांत्रिकी को मजबूत करना होगा ताकि सागर के खारे पानी को अधिक से अधिक मात्रा में पीने के काबिल बनाया जा सके। अमेरिका अपने प्रयोग किये हुए पानी को दुबारा शोधित कर स्नानागारों तक पहुंचा रहा है। हमे भी ऐसे दीर्घकालिक उपाय करने चाहिए ताकि बढ़ती आबादी की पानी की समस्या को सुलझाया जा सके। सबसे पहले दिन-ब-दिन प्रदूषित होती जा रही नदियों के जल के शोधन की आवश्यकता है।

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