भविष्य धन शैवाल ईंधन

भविष्य धन शैवाल ईंधन, PC- Education Blog
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दुनिया के सभी देशों में ईंधन का एक नया रूप विकसित करने की होड़ लगी हुई है। पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसे में पेट्रोलियम पर आधारित ईंधन के लिए विकल्प खोजने की आवश्यकता है। सौभाग्य से, वैज्ञानिक जैवईंधन (एक वैकल्पिक उत्पाद) बनाने में कार्यरत हैं। जैवइंधन बनाने के बहुत से विकल्प खोजे जा चुके हैं। जैसे-जेट्रोफा, सोयाबीन, वनस्पति तेल, सरसों आदि । परन्तु वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, शैवाल में जैवभार के रूप में 60-80% आयल पाया जाता है जो कि जैवईधन  के लिए उपयुक्त माना गया है। 

क्या है शैवाल ?

लेटिन भाषा में शैवाल का अर्थ 'समुद्री शैवाल' (Seaweed) है। शैवाल सामान्य रूप से पादप-सदृश जीव है जो संश्लेषक (Photosynthetic) और जलीय (Aquantic) है। इनकी प्रजनन संरचना सरल होती है। लेकिन इनमें वास्तविक (true) जड़ें, तना, पत्ती य संवहन ऊतक नहीं पाया जाता है। ये दुनियाभर (जैसे- समुद्र, स्वच्छ जल तथा अपशिष्ट जल आदि) में पाए जाते है। शैवाल के एककोशिकीय रूप को 'सूक्ष्म शैवाल' (माइक्रोएल्गी) जबकि बहुकोशिकीय रूप को 'मैक्रोएल्गी' कहा जाता है। सूक्ष्मशैवाल में नील हरित शैवाल (Cynobacteria) शामिल है जो कि बैक्टीरिया और साथ ही साथ हरे भूरे और लाल शैवाल के समान है जबकि मैक्रोएल्गी में बड़े समुद्री शैवाल (जैसे केल्प) शामिल हैं जो कि 65 मीटर तक लम्बे होते हैं।

शैवाल स्वाभाविक रूप से बढ़ता है। अनुकूलतम परिस्थितियों में, इसे बड़े पैमाने पर, लगभग असीमित मात्रा में उगाया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के जल संसाधनों जैसे- खारा पानी, समुद्री पानी और कृषि के लिए अनुपयुक्त या अपशिष्ट पानी का उपयोग करके भी शैवाल विकसित किया जा सकता है। विभिन्न स्रोतों का अपशिष्ट जल (जैसे नगर निगम, पशु उद्योग आदि) उपयोग कर शैवाल द्वारा जल का शुद्धिकरण भी हो जाता है।

अधिकांश सूक्ष्मशैवाल

प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से विकसित होते हैं, जिसमें ये सूर्य के प्रकाश, कार्बन डाइऑक्साइड और कुछ पोषक तत्वों (नाइट्रोजन और फॉस्फोरस फॉस्फोरस सहित) को परिवर्तित कर जैवभार (बायोमास ) बनाते हैं। इसे 'स्वपोषी' विकास कहा जाता है। अन्य प्रकार के शैवाल शर्करा या स्टार्च का उपयोग कर अंधेरे में विकसित किये जा सकते हैं। इसे 'परपोषी विकास' कहा जाता है।

कुछ शैवाल सूर्य के प्रकाश और शर्करा दोनों का उपयोग करके विकसित किये जा सकते हैं। इसे 'मिक्सोट्रॉपिक' (mexotropic ) विकास कहा जाता है । शैवाल कई पारिस्थितिकी प्रणालियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शैवाल जलीय खाद्य श्रृंखला को एक आधार प्रदान करके महासागरों में मत्स्य समर्थन देते हैं। साथ ही साथ, हमारी सांस लेने वाली हवा का 70% भाग विकसित करते हैं।

जैवइंधन स्रोत के रूप में

अब आप यह सोच रहे होंगे कि कैसे शैवाल को तालाब का मैल' (Pond Scum) के रूप में जाना जाता है तथा विनोना, बदसूरत हरा पदार्थ कैसे कारों और हवाई जहाज के लिए उपयोगी ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता है? इस सवाल का जवाब शैवाल में मौजूद तेल' है।

क्या आप जानते हैं कि शैवाल की संरचना (Composition) का आधा वजन उसमें उपस्थित लिपिड ऑयल (Lipid Oil) है। दशकों से वैज्ञानिक इस तेल का अध्ययन कर रहे हैं और इसे 'शैवाल जैवइंधन' (Algal Biodiesel) में परिवर्तित करने का प्रवास कर रहे हैं। शैवाल जैवइंधन एक ऐसा इंधन है जो कि पेट्रोलियम की तुलना में एक क्लीनर और अधिक कुशल रूप में जलता है।

शैवाल की विकास दर और पैदावार अधिक होने के कारण, अन्य ऊर्जा फसलों (Energy crops) की तुलना में अधिक तेल का उत्पादन कर सकता है। कुछ अनुमानों के अनुसार, सूक्ष्म शैवाल (Microalgae) एक साल में 15,000 गैलन (gallons) तेल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन करने में सक्षम है जो कि ईंधन और रसायन आदि में परिवर्तित किया जा सकता है। शैवाल के जैवइंधन के रूप में अनेक लाभ हैं जोकि ईंधन उत्पादन में सबसे अधिक शोध और अध्ययन का विषय है। जिसके निम्नलिखित कारण हैं:

तीव्र उत्पादन

शिवाल बहुत तेजी से बढ़ता है। अतः इसे प्रतिदिन एकत्र (harvest ) किया जा सकता है। हमारी सबसे अधिक उत्पादक फसलों की तुलना में शैवाल में कई गुना जैवभार (10-100 गुना अधिक) और जैवइंधन उत्पादन की क्षमता है।

उच्च जैवइंधन उत्पादन

शैवाल ऊर्जा को तेल और कार्बोहाइड्रेट के रूप में संचित रखता है। जोकि उनकी उच्च उत्पादकता के साथ संयुक्त है। शैवाल 2,000 से 5,000 गैलन प्रति एकड़ प्रति वर्ष जैवइंधन का उत्पादन कर सकते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड उपभोगी किसी अन्य पौधे की तरह शैवाल भी सूर्य के प्रकाश में विकसित होता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड का उपभोग कर बदले में ऑक्सीजन छोड़ता है उच्च उत्पाकदता के लिए, शैवाल को अधिक कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है, जिसकी आपूर्ति उत्सर्जन स्रोतों (जैसे बिजली संयंत्रों और इथेनॉल सुविधाओं आदि) से की जा सकती है।

कृषि के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं

पारम्परिक कृषि के लिए अनुपयुक्त भूमि साथ ही साथ जल के स्रोत (जैसे समुद्री, खारा और - समुद्री, खारा और अपशिष्ट जल) जोकि अन्य फसलों के लिए अनुपयोगी है, का प्रयोग शैवाल के उत्पादन में किया जाता है। 

ईंधन, चारा और अन्य उत्पादों के उत्पादन में

सूक्ष्मशैवाल से अधिक मात्रा में प्रोटीन और तेल का उत्पादन किया जा सकता है जिसका उपयोग जैवइंधन या चारा (feedstock) बनाने में किया जा सकता है। इसके अलावा, सूक्ष्मशैवाल जैवभार, जोकि सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध है, का पहले से ही आहार सम्बन्धी खुराक (Dietary Supplements) बनाने में प्रयोग हो रहा है।

शैवाल का उपयोग प्लास्टिक, रासायनिक चारा (Chemical Feedstock), स्नेहक (Lubricants). उर्वरक (Fertilizers) और यहां तक कि सौंदर्य प्रसाधन बनाने में भी होता है। अपशिष्ट जल का शुद्धिकरण शैवाल पोषक तत्वों से भरपूर पानी (जसे नगरपालिका का अपशिष्ट जल (मल), पशुओं का कचरा, और औद्योगिक अपशिष्ट में पनपते हैं। शैवाल इस कचरे का उनमें उपस्थित पोषक तत्वों द्वारा शुद्धिकरण करते हैं।

ऊर्जा स्रोत के रूप में

तेल को ईंधन में परिवर्तित करने के लिए शैवाल निकाले जाने के बाद भी, शेष शैवाल जैवमार को सुखाकर अवक्षेपित (pelletized) करके, औद्योगिक बॉयलरों और अन्य बिजली उत्पादन स्रोतों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

बड़े पैमाने पर शैवाल का उत्पादन

शैवाल के उत्पादन के लिए अलग-अलग प्रक्रियाएं इस्तेमाल होती हैं सबसे आसान प्रक्रियाओं में से एक खुले तालाब में शैवाल उत्पादन है। यह जैवइंधन के उत्पादन के लिए शैवाल विकसित करने का सबसे प्राकृतिक तरीका है जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, इस विधि में शैवाल का उत्पादन खुले तालाब में विशेष रूप से बहुत गर्म और धूप वाले भागों में अधिकतम उत्पादन की आशा से किया जाता है। यह शैवाल उत्पादन का सरलतम रूप है, लेकिन आश्चर्य की बात नहीं है कि इसमें कुछ गंभीर कमियां भी हैं। चूंकि यह विधि मौसम और अन्य कारकों पर बहुत निर्भर है। जिन्हें नियंत्रित करना असंभव है। 

दूसरी विधि, एक ऊधर वृद्धि या बंद लूप उत्पादन प्रणाली (Vertical growth or Closed loop production system) है। इस विधि में, शैवाल का उत्पादन उर्ध्वाधर प्लास्टिक की थैलियों (Bags) में किया जाता है जो कि शैवाल को एक और से अधिक सूर्य के प्रकाश के सम्पर्क में रहने देता है जिससे कि शैवाल की उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सके। जाहिर है, शैवाल का उत्पादन जितना अधिक होगा, तेल की संभावित मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी, जो कि बाद में निकाल लिया (Extracted) जाएगा।

तीसरी विधि, जैवइंधन कम्पनियां शैवाल बंद टैंक बायोरिएक्टर (Algae closed-tank bioreactor or Photobioreactor) का निर्माण कर रही हैं, जो कि उच्च तेल उत्पादन में सहायक है। इस विधि में शैवाल बाहृद के वातावरण में नहीं उगाया जाता। इसके बजाय, बड़े, गोल ड्रम में नियंत्रित परिस्थितियों में शैवाल विकसित किया जाता है। इन बैरल्स में शैवाल अधिकतम स्तर तक उगाया जाता है। तथा हर दिन निकाला (Harvest) भी जा सकता है। जाहिर है, इस विधि से बहुत अधिक मात्रा में शैवाल उत्पादन जैवइंधन के लिए तेल का उत्पादन किया जा सकता है।

शैवाल से तेल निष्कासन की प्रक्रिया

 

शैवाल से जैवइंधन के उत्पादन में प्रथम प्रक्रिया शैवाल से तेल निकासी (Oil Extraction) हैं। पहली विधि, ऑयल प्रेस यस चतमेद्ध में प्रयोग होने वाली तकनीक का इस्तेमाल करके शैवाल से तेल निकाला जा सकता है यह सबसे सरलतम तथा सामान्य विधि है तथा इससे लगभग 75% तेल का निष्कासन किया जा सकता

दूसरी विधि, हेक्सेन विलायक विधि (Hexane solvent method) है प्रेस विधि के साथ संयुक्त करके इस चरण में 95% तेल अर्जित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में दो चरण होते हैं। पहला, प्रेस विधि का प्रयोग तथा दूसरा प्रेस विधि के बाद बचे हुए शैवाल को हेक्सेन के साथ मिश्रित कर फिल्टर करना और बाद में तेल में उपस्थित सभी रासायनिक अवशेषों को हटाकर तेल को साफ करना।

तीसरी विधि है अतिक्रांतिक तरल विधि (Supercritical fluid method) जिसमें शैवाल में उपलब्ध तेल 100% तक निकाल सकते हैं। इस विधि में कार्बन डाइऑक्साइड को दबाव देकर इसे गर्म करके इसकी संरचना को गैस व तरल में परिवर्तित किया जाता है। अब इसे शैवाल के साथ मिलाया जाता है जो शैवाल को पूरी तरह से तेल में बदल देता है। कार्बन डाइऑक्साइड का क्रांतिक (Critical) तापमान 75.8 बार पर 31.1 C होता है। अतिकालिक अवस्था में यह वसा स्नेही (Lipophilic ) विलायक की तरह व्यवहार करता है। अध्रुवी विलेय (Non-ploar solutes) निकालने में सक्षम होता है। तरल विलायकों के विपरीत, अतिक्रांतिक कार्बन डाइऑक्साइड की विलयन क्षमता (Solving power) को तापमान वा दबाव में मामूली परिवर्तन करके समायोजित किया जा सकता है। यह उपयोगी यौगिकों की विशिष्ट निकासी को सक्षम बनाता है।

ट्रांसएस्टरीफिकेशन और जैवईंधन उत्पादन

ट्रांसएस्टरीफिकेशन के द्वारा जैवईंधन का उत्पादन सबसे आम तरीका है। इसे एक भौतिक रासायनिक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है जो कि मध्यम तापमान पर सजातीय उत्प्रेरक (Homognous Catalyst) के साथ द्रवित तेल आण्विक संरचना (molecular structure) को रिकॉर्ड करता है। ट्रांसएस्टरीफिकेशन प्रक्रिया के लिए, ट्राइग्लिसराइड्स लिपिड तेल आवश्यक हैं। एक लिपिड में फैटी एसिड और ग्लिसरॉल के बीच बंध (Bornds) टूट जाते है और एफए (Fatty acids) मेथेनॉल के साथ एक संयोजक (Monovalent) एफए मिथाइल एस्टर में एस्टरीकृत (Esterified) हो जाते हैं। जबकि ग्लिसरीन इस प्रक्रिया का प्रतिफल है।

विज्ञान और उद्योग में ट्रांसएस्टरी फिकेशन की बहुत-सी प्रक्रियाएं जानी जाती हैं। इनमें सबसे आम परिपक्व और एक चरण प्रक्रिया एक उत्प्रेरक के रूप में पोटेशियम या सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ है। इस प्रक्रिया को छोटे से बड़े पैमाने पर स्थापित किया जा सकता है क्योंकि प्रक्रिया मानकों (Parameters) को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है (लगभग 50-70°C पर मिश्रण)। हालांकि इस प्रक्रिया को तेल, लिपिड और कम मात्रा में फैटी एसिड के साथ किया जाता। है। फैटी एसिड साबुन में बदल जाते हैं अतः अधिक मात्रा में फैटी एसिड होने पर प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

सूक्ष्मवाल से जेईधन उत्पादन की एक और सम्भावना है इन सीटू ट्रांसएस्टरीफिकेशन (In-sita transesteri fication) इसमें शैवाल माध्यम (medium) सीधे विलायक, उत्प्रेरक जीर एल्कोहॉल के साथ मिला दिया जाता है। दोनों विधियों ( इन सीटू और दो चरण विधि) की निकासी क्षमता 15-20% के बीच विविधता दिखाती है। यह अध्ययन ट्रांसएस्टरीफिकेशन विधि पर ध्यान केंद्रित नहीं करता बल्कि यह दर्शाता है कि निकाले गए लिपिड की मात्रा निष्कर्षण विधि पर निर्भर करती है। (जैसे इन सीटू ट्रांसएस्टरीफिकेशन में सेल वॉल का टूटना) हरी स्वपोषी शेवाल (Green autotroph algae), कनोरेला पाइरिनोइडोसा (Chlorella pyrenoidosa) के एक अध्ययन में सभी निष्कर्षण विधियों में फैटी एसिड तत्व कम था। इसमें दो चरण विधि में उच्च एस्टर की प्राप्ति हुई तब यह निष्कर्ष निकाला गया कि दो चरण विधि की तुलना में अधिशेष (Excess ) एल्कोहॉल तथा उत्प्रेरक की पुनः प्राप्ति से प्राप्त लागत बचत कम हो जाती है। सामान्य रूप में, ट्रांसएस्टरीफिकेशन विधि एक बहुत जटिल प्रक्रिया है। कवक प्रजाति, समय, नमी, तापमान, प्रतिक्रिया मिश्रण और अभिक्रिया में डाले गये विभिन्न रसायनों के क्रम पर बहुत निर्भर करती है। इसलिए विभिन्न शैवाल प्रजातियों के लिए विभिन्न विलायक प्रणालियां होती हैं तथा एक उचित प्रतिक्रिया मिश्रण प्राप्त करने के लिए हमेशा विलायक प्रणाली की जांच की जानी चाहिए।

अन्य देशों में शैवाल जैवईंधन उत्पादन

उच्च पूंजी और परिचालन लागत अधिक होने के कारण शैवाल की लागत (2010 तक, फूड ग्रेड शैवाल की लागत 5000 टन) अधिक है। हालांकि अन्य देश दूसरी पीढ़ी के जेवईधन की तुलना में, 10 और 100 गुना अधिक ईंधन प्रति इकाई क्षेत्र की उपज का दावा कर रहे हैं। संयुक्त राज्य अमरीका के ऊर्जा विभाग का अनुमान है कि यदि शैवाल ईंधन संयुक्त राज्य अमरीका में सभी पेट्रोलियम ईंधन का स्थान ले लेता है तो इसे 15,000 वर्ग मील (39,000 किमी. 2) की आवश्यकता होगी जो कि अमरीका के नक्शे का 42 प्रतिशत है या मेन   (Maine) की भूमि का लगभग आधा क्षेत्र है। यह 2007 में संयुक्त राज्य अमरीका में काटे गए मक्का के क्षेत्र से 17 कम है। हालांकि ये दावे व्यावसायिक रूप से अचेतन रहते हैं। शैवाल जैवभार संगठन के अनुसार, अगर उत्पादन टैक्स क्रेडिट स्वीकृत किया जाए तो 2018 में शैवाल ईंधन तेल के साथ समान कीमत तक पहुँच सकता है। लेकिन 2013 में, एक्सॉन मोविल के चेयरमैन और सीईओ रेक्स टिलर्सन ने 2009 से जे क्रेग सेंटर के सिथेटिक जीनोमिक्स के साथ एक संयुक्त उद्यम में विकास पर 600 मिलियन डॉलर खर्च करने के बाद कहा कि शैवाल ईंधन 'शायद आगे 25 साल बाद व्यावसायिक रूप से व्यवहारिक हो दूसरी ओर एल्जिनाल बायोफ्यूल्स (Algenol Biofuels) दावा कर रहे हैं कि पहले से ही उन्होंने 8,000 गैलन प्रति एकड़ इथेनॉल का उत्पादन किया है।

भारत में जैवइंधन उत्पादन

भारत में सी 6 एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड ने शैवाल पर आधारित जवइंधन उत्पादन को बढ़ाने के लिए नोवोजाइम (Novozymes ) के साथ काम करने के बाद हरी शैवाल जैवइंधन के विकास के लिए 655,500 डॉलर लगाया सी (Sea 6) ने किसानों के लिए गहरे पानी में समुद्री शैवाल उगाने की अनुमति के लिए एक तकनीक भी विकसित की जो कि परंपरागत उथले समुद्र के विरुद्ध थी। कंपनी गन्ना और मक्का से दूर चारे (Feedstock) में विविधता लाने वाली पहली भारतीय कंपनी बनने की उम्मीद कर रही है।

भारत अब एक अभूतपूर्व ऊर्जा संकट से गुजर रहा है और कोई भी निश्चित नहीं दिख रहा है कि देश इस स्थिति से कैसे बाहर आएगा। वर्तमान में भारत में कच्चे तेल का आयात प्रति वर्ष लगभग 240 मिलियन टन है। कच्चे तेल के उत्पादन के साथ यह उम्मीद की जा सकती है कि कच्चे तेल का आयात अगले पांच वर्षों में 240 मिलियन प्रति वर्ष हो जाएगा।

बंगाल ने शैवाल ईंधन उत्पादन में दुनियाभर में जबरदस्त उत्साह उत्पन्न किया है तथा जैवइंधन तीसरे पीढ़ी के ईंधन के रूप में नेतृत्व कर रहा है। शहर के एक संगठन ने कोलापाट धर्मल पावर प्लांट में एक पायलट परियोजना का आरम्भ किया है। इस योजना में पावर प्लांट से निकली कार्बन डाइऑक्साइड को एकत्र कर एक तालाब में प्रवाहित किया जाएगा जो कि शैवाल उत्पादन में सहायक होगी 50% कार्बन डाइऑक्साइड को शैवाल उत्पादन में 25% को स्पाइरुलिना (spirulina) (एक खाने योग्य शैवाल) उत्पादन में और शेष कार्बन डाइऑक्साइड का सूखी बर्फ (dry ice) बनाने में उपयोग होगा।

भारत सरकार द्वारा नीति निर्धारण

जैवइंधन स्वच्छ विकास तन्त्र के लिए एक अच्छा उपकरण है। इसके द्वारा पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम की जा सकती है। केन्द्र सरकार ने पहले ही पेट्रोलियम के साथ जैवइंधन की 50% के मिश्रण की अनुमति दे दी है। इसके अलावा भारतीय मानक ब्यूरो पहले से ही इथेनॉल गैसोलीन के बारे में 596 के मिश्रण के लिए सहमत हो गया है और यह प्रभावी कार्य प्रगति पर है। भारत सरकार की वर्ष 2017 तक इस मिश्रण को 10% तक बढ़ाने की योजना है।

कर्नाटक राज्य की जैवइंधन नीति

कर्नाटक देश में सबसे अधिक तेजी से विकसित राज्यों में से एक है। ईंधन की बढ़ती मांग के कारण सरकार ने कर्नाटक राज्य जैवइंधन नीति 2009 की घोषणा की। इस - नीति के अन्तर्गत कर्नाटक जैवइंधन विकास बोर्ड आता है। 2008-2012 तक कर्नाटक ने जैवइंधन के क्षेत्र में निम्न उपलब्धियां हासिल की:

  • कर्नाटक जैवइंधन कार्यदल (12-9-2008) बनाने वाले पहला राज्य है।
  • कर्नाटक एक मॉडल और अद्वितीय जैवइंधन नीति (01-03-2009) की लागू करने वाला पहला राज्य है। 
  •  120 लाख जैवइंधन पौधों का रोपण विभिन्न योजनाओं (जैसे हसिरु होन्नू तथा बाराहू बंगारंद स्वर्ण भूमि आदि) कार्यक्रमों के अन्तर्गत किया है।
  • स्वर्ण भूमि योजना 166 करोड़ रुपये के साथ लागू की गयी है।
  • जैवइंधन की उत्पादकता बढ़ाने के लिए इथेनॉल के साथ मिश्रण की दर 5% से 10% बढ़ाने की योजना है। राज्य सड़क परिवहन बसों, वाहनों, मैसूर महानगरपालिका बतों में जैवइंधन का उपयोग व्यापक हो गया है।
  • वर्ष 2011-12 और 2012-13 में 98.816 टन जैवइंधन बीज किसानों से खरीदा गया। उन्हें 17.42 लाख रुपये का अनुदान दिया गया। जिससे 817 लीटर जेवईंधन बनाया गया।

हाल ही कर्नाटक सरकार द्वारा जैवइंधन विकास बोर्ड के अन्तर्गत एक कांग्रेस "भारत में जैवइंधन कार्यक्रम में तेजी 2014 का आयोजन बेंगलुरु में किया गया। जलवायु परिवर्तन शमन, आर्थिक विकास स्थिरता और तेल भंडार की चल रही कमी के कारण सूक्ष्मशवाल जैवईचन एक लोकप्रिय चारे (feedstock) के रूप में उभरा है।

संपर्क सूत्र
सुश्री शुभदा कपिल, सुपुत्री श्री कमलेश कुमार कपिल, 59 पटेल नगर, नई मण्डी मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.)
ई-मेल kapil.shubhada88@gmail.com]
 

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Post By: Shivendra
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