दिसंबर 2005 में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने समाज प्रगति सहयोग से निवेदन किया कि हाल ही में पारित राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम पर संस्था एक प्रशिक्षण पुस्तक तैयार करे। इससे पूर्व समाज प्रगति सहयोग ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी) द्वारा नई दिल्ली में आयोजित एक बैठक में प्रशिक्षण पुस्तक के संभावित आकार पर एक प्रस्तुति की थी। अप्रैल 2006 तक पुस्तक का पहला मसौदा तैयार कर समाज प्रगति सहयोग ने ग्रामीण विकास मंत्रालय, नई दिल्ली में आयोजित एकविशेष परामर्श बैठक में उसकी प्रस्तुति की। बैठक में देश के अनेक विषय विशेषज्ञ उपस्थित थे। जो किताब आपके हाथ में है उसका जन्म इस लंबी प्रक्रिया से गुज़र कर हुआ।
हम ग्रामीण विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव अमिता शर्मा और यू.एन.डी.पी. की नीरा बर्रा के आभारी है, जिन्होने इस पुस्तक की तैयारी में लगातार हमे प्रोत्साहित किया और जिनके सुझावों का लाभ हमें प्राप्त हुआ। उपरोक्त दोनो बैठकों में सभी भाग लेने वालों की टिप्पणियों व सुझावों के लिए भी हम आभारी हैं। पुस्तक के प्रकाशन व्यय का मुख्य हिस्सा यू.एन.डी.पी. द्वारा वहन किया गया। प्रकाशन व्यय का शेष भाग अर्घ्यम् ट्रस्ट,बैंगलोर, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट, मुम्बई और फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन, नई दिल्ली के आर्थिकसहयोग से पूरा किया गया। इन सब सहयोगियों को हमारा हार्दिक धन्यवाद।
देश आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर है जब बरसों के संघर्ष के फलस्वरूप ग्रामीण असंगठित क्षेत्र ने रोज़गार सुरक्षा का संवैधानिक हक हासिल किया है। रागरोगा के तहत चलाए जाने वाले रोजग़ार कार्यक्रम सरकार के अन्य कार्यक्रमों से एक महत्वपूर्ण रूप मेंभिन्न हैं। क्योंकि इस कानून के तहत रोज़गार की मांग को सरकार अनदेखा नहीं कर सकती। अब रोज़गार किसी कल्याणकारी कार्यक्रम के तहत नहीं बल्कि एक कानूनी अधिकार के रूप में सरकार को प्रदान करना ही होगा। किन्तु अधिकार को वास्तव में ज़मीन परप्रभावी ढंग से उतारने के लिए जरूरी है कि ग्रामीण जनता अधिनियम की बारीकियों को पूर्णता व गहराई से समझें।हमें यह भी याद रहे कि संसद में रागरोगा पारित होने के बावजूद देश में एक वर्ग इसके विरोध में है। उसकी नज़र में यह सार्वजनिक राशि की बबाZदी है। यह वर्ग मानता है कि इस योजना का भी, भ्रष्टाचार में लिप्त अन्य सरकारी योजनाओं जैसा ही हष्र होगा। इसलिये काम के अधिकार में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति व संगठन कोइस अधिनियम के कार्यान्वयन को सशक्त करने आगे आना होगा - रोज़गार की मांग को बुलंद कर बेरोंज़गारों को उनका हक दिलाने। और जहां रोज़गार मुहैया किया गया है, वहां यह सुनिश्चित करने कि कार्य सही रूप से चल रहा है और इससे ग्रामीण समुदाय की आजीविका में आमूलचूल परिवर्तन होगा।
इस पुस्तक के लिखने के पीछे यही मूल प्रेरणा रही है। पुस्तक उन सभी के लिए उपयोगी होगी जो कि काम के अधिकार के इस अधिनियम को ज़मीन पर उतारने के लिए नियोजन, क्रियान्वयन और मूल्यांकन में कार्यरत होंगे, यह हमारा विश्वास है। इनमें पंचायतप्रतिनिधि, लोक संगठनों के कार्यकर्ता व सरकारी अधिकारी शामिल हैं, जो कि प्रक्रिया के अलग-अलग पहलुओं से जुड़े हैं। सभी लोगों के लिए अनिवार्य है कि रागरोगा की बारीकियों पर उनकी पूरी तरह पकड़ हो। उन्हें मालूम होना चाहिए कि रागरोगा ने मजदूरों के लिए किन अधिकारों को संरक्षित किया है। उन्हें मजदूरों के पंजियन, काम खोलने के लिए आवेदन, ग्राम सभा और ग्राम पंचायतों की ज़िम्मेदारियां, सामाजिक अंकेक्षण आदि सभी प्रक्रियाओं से भली-भांति वाकिफ़ होना होगा। उन्हें यह भी मालूम होना चाहिए कि कार्यकिस प्रकार किए जाएंगे, संरचनाएं कैसे बनेंगी, उनके लागत का आंकलन कैसे होगा आदि।
यदि उन्हें रागरोगा के कार्यान्वयन को पारदर्शी बनाना है और उसे भ्रष्टाचार से बचाना है तो इन सभी पहलुओं की गहराइयों में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। समाज प्रगति सहयोग इस पुस्तक के उपयोग में प्रशिक्षण कार्यक्रमों की श्रृंखला आयोजित करने जा रहाहै। हमारी यह आशा है कि प्रशिक्षणार्थी इस पुस्तक के आधार पर अपने-अपने क्षेत्र के लोगों का प्रशिक्षण भी करेंगे।
यह पुस्तक विशेष रूप से मिट˜टी की जलागम संरचनाओं पर केंद्रित है, क्योंकि इन्ही रोज़गार-मूलक कार्यों को रागरोगा में प्राथमिकता दी गई है। इस पुस्तक में 17 अध्याय हैं। पहले दो अध्याय राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम का परिचय देते हैं। येअधिनियम के ऐतिहासिक महत्व को उल्लेखित करते हुए उसकी शासकीय मार्गदर्शिका का सार भी प्रस्तुत करते हैं। अगले 4 अध्याय जलागम विकास के उन मूल सिद्धान्तों पर केन्द्रित हैं जिनके तहत मिट˜टी की संरचनाएं निर्मित होंगी। इसमें नक्षों का चित्रण, सर्वेक्षण,ढाल व ऊँचाई का आकलन भी शामिल हैं। इस कार्य के सामाजिक व संस्थागत पहलुओं पर एक पृथक अध्याय है जिन्हें ध्यान में रखते हुए योजनाएं बनानी होंगी। जलागम कार्यक्रम की सबसे महत्वपूर्ण संरचनाओं पर अध्याय 7 से 14 में एक-एक अध्याय केंद्रित हैं।इन अध्यायों में बताया गया है कि ये संरचनाएं क्यों बनाई जाती हैं, उन्हें कहां बनाना चाहिए, कैसे बनाया जाता हैं और ऐसे में क्या सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। अध्याय 15 ``कार्य दर अनुसूची´´ के उपयोग के बारे में हैं। यह अनुसूची कायो± के लागत आंकलन मेंनिर्णायक भूमिका अदा करती है। हर संरचना के आंकलन व लागत निर्धारण को उदाहरणों द्वारा समझाया गया है। अध्याय 16 में इन कार्य दरों की मूल अवधारणा पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं। हम उन कारणों का विस्तार करते हैं जिनके आधार पर इन अनुसूचियोंमें संशोधन करना अनिवार्य है। हमारा यह सुझाव है कि इन दरों के निर्धारण की संपूर्ण प्रक्रिया परिस्थिति अनुकूल, पारदशीZ और सहभागी होनी चाहिए। अध्याय 17 में डबल एंट्री लेखा पद्धति पर प्रकाश डाला गया है। इसके लिए एक क्रियान्वयन एजेन्सी द्वारा संपादित विभिन्न लेखा कार्यों को माध्यम बना कर, उनके उदाहरण दिए गए हैं। हमारा मानना है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पारदर्शिता और जवाबदारी के मुद˜दों पर प्रश्न तो उठाए हैं लेकिन इन पर अपनी ओर से वांछित तैयारी नहीं की है। इन मुद˜दों को आगे बढ़ाने के लिए यह ज़रूरी है कि हम लेखा संपादन जैसे विषयों पर अपनी समझ विकसित करें और उन्हें खुद अपनाने के लिए सख़्त से सख़्त क़दम उठाएं।
इस पुस्तक के 11 परिशिष्ट हैं। पहले परिशिष्ट में राज्यवार उन जिलों के नाम है।
जिनमें राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम आज की तारीख में लागू किया जा रहा है। परिशिष्ट ए4 में प्रस्तावित ग्राम रोज़गार सेवक की ज़िम्मेदारियों का उल्लेख है। बाकी परिशिष्टों में अधिनियम के अंतर्गत संधारित पंजियों व प्रपत्र (जैसे रोज़गार कार्ड, मस्टर रोल, पंजियन हेतु आवेदन, रोज़गार कार्ड पंजि, मस्टर रोल पंजि आदि) के प्रारूप हैं।
यह पुस्तक समाज प्रगति सहयोग के सभी साथियों की मेहनत और प्रेम का मोती है!
इसके पहले संस्करण में संस्था के संस्थापक सदस्य आर. श्रीनिवासन का बहुमूल्य योगदान रहा। हमारे यंत्रियों के दल - मुरलीधर खराड़िया, मधुसूदन तिवारी, राजेश वर्मा, व मिलिन्द पण्डित - ने विभिन्न अध्यायों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। सभी छायाचित्र देबाशीष बैनर्जी के उर्जावान कैमरे की सप्रेम भेंट हैं। पिंकी बह्मचौधरी, शालिनी घोष व देवेन्द्र रावत ने पुस्तक की रेखाचित्रों को अभिकल्पित करने में अपना विशिष्ट योगदान दिया। यह पुस्तक समाज प्रगति सहयोग की कोर टीम की सामूहिक परिकल्पना का फल है जिन्होने इसे लिखा है और जो इसकी त्रुटियों के लिए ज़िम्मेदारी लेते हैं। समाज प्रगति सहयोग में हम सब विशेषज्ञ ज्ञान के खुले अदान-प्रदान के प्रति समर्पित हैं। यदि आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है तो इस युग की निर्णायक घड़ी है।
सूचना प्रौद्योगिकी को उन्मुक्त और स्वच्छन्द बनाने की मुहिम। इस मुहिम के अंतर्गत दुनिया भर में सैंकड़ों लोगों ने हज़ारों कम्प्यूटर प्रोग्राम उन्मुक्त लाइसेन्सों के तहत सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध कराए हैं ताकि सूचना का अदान-प्रदान खुले रूप से हो सके और सार्वजनिक हित का वर्चस्व हो। इस पुस्तक को भी ऐसे ही उन्मुक्त कम्प्यूटर साफटवेयर पर तैयार किया गया है। पुस्तक को लिनक्स नामक उन्मुक्त ऑपरेटिंग सिस्टेम पर चलने वाले उन्मुक्त सॉफटवेयर (latex) पर तैयार किया गया है।
इसी भाव को आगे बढ़ाते हुए इस पुस्तक के सद˜भावपूर्ण अप्रतिबंधित उपयोग व वितरण का हम स्वागत करते हैं। शर्त केवल इतनी है कि इस मूल स्रोत को उचित मान्यता दी जाए। हमारी आशा है कि पुस्तक का इसी भावना से व्यापक उपयोग होगा ताकि राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम अभूतपूर्व सफलता अर्जित कर सके।
निवेदिता बैनर्जी
मिहिर शाह
बागली
पी.एस. विजय शंकर
प्रमथेश अम्बष्ट
रंगू राव
ज्योत्स्ना जैन
जुलाई 2006
हम ग्रामीण विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव अमिता शर्मा और यू.एन.डी.पी. की नीरा बर्रा के आभारी है, जिन्होने इस पुस्तक की तैयारी में लगातार हमे प्रोत्साहित किया और जिनके सुझावों का लाभ हमें प्राप्त हुआ। उपरोक्त दोनो बैठकों में सभी भाग लेने वालों की टिप्पणियों व सुझावों के लिए भी हम आभारी हैं। पुस्तक के प्रकाशन व्यय का मुख्य हिस्सा यू.एन.डी.पी. द्वारा वहन किया गया। प्रकाशन व्यय का शेष भाग अर्घ्यम् ट्रस्ट,बैंगलोर, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट, मुम्बई और फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन, नई दिल्ली के आर्थिकसहयोग से पूरा किया गया। इन सब सहयोगियों को हमारा हार्दिक धन्यवाद।
देश आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर है जब बरसों के संघर्ष के फलस्वरूप ग्रामीण असंगठित क्षेत्र ने रोज़गार सुरक्षा का संवैधानिक हक हासिल किया है। रागरोगा के तहत चलाए जाने वाले रोजग़ार कार्यक्रम सरकार के अन्य कार्यक्रमों से एक महत्वपूर्ण रूप मेंभिन्न हैं। क्योंकि इस कानून के तहत रोज़गार की मांग को सरकार अनदेखा नहीं कर सकती। अब रोज़गार किसी कल्याणकारी कार्यक्रम के तहत नहीं बल्कि एक कानूनी अधिकार के रूप में सरकार को प्रदान करना ही होगा। किन्तु अधिकार को वास्तव में ज़मीन परप्रभावी ढंग से उतारने के लिए जरूरी है कि ग्रामीण जनता अधिनियम की बारीकियों को पूर्णता व गहराई से समझें।हमें यह भी याद रहे कि संसद में रागरोगा पारित होने के बावजूद देश में एक वर्ग इसके विरोध में है। उसकी नज़र में यह सार्वजनिक राशि की बबाZदी है। यह वर्ग मानता है कि इस योजना का भी, भ्रष्टाचार में लिप्त अन्य सरकारी योजनाओं जैसा ही हष्र होगा। इसलिये काम के अधिकार में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति व संगठन कोइस अधिनियम के कार्यान्वयन को सशक्त करने आगे आना होगा - रोज़गार की मांग को बुलंद कर बेरोंज़गारों को उनका हक दिलाने। और जहां रोज़गार मुहैया किया गया है, वहां यह सुनिश्चित करने कि कार्य सही रूप से चल रहा है और इससे ग्रामीण समुदाय की आजीविका में आमूलचूल परिवर्तन होगा।
इस पुस्तक के लिखने के पीछे यही मूल प्रेरणा रही है। पुस्तक उन सभी के लिए उपयोगी होगी जो कि काम के अधिकार के इस अधिनियम को ज़मीन पर उतारने के लिए नियोजन, क्रियान्वयन और मूल्यांकन में कार्यरत होंगे, यह हमारा विश्वास है। इनमें पंचायतप्रतिनिधि, लोक संगठनों के कार्यकर्ता व सरकारी अधिकारी शामिल हैं, जो कि प्रक्रिया के अलग-अलग पहलुओं से जुड़े हैं। सभी लोगों के लिए अनिवार्य है कि रागरोगा की बारीकियों पर उनकी पूरी तरह पकड़ हो। उन्हें मालूम होना चाहिए कि रागरोगा ने मजदूरों के लिए किन अधिकारों को संरक्षित किया है। उन्हें मजदूरों के पंजियन, काम खोलने के लिए आवेदन, ग्राम सभा और ग्राम पंचायतों की ज़िम्मेदारियां, सामाजिक अंकेक्षण आदि सभी प्रक्रियाओं से भली-भांति वाकिफ़ होना होगा। उन्हें यह भी मालूम होना चाहिए कि कार्यकिस प्रकार किए जाएंगे, संरचनाएं कैसे बनेंगी, उनके लागत का आंकलन कैसे होगा आदि।
यदि उन्हें रागरोगा के कार्यान्वयन को पारदर्शी बनाना है और उसे भ्रष्टाचार से बचाना है तो इन सभी पहलुओं की गहराइयों में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। समाज प्रगति सहयोग इस पुस्तक के उपयोग में प्रशिक्षण कार्यक्रमों की श्रृंखला आयोजित करने जा रहाहै। हमारी यह आशा है कि प्रशिक्षणार्थी इस पुस्तक के आधार पर अपने-अपने क्षेत्र के लोगों का प्रशिक्षण भी करेंगे।
यह पुस्तक विशेष रूप से मिट˜टी की जलागम संरचनाओं पर केंद्रित है, क्योंकि इन्ही रोज़गार-मूलक कार्यों को रागरोगा में प्राथमिकता दी गई है। इस पुस्तक में 17 अध्याय हैं। पहले दो अध्याय राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम का परिचय देते हैं। येअधिनियम के ऐतिहासिक महत्व को उल्लेखित करते हुए उसकी शासकीय मार्गदर्शिका का सार भी प्रस्तुत करते हैं। अगले 4 अध्याय जलागम विकास के उन मूल सिद्धान्तों पर केन्द्रित हैं जिनके तहत मिट˜टी की संरचनाएं निर्मित होंगी। इसमें नक्षों का चित्रण, सर्वेक्षण,ढाल व ऊँचाई का आकलन भी शामिल हैं। इस कार्य के सामाजिक व संस्थागत पहलुओं पर एक पृथक अध्याय है जिन्हें ध्यान में रखते हुए योजनाएं बनानी होंगी। जलागम कार्यक्रम की सबसे महत्वपूर्ण संरचनाओं पर अध्याय 7 से 14 में एक-एक अध्याय केंद्रित हैं।इन अध्यायों में बताया गया है कि ये संरचनाएं क्यों बनाई जाती हैं, उन्हें कहां बनाना चाहिए, कैसे बनाया जाता हैं और ऐसे में क्या सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। अध्याय 15 ``कार्य दर अनुसूची´´ के उपयोग के बारे में हैं। यह अनुसूची कायो± के लागत आंकलन मेंनिर्णायक भूमिका अदा करती है। हर संरचना के आंकलन व लागत निर्धारण को उदाहरणों द्वारा समझाया गया है। अध्याय 16 में इन कार्य दरों की मूल अवधारणा पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं। हम उन कारणों का विस्तार करते हैं जिनके आधार पर इन अनुसूचियोंमें संशोधन करना अनिवार्य है। हमारा यह सुझाव है कि इन दरों के निर्धारण की संपूर्ण प्रक्रिया परिस्थिति अनुकूल, पारदशीZ और सहभागी होनी चाहिए। अध्याय 17 में डबल एंट्री लेखा पद्धति पर प्रकाश डाला गया है। इसके लिए एक क्रियान्वयन एजेन्सी द्वारा संपादित विभिन्न लेखा कार्यों को माध्यम बना कर, उनके उदाहरण दिए गए हैं। हमारा मानना है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पारदर्शिता और जवाबदारी के मुद˜दों पर प्रश्न तो उठाए हैं लेकिन इन पर अपनी ओर से वांछित तैयारी नहीं की है। इन मुद˜दों को आगे बढ़ाने के लिए यह ज़रूरी है कि हम लेखा संपादन जैसे विषयों पर अपनी समझ विकसित करें और उन्हें खुद अपनाने के लिए सख़्त से सख़्त क़दम उठाएं।
इस पुस्तक के 11 परिशिष्ट हैं। पहले परिशिष्ट में राज्यवार उन जिलों के नाम है।
जिनमें राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम आज की तारीख में लागू किया जा रहा है। परिशिष्ट ए4 में प्रस्तावित ग्राम रोज़गार सेवक की ज़िम्मेदारियों का उल्लेख है। बाकी परिशिष्टों में अधिनियम के अंतर्गत संधारित पंजियों व प्रपत्र (जैसे रोज़गार कार्ड, मस्टर रोल, पंजियन हेतु आवेदन, रोज़गार कार्ड पंजि, मस्टर रोल पंजि आदि) के प्रारूप हैं।
यह पुस्तक समाज प्रगति सहयोग के सभी साथियों की मेहनत और प्रेम का मोती है!
इसके पहले संस्करण में संस्था के संस्थापक सदस्य आर. श्रीनिवासन का बहुमूल्य योगदान रहा। हमारे यंत्रियों के दल - मुरलीधर खराड़िया, मधुसूदन तिवारी, राजेश वर्मा, व मिलिन्द पण्डित - ने विभिन्न अध्यायों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। सभी छायाचित्र देबाशीष बैनर्जी के उर्जावान कैमरे की सप्रेम भेंट हैं। पिंकी बह्मचौधरी, शालिनी घोष व देवेन्द्र रावत ने पुस्तक की रेखाचित्रों को अभिकल्पित करने में अपना विशिष्ट योगदान दिया। यह पुस्तक समाज प्रगति सहयोग की कोर टीम की सामूहिक परिकल्पना का फल है जिन्होने इसे लिखा है और जो इसकी त्रुटियों के लिए ज़िम्मेदारी लेते हैं। समाज प्रगति सहयोग में हम सब विशेषज्ञ ज्ञान के खुले अदान-प्रदान के प्रति समर्पित हैं। यदि आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है तो इस युग की निर्णायक घड़ी है।
सूचना प्रौद्योगिकी को उन्मुक्त और स्वच्छन्द बनाने की मुहिम। इस मुहिम के अंतर्गत दुनिया भर में सैंकड़ों लोगों ने हज़ारों कम्प्यूटर प्रोग्राम उन्मुक्त लाइसेन्सों के तहत सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध कराए हैं ताकि सूचना का अदान-प्रदान खुले रूप से हो सके और सार्वजनिक हित का वर्चस्व हो। इस पुस्तक को भी ऐसे ही उन्मुक्त कम्प्यूटर साफटवेयर पर तैयार किया गया है। पुस्तक को लिनक्स नामक उन्मुक्त ऑपरेटिंग सिस्टेम पर चलने वाले उन्मुक्त सॉफटवेयर (latex) पर तैयार किया गया है।
इसी भाव को आगे बढ़ाते हुए इस पुस्तक के सद˜भावपूर्ण अप्रतिबंधित उपयोग व वितरण का हम स्वागत करते हैं। शर्त केवल इतनी है कि इस मूल स्रोत को उचित मान्यता दी जाए। हमारी आशा है कि पुस्तक का इसी भावना से व्यापक उपयोग होगा ताकि राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम अभूतपूर्व सफलता अर्जित कर सके।
निवेदिता बैनर्जी
मिहिर शाह
बागली
पी.एस. विजय शंकर
प्रमथेश अम्बष्ट
रंगू राव
ज्योत्स्ना जैन
जुलाई 2006
Path Alias
/articles/bhauumaikaa