भूमि अधिग्रहण : किसान को जमीन से भगाने की तैयारी

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गुलाम बनाने वाली विकास प्रकिया को चुनौती के लिये आन्दोलन : राजगोपाल
आने वाले दिनों में तालाब गाँव के नहीं, कम्पनियों के होंगे: राजेन्द्र सिंह


.एकता परिषद के संस्थापक ने कहा है कि मौजूदा सरकार की विकास नीति गाँव के किसानों को भूमिहीन बनाकर शहरों को भिखारी बनाने वाली है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में चार दिवसीय उपवास और धरने के समापन पर आमसभा को सम्बोधित करते हुए अपने विचार व्यक्त किए।

राजगोपाल ने कहा, 'सरकारों के इस विकास प्रकिया को चुनौती देना है, जिसमें भूस्वामी को भूमिहीन बनाया जा रहा है और भूमिहीनों को भूमि नहीं दी जा रही है। आज देश के 99 हजार गाँव नक्शे से गायब हो गए हैं। हम विकास की ऐसी अवधारणा को चुनौती दे रहे हैं और माँग कर रहे हैं कि लोगों को उनकी आजीविका से बेदखल नहीं किया जाए।'

उन्होंने कहा कि लोगों को जंगल एवं जमीन पर अधिकार दिया जाए। पूँजीपतियों के पक्ष में बनाए जा रहे कानूनों को खत्म कर किसान एवं वंचित समुदाय को अधिकार दिलाने वाले कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए और इनके लिये नए कानून बनाए जाएँ।

एकता परिषद द्वारा पिछले चार दिन से चल रहे उपवास एवं धरने को नीलम पार्क में आयोजित आमसभा के बाद खत्म किया गया। धरने को देशभर से राजनीतिक दलों एवं सामाजिक संगठनों का समर्थन मिला। राज्य स्तरीय उपवास एवं धरने के समर्थन में प्रदेश के 37 जिलों में किसान एवं आदिवासी धरने पर बैठे थे, जो भूमि सम्बन्धी और वन अधिकार सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण के लिये मुख्यमन्त्री के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर भोपाल आए 2000 लोगों ने शहाजहाँनी पार्क से रैली निकाली एवं नीलम पार्क में आयोजित सभा में शामिल हुए।

उपवास आरम्भ होने के पहले दिन गाँधी भवन में महात्मा गाँधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के बाद रैली निकाली गई। आमसभा में सीहोर जिले के नसरूल्लागंज के डोंगलापानी गाँव से आए खुमान सिंह बारेला आदिवासी ने बताया कि उनके गाँव के लगभग 200 लोग पीढ़ियों से वन भूमि पर खेती करते आए हैं, पर जब उन्होंने वन अधिकार के तहत पट्टे के लिये दावा किया तो उसे निरस्त कर दिया गया। पूछने पर अधिकारी यह नहीं बताते कि दावा निरस्त क्यों हुआ और उनका अधिकार कैसे मिलेगा?

श्री राजगोपाल ने कहा कि खुमान सिंह की तरह प्रदेश में लाखों आदिवासी, किसान एवं वंचित समुदाय के लोग जमीन सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रण सिंह परमार ने कहा कि पिछले 10 सालों में हमने कई बड़े राष्ट्रीय आन्दोलन कर भारत सरकार को भूमि सुधार के लिये मजबूर किया, जिसके बाद सरकार ने कुछ काम किए और कुछ अधूरे हैं, पर उस अनुरूप मध्य प्रदेश में भूमिहीनों के लिये काम नहीं हुआ। आज भी वंचितों को अधिकार देने के बजाय उन्हें सरकारी कर्मचारियों द्वारा परेशान किया जा रहा है। किसान नेता शिवकुमार शर्मा ‘कक्काजी’ ने कहा कि प्रदेश में पिछले डेढ़ महीने में 72 किसानों ने आत्महत्या कर ली। साढ़े 13 लाख भूमि सम्बन्धी प्रकरण चल रहे हैं, जिससे किसान, आदिवासी एवं भूमिहीन परेशान हैं। फसल बर्बाद होने पर किसानों को बीमा की राशि नहीं मिली है, क्योंकि राज्य सरकार ने इसमें अपने हिस्से की राशि जमा नहीं की है। उद्योगपतियों पर ध्यान देने वाली सरकार गरीबों एवं किसानों की समस्या पर ध्यान नहीं दे रही है।

राजगोपाल के आन्दोलन का समर्थन करते हुए राजनीतिक व सामाजिक चिन्तक एन. गोविन्दाचार्य ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा लाया गया भूमि अधिग्रहण काूनन असल में जमीन हड़प कानून है। सरकार इसे किसानों के हित में बता रही है, जो गलत है। उन्होंने कहा कि गरीब किसान अपने जीने का अधिकार माँग रहे हैं, सरकार वह भी नहीं देना चाहती। गोविन्दाचार्य ने कहा कि उद्योगपतियों को दी गई जमीन में से सिर्फ 2 फीसदी जमीन का उपयोग हो रहा है। बची जमीन को उन्होंने हड़प लिया है।

गोविन्दाचार्य ने कहा कि इस अध्यादेश को लाना किसानों को उनकी खेती से बेदखल करने की साजिश है। मप्र सरकार भी जमीन सम्बन्धी मामलों पर ध्यान नहीं दे रही है। यहाँ भी उद्योगपतियों के हित के लिये कानून बनाए जा रहे हैं। इस मौके पर पूर्व केन्द्रीय मन्त्री आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि भूख एक सामाजिक बीमारी है। अगर समाज के लाखों लोग भूखे रहेंगे, तो समाज सुरक्षित नहीं रह सकता है। पूर्व केन्द्रीय मन्त्री आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि भूख एक सामाजिक बीमारी है। अगर समाज के लाखों लोग भूखे रहेंगे, तो समाज सुरक्षित नहीं रह सकता है।

जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि किसानों की जमीन पूँजीपतियों के हवाले करने की चल रही सुनियोजित साजिश को अगर रोका नहीं गया, तो पानी पर भी कब्जा कर लिया जाएगा। सरकार संरक्षित कम्पनियाँ हमारा ही पानी बोतलों में भरकर हमें बेचेंगे। मौजूदा केन्द्र सरकार नया भूमि अधिग्रहण कानून लाकर किसानों को जमीन से बेदखल और उद्योगपतियों को जमीन का मालिक बनाने की चाल चल रही है।

उन्होंने कहा कि सरकार लगातार यह कह रही है कि इस कानून से किसानों को लाभ होगा और उन्हें पर्याप्त मुआवजे के तौर पर चार गुना दाम मिलेगा, वह सवाल करते हैं कि जमीन की कीमत कौन तय करेगा, पर्याप्त से आशय क्या है। दाम सरकार तय करेगी, जो बाजार दाम से 10 से 20 गुना कम होगा। ऐसे में तो किसान को बाजार के बराबर ही दाम नहीं मिलेगा, अगर दाम अच्छा मिलेगा तो किसान खुद अपनी इच्छा से ही जमीन बेच देगा, फिर अधिग्रहण कानून लाने की क्या जरूरत है।

सरकार दावा कर रही है कि उद्योग स्थापित होने से रोजगार मिलेगा, मगर ऐसा नहीं है। उद्योग शोषण और प्रदूषण की संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। सरकार दूसरों पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाती है, जबकि हकीकत यह है कि सरकार ही भ्रम फैलाने में लग गई है। वहीं जो लोग काले कानून के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, उन्हें सरकार द्वारा किसान विरोधी करार दिया जा रहा है।

राजेन्द्र सिंह का आरोप है कि किसानों को भूमिहीन बनाकर सरकार कुछ लोगों को ताकतवर व जमीन का मालिक बनाना चाह रही है, वह ठेकेदारों और कॉरपोरेट का राज कायम करना चाहती है। इसलिये नया भूमि अधिग्रहण कानून बनाया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि अगर सरकार नया भूमि अधिग्रहण कानून पारित कराने में सफल रही तो अगला कदम पानी पर कब्जे का होगा। इस दिशा में प्रयास पहले ही शुरू हो गए हैं। हावर्ड से पढ़े लोगों ने वाटर ग्रुप बनाया है, वे भारत में पानी का बाजार देख रहे हैं, लिहाजा भारत के तालाब और नदियों के पानी पर कब्जा करना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि आम आदमी के पानी के अधिकार को खत्म कर उन्हें कम्पनियों के सुपुर्द करने की तैयारी चल रही है। आने वाले दिनों में तालाब गाँव, शहर के नहीं बल्कि कम्पनियों के होंगे, जिसके चलते लोगों को बोतलबन्द पानी पीना होगा। उन्होंने आगे कहा कि हमारे यहाँ सामुदायिक प्रयास से पानी की रक्षा और सुरक्षा होती रही है, नदियों को लोगों ने अपने प्रयास से जीवित किया है। राजस्थान में सात नदियाँ और 1200 गाँव में जलस्रोतों को जनता ने संरक्षित किया है। जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय समन्वयक संजय सिंह ने कहा जनआन्दोलनों को एकजूट होकर संघर्ष करने की आवश्यकता बताई। एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रण सिंह परमार ने कहा कि गरीबों के हितों की अनदेखी कर लाए जा रहे किसी भी विकास के ढाँचे से समाज में विद्रोह की भावना बनी रहेगी। हमें समाज को अहिंसक बनाए रखने के लिये ऐसी अवधारणाओं का विरोध करना है और जब तक भूमिहीनों को भूमि नहीं मिल जाती, तब तक अहिंसक आन्दोलन को चलाते रहना है।

गुलाम बनाने वाली विकास प्रकिया को चुनौती के लिए आंदोलन : राजगोपालभारत स्वाभिमान आन्दोलन के राष्ट्रीय संयोजक सुरेन्द्र बिष्ट ने कहा कि गाँव एवं किसान की उपेक्षा की राजनीति से देश का विकास नहीं हो सकता। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह ने कहा कि ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित कर गाँव में बाहरी लोगों के प्रवेश को प्रतिबन्धित करने की जरूरत है। देश के लोकतान्त्रिक ढाँचे को खत्म करने की साजिश की जा रही है।

किसान नेता शिवकुमार शर्मा ने कहा कि जमीन की इस लड़ाई को आखिरी दम तक लड़ना है। किसान नेता एवं पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम् ने कहा कि देशभर किसान आन्दोलन कर रहे हैं। किसानों की जमीनें छीनी जा रही है, जिससे वे आक्रोशित हैं।धरने पर बैठे राजगोपाल को राज्य शासन ने पत्र भेजकर अवगत कराया कि प्रदेश में भूमि सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण के लिये राज्य एवं जिला स्तर पर टास्क फोर्स के गठन की कार्यवाही शुरू कर दी गई है। एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक अनीष कुमार ने बताया कि संगठन के सभी माँगों पर राज्य सरकार ने निर्णय नहीं लिया है, इसलिये अब गाँव-गाँव में पोस्टकार्ड लिखो अभियान चलाया जाएगा। 15 अगस्त को सांसदों एवं विधायकों का घेराव, 11 सितम्बर को जिला स्तरीय प्रदर्शन एवं रैली का आयोजन और 2 अक्टूबर को राजधानी भोपाल में चक्का जाम किया जाएगा।

आदिवासी, दलित और गरीब चाहे डिंडोरी का हो अथवा धार का मतलब मध्य प्रदेश के एक छोर से दूसरे छोर पर बसा सबकी कहानी एक ही है, उनको जमीन का हक वनाधिकार का पट्टा नहीं मिला तो उनकी जमीन कम्पनी को दे दी गई।

सुन्दर गाँव, परस्पर समाज और स्वावलम्बी परिवार को खण्ड-खण्ड करती सरकार की लीला बहुत ही भयावह है। आखिर गरीब को जमीन मुनाफा के लिये नहीं बल्कि अपने परिवार का पेट भरने मात्र का साधन है और दूसरा कुछ भी नहीं। क्या हमारे आस-पास चलने वाले विकास से प्रत्येक परिवार के लिये हर दिन आधा किलो दूध, आधा किलो फल, आधा किलो सब्जी और आधा किलो अनाज सुनिश्चित हो जाएगा?
 

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Post By: RuralWater
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