भूकंप में कितने सेफ हैं आपके घर

सिक्किम में रविवार शाम को आए भूकंप से जान-माल का जबर्दस्त नुकसान हुआ। ऐसे में दिल्ली एनसीआर के लोगों के मन में यह कशमकश है कि नया फ्लैट खरीदते या प्लॉट पर मकान बनाते हुए वे किन बातों का ध्यान रखें कि भूकंप के झटकों का उनके घर पर कोई असर न हो। एक्सपर्ट्स से बात करके पूरी जानकारी दे रहे हैं अमित कुश :

दिल्ली-एनसीआर को भूकंप के प्रति संवेदनशील इलाके के जोन 4 में शामिल किया गया है। इस इलाके के लिए रिक्टर स्केल मैग्निट्यूड को साफ तौर पर कहीं नहीं बताया गया है, लेकिन इमारतों को भूकंप से सुरक्षित बनाने के लिए इस इलाके में आमतौर पर रिक्टर स्केल मैग्निट्यूड 4.5 की तीव्रता का भूकंप झेलने के लिए तैयार किया जाता है। इसके लिए इमारत के निर्माण के समय ही उसे भूकंपरोधी बनाने के सभी उपाय किए जाते हैं।

प्लॉट


अगर आप प्लॉट पर मकान बनाने जा रहे हैं, तो ही आपके पास उसे भूकंपरोधी बनाने का सुनहरा मौका है। इसके लिए सबसे जरूरी है सॉयल टेस्टिंग रिपोर्ट। यह रिपोर्ट बताती है कि उस जगह की मिट्टी में बिल्डिंग का कितना वजन सहन करने की क्षमता है। इलाके की मिट्टी की क्षमता के आधार पर ही बिल्डिंग में मंजिलों की संख्या तय की जाती है और डिजाइन तैयार किया जाता है। तकनीकी शब्दों में इसे सॉयल की 'बियरिंग कैपेसिटी' कहा जा सकता है। इस रिपोर्ट से ही यह पता चलता है कि नेचरल ग्राउंड लेवल के नीचे कितनी गहराई तक जाकर भूकंप के प्रति बियरिंग कपैसिटी मिल सकती है। मान लीजिए, रिपोर्ट बताती है कि हमें तीन मीटर नीचे जाकर बियरिंग कपैसिटी मिलेगी। यहां स्ट्रक्चरल इंजीनियर का काम शुरू होता है। वह रिपोर्ट के आधार पर वहां डेढ़ बाई डेढ़ मीटर की फाउंडेशन तैयार करेगा। इसके बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियर का काम बिल्डिंग का डिजाइन तैयार करना होता है। आजकल भूकंपरोधी मकान बनाने के लिए लोड बियरिंग स्ट्रक्चर की बजाय फ्रेम स्ट्रक्चर बनाए जाते हैं, जिनसे पूरी बिल्डिंग कॉलम पर खड़ी हो जाती है। कॉलम को जमीन के नीचे दो-ढाई मीटर तक लगाया जाता है। फ्लोर लेवल, लिंटेल लेवल, सेमी परमानेंट लेवल (टॉप) और साइड लेवल (दरवाजे-खिड़कियों के साइड) में बैंड (बीम) डालने जरूरी होते हैं।

कौन करेगा जांच


- मिट्टी की जांच की जिम्मेदारी कई सेमी गवर्नमेंट और प्राइवेट एजेंसी संभालती हैं। इसके लिए इंश्योरेंस सर्वेयर्स की तरह इंडिपेंडेंट सर्वेयर भी होते हैं।

- इसके लिए वे बाकायदा एक निर्धारित फीस चार्ज करते हैं।

- जांच के बाद एक सर्टिफिकेट जारी किया जाता है।

क्या चलेगा पता


- मिट्टी प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर कितना लोड झेल सकती है?

- यह जगह कंस्ट्रक्शन के लिए ठीक है या नहीं?

- इलाके में वॉटर लेवल कितना है?

- वॉटर लेवल और बियरिंग कपैसिटी का सही अनुपात क्या है?

- मिट्टी हार्ड है या सॉफ्ट?

कितना आएगा खर्च


90 गज के प्लॉट के लिए करीब 25 हजार रुपये।

बिल्डिंग के लिए जिम्मेदारी


- टेस्टिंग के बाद सर्वेयर और बिल्डिंग डिजाइन करने के बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियर एक सर्टिफिकेट जारी करते हैं। बिल्डिंग को कोई नुकसान पहुंचने पर इनकी भी जवाबदेही तय की जा सकती है।

क्या है सेफ


- कॉलम में सरिया कम-से-कम 12 मिमी. मोटाई वाला हो।

- फाउंडेंशन कम-से-कम 900 बाई 900 की हो।

- लिंटेल बीम (दरवाजों के ऊपर) में कम-से-कम 12 मिमी मोटाई का स्टील इस्तेमाल किया जाए।

- पुटिंग में कम-से-कम 10-12 मिमी. मोटाई वाले स्टील का प्रयोग हो।

- स्टील की मोटाई कंक्रीट की थिकनेस के आधार पर कम या ज्यादा की जा सकती है।

- स्टील की क्वॉलिटी बेहतर होनी चाहिए, ज्यादा इलास्टिसिटी वाले स्टील से बिल्डिंग को मजबूती मिलती है।

तैयार मकान


अगर आप प्लॉट पर अपना मकान बनवाने की बजाय पहले से ही तैयार कोई मकान लेने जा रहे हैं, तो उसकी जांच करने के लिए आपके पास विकल्प सीमित हो जाते हैं। इसके लिए ठीक ब्लड टेस्ट की तरह थोड़े-थोड़े सैंपल लेकर जांच की जा सकती है, लेकिन यह काम भी कोई आम आदमी नहीं कर सकता। इसके लिए किसी स्ट्रक्चरल इंजीनियर की सर्विस लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए, तैयार मकान के कॉलम को किसी जगह से छीलकर सरिये की मोटाई और संख्या का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए खास मशीन भी आती है, जो एक्स-रे की तरह कॉलम को नुकसान पहुंचाए बिना सरिये की स्थिति बता देती है। इसी तरह, प्लिंथ (फ्लोर) लेवल पर कंक्रीट की थिकनेस और एरिया देखकर उसका मिलान मिट्टी की बियरिंग कपैसिटी से कर सकते हैं। अगर कोई कमी पाई जाती है और लगता है कि मकान भूकंप नहीं सह सकता, तो अतिरिक्त कॉलम खड़े करके उसे मजबूत बनाया जा सकता है। वैसे कंस्ट्रक्शन मटीरियल की जांच भी कुछ राहत दे सकती है।

मटीरियल की जांच


जमीन की मिट्टी ठीक होना ही बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए काफी नहीं है, यह भी जरूरी है कि बिल्डिंग को तैयार करने में क्वॉलिटी मटीरियल भी लगाया गया हो। इस मटीरियल में कंकरीट, सीमेंट, ईंट, सरिये आदि शामिल होते हैं। मटीरियल के ठीक होने या नहीं होने के संबंध में ज्यादातर संतुष्टि केवल डिवेलपर के ट्रैक रिकॉर्ड और उसकी साख को देखकर ही की जाती है। फिर भी कुछ हद तक सावधानी बरती जा सकती है।

प्लास्टर टेस्ट


- एक कील या गाड़ी की चाबी लें, इसे दीवार पर हाथ से गाड़ने की कोशिश करें।

- कील दीवार में धंसती है और रेत झड़ता है, तो साफ है कि खराब मटीरियल लगाया गया है।

- कील नहीं धंसती, तो मटीरियल अच्छा है और काफी तराई भी की गई है।

बिल्डिंग मटीरियल टेस्टिंग


- किसी प्रफेशनल एजेंसी से भी बिल्डिंग मटीरियल की टेस्टिंग कराई जा सकती है।

- ये एजेंसियां पूरी बिल्डिंग या आपकी इच्छानुसार किसी खास हिस्से के मटीरियल की टेस्टिंग करेंगी।

- अलग-अलग तरह की जांच के लिए अलग-अलग फीस ली जाती है।

- जांच के बाद 10-15 दिनों में रिपोर्ट मिल जाती है।

प्रफेशनल सर्टिफिकेट


- आरसीसी फ्रेमवर्क के तहत आने वाली चीजों की जांच किसी प्रफेशनल से कराई जा सकती है।

- इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत पिलर, नींव, स्लैब्स आदि आते हैं।

- प्रफेशनल के रूप में स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सटिर्फिकेट लिया जा सकता है।

साइट विजिट


- अंडरकंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में फ्लैट बुक कराया है, तो साइट विजिट जरूर करें।

- वहां मौजूद एक्सपर्ट/प्रोजेक्ट इंचार्ज से मटीरियल की जानकारी लें।

- आम आदमी को भी मौके पर रखे सामान को देखकर क्वॉलिटी का अंदाजा हो जाता है।

थर्ड पार्टी क्वॉलिटी चेक


- इस प्रक्रिया के अंतर्गत बिल्डर मिट्टी समेत सभी मटीरियल की क्वॉलिटी चेक कराता है।

- यह जांच प्राइवेट एजेंसियां निर्धारित मानकों के आधार पर करती हैं, जिन्हें मानना बिल्डर के लिए जरूरी होता है।

- सभी चीजों की जांच के बाद सर्टिफिकेट दिए जाते हैं, जिन्हें एक बार जरूर देख लेना चाहिए।

मल्टिस्टोरी फ्लैट


मल्टिस्टोरी फ्लैट भूकंपरोधी है या नहीं, यह जांच करने के ज्यादा मौके आपके पास नहीं होते। इसके लिए बिल्डर पर भरोसा कर लेना ही आमतौर पर उपलब्ध विकल्प होता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, किसी भी फ्लैट में इंडिविजुअल रूप से यह नहीं जांचा जा सकता कि वह भूकंपरोधी है या नहीं? इसके लिए पूरी बिल्डिंग की ही टेस्टिंग की जाती है। हां, डिवेलपर से बिल्डिंग और फ्लैट का स्ट्रक्चरल डिजाइन मांगकर उसे किसी एक्सपर्ट से चेक कराया जा सकता है।

क्या है स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग


स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग सिविल इंजीनियरिंग का एक हिस्सा है। इसके अंतर्गत किसी बिल्डिंग, ब्रिज, डैम या किसी अन्य निर्माण का स्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन का कार्य आता है। बिल्डिंग के स्ट्रक्चर को डिजाइन करते समय बिल्डिंग कैसे खड़ी होगी और इस पर कितना लोड आएगा, इसका आंकलन सबसे पहले किया जाता है। बिल्डिंग कितने लोगों के लिए तैयार की जा रही है, यह बिल्डिंग कमर्शल होगी या रेजीडेंशल, जमीन किस तरह की है, मिट्टी की क्षमता कितनी है, उस स्थान पर भूकंप, बाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कितना डर है आदि बातों को ध्यान में रखकर बिल्डिंग का डिजाइन तैयार किया जाता है। यह सारा कार्य स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के अंतर्गत आता है। इसके अंतर्गत कॉलम, बीम, फ्लोर, स्लैब आदि की मोटाई जैसे मुद्दों पर भी गंभीर रूप से ध्यान दिया जाता है। स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड और इंडियन बिल्डिंग कोड के मानकों का ध्यान रखा जाता है, जिससे मकान या बिल्डिंग सालों-साल सुरक्षित रहते हैं।

स्ट्रक्चरल इंजीनियर और सावधानियां


- घर या बिल्डिंग बनवाने से पहले ही नहीं, फ्लैट खरीदते वक्त भी स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सलाह लें।

- यह सलाह ड्रॉइंग डिटेल बनवाने तक ही सीमित न रहे। उस डिटेल पर पूरी तरह अमल भी करें।

- घर बनवाते वक्त/साइट पर स्ट्रक्चरल इंजीनियर से यह चेक करवाते रहें कि निर्माण सही हो रहा है या नहीं?

- आर्किटेक्ट और स्ट्रक्चरल इंजीनियर का आपसी मेल-जोल होना भी बहुत जरूरी है।

- अगर खुद घर बनवा रहे हैं, तो कंस्ट्रक्शन पर आने वाली कुल लागत का अनुमान लगाना आसान हो जाता है।

एक्सपर्ट्स पैनल


- विष्णु मिश्रा, जीएम, क्वालिफाइड सिविल इंजीनियर, जे. एम. हाउसिंग

- आभा गुप्ता, कंसल्टेंट स्ट्रक्चरल इंजीनियर, ज्ञान पी. माथुर एंड एसोसिएट्स प्राइवेट लिमिटेड

- अवनेंद (काल्पनिक नाम), एग्जिक्यूटिव इंजीनियर, सीपीडब्ल्यूडी, दिल्ली

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