भूकम्पीय तरंगें

earthquake
earthquake
Seismic waves

भूकम्प के कारण अवमुक्त होने वाली ऊर्जा पृथ्वी के अन्दर चट्टानों के टूटने के स्थान से तरंगों के रूप में पृथ्वी की सतह की ओर बढ़ती है; ठीक वैसे ही जैसे तालाब के शान्त पानी में कंकड़ फेंकने पर लहरों का वृत्ताकार विस्तार कंकड़ गिरने की जगह से चारों ओर होता है। भूकम्प में उत्पन्न होने वाली तरंगें मुख्यतः दो प्रकार की होती है; प्राथमिक (Primary या P) व द्वितीयक (Secondary या S)। इन तरंगों की गति व कम्पन के प्रारूप में भिन्नता होती है और भूकम्पमापी द्वारा दर्ज आंकड़ों में इन्हें अलग-अलग पहचाना जा सकता है।

 

 

 

हम 20 से 20,000 हर्ट्ज की आवृत्ति वाली तरंगों को ही सुन सकते हैं। प्राथमिक तरंगों के पृथ्वी की सतह से वायुमण्डल में परावर्तित होने पर उनकी आवृत्ति हमारी सुन सकने की सीमा के अन्दर होने की स्थिति में वह हमें गड़गड़ाहट के रूप में सुनायी दे सकती है।

 

प्राथमिक तरंगें ठोस व तरल दोनों ही माध्यमों से हो कर गुजर सकती हैं और माध्यम को अपनी दिशा के सापेक्ष आगे-पीछे हिलाती है। यह तरंगें अपेक्षाकृत तेज गति से चलती हैं और द्वितीयक तरंगों से पहले पृथ्वी की सतह तक पहुँच जाती हैं। प्राथमिक तरंगों की गति माध्यम की असंपीड्यता (incompressibility), दृढ़ता (rigidity) व घनत्व (density) पर निर्भर करती है। अतः यह तरंग अलग-अलग चट्टानों से अलग गति से गुजरती है। बलुआ पत्थरों में प्राथमिक तरंगों की गति 4600 से 5800 मीटर प्रति सेकेण्ड हो सकती है तो चूने के पत्थरों में 5800 से 6400 मीटर प्रति सेकेण्ड। ग्रेनाइट से होकर गुजरते समय प्राथमिक तरंगों की गति 5800 से 6100 मीटर प्रति सेकेण्ड होती है।

द्वितीयक तरंगे तरल माध्यम से नहीं गुजर पाती हैं और माध्यम को अपनी दिशा के लम्बवत ऊपर-नीचे हिलाती हैं। यह तरंगें धीमी गति से चलती हैं और प्राथमिक तरंगों के बाद पृथ्वी की सतह तक पहुँचती हैं। किसी भी माध्यम में इन तरंगों की गति सामान्यतः प्राथमिक तरंगों की गति से 40 प्रतिशत कम होती है।

अभी कुछ देर पहले हम पृथ्वी के अन्दर पिघली हुयी चट्टानों की परत की बात कर रहे थे। उसके प्रमाण मुख्यतः पृथ्वी की सतह पर भूकम्प के अभिकेन्द्र के सापेक्ष कुछ विशिष्ट स्थानों पर इन तरंगों के न पहुँच पाने पर आधारित है।
 

 

ज्यादातर भूकम्पीय तरंगों की आवृत्ति 20 हर्ट्ज से कम होती है जो हमारी सुन सकने की क्षमता से कम है। अतः ज्यादातर स्थितियों में भूकम्प के समय सुनी जाने वाली आवाजें भूकम्पीय तरंगों से कही ज्यादा भूकम्प के समय मकानों व भवनों, अवसंरचनाओं के साथ ही उनके अन्दर रखे सामान के हिलने, खिसकने व गिरने से उत्पन्न गड़गड़ाहट से सम्बन्धित होती है।

 

यहाँ यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि पृथ्वी की सतह के नीचे चट्टानों की सतहों से गुजरने पर भूकम्पीय तरंगें अपवर्तित (reflect) व परावर्तित (refract) होती हैं।

अपवर्तन का तात्पर्य किसी सतह से टकरा कर तरंगों के वापस लौट जाने से है; ठीक वैसे ही जैसे दर्पण की सतह से टकरा कर प्रकाश की किरणें वापस लौट जाती हैं और हमें अपना चेहरा दिखायी देता है।

परावर्तन का तात्पर्य किसी सतह से गुजरने पर तरंगों का अपनी दिशा से मुड़ जाने से है। प्रकाश की किरणों के पानी की सतह से होकर गुजरने पर होने वाले परावर्तन के कारण ही पानी में डुबो-कर पकड़ी हुयी छड़ी हमें पानी की सतह से मुड़ी हुयी दिखायी देती है।

पृथ्वी के अन्दर चट्टानों की पिघली सतह से परावर्तित हो जाने के कारण प्राथमिक तरंगें अभिकेन्द्र से 104डिग्री से 140डिग्री (लगभग 11570 से 15570 किलोमीटर) के बीच स्थित भूकम्पमापियों द्वारा दर्ज नहीं की जाती है। वैज्ञानिक इसे प्राथमिक तरंग ग्रहण जोन (P) कहते हैं। पिघली हुयी सतह से न गुजर पाने के कारण द्वितीयक तरंगें अभिकेन्द्र से 104डिग्री (लगभग 11570 किलोमीटर) तक ही महसूस की जाती हैं।

पृथ्वी की सतह के नजदीक प्राथमिक व द्वितीयक तरंगें एक दूसरे के साथ मिलकर कुछ नयी तरंगों को जन्म देती हैं। इन तरंगों को प्रायः सतही तरंग कहा जाता है और इनमें लव (Love) एवं रिले (Rayleigh) तरंगें प्रमुख हैं। इन तरंगों की गति हालाँकि प्राथमिक व द्वितीयक तरंगों से कम होती है परन्तु यही तरंगें भूकम्प से होने वाली ज्यादातर क्षति के लिये उत्तरदायी होती हैं।
 

 

कहीं धरती न हिल जाये

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

पुस्तक परिचय - कहीं धरती न हिल जाये

2

भूकम्प (Earthquake)

3

क्यों आते हैं भूकम्प (Why Earthquakes)

4

कहाँ आते हैं भूकम्प (Where Frequent Earthquake)

5

भूकम्पीय तरंगें (Seismic waves)

6

भूकम्प का अभिकेन्द्र (Epiccenter)

7

अभिकेन्द्र का निर्धारण (Identification of epicenter)

8

भूकम्प का परिमाण (Earthquake Magnitude)

9

भूकम्प की तीव्रता (The intensity of earthquakes)

10

भूकम्प से क्षति

11

भूकम्प की भविष्यवाणी (Earthquake prediction)

12

भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public)

13

छोटे भूकम्पों का तात्पर्य (Small earthquakes implies)

14

बड़े भूकम्पों का न आना

15

भूकम्पों की आवृत्ति (The frequency of earthquakes)

16

भूकम्प सुरक्षा एवं परम्परागत ज्ञान

17

भूकम्प सुरक्षा और हमारी तैयारी

18

घर को अधिक सुरक्षित बनायें

19

भूकम्प आने पर क्या करें

20

भूकम्प के बाद क्या करें, क्या न करें

 

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