हिमालय दिवस 9 सितम्बर 2015 पर विशेष
नेपाल में भूकम्प के बाद राहत, बचाव और क्षति के आकलन का दौर पूरा हो गया है। यह पुनरुद्धार और पुनर्निर्माण का दौर है। इसी दौर में ऐसे तौर-तरीके अपनाए जा सकते हैं जिससे भविष्य में सम्भावित आपदाओं का मुकाबला आसानी से किया जा सके।
हालांकि नेपाल की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में किसी बड़ी पहल की उम्मीद नहीं की जा सकती, बल्कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार अवश्यम्भावी है। फिर भी पुनर्निर्माण हो रहे हैं और नेपाल सरकार के राष्ट्रीय योजना आयोग के साथ मिलकर आईसीआईएमओडी (इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट) ने ‘भूकम्प पीड़ित क्षेत्रों में टिकाऊ आजीविका की रणनीतिक रूपरेखा’ तैयार की है। हिमालय क्षेत्र में जारी भूगर्भीय हलचलों के मद्देनज़र यह महत्त्वपूर्ण पहल है।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट हिमालय क्षेत्र के आठ देशों का क्षेत्रीय स्तर पर साझा शोध अध्ययन केन्द्र है। भारत, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान इसके सदस्य हैं। काठमांडू, नेपाल में इसका कार्यालय है। उसका मानना है कि भूमंडलीकरण और जलवायु परिवर्तन का नाज़ुक पहाड़ी क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। आईसीआईएमओडी इस परिवर्तन को समझने और उसके अनुसार स्वयं को ढालने में पहाड़ी लोगों की सहायता करने की दिशा में सक्रिय है।
भूकम्प और परवर्ती झटकों का नेपाल पर गहरा असर पड़ा है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार मृतकों की संख्या नौ हजार के निकट है, 23 हजार से अधिक जख़्मी हैं, करीब आठ लाख मकान क्षतिग्रस्त या ध्वस्त हो गए हैं और लगभग 28 लाख लोग विस्थापित हुए हैं। कृषि क्षेत्र पूर्णतः बर्बाद हो गया है जबकि भूकम्प-प्रभावित अधिकांश क्षेत्र कृषि निर्भर है।
कृषि, पशुपालन, पर्यटन, उद्योग-व्यापार सब पर असर पड़ा है। उत्पादन और सेवा क्षेत्र का पूरा आर्थिक परिदृश्य बदल गया है। भूकम्प की वजह से हुई बर्बादी और नुकसान का आर्थिक मूल्य सात बिलियन अमेरीकी डॉलर आँका गया है जो नेपाल के जीडीपी का एक तिहाई से अधिक है। 31 जिले प्रभावित हुए है, 14 पहाड़ी जिले सर्वाधिक प्रभावित हैं।
सबसे बड़ा नुकसान आजीविका का हुआ है। भूकम्प ने 22 लाख 80 हजार परिवारों और 80 लाख लोगों की आजीविका को नष्ट कर दिया है। इसने सात लाख अधिक लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिया। 50 लाख से अधिक कार्य-सक्षम लोग प्रभावित हुए।
करीब 1500 लाख कार्य-दिवसों का नुकसान हुआ। अनाज, पालतू पशु, पक्षी सब नष्ट हुए हैं। लगभग 35 लाख लोगों के सामने भोजन की समस्या है। उन करीब दो लाख लोगों की हालत सबसे खराब है जो पर्यटन से जुड़े हैं। कृषि क्षेत्र ध्वस्त हो गया है। इस क्षेत्र में हुए नुकसान को 255 मिलियन डालर के समतुल्य आँका गया है।
अधिकतम 86 प्रतिशत नुकसान पहाड़ी क्षेत्रों में हुआ है। प्रति व्यक्ति आपदा-प्रभाव का पहाड़ों में सर्वाधिक 2195 डॉलर और तराई में न्यूनतम 508 डालर आँका गया है। औसतन प्रति व्यक्ति 1301 डालर की क्षति हुई है। प्रति व्यक्ति ‘आपदा प्रभाव’ का सीधा सम्बन्ध गरीबी से है।
कम-विकसित और गरीब समुदाय अधिक प्रभावित हुए हैं। गरीब औरतों और कमजोर समूहों में मौत, स्थायी विकलांगता, विस्थापन और आजीविका का संकट भयावह है। सामाजिक-सांस्कृतिक और भौगोलिक नुकसानों का आर्थिक मूल्य निर्धारित नहीं किया जा सकता, पर आर्थिक गतिविधियों में 284 करोड़ डॉलर के नुकसान का अनुमान है।
भूकम्प ने 22 लाख 80 हजार परिवारों और 80 लाख लोगों की आजीविका को नष्ट कर दिया है। इसने सात लाख अधिक लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिया। 50 लाख से अधिक कार्य-सक्षम लोग प्रभावित हुए। करीब 1500 लाख कार्य-दिवसों का नुकसान हुआ। अनाज, पालतू पशु, पक्षी सब नष्ट हुए हैं। लगभग 35 लाख लोगों के सामने भोजन की समस्या है। उन करीब दो लाख लोगों की हालत सबसे खराब है जो पर्यटन से जुड़े हैं। कृषि क्षेत्र ध्वस्त हो गया है। आजीविका केन्द्रित रिपोर्ट को जारी करते हुए नेपाल सरकार के राष्ट्रीय योजना आयोग के उपाध्यक्ष प्रोफेसर गोविन्द राज पोखरेल ने भूकम्प के बाद राहत-बचाव और पुनर्निर्माण में आईसीआईएमओडी के योगदानों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आजीविका पुनर्बहाली की रणनीति के बारे में प्रस्तुत रिपोर्ट में इसका ध्यान रखा गया है कि वह न केवल भूकम्प से हुई क्षति की भरपाई करने में सक्षम हो चाहिए, बल्कि भविष्य के झटकों को बर्दाश्त करने में समुदायों को समर्थ बनाने में भी सहायक हो। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट नेपाल सरकार और दूसरी एजेंसियों के लिये बेहद उपयोगी साबित होगी।
आईसीआईएमओडी के महानिदेशक डॉ. डेविड मोलडेन ने कहा कि रिपोर्ट बुनियादी तौर पर विभिन्न सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के मद्देनज़र आजीविका को बहाल करने, पुनर्जीवित करने और गति प्रदान करने की रणनीतियों के बारे में अन्तर्दृष्टि प्रदान करने के लिये तैयार की गई है ताकि विकास कार्यों की रूपरेखा बनाने और कार्यान्वयन करने में सुविधा हो।
रिपोर्ट आजीविका के उपलब्ध विकल्पों की तलाश करती है, उनकी पड़ताल करती है और ऐसी रणनीति तैयार करती है जिससे आजीविका के टिकाऊ स्रोत विकसित हों। यह पुनर्निर्माण और पुनरुद्धार कार्यों के माध्यम से टिकाऊ आजीविका के विकास के लिये दीर्घकालीन रणनीति अपनाने का दिशा-निर्देश करती हैं ताकि स्थानीय समुदाय आपदाओं के प्रति अधिक सहनशील, और उसका मुकाबला करने में अधिक सक्षम बन सकें। इसे विभिन्न क्षेत्रों के 18 प्रमुख लोगों ने चार वैज्ञानिकों की देखरेख में तैयार किया है।
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Post By: RuralWater