भूकम्प के झटके महसूस करने पर ‘‘कहाँ आया भूकम्प ?’’ के बाद जो दूसरा प्रश्न हम पूछते हैं वह शायद यह कि ‘‘कितना बड़ा था भूकम्प?’’ इस प्रश्न के उत्तर में हमें जो जवाब मिलता है वह भूकम्प का परिमाण होता है जिसका संबंध भूकम्प में अवमुक्त ऊर्जा से होता है।
ज्यादातर लोग मानते हैं कि भूकम्प में महसूस किये जाने वाले झटकों की तीव्रता उनके परिमाण (magnitude) पर ही निर्भर होती है परन्तु वास्तविकता में ऐसा है नहीं। किसी भी जगह पर महसूस किये जाने वाले कम्पनों की तीव्रता कई कारकों पर निर्भर करती है और उनमें से कुछ निम्नवत हैंः
(क) भूकम्प में अवमुक्त ऊर्जा या भूकम्प का परिमाण; अधिक ऊर्जा अवमुक्त होने पर पृथ्वी की सतह पर महसूस किये जाने वाले कम्पनों की तीव्रता सामान्यतः अधिक होगी। अतः भूकम्प का परिमाण बढ़ने के साथ किसी स्थान विशेष पर महसूस किये गये झटकों की तीव्रता भी बढ़ती जायेगी। पर यह तुलना एक ही अभिकेन्द्र के आस-पास आये भूकम्पों के लिये की जा सकती है। हमारे पास पिथौरागढ़ या उत्तरकाशी में आये 5.8 परिमाण के भूकम्प में उत्पन्न होने वाले झटकों को हम निश्चित ही दूर ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका में आये 7.8 परिमाण के भूकम्प में उत्पन्न झटकों से कहीं ज्यादा तेजी से महसूस करेंगे।
(ख) पृथ्वी की सतह से भूकम्प के केन्द्र की गहराई; सामान्यतः भूकम्प के केन्द्र की गहराई बढ़ने के साथ पृथ्वी की सतह पर महसूस किये जाने वाले कम्पनों की तीव्रता कम होती चली जाती है। अतः अपेक्षाकृत कम परिमाण का होने पर भी भूकम्प के केन्द्र के पृथ्वी की सतह के नजदीक होने की स्थिति में कम्पनों की तीव्रता अपेक्षाकृत ज्यादा हो सकती है। इसी प्रकार एक ही अभिकेन्द्र पर आये एक ही परिमाण के परन्तु अलग-अलग गहरायी के केन्द्र वाले भूकम्पों में किसी एक जगह पर महसूस किये जाने वाले कम्पनों की तीव्रता में भी अन्तर हो सकता है।
(ग) भूकम्प के अभिकेन्द्र से उस जगह की दूरी जहाँ भूकम्प के झटके महसूस किये गये हों; अभिकेन्द्र से दूरी बढ़ने के साथ सामान्यतः पृथ्वी की सतह पर महसूस किये जाने वाले कम्पनों की तीव्रता कम होती चली जाती है।
(घ) स्थान की संरचना यानी स्थान चट्टानों के ऊपर है या फिर भुरभुरी मिट्टी या रेत के ऊपर; चट्टानों वाले स्थान के ऊपर सामान्यतः भूकम्प के झटके भुरभुरी मिट्टी या रेत वाले स्थान की अपेक्षा क्षीण होते हैं
अतः एक ही अभिकेन्द्र पर आये एक ही परिमाण के परन्तु अलग-अलग गहरायी के केन्द्र वाले भूकम्पों में किसी स्थान पर महसूस किये गये कम्पनों की तीव्रता में अन्तर हो सकता है। साथ ही कम परिमाण का होने पर भी किसी स्थान विशेष पर महसूस किये गये कम्पन स्थानीय कारणों से अपेक्षाकृत तेज हो सकते हैं।
इसी प्रकार ऊपर दिये गये कारक किसी जगह पर महसूस किये जाने वाले भूकम्प के झटकों की तीव्रता को अलग-अलग तरह से प्रभावित करते हैं। उपरोक्त कारकों में भिन्नता होने के कारण ही भूकम्प के प्रभाव हर स्थान पर अलग-अलग होते हैं।
भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा के आधार पर इसके परिमाण का निर्धारण किया जाता है और इसे मापने के लिये सामान्यतः रिक्टर पैमाने (Richter Scale) का उपयोग किया जाता है।
भूकम्पमापी द्वारा अंकित कम्पनों के आयाम के आधार पर विकसित किया गया यह पैमाना 10 के मूल वाला लघुगणकीय (Logarithmic) पैमाना है जिसकी कोई ऊपरी सीमा नहीं होती है। अतः यह पैमाना हमारे द्वारा प्रायः उपयोग में लाये जाने वाले पैमानों की तरह नहीं होता है जिनमें संख्याओं के आपसी सम्बंध को हम सीधे गुना कर के समझते हैं। जैसे 05 मीटर मतलब 01 मीटर का 05 गुना या 07 लीटर मतलब 01 लीटर का 07 गुना।
भूकम्प को नापने वाले रिक्टर पैमाने की कोई ऊपरी सीमा नहीं होती है और वर्तमान तक भूकम्पमापी द्वारा मापे गये भूकम्पों में 22 मई, 1960 को चिली में आये भूकम्प का परिमाण 9.5 आंका गया है जोकि अब तक का सबसे बड़ा भूकम्प है। इस भूकम्प का अभिकेन्द्र लुमेको के समीप स्थित था और इस भूकम्प में लगभग 1,655 व्यक्ति मारे गये थे। इस भूकम्प से उत्पन्न सूनामी के कारण चिली के साथ-साथ हवाई, जापान, फिलीपीन्स, न्यूजीलैण्ड व आस्ट्रेलिया भी प्रभावित हुये थे। |
रिक्टर पैमाने का 01 वास्तव में 10 है और 02 वास्तव में 100। इस पैमाने की संख्याओं के आपसी सम्बंध को दस से गुना कर के समझा जा सकता है।
log 10 = | Log 101 | 1 log 10 = | 1 |
log 100 = | Log 102 | 2 log 10 = | 2 |
log 1000 = | Log 103 | 3 log 10 = | 3 |
Log 10000 = | Log 104 | 4 log 10 = | 4 |
रिक्टर पैमाने पर मापे गये ‘क’ परिमाण के भूकम्प की तरंगों का आयाम ‘क-1’ परिमाण के भूकम्प में उत्पन्न तरंगों के आयाम का दस गुना होता है और इसमें अवमुक्त ऊर्जा ‘क-1’ परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त ऊर्जा से 31.6 गुना अधिक होती है। सीधे कहें तो भूकम्प के परिमाण के मात्र 0.2 बढ़ने पर अवमुक्त ऊर्जा दो गुना हो जाती है।
यहाँ भूकम्प का परिमाण बढ़ने के साथ उसमें अवमुक्त होने वाली ऊर्जा के सम्बंध को ठीक से समझना बहुत जरूरी है। रिक्टर पैमाने पर 8.0 परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा 7.0 परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा का 31.6 गुना व 6.0 परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा का लगभग 1000 गुना (31.6 x 31.6) होता है।
वैज्ञानिक रिक्टर पैमाने पर 8.0 से अधिक परिमाण के भूकम्प को महान भूकम्प (Great Earthquake) कहते हैं और हिमालयी क्षेत्र में 1897 में शिलांग, 1905 में कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल सीमा पर व 1950 में आसाम में 8.0 से अधिक परिमाण के भूकम्प आ चुके हैं।
यहाँ यह समझना जरूरी है कि हिमालयी क्षेत्र में 1890 से पहले आये किसी भी भूकम्प को भूकम्पमापी द्वारा नहीं मापा गया है। इससे पहले आये भूकम्पों के बारे में हम अभिलेखों या किताबों में दर्ज विवरण से या इनके द्वारा किये नुकसान से जानते हैं और इसी से उनके परिमाण का आंकलन भी किया जाता है।
क्रम संख्या | क्षति का प्रकार | 1991 उत्तरकाशी भूकम्प | 1999 चमोली भूकम्प |
1. | प्रभावित गाँव | 1,929 | 3,705 |
2. | प्रभावित जनसंख्या (लाख में) | 4.22 | 5.35 |
3. | मानव क्षति | 768 | 102 |
4. | घायल व्यक्ति | 5,066 | 395 |
5. | जानवरों की क्षति | 3,096 | 327 |
6. | पूर्ण क्षतिग्रस्त भवन | 20,242 | 14,724 |
7. | आंशिक क्षतिग्रस्त भवन | 74,714 | 72,126 |
8. | अवसंरचना क्षति (करोड़ रुपये में) | 151.72 | 339.55 |
यहाँ उत्तराखण्ड में 1991 व 1999 में उत्तरकाशी व चमोली में आये भूकम्पों का परिमाण क्रमशः 6.8 व 6.4 था परन्तु इन भूकम्पों के कारण यहाँ काफी नुकसान हुआ था जोकि इस क्षेत्र की भूकम्प के प्रति उच्च घातकता को दर्शाता है।
क्षेत्र की उच्च भूकम्प घातकता का सीधा सम्बंध निश्चित ही क्षेत्र में अवस्थित अवसंरचनाओं में भूकम्प सुरक्षा सम्बंधित पक्षों का समावेश न होने से है। भूकम्प सुरक्षा या भूकम्प जोखिम न्यूनीकरण के लिये जरूरी है कि क्षेत्र में बनने वाली अवसंरचनाओं में भूकम्प सुरक्षा प्रावधानों का समावेश सुनिश्चित करने पर अपेक्षित ध्यान दिया जाये तथा पहले से बनी अवसंरचनाओं का मजबूतीकरण किया जाये।
क्षेत्र की भूकम्प संवेदनशीलता की बात आने पर अपने अनुभवों के आधार पर हम में से ज्यादातर को लगता है कि 1991 में आया उत्तरकाशी भूकम्प इस क्षेत्र में आया पहला भूकम्प था। फिर 1999 में आये चमोली भूकम्प को लम्बा समय बीत जाने के कारण कई बार यह लगने लगता है कि आगे कोई भूकम्प आने से रहा। हमारी यह सोच भूकम्प सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं है। सच तो यह है कि 1991 से पहले भी यहाँ भूकम्प आते रहे हैं और आगे भी आते रहेंगे।
1 सितम्बर, 1803 को इस क्षेत्र में काफी बड़ा भूकम्प आया था। गढ़वाल भूकम्प के नाम से पहचाने जाने वाले इस भूकम्प से अलकनन्दा व भागीरथी घाटियों में भारी नुकसान हुआ था। 1807-08 में क्षेत्र का भ्रमण करने के बाद कैप्टन रेपर (Raper) ने मंदिरों व घरों को भूकम्प से हुये नुकसान के बारे में लिखा है। सबसे ज्यादा नुकसान श्रीनगर, उत्तरकाशी व देवप्रयाग में हुआ था और इससे बद्रीनाथ मंदिर सहित आस-पास का इलाका भी प्रभावित हुआ था।
इस भूकम्प से उत्तरकाशी में ज्यादातर घरों के गिरने व लगभग 300 व्यक्तियों के मरने के, बद्रीनाथ में मंदिर सहित 20-30 घरों को क्षति के, जोशीमठ में 100-150 घरों को काफी नुकसान के, यमुना के पूर्वी तट पर ओझा गोर में किले के क्षतिग्रस्त होने के तथा श्रीनगर में महल सहित लगभग 1000 घरों के क्षतिग्रस्त होने के विवरण उपलब्ध हैं।
इस भूकम्प में गंगोत्राी बद्रीनाथ व केदारनाथ मंदिरों के अलावा गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर, देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर, उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर, यमुना घाटी के चन्द्रेश्वर मंदिर, भटवाड़ी के भास्करेश्वर मंदिर व मक्कूमठ के तुंगनाथ मंदिर को काफी क्षति हुयी थी।
इस भूकम्प का प्रभाव केवल हिमालयी क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था। हरिद्वार में महामाया व दक्षेस्वर मंदिरों को इससे क्षति हुयी थी। Paddington ने 11 वी शताब्दी की मथुरा में मुख्य मस्जिद व पत्थरों से बने घरों के ढहने का उल्लेख किया है और साथ ही जमीन में दरारों व पानी निकलने के बारे में भी लिखा है। अलीगढ़ से भी इसी प्रकार के नुकसान के विवरण मिलते हैं। कहा जाता है कि भूकम्प के कारण ही अलीगढ़ किले की घेराबन्दी कर रही अंग्रेज सेना सफल हो पायी थी। दिल्ली में इस भूकम्प से 13वीं शताब्दी में बनी कुतुबमीनार की ऊपरी मंजिल ढह गयी थी। इन अभिलेखों के आधार पर माना जाता है कि श्रीनगर व देवप्रयाग में इस भूकम्प की तीव्रता मैकाली पैमाने पर IX से X थी तो मथुरा में VIII।
इसी तरह 1803 में आये इस भूकम्प का परिमाण रिक्टर पैमाने पर 7.5 आँका गया है। 7.5 मतलब उत्तरकाशी भूकम्प से 10 गुना ज्यादा शक्तिशाली। इस भूकम्प का अभिकेन्द्र उत्तरकाशी के पास माना जाता है। इससे पहले 05 जून, 1505 को आये एक भूकम्प का असर आगरा में होने का उल्लेख बाबरनामा व अकबरनामा दोनों में ही मिलता है। मृगनयनी में भी 1505 में आये भूकम्प के कारण धौलपुर, ग्वालियर एवं माण्डू में संरचनाओं को क्षति होने का उल्लेख मिलता है। इस भूकम्प का दिल्ली में स्थित अवसंरचनाओं पर किसी भी तरह का कोई प्रभाव पड़ने के प्रमाण न मिलने के कारण कई वैज्ञानिक मानते हैं कि इस भूकम्प का अभिकेन्द्र हिमालयी क्षेत्र में नहीं था। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि आगरा व आस-पास के क्षेत्र में 05 जून, 1505 को महसूस किया गया भूकम्प वास्तव में 8.2 परिमाण का लो मुस्टांग भूकम्प था तो कुछ वैज्ञानिक इसे 06 जुलाई, 1505 को आये काबुल भूकम्प का असर मानते हैं। पर कुछ वैज्ञानिक 12वीं शताब्दी के कुमायूँ-गढ़वाल के मन्दिरों को हुयी क्षति के आधार पर मानते हैं कि 1505 में आये भूकम्प का अभिकेन्द्र हिमालयी (कुमाऊँ-गढ़वाल) क्षेत्र में था।
1505 में आये भूकम्प के बारे में विवाद के कारण काफी वैज्ञानिक कुमायूँ-गढ़वाल के मन्दिरों को हुयी क्षति के लिये बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में आये भूकम्प को उत्तरदायी मानते हैं। माना जाता है कि यह भूकम्प 1255 में आया था।
इससे पहले यहाँ बड़ा भूकम्प 1344 में आया था। इस भूकम्प का असर नेपाल के साथ-साथ पंजाब में व्यास घाटी तक हुआ था। कुमाऊँ-गढ़वाल में इस भूकम्प से मंदिरों को काफी नुकसान हुआ था। इस भूकम्प के भूवैज्ञानिक प्रमाण वैज्ञानिकों को कई स्थानों पर मिले हैं।
इससे पहले यहाँ आये किसी भी भूकम्प के कहीं भी किसी भी तरह के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं पर भूकम्प तो यहाँं आये ही होंगे।
फिर हमारा यह क्षेत्र विगत में आये दो बड़े भूकम्प के अभिकेन्द्रों के बीच भी तो स्थित है। हमारे पूर्व में बिहार-नेपाल सीमा पर 15 जनवरी, 1934 को तो पश्चिम में काँगड़ा में 04 अप्रैल, 1905 को बड़े भूकम्प आ चुके हैं। हमारे इस क्षेत्र में लम्बे समय से किसी बड़े भूकम्प का न आना यही दर्शाता है कि भूगर्भीय हलचलों के कारण उत्पन्न ऊर्जा का लम्बे समय से इस क्षेत्र में बस जमाव हो रहा है।
इस ऊर्जा का निस्तारण वैसे तो यहाँ समय-समय पर आने वाले छोटे-छोटे भूकम्पों से भी हो रहा है परन्तु यह छोटे भूकम्प जमा हो रही ऊर्जा को पूरी तरह निस्तारित नहीं कर सकते हैं और अभी तक निस्तारित नहीं हुयी यही ऊर्जा इस क्षेत्र में भूकम्प का जोखिम बढ़ाती है जिसके बारे में वैज्ञानिक प्रायः हमें सचेत करते रहते हैं।
कहीं धरती न हिल जाये (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम | अध्याय |
1 | |
2 | |
3 | |
4 | |
5 | |
6 | |
7 | |
8 | |
9 | |
10 | |
11 | |
12 | भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public) |
13 | |
14 | |
15 | |
16 | |
17 | |
18 | |
19 | |
20 |
/articles/bhauukamapa-kaa-paraimaana-earthquake-magnitude