भारत के कई हिस्से, विशेष रूप से हिमालय के पर्वतीय इलाके, भूकम्पग्रस्त क्षेत्र हैं। अनेक भूकम्पों का यह अनुभव है कि लगभग सभी मौतें मकानों के गिरने से होती है।
साधारणतः मकानों में उसके वजन के कारण दबाव का बल लगता है। परन्तु भूकम्प के समय मकानों में विभिन्न प्रकार के बल, विशेषतः तनाव, दबाव एवं घर्षण, आते हैं। अतः मकान को भूकम्प अवरोधक बनाने के लिए यह जरूरी है कि मकान इन बलों को, खास कर कोनों पर, अच्छी तरह सहन कर सके।
उत्तरकाशी (1991) एवं मराठवाड़ा (1993) में मकानों के ध्वस्त होने का प्रमुख कारण कमजोर दीवाल पर टिकी भारी छत थी। इन क्षेत्रों में, सर्दी-गर्मी से सुरक्षा के लिए दीवालें 2.5 से 3 फिट चौड़ी बनाई जाती हैं। दीवालों में भीतरी एवं बाहरी किनारों पर बड़े पत्थरों का और उनके बीच में छोटे पत्थरों का उपयोग होता है। भूकम्प के दौरान मकान के छत का दबाव दीवालों पर ज्यादा पड़ता है जिससे दीवाल बीच से फूल कर फट जाती है और मकान ध्वस्त हो जाता है।
भूकम्प में जो पुराने बचे रह गये उनसे भूकम्प अवरोधक मकान के निम्न सिद्धान्त उभरते हैंः
1. मकानों में लम्बे एवं चपटे पत्थरों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग होना चाहिए।
2. दीवालों में आर-पार पत्थरों का उपयोग होना चाहिए।
3. परिस्थिति को देखते हुए हल्के से हल्का मकान बनाना चाहिए। छत का भार, मंजिलों की संख्या और दीवाल की मोटाई को कम करके ऐसा किया जा सकता है।
4. मकान में कम से कम दो स्तरों-लिंटल एवं कुर्सी पर पट्टी जरूर देनी चाहिए। पट्टियों की संख्या बढ़ाने से मजबूती बढ़ती है।
5. खिड़की एवं दरवाजे कम, छोटे और कोनों से दूर होने चाहिए।
6. मकानों में लचीलापन होना चाहिए।
7. चूँकि कोनों पर ज्यादा बल आता है, इसलिए यहाँ अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता है।
सामग्री
उत्तरकाशी और फिर मराठवाड़ा के भूकम्प के बाद लोगों में यह धारणा बनी है कि ईंट के मकान ही भूकम्प में सुरक्षित रह सकते हैं। यह सौ फीसदी सही नहीं है। उत्तरकाशी जिले में परम्परागत मकानों (फिरोल) को 1991 के भूकम्प में कोई नुकसान न होना इस बात का ठोस प्रमाण है। ये मकान मिट्टी, पत्थर और लकड़ी से बने हैं।
इसलिए सामग्री की तुलना में निर्माण का सही तकनीक अपनाना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। अतः परम्परागत एवं स्थानीय सामग्रियों के साथ भी, सही तकनीक से बने मकान, मजबूत एवं भूकम्प अवरोधक हो सकते हैं।
इस पुस्तिका में सामग्री के बजाय तकनीक पर ज्यादा जोर दिया गया है। इसमें पत्थर से बने दो कमरे का एक मंजिला मकान के निर्माण की जानकारी दी गई है। परन्तु इसे दो से अधिक कमरों के मकानों के लिए भी उसी तरह से उपयोग में लाया जा सकता है।
पुस्तिका में वर्णित मकान परम्परागत शैली से थोड़ा भिन्न है। पुस्तिका में दिये गये सुझावों के पीछे जो सिद्धान्त है उनका सृजनात्मक ढंग से किसी भी शैली में उपयोग हो सकता है।
पुस्तिका में यह सुझाया गया है कि मकान का निर्माण करते समय किन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मकान में किन स्थानों पर और किस प्रकार से भूकम्प अवरोधक तत्व शामिल किये जा सकते हैं। स्थान के चुनाव से लेकर मकान के पूर्ण रूप से तैयार हो जाने की प्रक्रिया को सचित्र एवं सरल रूप से समझाने की कोशिश की गई है।
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