परिचय
मार्च 1999 में उत्तराखण्ड में आये भूकम्प से करीब 105 लोग मरे और हजारों घरों को नुकसान हुआ। इससे पहले 1991 में उत्तरकाशी के भूकम्प में लगभग 15,000 परिवार बेघर हो गये और 21,000 घरों को नुकसान पहुँचा। इसके कारण 650 लोगों की जाने गई और 6,000 व्यक्ति घायल हुए। अधिकतर लोग मकानों के ध्वस्त हो जाने के कारण मरे।
उत्तरकाशी भूकम्प के पश्चात लोक विज्ञान संस्थान शोध कार्य में लग गई। इस शोध से यह पता चला कि ये नुकसान, निर्माण की सही तकनीक को न अपनाने के कारण हुआ। फिर मकानों को भूकम्प अवरोधक बनाने के लिए शोध कार्य हुए। इसमें गढ़वाल के पारम्परिक भवन निर्माण तकनिकों का भी अध्ययन किया गया। इस शोध से भूकम्प अवरोधक भवन निर्माण के कुछ मूल सिद्धान्त स्पष्ट हुए। इन सिद्धान्तों को अपनाने से काफी हद तक मकानों को भूकम्प से सुरक्षित किया जा सकता है।
पूरा उत्तराखण्ड भूकम्पग्रस्त क्षेत्र है। वैज्ञानिकों के अनुसार इक्कीसवीं सदि में इस क्षेत्र में एक बड़े भूकम्प के आने की सम्भावना है। अतः हमारी यह इच्छा है कि जो भी घर इस क्षेत्र में बनें, वे भूकम्पों को सह सकें। इस लक्ष्य से भूकम्प अवरोधक भवन निर्माण पर यह पुस्तिका आपके सामने प्रस्तुत है। इसमें हमारी यही कोशिश है कि भूकम्प अवरोधक भवन निर्माण के मूल सिद्धान्त सरल रूप में दर्शाए जा सकें ताकि आम व्यक्ति भी इन्हें समझ कर भवन निर्माण कर सके।
इस पुस्तिका की तैयारी में श्री लौरी बेकर की किताब ‘मिट्टी’ की मदद ली गई है। लोक विज्ञान संस्थान इसका आभार प्रकट करती है।
/articles/bhauukamapa-avaraodhaka-ghara-nairamaana-pausataikaa