भूकम्प आपदा प्रबंधन


भूकम्प आपदा प्रबंधनप्रकृति की सबसे बड़ी विपदाओं में भूकम्प सबसे विनाशकारी है। भूकम्प की पूर्व सूचना के लिये हमारे पूर्वज पशु पक्षियों के असामान्य व्यवहार पर निर्भर करते थे। आज स्थिति बहुत कुछ बदल चुकी है। कई मशीनें बन गई हैं। नई तकनीक का सहारा लिया जाने लगा है। इससे भूचाल के बारे में बहुत सारी जानकारी मिल जाती है।

भूकम्प के लक्षण


दुनिया में हर साल लगभग पाँच लाख भूकम्प आते हैं। इनमें से कोई एक हजार के बारे में ही जानकारी हम तक पहुँचती है। असल में ज़मीन के अन्दर लगातार टूट-फूट होती रहती है। बाहर से वह दिखाई नहीं देती। धरती पर बाहरी परतों का दबाव पड़ता रहता है। भीतरी ताकतें भी अपना ज़ोर लगाती हैं। दबाव अधिक होने पर चट्टानें अचानक टूट जाती हैं। वे टूट कर या तो अन्दर धँस जाती हैं अथवा ऊपर की ओर उभरने लगती हैं। उनके इसी ज़ोरदार धक्के से पृथ्वी काँपने लगती है। तकनीकी शब्दों में पृथ्वी की इन विभिन्न प्रकार की सतहों का परस्पर टकराव ही भूकम्प का कारण होता है।

भूकम्प आपदा प्रबंधनइसमें कोई सन्देह नहीं कि भूकम्प एक प्राकृतिक विपदा है। ज़मीन की ऊपरी परत आमतौर पर सख़्त और स्थिर होती है। अन्दर से पृथ्वी प्रायः काँपती रहती है। यह कम्पन इतना मामूली होता है कि हमें पता ही नहीं लगता। कभी-कभी यह कम्पन इतना विकराल रूप धारण कर लेता है कि पहाड़ों की चट्टानें टूट कर गिरने लगती हैं। जमीन में दरारें पड़ जाती हैं। नगर के नगर ध्वंस हो जाते हैं। पानी के स्रोत अपना स्थान बदल लेते हैं। कहीं पर नए चश्मे फूट पड़ते हैं और कहीं पर पानी से भरे चश्मे सूख जाते हैं। गहरी खाईयाँ गुम हो जाती हैं और नई घाटियाँ बन जाती हैं। इन सब कारणों से जान-माल का बहुत अधिक नुक़सान होता है। यह नुक़सान कम से कम हो उसके लिये अब तकनीक और समझदारी ही एक सहारा है।

भूकम्प आपदा प्रबंधनभारत में 30 सितम्बर, 1993 को महाराष्ट्र के लातूर नामक स्थान पर आए भूकम्प में 28,000 लोगों के मरने का अनुमान लगाया गया था। इसके प्रभाव को 12 किलोमीटर तक महसूस किया गया था। 26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज इलाके में एक भयंकर भूकम्प आया, जिसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए और दो लाख से अधिक लोग घायल हुए। चार लाख घर तबाह हो गए। कई ऐतिहासिक महत्व की इमारतों का अस्तित्व ही मिट गया।

भूकम्प आपदा प्रबंधनगत दिनों ऐसे ही भूकम्प जम्मू-कश्मीर के उरी क्षेत्र में और उत्तराखंड के चमोली क्षेत्र में आए थे। वहाँ पर बहुत अधिक जान-माल की हानि हुई। वहाँ के लोगों के काम-काज ठप्प हो गए। अधिकतर आदमियों और जानवरों की मौतें मकानों के ढह जाने और बड़े-बड़े पत्थरों के नीचे दब जाने के कारण हुई। लोग अपने घरों की खिड़कियों से कूदे जिसके कारण बुरी तरह घायल हो गए। घरों में फँसे हुए बच्चे को सुरक्षित बाहर निकालने के प्रयास में भी बहुत लोग ज़ख़्मी हुए। खेतों में काम कर रहे लोगों पर भी बड़े-बड़े पत्थर आकर गिरे जिसके कारण काफी लोग मर गए। सड़कों पर चल रहे वाहन मलबे में दब गए, उनके भीतर बैठे लोग अपनी जान नहीं बचा पाए। चरने के लिये गए पशु अपने घर लौट कर नहीं आ सके। कई रास्ते बंद हो गए।

लोगों ने घरों से बाहर निकल कर अपने परिवार सहित खुले आसमान के नीचे रातें बिताई। राहत कार्य दो-तीन दिन बाद ही शुरू हो सके। बाद में लोगों को आवश्यक राहत सामग्री वितरित की गई। राहत शिविरों का प्रबंध किया गया। ग़ैरसरकारी संस्थाओं ने भी सहायता की परन्तु उनमें आपसी तालमेल नहीं था। आमतौर पर सड़कों के किनारे-किनारे अधिक राहत पहुँच गई और भीतरी इलाके इससे वंचित रह गए। इस अवसर पर इन क्षेत्रों में तैनात सेना ने उल्लेखनीय कार्य किए और अनेक लोगों की जान माल की रक्षा की। सेना के जवानों ने गाँव-गाँव तक राहत सामग्री पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भूकम्प आपदा प्रबंधनभूकम्प के बाद कई जगहों पर धरती का पानी सूख गया। खेती तबाह हो गई थी। आज भी घरों के नाम पर केवल खंडहर बचे हैं। कितने ही बच्चे यतीम हो गए हैं। अभी तक लोग रात में चैन से सो नहीं पाते हैं। वहाँ के निवासियों का पारिवारिक, सामाजिक और सामुदायिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। आज भी वहाँ के लोगों का जीवन सामान्य नहीं हो पाया है। इस विपदा का गहरा प्रभाव महिलाओं और बच्चों पर विशेष रूप से हुआ।

भूकम्प के प्रभाव को कम करने वाले कार्यक्रम


सरकार इस बात पर पूरे-पूरे प्रयास कर रही है कि यदि कहीं पर भूकम्प आ ही जाए तो उससे होने वाली हानि कम से कम हो। इसके लिये सरकार ने कई कार्यक्रम प्रारम्भ किए हैं। भारतीय मानक संस्थान ने देश के भूकम्प प्रभावित इलाकों को कुछ क्षेत्रों में विभाजित किया है। ऐसे मापदंड निश्चित कर दिए हैं, जिनके अनुसार उन क्षेत्रों में मकान बनाए जाएँ तो वह बहुत कम क्षतिग्रस्त होगें। इसमें कोई सन्देह नहीं कि शहरी और कस्बाई क्षेत्रों में भवनों का निर्माण स्थानीय अधिकारियों की देखरेख के नियमानुसार होता है। परन्तु इन नियमों में कई बार भारतीय मानक संस्थान द्वारा निर्धारित नियमों को शामिल नहीं किया जाता है। कई स्थानों पर नियम लागू किए जाते हैं परन्तु उनकी ठीक-ठीक जानकारी वहाँ के भवन बनाने वालों को नहीं होती। देहातों में तो यह समस्या और भी गम्भीर है।

सरकार ने इसके लिये निम्नलिखित प्रयास किए हैंः
1. भूकम्प के जोखिम को कम से कम करने के लिये एक कोर ग्रुप का गठन।

2. भवन निर्माण के नियमों की समय-समय पर जाँच पड़ताल करना और नियमों का सख़्ती से पालन करवाना।

3. राज्यों में आपातकाल की स्थिति में काम करने वाली इकाइयों का गठन।

4. भवन निर्माताओं और इंजिनीयरों की क्षमता में वृद्धि करने के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाना।

5. देहाती क्षेत्रों में काम करने वाले राजमिस्त्रियों को मानकों के अनुसार मकान बनाने का प्रशिक्षण प्रदान करना। शहरी क्षेत्रों में भी भूकम्परोधी निर्माण कार्यों का प्रशिक्षण देना।

6. स्कूलों और कॉलेजों में भूकम्प इंजीनियरिंग को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना।

7. चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले छात्रों को अस्पताल में आपातकालीन तैयारियाँ करने की शिक्षा देना।

8. पुराने बने हुए भवनों की समय-समय पर जाँच पड़ताल करना।

इन कार्यों के लिये सरकार ने 1132 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। योजना आयोग ने इसे मंजूरी दे दी है। इन कार्यक्रमों में विशेष रूप से भूकम्प संभावित चार और पाँच की श्रेणी में आने वाले क्षेत्रों में स्थित अस्पतालों, स्कूलों, हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और सार्वजनिक भवनों को शामिल किया गया है।

9. शहरी क्षेत्रों में भूकम्प से कम क्षति हो, इसके लिये अनेक प्रकार के कार्यक्रम बनाना।

10. देहाती क्षेत्रों में होने वाले निर्माणों में भूकम्प से संबंधित मानकों का समावेश।

11. भूस्खलन वाले क्षेत्रों के लिये भी राष्ट्रीय कोर ग्रुप का गठन।

12. रेडियो, टी.वी., अख़बार जैसे संचार के माध्यमों से लोगों को ज़रूरी जानकारी देने का प्रबंध करना।

13. उत्तरी पूर्वी राज्यों पर विशेषकर ध्यान देना।

भूकम्प आने से पहले उठाए जाने वाले क़दम


1. स्थानीय प्रशासन से यह ज्ञात कर लेना चाहिए कि क्या आपका भवन भूकम्प वाले क्षेत्र में है?

2. स्थानीय अधिकारियों की सहायता एवं उपलब्ध साधनों द्वारा अपने घरों को अधिक सुरक्षित बनाएं।

3. अपने घर में ऐसा स्थान पहले से ही चुन लें जो अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हो। जहाँ आपके ऊपर कुछ भी न गिरे। किसी भी दशा में सिर पर कोई चोट न लगे इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए। भूकम्प के कारण सिर पर चोट के सबसे अधिक मामले सामने आते हैं।

4. ऐसी विपदा में पूरी तरह से हौसला रखना चाहिए। घर के अन्य सदस्य ऐसी विपदा में घबरा न जाएँ, इसके लिये समय-समय पर उनके साथ इस विषय पर विस्तार से चर्चा करें। संभव हो तो परिवार के सदस्य समय-समय पर भूकम्प से बचाव के उपायों का अभ्यास करें।

5. सबसे ज़रूरी बात तो यह है कि हर भवन के निर्माण में भूकम्परोधी तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिए।

6. प्लास्टिक का प्रयोग कम करें। इससे आग लगने की संभावना रहती है।

7. भवन निर्माण में खोखली ईंटों का प्रयोग अच्छा रहता है। इन ईंटों के साथ स्टील की रॉड का प्रयोग किया जाए तो और भी अच्छा रहता है। स्टील में अधिक तनाव सहने की क्षमता होती है।

8. जहाँ पर जापान की तरह बहुत अधिक भूकम्प आते हों,वहाँ प्लाईवुड जैसी हल्की वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। बाँस से बनने वाले घर बेहतर भूकम्परोधी होते हैं। ये सस्ते भी बनते हैं। महानगरों में ऐसे मकान बनाना संभव न लगता हो तो कम से कम छोटे शहरों और कस्बों में तो बनाए ही जा सकते हैं। आखि़र भूकम्प तो कहीं भी आ सकता है। ऐसे मकानों के गिरने से अधिक जान माल की हानि नहीं होती।

9. यदि संभव हो तो भवनों के दरवाज़े और खिड़कियाँ लकड़ी के बनाए जाए। उनके चौखट और फ्रेम लोहे अथवा पत्थर के हो सकते हैं। राजस्थान के आम घरों में ऐसे पत्थरों का प्रयोग देखा जा सकता है। आज कल एल्यूमिनियम का प्रयोग भी अच्छा रहता है। एल्यूमिनियम हल्का भी होता है और मज़बूत भी।

10. कई मकानों के निर्माण के समय उनके बीच खाली जगह ज़रूर रखना चाहिए। ऐसे में आग लगने का ख़तरा कम होता है। आग लग जाए तो आग बुझाने में आसानी होती है।

11. भवन निर्माण सावधानीपूर्वक किए जाएं। बिजली की फिटिंग का पूरी तरह से ध्यान रखा जाए। शार्ट सर्किट का भय कम से कम हो। यदि इन बातों को ध्यान में रख कर अग्निरोधी भवन बनाए जायेंगे तो भूकम्प आने की स्थिति में भी नुक़सान कम से कम होगा।

12. भवन निर्माण के मानकों का अधिक से अधिक पालन करना चाहिए। त्रिकोण सिद्धांत के आधार पर बनाए गए मकान अच्छे रहते हैं। छत, खंबों और दीवारों का निर्माण इस तरह से करना चाहिए कि कड़ेपन के साथ उनमें लचीलापन भी हो। वे एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हों। छत का भार सामान रूप से विभाजित हो तो वह जल्दी से नहीं गिरती।

13. आपदा के समय जिन वस्तुओं की आवश्यकता हो उन्हें ऐसे स्थान पर रखें जहाँ आप आसानी से पहुँच सकें। इन वस्तुओं में प्राथमिक चिकित्सा किट, दवाइयां, नकदी धनराशि, बैटरी से चलने वाला रेडियो, खाने-पीने का सामान, मज़बूत जूते और चप्पलें, प्लास्टिक शीट, सीटी, रस्सी, टार्च, बैटरी, माचिस और मोमबत्ती इत्यादि।

भूकम्प के समय क्या करें?


1. घर के भीतर हों तो घबराएं नहीं। बच्चों और बूढ़ों का ख्याल रखें। सावधानी रखते हुए घर के और सदस्यों के साथ खुले मैदान में आजाएं।

2. जिस सामान के ऊपर गिरने की संभावना हो उससे दूर ही रहें।

3. यदि आप घर से बाहर हैं तो पेड़ों, विशेष रूप से अकेले पेड़ से, खंबों और भूस्खलन वाले क्षेत्रों से दूर खड़े हों।

4. यदि आप सड़क पर किसी गाड़ी में हैं तो गाड़ी से उतर कर किसी सुरक्षित स्थान पर जाएँ।

भूकम्प के बाद क्या करें?


1. अपनी चोटों की जाँच करें। पहले छोटे बच्चों पर ध्यान दें कि उन्हें कोई चोट तो नहीं आई। यदि चोट लगी हो तो तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था करें।

2. ज़रूरी हो तो करीबी अस्पताल में प्राथमिक चिकित्सा के लिये जाएँ।

3. जल-मल व्यवस्था और बिजली की लाइनों में हुई क्षति को देखें।

4. घर में हुई टूट-फूट पर ध्यान दें। ख़तरनाक मलबे को हटाने का प्रबंध करें। सबसे पहले देखें कि मलबे के नीचे कोई व्यक्ति अथवा जानवर दबा हुआ तो नहीं है।

यदि कोई हो तो तुरन्त मलबा हटा कर उन्हें बाहर निकालें। घायल का इलाज करें। मलबे में दबे हुए शवों को बाहर निकाल कर उनकी अन्तिम क्रिया का प्रबंध करें। लाशों के सड़ने से बहुत तरह की बीमारियाँ फैलती हैं, जिनसे जीवन दूभर हो जाता है।

5. स्थानीय अधिकारियों, पुलिस अथवा सेना, अग्निशमन कर्मियों की हिदायतों की प्रतीक्षा करें। जहाँ तक संभव हो उनके साथ सहयोग करें। उनके काम में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें। ऐसी सहायता के आने के लिये रास्ते साफ़ करने का प्रयास करें।

6. स्वच्छ पानी और आवश्यक भोजन सामग्री का प्रबंध करें।

चित्रकार : कुमुद सिन्हा, मनीष वर्मा



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