समिति का मानना है कि सरकार को इस योजना का विस्तार उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड जैसे दूसरे क्षेत्रों तक करना चाहिए जहां भूजल की स्थिति काफी गंभीर है। समिति ने भूजल प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय में अभी तक कोई योजना नहीं होने पर अपना गुस्सा जतलाते हुए सिफारिश की है कि सरकार राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा प्राधिकरण जल्द बनाए ताकि पर्यावरण का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाया जा सके।
हमारे मुल्क में भूजल में बढ़ते प्रदूषण पर समय-समय पर चिंता जताई जाती रही है। लेकिन इस समस्या के ठोस उपाय क्या हों इस पर कभी गंभीरता से नहीं सोचा जाता जबकि यदि इस पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया तो निकट भविष्य में हमारे लिए पीने के पानी के भी लाले पड़ जाएंगे। एक बात तो तय है कि मौजूदा प्राकृतिक संसाधनों में इजाफा नहीं किया जा सकता लेकिन इनका संरक्षण और इसे प्रदूषण से तो बचाया जा सकता है। संसद की जल संसाधन संबंधी समिति ने हाल ही में अपनी दसवीं रिपोर्ट में यूपीए सरकार से आग्रह किया है कि मुल्क में भूजल प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए संबंधित मंत्रालयों के साथ विचार विमर्श के बाद व्यापक राष्ट्रीय योजना बनाई जाए ताकि वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
दीप गोगोई की अध्यक्षता वाली इस समिति ने भूजल प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए अपनी ओर से कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। समिति का मानना है कि मुल्क के सीमित जल संसाधन को बर्बाद होने से बचाने के लिए सरकार को सिंचाई व्यवस्था में खास तौर पर बदलाव लाने की जरूरत है। मसलन सरकार किसानों को चक्रीय पैदावार प्रणाली ड्रिप और स्प्रिंकल सिंचाई और पारंपरिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में भूजल प्रक्रिया अपनाने जैसी बचत तकनीकों को ज्यादा से ज्यादा अपनाने की सलाह दे सकती है। यह बात सच भी है। वर्तमान में भारत का कृषि क्षेत्र करीब 90 फीसदी कुल वाटर रिसोर्स का प्रयोग करता है। जाहिर है जब सिंचाई व्यवस्था में सुधार होगा तो पानी की ज्यादा से ज्यादा बचत होगी। समिति ने विदेशों में कृत्रिम पुनर्भरण की कुछ पद्धतियों और भूजल प्रबंधन को कामयाबी से अपनाए जाने की मिसाल देते हुए सुझाव दिया कि सरकार कृत्रिम पुनर्भरण भूजल प्रबंधन की ऐसी पद्धतियों को मुल्क में अपनाने की व्यवहार्यता का गंभीरता से पता लगाए। ताकि निकट भविष्य में भूजल क्षेत्र में सकारात्मक और सुनिश्चित सुधार किए जा सकें। समिति ने जल संसाधन मंत्रालय से उम्मीद की है कि वह इस दिशा में शुरू किए गए उपायों पर निरंतर निगरानी रखेगा।
जैसा कि हम जानते हैं भूजल में मौजूद मैगनीज सीसा क्रोमियम कैडमियम आदि मानवजनित संदूषण के अलावा खनन कार्यों और दीगर औद्योगिक कचरे के रिसाव से भी प्रदूषण फैलता है। यही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में सीवर लाइन के अभाव में सैप्टिक टैंकों का अधिक निर्माण भूमि के नीचे आहिस्ता-आहिस्ता प्रदूषण की वजह बनता है। समिति ने इस संबंध में सिफारिश की है कि स्थिति से निपटने के लिए उचित कार्यवाही की जाए। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन के मुताबिक मुल्क भर में 90 से ज्यादा शहरों, कस्बों का 70 फीसदी गंदा पानी पेयजल के प्रमुख स्रोत नदियों में बिना शोधन के ही छोड़ दिया जाता है। चमड़ा कागज और चीनी समेत रासायनिक कारखानों के कचरे के अलावा शहरों की जल-मल की निकासी का रूख आम तौर पर नदियां ही होती हैं। नतीजतन कई नदियां आज जहरीले नालों के रूप में तब्दील हो चुकी हैं। समिति ने नदियों के प्रदूषण पर भी चिंता जतलाते हुए कहा कि मुल्क में नदियों की कुल 45019 किलोमीटर लंबाई में से लगभग 33 फीसद क्षेत्र प्रदूषित है।
समिति ने इस दिशा में सुधार के लिए सरकार से सिफारिश की है कि मुल्क भर में नदियों और जल निकायों के प्रदूषण स्तर की स्थिति के संबंध में छमाही रिपोर्ट हासिल करके और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला कलेक्टरों द्वारा कानपुर जैसे उच्च प्रदूषण वाले इलाकों में चर्मशोधक कारखानों समेत दीगर कारखानों की नियमित जांच कराके अपने निष्कर्षों को केन्द्रीय भूमिजल प्राधिकरण को साल में कम से कम दो बार भेजकर इन निकायों की कार्यप्रणाली में सुधार लाए। रिपोर्ट के मुताबिक केन्द्रीय जल बोर्ड ने 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 100 करोड़ रुपए की कुल लागत से 8 सूबों के लिए 14 परियोजनाओं को मंजूरी दी। समिति का मानना है कि सरकार को इस योजना का विस्तार उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड जैसे दूसरे क्षेत्रों तक करना चाहिए जहां भूजल की स्थिति काफी गंभीर है। समिति ने भूजल प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय में अभी तक कोई योजना नहीं होने पर अपना गुस्सा जतलाते हुए सिफारिश की है कि सरकार राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा प्राधिकरण जल्द बनाए ताकि पर्यावरण का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाया जा सके।
भूजल प्रदूषण के अलावा मुल्क के अंदर जल स्तर में तेजी से आ रही गिरावट भी चिंता का सबब है। नासा के हाइड्रोलॉजिस्ट यूसी इरविन ने हाल ही में जब सैटेलाइट डाटा की मदद से जानकारियां जुटाईं तो पाया कि भारत में पिछले एक दशक में भूमिगत जल का स्तर प्रति वर्ष एक फीट नीचे जा रहा है। भूजल प्रदूषण और इसके स्तर में आ रही गिरावट की समस्या से निपटने के लिए समिति ने सिफरिश की है कि सरकार तत्काल एक ऐसा नया तंत्र विकसित करे जिससे राय सरकारों और संबंधित केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण एजंसियों के बीच सौहार्दपूर्ण और प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करने के लिए इनके प्रयासों पर नजर रखी जा सके। बहरहाल समिति की यह कुछ ऐसी सिफारिशें हैं यदि इन पर सही तरह से अमल किया जाए तो भूजल प्रदूषण पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है। अब देखना यह है कि सरकार कब इसके लिए एक व्यापक राष्ट्रीय योजना बनाती है।
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