भूजल की कृत्रिम भरपाई

ground water
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पिछले वर्षों से केन्द्र और राज्य सरकारों, गैर सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संगठनों ने लोगों में सीमित भूजल संसाधनों को लम्बे समय तक इस्तेमाल करने के महत्व के प्रति जागरूक बनाने में सफलता पाई है। विभिन्न अध्ययन और प्रदर्शनकारी परियोजनाएँ भी चलाई गई जिनसे यह बात सामने आई कि विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में भूजल संवर्धन के काम में कृत्रिम भरपाई की तकनीकें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में सिंचाई, पेयजल और औद्योगिक प्रयोगों के लिए पानी की जरूरतें पूरी करने में भूजल पर निर्भरता बढ़ी है। सूखा प्रबन्धन के एक प्रभावशाली साधन और कृषि में स्थिरता लाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था में भूजल विकास ने एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है।

देश के कुछ भागों में भूजल का दोहन एक नाजुक चरण में पहुँच गया है, जिसके परिणामस्वरूप इस संसाधन की कमी महसूस की जा रही है। भूजल संसाधनों के अत्यधिक विकास का नतीजा यह रहा है कि भूजल का स्तर गिरा है, पानी की आपूर्ति कम हुई है, तटीय क्षेत्रों में पानी खारा हो गया है और पम्पों के जरिए इसे उठाने में अब ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। भूजल की निरन्तर गिरती गुणवत्ता ने कुछ क्षेत्रों में ताजे भूजल की उपलब्धता को प्रभावित किया है।

इन सबका पर्यावरण पर अप्रत्यक्ष तौर पर काफी प्रभाव पड़ा है और लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हुई है। यही कारण है कि जल संसाधनों के संवर्धन के लिए बहुत जल्दी कदम उठाए जाने की जरूरत है, ताकि सुदीर्घ अवधि तक इस अमूल्य संसाधन की उपलब्घता सुनिश्चित की जा सके।

इस दिशा में भूजल की भरपाई करने में कृत्रिम तरीकों की महत्वपूर्ण भूमिका है और ऐसा करके ही भूजल भण्डारों के क्षरण और इसके कारण आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण पर पड़ने वाले कुप्रभावों को रोका जा सकता है।

प्राचीन काल से ही भारत में जल संग्रहण की परम्परा रही है। पुराणों में भी इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं। स्थानीय परम्पराओं और पुरातात्विक अवशेषों से इस बात की पुष्टि होती है। प्रागैतिहासिक युग में भी जल सम्भरण की काफी उन्नत व्यवस्थाओं के प्रमाण मिलते हैं। परम्परागत रूप से बनाए जाने वाले जल सम्भरण संचरनाओं का उद्देश्य वर्षा के बह जाने वाले पानी को इकट्ठा करना तथा इसे सिंचाई, पीने और अन्य घरेलू कामों में इस्तेमालकरना था।

अगर पानी खुले में इकट्ठा किया जाता है तो इसके भाप बनकर उड़ जाने और प्रदूषित हो जाने का ख़तरा रहता है। कृत्रिम ढंग से भूजल की भरपाई करने की अवधारणा जमीन के नीचे मौजूद भूजल भण्डार को संवर्धित करने और इसके क्षरण को रोकने पर आधारित है।

सरकार द्वारा उपाय


जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार का केन्द्रीय भूजल बोर्ड वैज्ञानिक और कृत्रिम तरीकों से भूजल संसाधनों की भरपाई करने में अग्रिम भूमिका निभाता रहा है। इसने अतिरिक्त पानी का संग्रह करके उसे इस्तेमाल करने की योजनाएँ बनाई है। ऐसा पानी अन्यथा समुद्र में बह जाता है। वर्षा जल संग्रहण के काम में भौगोलिक और जलविज्ञान सम्बन्धी विभिन्नताओं के कारण अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

हरियाणा के घग्घर नदी घाटी और सौराष्ट्र के तटीय और मेहसाणा इलाके में जमीन पर पानी फैलाने, कुओं के जरिए इसकी भरपाई करने और अन्य तरीकों से अनेक सम्भाव्यता अध्ययन किए गए। केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने1976-78 में यूएनडीपी की सहायता से ये अध्ययन कराए। इनसे उत्साहजनक परिणाम मिले और भरपाई की कृत्रिम तकनीकों से भूजल के संवर्धन की सम्भाव्यता की पुष्टि हुई।

बाद में प्रदर्शन के लिए अनेक परियोजनाएँ शुरू की गईं, जिनका उद्देश्य विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में उपयुक्त भरपाई तकनीकें अपनाकर लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी का प्रचार करना था। इस उद्देश्य से आठवीं योजना के दौरान कर्नाटक के कोलार जिले में गौरीविदनूर और मूलबागल तालुक में तथा महाराष्ट्र के जलगाँव और अमरावती जिलों के केला उत्पादक क्षेत्रों में परियोजनाएँ शुरू की गईं।

दिल्ली और चण्डीगढ़ के संघशासित क्षेत्रों में भी इस प्रकार के प्रयोग किए गए। इन इलाकों में ऐसे तालाब बनाए गए जिनसे पानी रिसकर भूजल भण्डारों तक पहुँच जाता है। सीमेंट की बोरियों, चेक डैम, रिचार्ज कुएँ, वर्षा जल संग्रहण के लिए छत के प्रयोग जैसी योजनाएँ भी शुरू की गईं। मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र औरपश्चिम बंगाल के अनेक क्षेत्रों में तटबन्ध बनाए गए। नौवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान देश के 27 राज्यों में इस प्रकार की परियोजनाएँ चलाई गईं जिन्हें देखकर लोग प्रेरणा ले सकें।

वर्ष 2006-09 के दौरान भूजल की भरपाई करने के लिए वर्षा जल संग्रहण की योजनाएँ चलाई गईं। इनमें आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में आठ परियोजनाएँ चिन्हित की गईं। लोगों को प्रेरणा देने के लिए भारत सरकार ने विभिन्न राज्य और संघशासित क्षेत्रों की सरकारों के सक्रिय सहयोग से कृत्रिम भरपाई की अनेक परियोजनाएँ कार्यान्वित की। इनमें स्वयंसेवी संगठनों और समुदाय आधारित संगठनों की भी मदद ली गई।

प्रभाव आकलन के अध्ययनों से पता चला कि इस काम के लिए बनाए जाने वाले जल रिसाव तालाब, चेक डैम, रिचार्ज कुएँ और भू-सतह के थोड़ा नीचे बैरियर बनाना भूजल की कृत्रिम भरपाई के बहुत कारगर साधन हैं। ये कड़ी चट्टानों वाले इलाके में ज्यादा प्रभावी हैं जबकि दोमट मिट्टी वाले क्षेत्रों में भूजल की भरपाई के लिए खोदी जाने वाली खाइयों और नलकूपों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

शहरी क्षेत्रों और भारी वर्षा वाले पहाड़ी इलाकों में छतों पर उपयुक्त सुविधा सृजित करके वर्षा जल संग्रहण प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। भरपाई की इन योजनाओं के मूल्याँकन के लिए किए जा रहे अध्ययनों केदौरान भूजल की कृत्रिम भरपाई के लिए बनाई जाने वाली विभिन्न संरचनाओं का भी अध्ययन किया गया और इसके जो परिणाम मिले, उनकी जानकारी नीचे दी गई तालिका से प्राप्त की जा सकती है:

 

क्र.सं.

भरपाई संरचना (संख्या)

क्षेत्र

लाभ

1.

रिसाव तालाब (21)

आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल

पानी की भरपाई हुई 2-225 टीसीएम लाभान्वित क्षेत्र- 10-500 हेक्टेयर जलस्तर में वृद्धि-1 से 4 मीटर तक

2.

चेक डैम (13)

आन्ध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान

पानी की भरपाई हुई 1-2100 टीसीएम लाभान्वित क्षेत्र – 3-30 हेक्टेयर जलस्तर में वृद्धि- 1 से 2.5 मीटर तक

3.

रिचार्ज खाई/पाइप/कुएँ (10)

आन्ध्र प्रदेश, चण्डीगढ़, हरियाणा, केरल, पंजाब

पानी की भरपाई हुई 1-1550 टीसीएम जलस्तर में वृद्धि- 0.25 से 0.7 मीटर तक

4.

उप सतही बैरियर/डाइक (11)

केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल

पानी की भरपाई हुई 2-11.5 टीसीएम जलस्तर में वृद्धि-1 से 3.8 मीटर तक



कृत्रिम रूप से भूजल भरपाई की विभिन्न योजनाओं के प्रभाव आकलन के लिए किए गए अध्ययनों से उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। इससे जाहिर हुआ है कि बहते पानी से भूजल की भरपाई के कारण भूजल भण्डारों से लगातार पानी के दोहन किए जाने की क्षमता बढ़ी है, मिट्टी में नमी बढ़ जाने, भूजल भण्डारों में जलस्तर कम होने की रफ़् तार की तेजी रोकने में कामयाबी मिली है और भूजल गुणवत्ता में सुधार के कारण पर्यावरण में बेहतरी आई है।

11वीं योजना के दौरान केन्द्रीय भूजल बोर्ड इस समय चल रहे भूजल प्रबन्धन और विनियमन की केन्द्रीय योजना के अन्तर्गत प्राथमिकता क्षेत्रों में कृत्रिम भरपाई की परियोजनाएँ चला रहा है। ये प्राथमिकता क्षेत्र वे हैं, जो उन शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ है और जहाँ भूजल स्तर तेजी से घटता जा रहा है।

सूखा सम्भावित इलाके, पानी की कमी वाले इलाके, तटीय क्षेत्र और पहाड़ों की तलहटी में स्थित अथवा पहाड़ी इलाके भी इसी वर्ग में आते हैं। राज्य सरकार के सम्बद्ध विभाग अनेक प्रकार के निर्माण कार्य कर रहे हैं। इसके लिए सौ करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है।

अब तक आन्ध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, पंजाब, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में इस प्रकार की परियोजनाएँ अनुमोदित की गई हैं। जिन इलाकों में भूजल का अत्यधिक दोहनहो चुका है, वहाँ भारत सरकार ने भरपाई के लिए कुएँ खोदने की योजनाएँ शुरू की है जो राज्य क्षेत्र में कार्यान्वित की जा रही हैं।

सात राज्यों यानी आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात और मध्य प्रदेश के संवेदनशील क्षेत्रों में 11वीं योजना के दौरान कुएँ खोदने की योजना चलाई गई। इस तरह की योजनाएँ इन्हीं राज्यों के 1,180 क्षेत्रों में लागू की जा रही हैं। इनका उद्देश्य प्रभावित इलाकों में भूजल की स्थिति सुधारने में सहायता करना और पानी की कमी वाली अवधि में कुओं की उपयोगिता बढ़ाना, भूजल की गुणवत्तामें सुधार लाना और भूजल संसाधन प्रबन्धन के मामले में समुदाय की भागीदारी बढ़ाना है।

भूजल संवर्धन गतिविधियों की प्रौद्योगिकी प्रदर्शित करने के अलावा जल संसाधन मन्त्रालय केन्द्रीय भूजल बोर्ड के जरिए हितधारकों की क्षमता निर्माण और जल संरक्षण तथा संवर्धन के प्रति जागरुकता बढ़ाने की गतिविधियाँ भी चला रहा है। इन गतिविधियों में रिपोर्टों, नक्शों और वेबसाइट तथा भूजल बोर्ड की भूजल सूचना व्यवस्था के जरिए तकनीकी सूचना देना भी शामिल है।

सरकार ने वर्ष 2006 में केन्द्रीय भूजल मन्त्री की अध्यक्षता में एक सलाहकार परिषद का गठन किया है जिसका उद्देश्य हितधारकों में भूजल की कृत्रिम भरपाई की अवधारणा को लोकप्रिय बनाना है। जल संसाधन मन्त्रालय ने कई वार्षिक पुरस्कार भी शुरू किए हैं जिनमें भूमि जल संवर्धन पुरस्कार और राष्ट्रीय जल पुरस्कार प्रमुख हैं। ये भूजल संवर्धन और वर्षा जल संग्रहण तथा कृत्रिम भरपाई के अन्य उपायों सहित नवाचारी व्यवहारों को प्रोत्साहित करने के लिए दिए जाते हैं। इनका उद्देश्य जल उपयोग कुशलता, पुनर्चक्रीकरण और पानी के फिर सेइस्तेमाल के लिए जागरुकता पैदा करने में लोगों की भागदारी बढ़ाना भी है।

1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत देश में जल संसाधनों के संवर्धन के लिए विभिन्न उपायकरते हुए केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। भूजल की कृत्रिम भरपाई इस समय एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन गई है और अनेक राज्य इस संसाधन की भरपाई के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम चला रहे हैं।

आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दिल्ली और तमिलनाडु ने कृत्रिम भरपाई कार्यक्रम लागू करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। आन्ध्र प्रदेश में नीरू-मीरू कार्यक्रम चलाया जा रहा है जिसके अन्तर्गत कृत्रिम ढंग से भूजल की भरपाई के लिए बड़ी संख्या में संरचनाएँ बनाई जा रही हैं। इस दिशा में अच्छी प्रगति होने की भी ख़बर मिली है।

तमिलनाडु में भूजल बोर्ड ने सम्बद्ध विभागों के साथ सहयोग करते हुए कृत्रिम ढंग से भरपाई करने की अनेक योजनाएँ शुरू की है। गुजरात सरकार ने जनता की भागदारी के जरिए राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में भूजल की कृत्रिम भरपाई के लिए एक जोरदार अभियान शुरू किया है जो अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण बन गया है।

किसानों के साथ सहयोग करते हुए इस कार्यक्रम में विकेन्द्रीकृत वर्षा जल संग्रहण और भूजल भरपाई के काम किए जा रहे हैं। कुल मिलाकर गुजरात में दिसम्बर 2008 तक इस उद्देश्य से लगभग पाँच लाख संरचनाओं का निर्माण कराया गया है जिनमें 1,13,738 चेक डैम, 55,917 बोरी बन्ध, 2,40,199 सिंचाई के काम आने वाले तालाब और 62,532 छोटे-बड़े चेक डैम शामिल हैं।

इन्हें गुजरात सरकार के जल संसाधन विभाग ने बनवाया है और इसके लिए बाक़ायदा एक अभियान चलाया गया। इनके प्रभाव का भी मूल्याँकन किया गया जिससे स्पष्ट हुआ कि चेक डैम के कारण भूजल स्तर 3 से 5 मीटर तक बढ़ गया, खोदे हुए कुएँ जो सूख चुके थे, पानी से भर गए और भूजल गुणवत्ता में सुधार हुआ।

स्वयंसेवी संगठनों द्वारा उपाय


राज्य के अनेक गैर-सरकारी संगठन और स्वयंसेवी संगठन वर्षा जल संग्रहण, भूजल की कृत्रिम भरपाई और सतही जलस्रोतों के संवर्धन के काम में सक्रियता से लगे हुए हैं। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का हिवारे बाजार गाँव इस मामले में एक उदाहरण बन गया है। यहाँ पोपट राव पवार के नेतृत्व में एक यशवंत कृषि विकास न्यास गठित किया गया है, जो जल सम्भरण विकास कार्यक्रम कार्यान्वित करता है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बन्ध बनाने, नाले के किनारे तटबन्ध बनाने, ग्रामीण तालाबों और चेक डैम के निर्माण, लम्बी खाइयाँ खोदने, खेतों के किनारे बन्ध बनाने, रिसाव टैंक बनाने और पत्थरों से चेक डैम बनाने जैसे वे काम किए जाते हैं, जिनसे भूजल संवर्धन होता है और मिट्टी का कटाव भी रुकता है।

इन प्रयासों के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में भूजल स्तर बढ़ गया है, सिंचित भूमि का रकबा ज्यादा हो गया है और चारे की उपलब्धता बढ़ गई है। दुधारू पशु अधिक दूध देने लगे हैं और कुल मिलाकर, सामाजिक गतिविधियों में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई पड़ा है। इसके परिणामस्वरूप इस पंचायत ने वर्ष 2007 में प्रतिष्ठापूर्ण राष्ट्रीय जल पुरस्कार जीता।

गुजरात में विभिन्न स्वयंसेवी एजेंसियों ने जल संरक्षण और मिट्टी का कटाव रोकने की स्कीमें चलाई जिनके शानदार परिणाम सामने आए। इसके कारण भूजल की उपलब्धता बढ़ गई जिससे खेतों की उत्पादकता बढ़ी। इन उपायों का ही परिणाम था कि इस परियोजना के मार्गदर्शक अन्ना हजारे को पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

तरुण भारत संघ ने गाँव के तालाबों को गहरा करने और उन्हें गादमुक्त करने का काम शुरू किया और ग्रामवासियों की मदद से राजस्थान के अलवर जिले में अनेक जल संग्रहण संरचनाएँ और जोहड़ बनाए गए। इन संगठनों के प्रयासों के परिणामस्वरूप दुनिया के अनेक संगठनों की नजर इन पर पड़ी और तरुण भारत संघ से जुडे़ राजेंद्र सिंह को उनके उल्लेखनीय प्रयासों के लिए मैग्साएसाए पुरस्कार प्रदान किया गया।

गुजरात में राजकोट जिले के उपलेटा वृक्षप्रेम सेवा ट्रस्ट को जलसंरक्षण और संवर्धन के नवाचारी उपायों के उपलक्ष्य में 2008 का राष्ट्रीय जल पुरस्कार प्रदान किया गया। देश के अन्य राज्यों में भी बहुत से संगठन इसी तरह के अनुकरणीय उपायों में लगे हुए हैं।

भावी परिदृश्य


पिछले वर्षों से केन्द्र और राज्य सरकारों, गैर सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संगठनों ने लोगों में सीमित भूजल संसाधनों को लम्बे समय तक इस्तेमाल करने के महत्व के प्रति जागरूक बनाने में सफलता पाई है। विभिन्न अध्ययन और प्रदर्शनकारी परियोजनाएँ भी चलाई गई जिनसे यह बात सामने आई कि विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में भूजल संवर्धन के काम में कृत्रिम भरपाई की तकनीकें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

लेकिन, अगर उपलब्ध संसाधनों पर बढ़ते दबाव पर ध्यान दें और देश की भौगोलिक जटिलताओं को नजर में रखकर विचार करें, तो स्पष्ट होगा कि भूजल की भरपाई और संवर्धन के प्रयासों को तेज करने और इसे एक राष्ट्रीय मिशन बनाने की जरूरत है। इस बात की भी आवश्यकता है कि देश के समन्वित जल संसाधन प्रबन्धन की समग्र प्रक्रिया में भूजल की कृत्रिम भरपाई की जरूरत को मान्यता दी जाए।

इस दिशा में सभी सम्बद्ध हितधारकों और उपभोक्ताओं को जल प्रबन्धन उपायों में भागीदारी करनी होगी, क्योंकि भविष्य में भारत को जल की कमी से सुरक्षित बनाने में इन उपायों की बहुत बड़ी भूमिका होगी।

लेखकद्वय में से प्रथम केन्द्रीय भूजल बोर्ड, फरीदाबाद के अध्यक्ष और द्वितीय केन्द्रीय भूजल बोर्ड, अहमदाबाद के क्षेत्रीय निदेशक हैं।
ई-मेल : chmn-cgwb@nic.in

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