भूजल के लिए प्रतिस्पर्धा और टकराव

महानदी घाटी की पहचान विभिन्न किस्म की भूगर्भीय संरचनाओं और शैलों की भारी विविधता से होती है। जहाँ घाटी का ज्यादातर हिस्सा स्फटिक और अवसादी किस्म के शैल से आच्छादित है वहीं पूर्वी इलाका हाल में महानदी मुहाने में बनी कछारी मिट्टी से ढका है। महानदी घाटी की भूगर्भीय परतों की विविधता घाटी की जलगर्भीय संरचनाओं में भी परिलक्षित होती हैं। जलगर्भीय परतों की विविधता इस बात का संकेत है कि महानदी की घाटी में जलराशि की स्थितियाँ विषमता भरी होंगी।

लाखों भारतीय घरेलू आवश्यकताओं, सिंचाई की माँग और औद्योगिक उपयोग के लिए भूजल पर निर्भर हैं। अक्सर भूजल का संसाधन पानी की आपूर्ति का अकेला संसाधन होता है, विशेषकर गाँववासियों को पीने की पानी की आवश्यकता पूरी करने के लिए। भारत में जैसे-जैसे कस्बे और शहर बढ़ रहे हैं वैसे-वैसे भूजल पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। भूजल या तो सतह के पानी के साथ एक और संसाधन के रूप में रहता है या फिर अकेले संसाधन के रूप में उसकी उपस्थिति रहती है।

लाखों कुएँ इस बात के प्रमाण हैं कि भारत का हर व्यक्ति अपनी मर्जी से कुएँ खोदकर या ट्यूबवेल लगाकर भूजल हासिल कर सकता है। इस तरह भण्डार और प्रवाह की जटिल प्रवृत्तियों वाले संसाधन के दोहन की एक खुली प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो जाती है। भूजल संसाधन के इर्द-गिर्द बनी प्रतिस्पर्धा की गत्यात्मकता उस जलराशि के गुणों पर निर्भर करती है जो कि भूजल के संचयन और गति को संचालित करता है।

इन विशेषताओं को आमतौर पर जलीय भूगर्भीय विशेषताएँ कहा जाता है वे भूगर्भीय जल की प्रतिस्पर्धा का निर्णय `कौन जीता और कौन हारा’ के रूप में करते हैं। इन नतीजों के अपने आप में महत्वपूर्ण प्रभाव हैं जो कि न सिर्फ संसाधनों के टिकाऊपन पर पड़ते हैं बल्कि भूजल संसाधन के उपयोग में बराबरी और इंसाफ के बारे में भी पड़ते हैं। इस तरह की प्रतिस्पर्धा को समझना आवश्यक है क्योंकि इसमें पूरी तरह से टकराव में बदलने की क्षमता है। इस विषय पर शोध भारत में जल विवाद पर फोरम के प्रारम्भिक काम में महत्वपूर्ण योगदान करेगा।

भूजल विषयक विवरण


भूजल विषयक शोध के तहत भारत में भूजल सम्बन्धी प्रतिस्पर्धा और टकराव के प्रारूप विज्ञान की पहचान करने उसे समझने और उसकी व्याख्या करने का प्रयास होगा। इस अध्ययन के उद्देश्य के तहत उड़ीसा की महानदी घाटी जैसी एक नदी घाटी में उपस्थित जलगर्भीय, सामाजिक आर्थिक, संस्थागत और कानूनी कारकों का व्यापक अध्ययन किया जाएगा।

1. महानदी के सामान्य स्थलों पर भूजल की स्थिति का आकलन।
2. इन स्थलों से आँकड़े और सूचनाएँ इकट्ठी करके जलराशि की स्थिति, उसकी प्रवृत्ति और प्रतिस्पर्धा की स्थिति और टकराव का विश्लेषण करना।

भूजल संसाधन के इर्द-गिर्द प्रतिस्पर्धा और टकराव


महानदी घाटी में भूजल की स्थिति द्वितीयक आँकड़ों पर आधारित

महानदी घाटी की पहचान विभिन्न किस्म की भूगर्भीय संरचनाओं और शैलों की भारी विविधता से होती है। जहाँ घाटी का ज्यादातर हिस्सा स्फटिक और अवसादी किस्म के शैल से आच्छादित है वहीं पूर्वी इलाका हाल में महानदी मुहाने में बनी कछारी मिट्टी से ढका है। महानदी घाटी की भूगर्भीय परतों की विविधता घाटी की जलगर्भीय संरचनाओं में भी परिलक्षित होती हैं। जलगर्भीय परतों की विविधता इस बात का संकेत है कि महानदी की घाटी में जलराशि की स्थितियाँ विषमता भरी होंगी।

इस विविधता से जल रिसाव, कुओं के रिचार्ज के साथ उनमें पानी की उपलब्धता, उनकी दोहन प्रणाली और जलराशि के आकार और गहराई का पता चलता है। चित्र संख्या -1 का नक्शा महानदी घाटी में जलगर्भीय परतों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। महानदी घाटी में भूजल संसाधन की स्थिति का आकलन पूरी तरह से द्वितीयक आँकड़ों के आधार पर किया गया था। यह आँकड़ा केन्द्रीय भूजल परिषद के सन् 2004 और 2009 के राष्ट्रीय भूजल आकलन पर आधारित था। इस विश्लेषण की कुछ बातें इस प्रकार हैं-

1. महानदी घाटी के जिलों में 2004 से 2009 के बीच कुल सालाना रीचार्ज में गिरावट दिखाई पड़ती है।
2. पूरी घाटी में सन् 2004 और 2009 के बीच बेस फ्लो वैल्यू (तह प्रवाह मूल्य) भी घट रहा है जिसके कारण यह बुनियादी सवाल उठता है कि क्या यह ह्रास कम वर्षा के कारण है या भूजल के बढ़ते पृथकीकरण के कारण है या दोनों वजहों के कारण।
3. महानदी घाटी के बहुसंख्य जिलों में सन् 2004 के मुकाबले कम पानी गिरा। रीचार्ज और बेस फ्लो में गिरावट को सालाना बारिश से समायोजित करने के बाद यही पता चलता है कि यह सब व्यापक तौर पर आसपास के जिलों में कम पानी बरसने का ही प्रभाव है।
4. घाटी में भूजल विकास की स्थिति पर सन् 2004 और सन् 2009 दोनों के आकलन यह बताते हैं कि घाटी के सभी जिले `सुरक्षित’ श्रेणी में आते हैं। उन इलाकों को आम चलन में भूजल संसाधन के `अविकसित इलाके’ की संज्ञा दी जाती है जहाँ कुल भूजल रीचार्ज के 70 प्रतिशत से भी कम हिस्से का पृथकीकरण है। हालांकि भूजल विकास की सकल स्थिति सुरक्षित है लेकिन पूरी घाटी में इन दोनों आकलनों में स्पष्ट प्रवृत्तियाँ देखी गई हैं।
5. सन् 2004 में महज धुर पश्चिमी क्षेत्र में भूजल का उच्चस्तरीय विकास देखा गया।
6. सन् 2009 में भूजल का विकास 2004 के मुकाबले ज्यादा इलाके तक फैल गया। घाटी के पश्चिमी और मुहाने वाले इलाके में भूजल का इस्तेमाल सर्वाधिक है। इन दोनों इलाकों में पश्चिमी इलाके में ज्यादा भूजल इस्तेमाल होता है।
7. भूजल का कर्षण 2004 की तुलना में 2009 में साफ तौर पर बढ़ा है। कर्षण में बढ़ोतरी के साथ ही प्रयोग में भी बढ़ोतरी देखी गई है। वे जिले जहाँ 2004 में भूजल का ज्यादा कर्षण दिखा वहाँ 2009 में कर्षण में बढ़ोतरी देखी गई।
8. कुल भूजल कर्षण का बड़ा हिस्सा सिंचाई में इस्तेमाल होता है।

द्वितीयक आँकड़ों के विश्लेषण के साथ भूजल विषयक अध्ययन के तहत मई 2014 में हसदेव-बांगो नदी घाटी क्षेत्र का दौरा किया गया। इस दौरे में छह जिले और पूरी नदी घाटी शामिल थी। पूरी नदी घाटी में भूजल की स्थिति में विभिन्नता देखी गई और उसे भूगर्भ विज्ञान से जोड़ा गया। घाटी के एक छोर से दूसरे छोर तक भूजल के प्रयोग में विभिन्नता पाई गई। इस दौरे में मिले सीमित आँकड़ों के आधार पर घाटी में भूजल की प्राप्ति और उसकी स्थिति के बारे में विभिन्न परिदृश्य का खाका तैयार किया जा रहा है।

अनुवाद : अरुण कुमार त्रिपाठी

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