नोएडा-ग्रेटर नोएडा इलाके में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा कंस्ट्रक्शन के लिए भूजल का इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी रियल एस्टेट सेक्टर पर भारी पड़ सकती है। अमित त्यागी की रिपोर्ट
इससे पहले भी ट्रिब्यूनल ने ग्राउंड वाटर के इस्तेमाल पर रोक लगाई थी। ट्रिब्यूनल इससे पहले कुछ बड़े डेवलपर को कारण बताओं नोटिस जारी कर पूछ चुका है कि क्यों नहीं उन्हें आदेश का पालन नहीं करने पर दंडित किया जाए। भूजल के इस्तेमाल पर ट्रिब्यूनल के कड़े रुख के बाद नोएडा के विभिन्न सेक्टर में कम से कम 3,000 हाउसिंग यूनिट पर काम रोक दिया गया है।साइबर सिटी गुड़गाव की तरह नोएडा-ग्रेटर नोएडा इलाके में भी पानी का गंभीर संकट है। कंस्ट्रक्शन के लिए ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल करने पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के प्रतिबंध के बाद इलाके में प्रोजेक्ट के काम पर असर पड़ने की आशंका है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट और सेक्टर 94,150,151,128 सहित सेक्टर 142 में काम कर रहे बिल्डर ने भी ट्रिब्यूनल के आदेश पर चिंता जताई है। बिल्डरों को आशंका है कि इस आदेश के बाद पहले ही विभिन्न वजहों से लेट रहे उनके प्रोजेक्ट के पूरा होने में और देरी हो सकती है।
इसके अलावा ट्रिब्यूनल ने 20,000 वर्गमीटर से अधिक इलाके में निर्माण कर रहे बिल्डर और डेवलपर से प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी लेना जरूरी कर दिया है। प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी राज्यों के पर्यावरण विभाग से लेना जरूरी कर दिया गया है। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने मौजूदा रियल प्रोजेक्ट को ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल तुरंत प्रभाव से बंद करने को कहा है। यह प्रतिबंध पर्यावरण प्रदूषण (संरक्षण एवं नियंत्रण) प्राधिकरण के अध्यक्ष द्वारा एक एफ्फिडेविट दायर करने के बाद लगाया गया है। दरअसल नोएडा-ग्रेटर नोएडा इलाके में भूजल स्तर लगातार गिर रहा है और इसमें बड़ी भूमिका कंस्ट्रक्शन करने वाले खिलाड़ियों की है।
इससे पहले भी ट्रिब्यूनल ने ग्राउंड वाटर के इस्तेमाल पर रोक लगाई थी। ट्रिब्यूनल इससे पहले कुछ बड़े डेवलपर को कारण बताओं नोटिस जारी कर पूछ चुका है कि क्यों नहीं उन्हें आदेश का पालन नहीं करने पर दंडित किया जाए। भूजल के इस्तेमाल पर ट्रिब्यूनल के कड़े रुख के बाद नोएडा के विभिन्न सेक्टर में कम से कम 3,000 हाउसिंग यूनिट पर काम रोक दिया गया है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश में कहा है कि कंस्ट्रक्शन में उपयोग किया जाने वाला भूजल दोबारा जमीन के अंदर नहीं पहुंच पाता। इसके अलावा कंस्ट्रक्शन के बाद भी नालियों में बहने वाला पानी जमीन की रीचार्ज क्षमता में किसी तरह का योगदान नहीं कर पाता। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि बिल्डरों ने केंद्रिय भूजल प्राधिकरण के दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन किया है और इसकी वजह से उन्हें दंडित किया जाना चाहिए।
बिल्डरों का कहना है कि अगर इसी तरह प्रतिबंध लगाया गया तो उन्हें प्रोजेक्ट पूरा करने में काफी दिक्कतें आ सकती हैं। दूसरे इलाके से या ट्रीटमेंट प्लांट से पानी लाने में उन पर अतिरिक्त खर्च पड़ेगा जिससे कंस्ट्रक्शन कास्ट और बढ़ जाएगी। बिल्डरों ने नोएडा विकास प्राधिकरण को एक बजट भेजकर बताया है कि यमुना से पानी लेने और उसे ट्रीट कर कंस्ट्क्शन करने में उस पर कितना बोझ पड़ेगा।
ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ रामारमण ने नेशनल दुनिया से कहा, ‘हम डेवलपर्स की इस समस्या का समाधान निकालने का प्रायस कर रहे हैं। वाटर रीसाइक्लिंग प्लांट और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स से रोजाना 9 करोड़ लीटर पानी निकल रहा है, इसलिए बिल्डरों को दिक्कत नहीं होगी। यह सही है कि बिल्डर को केंद्रीय भूजल बोर्ड से अपने प्रोजेक्ट का ले आउट प्लान मंजूर कराने के लिए एनओसी लेने की जरूरत है।’
रमण ने कहा कि एनजीटी द्वारा भूजल के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के बाद अथारिटी पांच रूपए प्रति किलोमीटर की दर से ट्रीटमेंट प्लांट से पानी कंस्ट्रक्शन के लिए उपलब्ध करा रही है।
आम्रपाली ग्रुप के सीएमडी अनिल शर्मा ने नेशनल दुनिया से कहा, ‘इतनी व्यवस्था काफी नहीं है। हमें इस साल के अंत तक 10,000 फ्लैट का पजेशन देना है। भूजल के उपयोग के बिना हम काम ही नहीं कर सकते। अगर पानी खरीदकर कंस्ट्रक्शन किया जाएगा तो इससे हमारी लागत बढ़ेगी और यह बोझ ग्राहकों पर डाला जाएगा। भूजल के स्तर को गिरने से रोकने के लिए इस पर प्रतिबंध लगा देना ही एकमात्र विकल्प नहीं है।’
गौड़संस इंडिया लिमिटेड के निदेशक मनोज गौड़ ने कहा, ‘हम मौजूदा प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करने पर विचार कर रहे हैं। भूजल के इस्तेमाल पर रोक लगाने से हालांकि प्रोजेक्ट के काम पर असर पड़ेगा और हमें प्रोजेक्ट समय पर डिलीवर करने में दिक्कतें आएंगी। हमने ग्राउंड वाटर को रीचार्ज करने के लिए प्रावधान किए हैं और हमें लगता है कि बिल्डरों को भूजल के इस्तेमाल की इजाजत दी जानी चाहिए।’
विशेषज्ञों का मानना है कि नोएडा ग्रेटर नोएडा में भूजल के अंधाधुंध दोहन की वजह से दिल्ली में भी जलस्तर नीचे जा सकता है।
अर्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के ज्वाइंट एमडी विकास गुप्ता ने कहा कि बेसमेंट और फांउंडेशन बनाते वक्त पर्यावरण अनुकूल उपायों की वजह से पानी की बर्बादी कम से कम हो रही है। उन्होंने कहा, ‘बिल्डर अपने प्रोजेक्ट में वाटर हार्वेस्टिंग का विशेष ध्यान रख रहे हैं और ग्राउंड वाटर को रीचार्ज करने के लिए जरूरी प्रावधान कर रहे हैं। इसके अलावा पानी का दुरुपयोग न हो, इसके लिए भी जरूरी व्यवस्था की जा रही है।’ गुप्ता ने कहा कि बिल्डर ट्रीटेड वाटर खरीदर काम कर रहे हैं, लेकिन इसके वजह से प्रोजेक्ट का काम समय पर पूरा करना संभव नहीं है। पानी खरीदने और उसे साइट तक लाने में काफी खर्च हो रहा है और इसकी वजह से ग्राहकों पर बोझ बढ़ेगा। गुप्ता ने कहा कि इस प्रतिबंध से रियल एस्टेट सेक्टर को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा।
इससे पहले भी ट्रिब्यूनल ने ग्राउंड वाटर के इस्तेमाल पर रोक लगाई थी। ट्रिब्यूनल इससे पहले कुछ बड़े डेवलपर को कारण बताओं नोटिस जारी कर पूछ चुका है कि क्यों नहीं उन्हें आदेश का पालन नहीं करने पर दंडित किया जाए। भूजल के इस्तेमाल पर ट्रिब्यूनल के कड़े रुख के बाद नोएडा के विभिन्न सेक्टर में कम से कम 3,000 हाउसिंग यूनिट पर काम रोक दिया गया है।साइबर सिटी गुड़गाव की तरह नोएडा-ग्रेटर नोएडा इलाके में भी पानी का गंभीर संकट है। कंस्ट्रक्शन के लिए ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल करने पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के प्रतिबंध के बाद इलाके में प्रोजेक्ट के काम पर असर पड़ने की आशंका है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट और सेक्टर 94,150,151,128 सहित सेक्टर 142 में काम कर रहे बिल्डर ने भी ट्रिब्यूनल के आदेश पर चिंता जताई है। बिल्डरों को आशंका है कि इस आदेश के बाद पहले ही विभिन्न वजहों से लेट रहे उनके प्रोजेक्ट के पूरा होने में और देरी हो सकती है।
इसके अलावा ट्रिब्यूनल ने 20,000 वर्गमीटर से अधिक इलाके में निर्माण कर रहे बिल्डर और डेवलपर से प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी लेना जरूरी कर दिया है। प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी राज्यों के पर्यावरण विभाग से लेना जरूरी कर दिया गया है। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने मौजूदा रियल प्रोजेक्ट को ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल तुरंत प्रभाव से बंद करने को कहा है। यह प्रतिबंध पर्यावरण प्रदूषण (संरक्षण एवं नियंत्रण) प्राधिकरण के अध्यक्ष द्वारा एक एफ्फिडेविट दायर करने के बाद लगाया गया है। दरअसल नोएडा-ग्रेटर नोएडा इलाके में भूजल स्तर लगातार गिर रहा है और इसमें बड़ी भूमिका कंस्ट्रक्शन करने वाले खिलाड़ियों की है।
इससे पहले भी ट्रिब्यूनल ने ग्राउंड वाटर के इस्तेमाल पर रोक लगाई थी। ट्रिब्यूनल इससे पहले कुछ बड़े डेवलपर को कारण बताओं नोटिस जारी कर पूछ चुका है कि क्यों नहीं उन्हें आदेश का पालन नहीं करने पर दंडित किया जाए। भूजल के इस्तेमाल पर ट्रिब्यूनल के कड़े रुख के बाद नोएडा के विभिन्न सेक्टर में कम से कम 3,000 हाउसिंग यूनिट पर काम रोक दिया गया है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश में कहा है कि कंस्ट्रक्शन में उपयोग किया जाने वाला भूजल दोबारा जमीन के अंदर नहीं पहुंच पाता। इसके अलावा कंस्ट्रक्शन के बाद भी नालियों में बहने वाला पानी जमीन की रीचार्ज क्षमता में किसी तरह का योगदान नहीं कर पाता। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि बिल्डरों ने केंद्रिय भूजल प्राधिकरण के दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन किया है और इसकी वजह से उन्हें दंडित किया जाना चाहिए।
बिल्डरों का कहना है कि अगर इसी तरह प्रतिबंध लगाया गया तो उन्हें प्रोजेक्ट पूरा करने में काफी दिक्कतें आ सकती हैं। दूसरे इलाके से या ट्रीटमेंट प्लांट से पानी लाने में उन पर अतिरिक्त खर्च पड़ेगा जिससे कंस्ट्रक्शन कास्ट और बढ़ जाएगी। बिल्डरों ने नोएडा विकास प्राधिकरण को एक बजट भेजकर बताया है कि यमुना से पानी लेने और उसे ट्रीट कर कंस्ट्क्शन करने में उस पर कितना बोझ पड़ेगा।
ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ रामारमण ने नेशनल दुनिया से कहा, ‘हम डेवलपर्स की इस समस्या का समाधान निकालने का प्रायस कर रहे हैं। वाटर रीसाइक्लिंग प्लांट और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स से रोजाना 9 करोड़ लीटर पानी निकल रहा है, इसलिए बिल्डरों को दिक्कत नहीं होगी। यह सही है कि बिल्डर को केंद्रीय भूजल बोर्ड से अपने प्रोजेक्ट का ले आउट प्लान मंजूर कराने के लिए एनओसी लेने की जरूरत है।’
रमण ने कहा कि एनजीटी द्वारा भूजल के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के बाद अथारिटी पांच रूपए प्रति किलोमीटर की दर से ट्रीटमेंट प्लांट से पानी कंस्ट्रक्शन के लिए उपलब्ध करा रही है।
आम्रपाली ग्रुप के सीएमडी अनिल शर्मा ने नेशनल दुनिया से कहा, ‘इतनी व्यवस्था काफी नहीं है। हमें इस साल के अंत तक 10,000 फ्लैट का पजेशन देना है। भूजल के उपयोग के बिना हम काम ही नहीं कर सकते। अगर पानी खरीदकर कंस्ट्रक्शन किया जाएगा तो इससे हमारी लागत बढ़ेगी और यह बोझ ग्राहकों पर डाला जाएगा। भूजल के स्तर को गिरने से रोकने के लिए इस पर प्रतिबंध लगा देना ही एकमात्र विकल्प नहीं है।’
गौड़संस इंडिया लिमिटेड के निदेशक मनोज गौड़ ने कहा, ‘हम मौजूदा प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करने पर विचार कर रहे हैं। भूजल के इस्तेमाल पर रोक लगाने से हालांकि प्रोजेक्ट के काम पर असर पड़ेगा और हमें प्रोजेक्ट समय पर डिलीवर करने में दिक्कतें आएंगी। हमने ग्राउंड वाटर को रीचार्ज करने के लिए प्रावधान किए हैं और हमें लगता है कि बिल्डरों को भूजल के इस्तेमाल की इजाजत दी जानी चाहिए।’
विशेषज्ञों का मानना है कि नोएडा ग्रेटर नोएडा में भूजल के अंधाधुंध दोहन की वजह से दिल्ली में भी जलस्तर नीचे जा सकता है।
अर्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के ज्वाइंट एमडी विकास गुप्ता ने कहा कि बेसमेंट और फांउंडेशन बनाते वक्त पर्यावरण अनुकूल उपायों की वजह से पानी की बर्बादी कम से कम हो रही है। उन्होंने कहा, ‘बिल्डर अपने प्रोजेक्ट में वाटर हार्वेस्टिंग का विशेष ध्यान रख रहे हैं और ग्राउंड वाटर को रीचार्ज करने के लिए जरूरी प्रावधान कर रहे हैं। इसके अलावा पानी का दुरुपयोग न हो, इसके लिए भी जरूरी व्यवस्था की जा रही है।’ गुप्ता ने कहा कि बिल्डर ट्रीटेड वाटर खरीदर काम कर रहे हैं, लेकिन इसके वजह से प्रोजेक्ट का काम समय पर पूरा करना संभव नहीं है। पानी खरीदने और उसे साइट तक लाने में काफी खर्च हो रहा है और इसकी वजह से ग्राहकों पर बोझ बढ़ेगा। गुप्ता ने कहा कि इस प्रतिबंध से रियल एस्टेट सेक्टर को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा।
Path Alias
/articles/bhauujala-kae-isataemaala-para-raoka-sae-badhaengai-mausaibataen
Post By: Hindi