जिन क्षेत्रों में फैक्ट्री लगी हैं, बड़े होटल हैं या बड़े वाणिज्यिक प्रतिष्ठान और आवासीय परियोजनाएं हैं, वहां भू जल का स्तर सालाना 20 सेंटीमीटर की औसत दर से सरक रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों ने आंकड़ों के विश्लेषण के बाद यह जानकारी साझा की है। देहरादून और समूचे मैदानी क्षेत्रों के भविष्य के लिए या खतरे की बड़ी घंटी है। मगर राज्य के अधिकारी इसके प्रति बेपरवाह पर बने हैं। इस स्थिति को देखते हुए केंद्रीय भूजल बोर्ड ने प्रमुख सचिव उद्योग व पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पत्र लिखकर अनियंत्रित भूजल दोहन के प्रति आगाह कर दिया है।
भूजल बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक डॉ वसीम अहमद के मुताबिक, एनजीटी के निर्देश पर अधिक भूजल दोहन करने वाले सभी प्रतिष्ठानों के लिए एनओसी प्राप्त करने की अनिवार्य व्यवस्था की गई है।
एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में ऐसे प्रतिष्ठानों के संख्या 31,500 से अधिक है। यदि देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर व नैनीताल में ही भूजल के अधिक दोहन की बात को स्वीकार किया जाए और माना जाए कि 25 फीसद ही भूजल का दोहन करते हैं, तब भी यह संख्या 7,800 से अधिक होनी चाहिए।
भूजल बोर्ड ने पत्र जरुर लिखा है, मगर यह सिर्फ औपचारिकता भरा है। क्योंकि भूजल दोहन न करने वाले प्रतिष्ठानों का सर्वे उन्हें ही करना है। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि कितने प्रतिष्ठान भूजल दोहन करने के बाद भी एनओसी नहीं ले रहे। न ही पत्र में बात का उल्लेख है कि एनओसी के दायरे में कौन से प्रतिष्ठान आएंगे। सिर्फ पत्र लिखनेभर से अपनी जिम्मेदारी से नहीं बचा जा सकता। - एसपी सुबुद्धि, सदस्य सचिव (पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड)
इसके बाद भी भूजल दोहन करने के लिए 1400 के आसपास ही प्रतिष्ठानों ने आवेदन किया है। एनओसी न लेने वाले प्रतिष्ठानों पर कार्रवाई की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। इसके बाद भी राज्य के अधिकारी उदासीन बने हुए हैं। उद्योग विभाग व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पत्र लिख कर आवश्यक कार्रवाई का आग्रह किया गया है।
एनओसी लेना क्यों जरूरी?
एनओसी लेने के बाद स्पष्ट हप जाता है कि भूजल का दोहन कितने प्रतिष्ठान कर रहे हैं और इस तरह के सभी प्रतिष्ठानों में पीजोमीटर लगाए जाते हैं। जिससे स्पष्ट हो जाता कि भूजल का दोहन कितनी देर किया गया और उसकी मात्रा क्या है। इसका शुल्क निर्धारित जाने के बाद दोहन भी नियंत्रित हो जाता है।
भूजल बोर्ड स्टाफ की कमी से जूझ रहा
केंद्र के जिस भूजल बोर्ड कार्यालय पर मॉनिटरिंग की अहम जिम्मेदारी है, उसके पास स्टाफ की कमी बनी है। बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय के पास पूरे उत्तराखंड की जिम्मेदारी और यहां स्वीकृत कार्मिकों की संख्या 32 है, जबकि कार्यरत महज 16 ही हैं और इनमें अधिकारी श्रेणी के कार्मिकों की संख्या छह है, जो कि 17 होनी चाहिए।
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