भूजल जैसी अनमोल धरोहर के संरक्षण को न तो शासन के अधिकारी गंभीर नजर आ रहे हैं, न ही प्रशासन इस तरफ ध्यान दे रहा है। जल संसाधन मंत्रालय के निर्देश और केन्द्रीय भूजल बोर्ड के आग्रह को दरकिनार करने के बाद अब अधिकारी सूचना आयोग के उस आदेश को भी दबाकर बैठ गए हैं। जिसमें अवैध रूप से भूजल चूस रहे बोरवेल आदि की जांच के लिए एसडीएम की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था।
16 मई को जारी आयोग के आदेश में समिति के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी जिलाधिकारी को सौंपी गई थी। इसके बाद भी स्थिति जस की तस है। दून में भूजल पर निर्भरता 90 फीसद तक बढ़ गई है और जिन मैदानी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन किया जा रहा है, वहां भूजल स्तर 20 सेंटीमीटर सालाना की दर से नीचे सरक रहा है। दूसरी तरफ अवैध रूप से भूजल को दोहन करने वाले वाणिज्यिक बोरवेल की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। एक अपील पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह नपलच्याल ने उपजिलाधिकारी सदर की अध्यक्षता में समिति का गठन कर तीन माह के भीतर जांच रिपोर्ट देने को कहा था। ताकि अवैध रूप से भूजल दोहन करने वालों को पता चल सके और उप पर नियमानुसार कार्रवाई भी अमल में लाई जा सके। अब तक एक माह का समय बीत गया है और जांच समिति का कहीं अता-पता नहीं है। प्रशासन के अधिकारी भी इस मामले में कुछ बोलने से बच रहे हैं।
प्रशासन की चुप्पी
कुमाऊं तथा गढ़वाल (संग्रह, संचय और वितरण) अधिनियम-1975 की धारा 06 में उल्लेखित प्रावधानों के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति उत्तर प्रदेश जल संभरण तथा सीवर अध्यादेश 1975 के अधीन परगनाधिकारी (जिलाधिकारी) की अनुमति के बिना किसी भी जल स्रोत से पानी नहीं निकाल सकेगा। इससे स्पष्ट है कि प्रशासन को ही अवैध बोरवेल पर कार्रवाई का अधिकार है। इसके बाद भी प्रशासन की ओर से कार्रवाई न करना व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
जल नीति का ड्राफ्ट शासन में डंप
भूजल का अवैध रूप से दोहन करने और अनुमति लेकर भूजल दोहन करने को लेकर सिंचाई विभाग ने जल नीति का ड्राफ्ट तैयार किया है। पेयजल को लेकर जो भी अभियान चले थे, उसके बाद ही अधिकारियों को नीति तैयार करने की याद आई थी। खैर, सिंचाई विभाग ने इस नीति को तैयार किया और करीब छह माह पूर्व इसे शासन को भेजा चुका है। तब से यह परीक्षण के नाम पर शासन में डंप पड़ा है और इसे स्वीकृति के लिए कैबिनेट में नहीं रखा जा रहा। नीति को जल्द लागू किया जाना भी इसलिए जरूरी है कि इसके बाद भूजल को दोहन बिना अनुमति के संभव नहीं हो पाएगा, जबकि अनुमति के बाद विभिन्न श्रेणी में भूजल दोहन का शुल्क भी अदा करना होगा। जिससे इसके फिजूल के दोहन पर अंकुश लग पाएगा।
जो पकड़ में आ चुके, उनसे फेर रहे निगाहें
सोशन एक्शन रिसर्च एंड डेवलेपमेंट फाउंडेशन के सचिव अजय नारायण शर्मा की शिकायत के क्रम में प्रेमनगर, कंडोली आदि क्षेत्रों में नौ बोरवेल/नलकूप पकड़ में आ चुके हैं। इन पर की गई कार्रवाई को लेकर जब उन्होंने आरटीआई में जानकारी मांगी गई तो वहां से संतोषजनक जवाब नहीं मिला। एक अन्य अपील के रूप में यह मामला भी सूचना आयोग पहुंचा तो राज्य सूचना आयुक्त चन्द्र सिंह नपलच्याल ने इन पर दो माह के भीतर कार्रवाई के लिए कहां। इस आदेश को एक माह का समय आ गया है और अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, जबकि आयोग ने उसी नियम के तहत कार्रवाई को कहा है, जिसके तहत प्रशासन को अधिकार भी प्राप्त है।
भूजल पर अनदेखी की स्थिति
- जल संसाधन मंत्रालय ने बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों/शिक्षण संस्थानों/आवासीय परियोजनाओं में भूजल दोहन के लिए अनुमति अनिवार्य की है। इसके बाद भी एक हजार से पन्द्रह सौ प्रतिष्ठानों ने ही प्रदेश में अनुमति ली।
- भूजल के दोहन को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड दो बार उद्योग विभाग व प्रदूषण के नियंत्रण बोर्ड को पत्र लिख चुका है, इसके बाद भी अनदेखी की जा रही है।
- भूजल बोर्ड की ओर से जिलाधिकारियों को लिखे गए पत्र का भी संज्ञान नहीं लिया जा रहा।
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