भूजल- इसका आकलन कैसे किया जाता है ।
भूजल सिंचाई का एक महत्वपूर्ण स्रोत होता है और वह देश की 50% से अधिक सिंचाई की पूर्ति करता है। खाद्यान्न उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता की स्थिति तक पहुंचने में पिछले तीन दशकों में भूजल सिंचाई का योगदान उल्लेखनीय रहा है। आने वाले वर्षों में सिंचित कृषि के विस्तार तथा खाद्य उत्पादन के राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति के लिए भूजल प्रयोग में कई गुना वृद्धि होने की संभावना है। हालांकि भूजल वार्षिक आधार पर पुनःपूर्ति योग्य स्रोत है फिर भी स्थान और समय की दृष्टि से इसकी उपलब्धता असमान है। इसलिए भूजल संसाधन के विकास की योजना तैयार करने के लिए भूजल संसाधन और सिंचाई क्षमता का एकदम सही आकलन करना एक पूर्वापेक्षा है।
भूजल की प्राप्ति और संचलन पर जल भू-वैज्ञानिक, जल-वैज्ञानिक और जलवायुपरक जैसे बहुविध तत्वों का नियंत्रण रहता है। पुनःपूरण और निस्सारण का सही आकलन करना दुष्कर होता है क्योंकि उनके प्रत्यक्ष मापन के लिए फिलहाल कोई तकनीक उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए भूजल संसाधन के आकलन के लिए प्रयुक्त सभी विधियां परोक्ष हैं। क्योंकि भूजल एक गतिशील और पुनःपूर्तियोग्य संसाधन है इसलिए इसका आकलन प्रायः वार्षिक पुनःपूरण के घटक पर आधारित रहता है जिसे उपर्युक्त भूजल संरचनाओं के बल पर विकसित किया जा सकता है।
भूजल संसाधनों के परिमाणन के लिए जलधारक चट्टान, जिसे जलभृत कहते हैं के निर्माण के व्यवहार और विशेषताओं की सही जानकारी जरूरी है। एक जलभृत के दो प्रमुख कार्य होते हैं
(i) पानी का संक्रमण करना (नाली का कार्य) तथा
(ii) संग्रह करना (भण्डारण का कार्य)। अबाधित जलभृतों के भीतर भूजल संसाधनों को स्थिर और गतिशील के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। स्थिर संसाधनों को जलभृत के पारगम्य भाग में जल स्तर उतार-चढ़ाव के क्षेत्र के नीचे उपलब्ध भूजल की मात्रा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। गतिशील संसाधनों को जलस्तर उतार-चढ़ाव के क्षेत्र में उपलब्ध भूजल की मात्रा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। पुनःपूर्तियोग्य भूजल संसाधन अतिवार्यतः एक गतिशील संसाधन है जिसकी प्रतिवर्ष अथवा नियतकालिक आधार पर वर्षा, सिंचाई प्रत्यावर्ती प्रवाह, नहर रिसाव तालाब रिसाव, अन्तःस्रावी रिसाव आदि से पुनःपूर्ति होती है।
भूजल संसाधनों की गणना करने के लिए प्रयुक्त प्रविधियां आमतौर पर जल-वैज्ञानिक बजट तकनीकों पर आधारित होती है। भूजल अवस्था के लिए जल-वैज्ञानिक समीकरण जल सन्तुलन समीकरण का एक विशिष्ट रूप होता है जिसके लिए इन मदों के परिमाणन की जरूरत होती हैः भूजल जलाशय में अन्तर्वाह तथा उसमें से बहिर्वाह तथा जलाशय के भीतर मौजूद भण्डार में बदलाव। इनमें से कुछेक मदें सीधी मापी जा सकती हैं, कुछ का निर्धारण सतही जल की मापित मात्रा अथवा दरों के बीच के अन्तर के आधार पर किया जा सकता है तथा कुछ के आकलन के लिए परोक्ष विधियों की जरूरत रहती है। इन मदों का प्रतिपादन नीचे किया गया हैः
I. भूजल जलाशय को उपलब्ध कराई जाने वाली मदें
1. भूजल तल में वर्षा अन्तःस्यन्दन
2. नदी, झीलों और कुंडों से प्राकृतिक--पुनर्भरण
3. विचाराधीन क्षेत्र में भूजल अन्तर्वाह
4. सिंचाई, जलाशयों तथा कृत्रिम पुनर्भरण के लिए विशेष रूप से तैयार की गई अन्य स्कीमों से पुनर्भरण
II. भूजल जलाशय से निपटान की मदें
1. उथले भूजल तक के क्षेत्रों में केशिका, फ्रिन्ज से वाष्पीकरण तथा भूजल पोषितों और अन्य पौधों/वनस्पति द्वारा वाष्पोत्सर्जन
2. नदियों, झीलों और कुण्डों को रिसाव और वसन्तकालीन प्रवाह द्वारा प्राकृतिक निस्सारण
3. भूजल बहिर्वाह
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