भूगर्भ जल संरक्षण


दूषित पानी से पनप रही हैं बीमारियांयद्यपि जल इस ग्रह का सर्वाधिक उपलब्ध साधन है तदापि मानव उपयोग के लिये यह तेजी से दुर्लभ होता जा रहा है। पृथ्वी का दो तिहाई भाग जल और एक तिहाई भाग थल है। इस अपार जल राशि का लगभग 97.5 प्रतिशत भाग खारा है और शेष 2.5 प्रतिशत भाग मीठा है। इस मीठे जल का 75 प्रतिशत भाग हिमखण्डों के रूप में, 24.5 प्रतिशत भाग भूजल, 0.03 प्रतिशत भाग नदियों, 0.34 प्रतिशत झीलों एवं 0.06 प्रतिशत भाग वायुमण्डल में विद्यमान है। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का 0.3 प्रतिशत भाग ही साफ एवं शुद्ध है। लोकनायक तुलसीदास जी ने अपने महान ग्रंथ ‘‘रामचरितमानस’’ में लिखा है :-

‘‘क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व मिलि रचा शरीरा।।’’

स्पष्ट है कि बिना जल के शरीर की रचना संभव नहीं है। जब रचना ही संभव नहीं है तो जीवन का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इसीलिए जल को जीवन कहा जाता है। जल मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त जीव जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिये एक जीवनदायी तत्व है। इस संसार की कल्पना जल के बिना नहीं की जा सकती है। किसी जीव व वनस्पति को हवा के बाद पानी जीवन रक्षा के रूप में सबसे ज्यादा जरूरी है। हमारे शरीर में 60 प्रतिशत एवं वनस्पतियों में 95 प्रतिशत जल पाया जाता है तथा लगभग 5700 लाख वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जल की उत्पत्ति हुई थी। ऋग्वेद में भी लिखा गया है कि ‘‘सलिल सर्वमाइदम’’ अर्थात जल सृष्टि के आरंभ से ही है।

जब से पृथ्वी बनी है पानी का उपयोग हो रहा है। ज्यो-ज्यों पृथ्वी की आबादी में वृद्धि एवं सभ्यता का विकास होता जा रहा है पानी का खर्च बढ़ता जा रहा है। आधुनिक शहरी परिवार प्राचीन खेतिहर परिवार के मुकाबले छ: गुना पानी अधिक खर्च करता है। संयुक्त राष्ट्र संगठन का मानना है कि विश्व के 20 प्रतिशत लोगों को पानी उपलब्ध नहीं है और लगभग 50 प्रतिशत लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। मानव जिस तीव्र गति से जलस्रोतों को अनुचित शैली में दोहन कर रहा है वह भविष्य के लिये खतरे का संकेत है। इसलिये मानव जाति को वर्तमान एवं भावी पीढ़ी को इस खतरे से बचाने के लिये जल संरक्षण के उपायों पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

वर्षाजल का संरक्षण


वर्षाजल संरक्षणबोरिंग अथवा नलकूपों के माध्यम से अत्यधिक पानी निकालकर हम कुदरती भूगर्भ जल भण्डार को लगातार खाली कर रहे हैं। शहरों में कंक्रीट का जाल बिछ जाने के कारण बारिश के पानी के रिसकर भूगर्भ में पहुँचने की संभावना कम होती जा रही है। इन परिस्थितियों में हम वर्षा के जल को भूगर्भ जलस्रोतों में पहुँचाकर जल की भूमिगत रिचार्जिंग कर सकते हैं। वर्षाजल को एकत्रित करने की प्रणाली चार हजार वर्ष पुरानी है। इस तकनीक को आज वैज्ञानिक मापदण्डों के आधार पर फिर पुनर्जीवित किया जा सकता है। भूगर्भ जल रिचार्जिंग की विधियाँ निम्नलिखित हैं :-

1. रिचार्ज पिट
2. रिचार्ज ट्रेंच
3. रिचार्ज ट्रेंच कम बोरवेल
4. तालब/पोखर/सूखा कुआँ/बावली
5. सतही जल संग्रहण, छोटे-छोटे चेक डेम

यह तकनीक स्थानीय हाइड्रोजियोलॉजी पर निर्भर करती है। भूगर्भ जल रिचार्जिंग की कोई भी विधि अपनाने के लिये निर्माण कार्य महीने से सवा-महीने में पूरा हो जाता है। छोटे अथवा मध्यम वर्ग के घरों की छत पर गिरने वाले बारिश के पानी को सिर्फ एक बार कुछ हजार रूपये खर्च करके भूगर्भीय जलस्रोतों में पहुँचाया जा सकता है। इस कार्य को करने के लिये यह जानकारी होना आवश्यक है कि किस इलाके में कौन सी विधि वैज्ञानिक पैमाने पर उपयुक्त रहेगी और छत का क्षेत्रफल कितना है। उदाहरण स्वरूप 1000 मिलीमीटर वर्षा होने पर घर की तकरीबन 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल की छत पर, हर वर्ष बरसात में एक लाख लीटर जल गिरता है जो सीवरों व नालों में बहकर व्यर्थ चला जाता है। वर्षाजल संचयन की विधि अपनाकर इसमें से 80,000 लीटर पानी को भूजल भण्डारों में जल की भावी पूँजी के रूप में जमा किया जा सकता है।

यदि घर ऐसे क्षेत्र में है जहाँ सतह से थोड़ी गहराई पर ही बालू का संस्तर मौजूद है अर्थात उथले संस्तर वाले क्षेत्र हैं, तो रिचार्ज पिट फिल्टर मीडिया से भरा 02 से 03 मीटर गहरा गढ्ढा बनाकर छतों पर गिरने वाले वर्षाजल को जमीन के भीतर डायवर्ट किया जा सकता है। यदि छत का क्षेत्रफल 200 वर्गमीटर हो तो रिचार्ज पिट के बजाय बगीचे के किनारे ट्रेंच बनाकर बारिश के पानी को रिचार्ज किया जा सकता है। इसमें भी ट्रेंच में फिल्टर मीडिया (विभिन्न साइज के ग्रेवल) भरा जायेगा। जिन इलाकों में बालू का संस्तर 10 से 15 मीटर या अधिक गहराई पर मौजूद है अर्थात गहरे संस्तर वाले क्षेत्र में वर्षाजल संरक्षण के लिये एक रिचार्ज चैम्बर बनाकर बोरवेल के जरिये रिचार्जिंग कराई जा सकती है।

 

कौन सी छत कितना पानी एकत्रित करेगी

घर का क्षेत्रफल ‘‘वर्गमीटर’’

रिचार्ज हेतु उपलब्‍ध वर्षा जल ‘‘ली. प्रतिवर्ष’’

100

80000

200

1.60 लाख

300

2.40 लाख

500

4.00 लाख

1000

8.00 लाख

 

जल संरक्षण के छोटे व आसान तरीके


1. घर के लॉन को कच्चा रखें।
2. घर के बाहर सड़कों के किनारे कच्चा रखें अथवा लूज स्टोन पेवमेंट का निर्माण करें।
3. पार्कों में रिचार्ज ट्रेंच बनाई जाये।

किसानों द्वारा जल संरक्षण के उपाय


1. फसलों की सिंचाई क्यारी बनाकर करें।
2. सिंचाई की नालियों को पक्का करें।
3. बागवानी की सिंचाई हेतु ड्रिप विधि व फसलों हेतु स्प्रिंकलर विधि अपनायें।
4. बगीचों में पानी सुबह ही दें जिससे वाष्पीकरण से होने वाला नुकसान कम किया जा सके।
5. जल की कमी वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलें बोयें जिसमें कम पानी की आवश्यकता हो।
6. अत्यधिक भूगर्भ जल गिरावट वाले क्षेत्र में फसल चक्र में परिवर्तन कर अधिक जल खपत वाली फसल न उगाई जाये।
7. खेतों की मेड़ों को मजबूत व ऊँचा करके खेत का पानी खेत में रिचार्ज होने दें।

उद्योग एवं व्यावसायिक क्षेत्र में जल संरक्षण


1. औद्योगिक प्रयोग में लाये गये जल का शोधन करके उसका पुन: उपयोग करें।
2. मोटर गैराज में गाड़ियों की धुलाई से निकलने वाले जल की सफाई करके पुन: प्रयोग में लायें।
3. वाटर पार्क और होटल में प्रयुक्त होने वाले जल का उपचार करके बार-बार प्रयोग में लायें।
4. होटल, निजी अस्पताल, नर्सिंग होम्स व उद्योग आदि में वर्षाजल का संग्रहण कर टॉयलेट, बागवानी में उस पानी का प्रयोग करें।

भूगर्भ जल रिचार्ज के लाभ


1. भूजल स्तर गिरावट की वार्षिक दर को कम किया जा सकता है।
2. भू-गर्भ जल उपलब्धता व पेय जल आपूर्ति की मांग के अंतर को कम किया जा सकता है।
3. दबाव ग्रस्त एक्विफर (भूगर्भीय जल संस्तर) को पुन: जीवित किया जा सकता है।
4. भू-गर्भ जल गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
5. सड़कों पर जल प्लावन की समस्या से निजात मिल सकता है।
6. वृक्षों को पर्याप्त जल की आपूर्ति स्वत: संभव हो सकेगी।

कुछ सावधानियाँ


1. केवल छतों पर गिरने वाले जल को ही सीधे एक्विफर में रिचार्ज कराया जाये।
2. यथा संभव रिचार्ज पिट/ट्रेंच विधियों को ही प्रोत्साहित किया जाये।
3. रिचार्ज परियोजना में किसी तरीके के प्रदूषित तत्व भूगर्भ जल में न पहुँचे।
4. छतों को साफ रखा जाये और किसी प्रकार के रसायन, कीटनाशनक न रखे जाये।
5. जल प्लावन से प्रभावित क्षेत्रों में रिचार्ज विधा न अपनाई जाये।
6. वर्षाजल संचयन एवं रिचार्ज सिस्टम के निर्माण के साथ ही उसके आस-पास के क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जाये।
7. वन विभाग के नियंत्रणाधीन छोटी पहाड़ियों तथा वन क्षेत्र में वृहद स्तर पर कंटूर बंध व वृक्षारोपण का कार्य किया जाये।
8. उपलब्ध परंपरागत जलस्रोतों की डिसिल्टिंग व मरम्मत का कार्य कराया जाये।
9. सूखे कुँओं की सफाई करके उन्हें रिचार्ज सिस्टम के रूप में प्रयोग में लाया जाये।

जल संरक्षण के सरकारी प्रयास


1. 300 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल के निजी मकानों एवं 200 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल के सरकारी/गैर सरकारी ग्रुप हाउसिंग मकानों, सभी सरकारी इमारतों में रूफ टॉप रेन हार्वेस्टिंग की व्यवस्था करना अनिवार्य किया गया है।
2. जहाँ-जहाँ पर रेन हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की गई है उनके प्रभावी अनुरक्षण का कार्य।
3. तालाबों व पोखरों की नियमित डिसिल्टिंग का कार्य।
4. कक्षा 5-6 व अन्य कक्षाओं में रेन वाटर हार्वेस्टिंग विषय को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना।

जल संरक्षण के प्रति सरकारी प्रयासों एवं हमारी जागरूकता ही भू-गर्भ जल के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं एवं विलुप्त होते भूगर्भ जल स्तर को पुनर्जीवित कर सकता है।

संदर्भ
1. भूगर्भ जल विभाग, लखनऊ, यूपी।
2. उ.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, लाखनऊ यूपी।

सम्पर्क


दीप्ति सिंह
रीडर एवं विभागाध्यक्ष, गणित विभाग, महिला विद्यालय पीजी कॉलेज, अमीनाबाद, लखनऊ-226003, यूपी, भारतDeeptisingh1967@gmail.com

प्राप्त तिथि- 20.05.2015, स्वीकृत तिथि- 09.09.2015

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