भू-स्खलन के बाद शुरू हुआ जाँच और सुरक्षा कार्यों का दौर

18 सितम्बर, 1880 के तुरन्त बाद औपनिवेशिक सरकार नैनीताल की पहाड़ियों की सुरक्षा को लेकर बेहद संवेदनशील हो गई। सरकार ने इस हादसे को ‘विपत्ति’ करार दिया। हादसे के ठीक चौथे दिन 22 सितम्बर, 1880 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस के लेफ्टिनेंट गवर्नर एवं चीफ कमिश्नर ने शेर-का-डांडा पहाड़ी की जाँच के लिए एक कमेटी बना दी। कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर लेफ्टिनेंट जनरल सर हैनरी रैमजे को इस जाँच कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। इस कमेटी में लोक निर्माण विभाग के सचिव कर्नल एच.ए. ब्रॉउनलो, भवन एवं सड़क निर्माण शाखा के चीफ इंजीनियर के निजी सहायक कैप्टन जी.एफ.ओ.बाउचे, सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर के निजी सहायक जे.एस.ब्रेसफोर्ड तथा लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियन्ता एफ.एच.एशहर्स्ट सदस्य बनाए गए। जबकि लेफ्टिनेंट एच.ए.यॉर्क को कमेटी का सचिव बनाया गया।

8 अक्टूबर, 1880 को रैमजे कमेटी ने सरकार को अपनी जाँच रिपोर्ट सौंपी। कमेटी ने शेर-का-डांडा की पहाड़ी में घास काटने और चारागाह के रूप में उपयोग करने, बागवानी और टेनिस कोर्ट के निर्माण पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया। शेर-का-डांडा क्षेत्र में सड़कों तथा नालों के विकास और देख-रेख की जिम्मेदारी एक विशेष सिविल अधिकारी को सौंप दी गई। इस क्षेत्र से सम्बन्धित आदेशों को लागू करने तथा क्षेत्र की निगरानी का दायित्व भी इंचार्ज बनाए गए विशेष सिविल अधिकारी को सौंप दिया गया। इस क्षेत्र में सिविल अधिकारी की तैनातगी के बाद म्युनिसिपल बोर्ड की भूमिका महज पेशेवर राय देने भर रह गई थी। क्षेत्र की भूमि, भवन, सड़कों और नालों की व्यवस्था की देख-रेख के लिए इंस्पेक्टर बना दिया गया। तय हुआ कि कोई भी गैर सरकारी व्यक्ति विशेष सिविल अधिकारी एवं बिल्डिंग और नाला इंस्पेक्टर की लिखित आज्ञा के बिना नाला, दीवार और मकान नहीं बनाएगा। कहा गया कि क्षेत्र में प्रस्तावित सुरक्षा उपायों में आने वाले अतिरिक्त व्यय को निजी भवन एवं भूमि स्वामी वहन करेंगे। इसके साथ ही पूरे क्षेत्र में निर्माण कार्यों के लिए पाबंदी लगा दी गई। शेर-का-डांडा पहाड़ी को निर्माण निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर दिया गया।

कमेटी ने स्प्रिंग फील्ड हाउस और डबली ग्रोव समेत कई मकानों को तत्काल ध्वस्त करने की सिफारिश की, साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से असेम्बली कॉटेज, बलैर हाउस, डनीडन हाउस, कुमाऊँ लॉज, आल्मा लॉज, आल्मा हाउस, ग्लैनमोर, नॉरफोल्क हाउस, लेकव्यू, सेंट हेलेंस, रूकउड़, विलायथ कॉटेज, एजहिल, ओक कॉटेज, फेयर लाइट ग्लेन, ब्रेसाइड, तारा हॉल और तत्कालीन राजभवन के स्टाफ क्वॉट्र आदि क्षेत्र के करीब डेढ़ दर्जन भवनों को बगैर सिविल अधिकारी की लिखित इजाजत के किराए पर उठाने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी।

भू-स्खलन के बाद शेर-का-डांडा पहाड़ी में स्थित लेफ्टिनेंट गवर्नर के पूर्व निवास माल्डन हाउस और कर्नल एडवर्ड जेम्स कार्बेट के पिता क्रिस्टोफर विलियम कार्बेट के घर सहित आस-पास के अनेक भवनों को गिरा दिया गया।

भू-स्खलन से पहले नगर के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बरसाती पानी को जमा किया जाता था।इसके लिए शेर-का-डांडा पहाड़ी में कई स्थानों में बड़े-बड़े गड्ढे बनाए गए थे। बरसाती पानी जमा करने के लिए ओक ओपनिंग स्कूल में 70 फीट लम्बी 25 फीट चौड़ी और 10 फीट गहरी खाई बनाई गई थी। यह गड्ढा 19 सितम्बर, 1880 की वर्षा में आधे दिन में ही भर गया था। 1881 की बरसात से पहले कमिश्नर सर हैनरी रैमजे ने इन सभी गड्ढों को भरवा दिया था।

इसी बीच भारत के भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के उप अधीक्षक मिस्टर डब्ल्यू थिओबॉल्ड ने भी शेर-का-डांडा पहाड़ी की भू-गर्भिक जाँच की। 1880 में ही शेर-का-डांडा पहाड़ी के भू-स्खलन की पड़ताल के लिए भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के वैज्ञानिक आर.डी.ओल्डहम की अध्यक्षता में इंजीनियरों की एक जाँच कमेटी बना दी गई। सेना की ओर से भी दो कोर्ट ऑफ इंक्वारी बैठाई गई। भू-स्खलन के तुरन्त बाद नगर पालिका कमेटी भी हरकत में आ गई। नगर पालिका ने सरकार से डेढ़ लाख रुपए कर्ज लेकर शेर-का-डांडा क्षेत्र में नालों और दूसरे जरूरी सुरक्षात्मक कार्य प्रारम्भ कर दिए थे। नगर पालिका ने भवन एवं नाला तंत्र उपविधियाँ बनाई और इन्हें कड़ाई से लागू किया गया।

इसी बीच सम्पत्ति एजेंट एफ.ई.जी.मैथ्यूज ने भी व्यक्तिगत स्तर पर 1880 के भू-स्खलन की जाँच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को भेजी। पी.डब्ल्यू.डी. के अधिशासी अभियन्ता मिस्टर विलॉक्स की निगरानी में शेर-का-डांडा क्षेत्र के छह बरसाती धारों में नालों के निर्माण के लिए 2,11,579 रुपए लागत का प्रस्ताव तैयार किया गया। इस प्रस्ताव के तहत बड़ा नाला और क्लब का धारा, पॉपुलर के ऊपरी हिस्से का नाला, स्टाफ हाउस तथा एजहिल के बीच का नाला, एजहिल और सेंट-लू बीच का नाला, लेकव्यू और मेबिला हॉल के नालों का निर्माण हुआ।

शुरुआती नाले वहीं बने, जहाँ प्राकृतिक तौर पर बने गधेरे और धारे थे। शेर-का-डांडा और अयारपाटा में शुरुआती नाले मेजर गार्सटिन और मिस्टर विलॉक्स ने बनाए थे। इसी बीच तल्लीताल गाड़ी पड़ाव के समीप ‘यूनियन चर्च’ की इमारत बनी। कालांतर में इस भवन को ‘बिशप स्कूल’ के रूप में तब्दील कर दिया गया।

1880 के अंत तक शेर-का-डांडा पहाड़ी में नगर पालिका कमेटी और लोक निर्माण विभाग 14 बड़े और 27 छोटे ब्रांच नालों का निर्माण कार्य पूरा कर चुके थे। 1880 के भू-स्खलन ने नैनीताल को एक नायाब नाला तंत्र दिया। साथ में उस दौर में मनोरंजन एवं विभिन्न खेल गतिविधियों के लिए और वर्तमान में कार पार्किंग एवं फड़ों के जरिए व्यापारिक गतिविधियाँ चलाने के लिए एक फ्लैट्स का निर्माण किया। इसी साल तल्लीताल में पी.डब्ल्यू.डी. का गोदाम बना।

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Post By: Shivendra
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