पंजाब का एक प्रमुख जिला है भटिण्डा, जो कपास उत्पादन के लिये मशहूर है। पिछले कुछ वर्षों से इस जिले में मृत्यु दर में असाधारण वृद्धि देखी गई है। तलवण्डी साबो के गियाना, मलकाना और जज्जल गाँव सर्वाधिक प्रभावित हैं। विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं जैसे पब्लिक एनालिस्ट पंजाब, जन स्वास्थ्य और कल्याण विभाग पंजाब, पंजाब प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, खेती विरासत, ग्रीनपीस इंडिया आदि ने अपना ध्यान इस क्षेत्र में लगाया क्योंकि सभी इस इलाके की जनता के स्वास्थ्य को लेकर चिन्तित हैं। भटिन्डा के सिविल सर्जन ने भी बताया कि पिछले पाँच वर्ष में कैंसर से होने वाली मौतों में बढ़ोतरी हुई है। सिर्फ़ जज्जल गाँव से ही पिछले 5 साल में 70 लोगों की मौतें कैंसर से हुई हैं और अभी भी 25-28 मरीज राजस्थान के बीकानेर में चैरिटेबल अस्पताल में कैंसर का इलाज करवा रहे हैं। कैंसर के बढ़ते जोखिम को स्थानीय ग्रामीण अस्वच्छ जीवनशैली और भूजल को मानते हैं, इलाके का भूजल मनुष्यों और जानवरों के पीने लायक नहीं है और बेहद खतरनाक है।
भटिण्डा के मुख्य कृषि अधिकारी (सिविल सर्जन द्वारा 2002 में पेश की गई रिपोर्ट) के अनुसार गियाना और जज्जल गाँवों में सिंथेटिक कार्बोनेट, ऑर्गेनोफॉस्फेटिक और ऑर्गेनोक्लोरीनेटेड समूह के कीटनाशक और सल्फ़ास उर्वरक सामान्य रुप से उपयोग किये जाते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि हालांकि इनकी वजह से भूजल और भूमि का प्रदूषण बढ़ा है, लेकिन कैंसर के बढ़ते मरीजों की संख्या को देखते हुए और भी बेहतर चिकित्सा एवं जाँच सुविधायें बढ़ाई गईं।
जनता में जागरुकता का प्रचार-प्रसार हुआ, चिकित्सा केन्द्र भी खुले उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग धीरे-धीरे कम हुआ, लेकिन फ़िर भी कैंसर के कारणों की कोई ठोस वजह सामने नहीं आ सकी। पानी में रेडियोएक्टिव तथा हेवी मेटल की जहरीली उपस्थिति भी कैंसर का एक कारण हो सकती है। पंजाब प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा हेवी मेटल्स (Cr, As, Se, Hg) आदि की जाँच में पाया गया कि इनकी उपस्थिति भी पानी में काफ़ी कम मात्रा में है। इन विभिन्न जाँचों की रोशनी में हेवी मेटल तथा कीटनाशक ड्रग्स को कैंसर की बीमारी का कारण नहीं माना जा सकता था, इससे यह धारणा बनी कि पर्यावरण और भूजल में रेडियोएक्टिव पदार्थों की मौजूदगी भी इसकी वजह हो सकती है।
इस अवधारणा पर काम करते हुए अमृतसर की गुरु नानकदेव यूनिवर्सिटी की एक शोध टीम ने प्रभावित इलाकों का विस्तृत अध्ययन करने का फ़ैसला किया जिसमें मिट्टी, पानी, खाद्य पदार्थ तथा क्षेत्र के निवासियों के रक्त एवं मूत्र के नमूनों की जाँच भी शामिल थी। एकत्रित पानी के नमूनों की शुरुआती जाँच यूरेनियम की जाँच करने की तकनीकों और विधियों जैसे फ़िशन ट्रैक और लेसर फ़्लोरिमीट्री की सहायता से की गई, जिसमें मुम्बई के भाभा परमाणु शोध केन्द्र की भी मदद ली गई। शोधकर्ताओं के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उनके भेजे गये पानी के नमूनों में यूरेनियम की मात्रा पाई गई। यूरेनियम की यह मात्रा विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण मानक संस्थाओं द्वारा तय की गई सुरक्षित मानक मात्रा से कहीं अधिक पाई गई।
यूरेनियम एक जहरीला रेडियोएक्टिव पदार्थ होता है, जो अमूमन सभी प्रकार की चट्टानों, मिट्टी, हवा और पानी आदि में पाया जाता है। यूरेनियम अपने द्रव रूप के हेक्सावेलेंट स्वरूप (U6+) में पानी में घुलनशील है, जबकि उसके टेट्रावेलेण्ट स्वरूप (U4+) में यह घुलनशील नहीं होता। अनुकूल पर्यावरणीय और जियोलॉजिकल वातावरण में ऑक्सीडेशन होने के कारण यूरेनियम का टेट्रावेलेण्ट से हेक्सावेलेण्ट स्वरूप में परिवर्तन होता है। इस सम्बन्ध में यूरेनियम का एक विस्तृत प्रोफ़ाइल, एजेंसी फ़ॉर टॉक्सिक सब्स्टेंस एण्ड डिसीज़ रजिस्ट्री (ATSDR 1999) एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO 2001) द्वारा पेश की जा चुकी है। रिपोर्ट के अनुसार यूरेनियम द्वारा मुख्य खतरा रासायनिक ज़हरीलापन होता है, न कि रेडियोएक्टिविटी का। यदि साँसों या खाद्य पदार्थों में यूरेनियम मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है तो फ़ेफ़ड़े और हड्डी के कैंसर का कारण बनता है। यूरेनियम की रासायनिक विषाक्तता की वजह से मानव शरीर के भीतरी अंग खासकर किडनी बुरी तरह प्रभावित होती है, लेकिन यूरेनियम का सबसे घातक प्रभाव फ़ेफ़ड़े का कैंसर होता है, जो कि यूरेनियम के ही उप-पदार्थ रेडॉन के कारण होता है। हालांकि बीमारी के हल्के-तीव्र दोनों लक्षणों में मुख्यतः असर गुर्दों पर ही देखा गया है, लेकिन श्वसन और प्रजनन प्रणाली भी क्षतिग्रस्त होती है। यूरेनियम के बारीक कण हवा में दूर तक जा सकते हैं तथा हवा में साँस लेने के साथ ही फ़ेफ़ड़ों में जाने से कैंसर का रूप ले लेते हैं। ब्रिटेन की रक्षा समिति द्वारा 2000 में पेश की गई सातवीं रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि सिरेमिक यूरेनियम के अति-बारीक कण बन जाते हैं जो “गल्फ़ वेटेरन्स इल्लनेस” नामक बीमारी का कारण बनते हैं। लगभग 40 से 70% यूरेनियम के कण 10 माइक्रोन से भी छोटी साइज़ में हवा में मौजूद रहते हैं और श्वसन के जरिये फ़ेफ़ड़ों तक पहुँचते हैं, एवं 2.5 माइक्रोन से छोटे कण फ़ेफ़ड़ों में काफ़ी गहरे धँस जाते हैं और कैंसर का कारण बनते हैं।
साँसों के जरिये मानव शरीर में जाने के तुरन्त बाद यूरेनियम खून की नलियों में घुलना शुरु होता है तथा लाल रक्त कोशिकाओं के साथ मिलकर यूरेनिल-अल्बुमिन नामक कॉम्पलेक्स (UO2HC03+) का निर्माण करता है। यूरेनिल कम्पाउण्ड, प्रोटीन और न्यूक्लियोटाइड के साथ मिलकर कुछ स्थाई यौगिक (कॉम्पलेक्स) बनाता है जो कि फ़ॉस्फ़ेट कार्बोक्सिल तथा हाइड्रोक्सिल समूह में बदल जाते हैं। इस तरह खून की नलियों से होते हुए यूरेनियम किडनी, हड्डी के ढाँचे और मस्तिष्क तथा थोड़ी मात्रा में लीवर में जमा होता जाता है। हड्डी में यूरेनियम का यूरेनिल आयन Ca (कैल्शियम) को बदल देता है और हड्डियों को खोखला करता जाता है।
वातावरण का एक मुख्य घटक होने के कारण यूरेनियम लगभग सभी खाद्य पदार्थों में पाये जाने की सम्भावना होती ही है। यह सभी प्रकार की सब्जियों की सतह पर तथा जड़ों वाली सब्जियों में भारी मात्रा में पाया जा सकता है। ATSDR (1999) की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में भी सामान्य मानक स्तर से नीचे अर्थात 0.9 से 1.5 माइक्रोग्राम प्रतिदिन के अनुपात में यूरेनियम रोज़मर्रा के खाद्य पदार्थों में पाया गया है। कई यूरोपीय देशों में भी 0.5 से 2.0 माइक्रोग्राम यूरेनियम की मात्रा खाद्य पदार्थों में पाई गई है। इसी प्रकार जापान में भी 0.5-0.9 माइक्रोग्राम प्रतिदिन की मात्रा मनुष्यों द्वारा सेवन (dietary intake) की गई, ऐसी रिपोर्टे हैं। इसी को देखते हुए विश्वव्यापी स्तर पर यूरेनियम की सुरक्षित सेवन (dietary intake) में मानक मात्रा 5 माइक्रोग्राम मानी गयी है।
भटिण्डा के 22 गाँवों में पीने के पानी में यूरेनियम की मात्रा (माइक्रोग्राम प्रति लीटर) सभी जगह अधिक पाई गई, जैसे – महिमा सर्जा (Average 13.6, Range 10.6-19.4), अबलू (Avg 28.2, Range 23.9-32.1), रामतीर्थ जग्गा (Avg 29.9, Range 20.1-38.3), कलालवाला (Avg 13.3, Range 6.9-16.8), गियाना (Avg 48.6, Range 2.8-99.8), मलकाना (Avg 17.6, Range 1.8-59.6), जज्जल (Avg 31.8, Range 7.9-63.1), तंगवाली (Avg 23.3, Range 6.2-33.2), बुचो मण्डी (Avg 56.9, Range 24.7-74.9), लेहरा मोहबत (Avg 23.5, Range 14.6-39.4), रामपुरा (Avg 9.3, Range 5.8-12.8), नथाना (Avg 14.7, Range 8.7-22), गिद्दर (12.9, Range 5.5-20.2), गोबिन्दपुरा (Avg 35, Range 10.6-93.6), गेहरीबतर (Avg 35.5, Range 10.8-58), संगत (Avg 53.9, Range 10.8-87), जयसिंघवाला (Avg 52.7, Range 41-61), मुल्तानिया (Avg 24.5, Range 10.8-38.2), बलुआना (Avg 35, Range 10.6-59.5), देओन (Avg 20.8, Range 13.6-27.9), बुलादेवाला (Avg 28, Range 18.2-37.9), भटिण्डा (Avg 19.5, Range 1.6-56.5)...
विभिन्न हैण्डपम्पों, ट्यूबवेल्स के पानी के लगभग 100 नमूने जाँच के लिये लिये गये थे, सभी गाँवों से 4-5 नमूने लिये गये। सभी नमूनों में यूरेनियम की उपस्थिति का औसत 9.3 से लेकर 56.9 माइक्रोग्राम प्रति लीटर था। यूरेनियम की सर्वाधिक मात्रा 99.8µg/1 ग्राम गियाना में पाई गई।
WHO (2004) एवं UNSCEAR, (2000) द्वारा पेयजल में यूरेनियम की सुरक्षित मात्रा 15µg/I और 9µg/I तय की गई थी, जबकि USEPA (2003) द्वारा इसे 30µg/1 माना गया, International Commission on Radiological Protection (1979) ने 1.9 µg/l को सुरक्षित मात्रा माना है। जबकि कई अन्य देशों जैसे कनाडा (FPTCEOH, 2001), ऑस्ट्रेलिया (NHMRC 2004), कैलीफ़ोर्निया (CEPA, 2001) आदि ने यह सुरक्षित मात्रा सिर्फ़ 20 µg/1 रखी है। परिणाम बताते हैं भटिण्डा जिले के सभी गांवों में पानी में यूरेनियम की मात्रा ICRP(1979) की सुरक्षित मात्रा 1.9 µg/l और UNSCEAR, (2000) की 9µg/I से अधिक है। 60 गाँवों में से सिर्फ़ 5 गाँवों (महिमा सरजा, कलालवाला, रामपुरा, नथाना और गिद्दर) में ही यह मात्रा औसतन 15 µg/1 पाई गई जो कि WHO (2004) के मानक के अनुसार सही कही जा सकती है। जबकि गियाना, भुचो मण्डी, जयसिंह वाला, बलुआना तथा जज्जल में यह मात्रा USEPA (2003) की सुरक्षित मात्रा औसतन 30µg/1 से अधिक पायी गई।
एकत्रित नमूनों में से 57.78% का पानी यूरेनियम की सुरक्षित मात्रा से अधिक प्रदूषित पाया गया, जबकि 38.89% नमूने (30µg/l) USEPA (2003) के अनुसार अधिक यूरेनियमग्रस्त पाये गये, जहाँ सबसे पहले सुरक्षा के उपाय करना जरूरी है। यूरेनियम के घातक दुष्प्रभावों को मानव शरीर के विभिन्न अंगों में आसानी से जाँचा जा सकता है, परन्तु इस यूरेनियम की शरीर में उपस्थिति का कुल समय, किस अंग पर कितना प्रभाव और शरीर से बाहर निकलने का समय आदि की गहन जाँच करके इन गाँवों के निवासियों में कैंसर की आशंका का सही विश्लेषण किया जा सकता है।
मनुष्य द्वारा यूरेनियम दूषित पानी की कुल वार्षिक सेवन(dietary intake)(60 वर्ष की आयु तक) और कैंसर की सम्भावना (यदि 2 लीटर प्रतिदिन पेयजल को मानक रखा जाये) के सम्बन्ध में सटीक गणना ICRP-72 (1996) आधारित बायोकाइनेटिक्स मॉडल द्वारा की जा सकती है। (The annual dose rate from drinking water is found to vary from 8.3 to 51.2 µSv/a (micro severt per annum) with a mean value 25.6µSv/a causing an accumulation of 503.2 - 3071.4µSv of dose. The excess cancer risk due to such a high variation in accumulated dose is found to vary from 25-154x 10-4 % (1: 3974 - 1: 6511) with a mean value 77x 10-4 %,) इस सूत्र और टेबल द्वारा गणना करने पर यह पाया गया कि प्रति 13026 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति के कैसरग्रस्त होने की प्रबल सम्भावना है। जबकि सम्भावना का यही आँकड़ा गियाना गाँव में और भी भयानक (प्रति 3713 व्यक्तियों में से एक) है।
पेयजल के साथ-साथ ही जज्जल, मलकाना और गियाना गाँवों से दूध, गेहूं, सरसों और दालों के भी नमूने एकत्रित किये गये और इनका भी यूरेनियम परीक्षण किया गया। जज्जल के दूध में यूरेनियम की मात्रा 1.13 - 5.55µg/I, मलकाना में 1.38 - 1.91µg/I और गियाना में 1.21- 8.44µg/I पाई गई, जिनका औसत क्रमशः 2.38, 1.57 और 3.33µg/I आँका गया। इसी प्रकार इन तीनों गाँवों में यूरेनियमग्रस्त गेहूं में यह मात्रा क्रमशः 111, 70 और 115µg/kg प्राप्त हुई, जबकि तीनों ही गाँवों में दालों के परीक्षण में यह मात्रा औसतन 29-47 µg/kg प्राप्त हुई।
इन गांवों की जनसंख्या द्वारा यूरेनियम के सेवन की गणना WHO(2001) के द्वारा दिये गए भोजन में सेवन की मात्रा के अनुसार दिये गए हैं। इस प्रकार इन सर्वाधिक प्रभावित गाँवों में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न और पेयजल के उपभोग की गणना की जाये तो गियाना गाँव में पानी को छोड़कर केवल भोजन में प्रति व्यक्ति यूरेनियम का सेवन (dietary intake) 41.09µg/day है और (पानी और भोजन मिलाकर) यूरेनियम का सेवन 138.41µg/day प्रतिदिन होती है, और निश्चित रूप से यह मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 5µg /day से बहुत ही ज्यादा है।
निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले, इन क्षेत्रों के भूजल, मिट्टी और अन्य खाद्यान्न के परीक्षण के बाद, अब मानव शरीर में यूरेनियम का प्रवेश और इसकी निकासी के बीच का समय की भी जाँच की गई। जज्जल, गियाना और मलकाना गाँवों के दस-दस परिवारों के खून और पेशाब की गहन जाँच की गई। एक सामान्य व्यक्ति के खून में यूरेनियम की मात्रा 0.82 - 1.79µg/1 और 0.18 - 0.58µg/1 होती है, जबकि कैंसरग्रस्त मरीज के खून में यह मात्रा 1.05 - 2.04µg/1 और 0.11 - 0.88µg/1 तक पाई जाती है। इसी प्रकार कैंसरग्रस्त मरीजों के मूत्र में यूरेनियम की मात्रा 10.48 - 69.41 % पाई गई, जबकि सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के मूत्र में यह 16.53 - 65.66% होती है। परिणामों से स्पष्ट है कि कैंसरग्रस्त मरीजों के मूत्र में यूरेनियम की मात्रा सामान्य व्यक्तियों के मुकाबले अधिक है। इससे यह अनुमान और निष्कर्ष लगाना ठीक होगा कि पेयजल और खाद्यान्न पदार्थों में यूरेनियम की उपस्थिति की वजह से ही इन गाँवों में कैंसर के मरीजों और मौतों की संख्या अधिक है।
भटिण्डा जिले के कुछ अन्य गाँवों की मिट्टी में यूरेनियम की मात्रा 0.83mg/kg से 3.68mg/kg पाई गई जो कि औसतन 2.45mg/kg है और यह मानक विश्व स्तर के मानक 2.1mg/kg के काफ़ी करीब है, इससे पता चलता है कि अभी इन इलाकों में मिट्टी में यूरेनियम की मात्रा सामान्य स्तर पर है।
यह सर्वे पंजाब के भटिण्डा जिले से मंसा (मोर) होते हुए हरियाणा के भिवानी में तोशाम कस्बे तक किया गया और पाया गया कि पानी में यूरेनियम की मात्रा एक व्यवस्थित तरीके से बढ़ती हुई मिली। यह देखा गया कि तोशाम इलाके में अधिक गर्मी पैदा करने वाली ग्रेनाईट चट्टानें हैं जो ज़मीन से ऊपर भी काफ़ी संख्या में दिखाई देती हैं और यह चट्टाने उच्च रेडियोएक्टिव क्षमता वाली हैं। भटिण्डा जिले के सतह जल और भूजल में यूरेनियम की यह मात्रा इन चट्टानों के कारण भी हो सकती है। इन चट्टानों का परीक्षण भी गुरुनानकदेव यूनिवर्सिटी के भौतिकी विभाग तथा नई दिल्ली के परमाणु विज्ञान केन्द्र द्वारा किया गया। इन चट्टानों में यूरेनियम की मात्रा कुछ क्षेत्रों में 27.3 mg/kg से लेकर 62mg/kg तक पाई गई। विश्व स्तर पर यह मात्रा औसत सुरक्षित मात्रा (2.1 mg/kg) से कहीं अधिक है। इसीलिये तोशाम इलाके में पानी में यूरेनियम की मात्रा 59.6 mg/l पाई गई। इस क्षेत्र के पानी के नमूनों में से 53% नमूनों में यह मात्रा उच्चतम सुरक्षित मात्रा 30µg/l से काफ़ी अधिक पाई गई है। इसलिये कहा जा सकता है कि तुषाम क्षेत्र भी स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक माना जा सकता है, और शायद भटिण्डा के खाद्यान्न पदार्थों को यूरेनियमग्रस्त करने में इन चट्टानों की भी प्रमुख भूमिका हो।
अतः उक्त अध्ययनों और शोध आँकड़ों से यह स्पष्ट हो चुका है कि भटिण्डा जिले के अधिकतर गाँव यूरेनियम की विश्व स्तर पर मानक सुरक्षित मात्रा से काफ़ी अधिक दूषित हैं और मनुष्य के उपयोग के लिये खतरनाक हैं। पेयजल के कुछ नमूनों में हेवी मेटल्स जैसे Pb Cr As, Se, Hg, Zn और नाइट्रेट तथा सल्फ़ेट कम पाये गये हैं। इसलिये पेयजल में यूरेनियम की अधिकता भटिण्डा जिले में कैंसर से होने वाली मौतों का कारण हो सकती है।
फ़िर भी, इस समूचे इलाके में और भी गहन अध्ययन की आवश्यकता है, जिसमें मेडिकल साइंस सहित अन्य अलग-अलग वैज्ञानिक विशेषज्ञों की भी मदद लेनी चाहिये ताकि इस गम्भीर समस्या से निपटा जा सके। सरकार को भी शोध हेतु आवश्यक संसाधन उपलब्ध करवाना चाहिये। रासायनिक पद्धति से यूरेनियम दूषित पानी को साफ़ करने की संभावनाओं पर भी काम होना चाहिये ताकि स्थानीय निवासियों और मानवता को बचाने के लिये इलाके में पीने का साफ पानी और स्वस्थ पर्यावरण मुहैया कराया जा सके।
सम्पर्क :
Prof. Surinder Singh,
Senior Most Professor, Department of Physics, Guru Nanak Dev University, Amritsar, (Punjab)
Mobile: 9872325311; Res: 0183 2257007; Email: surinder_s1951@yahoo.co.in
Path Alias
/articles/bhatainadaa-maen-kaainsara-kae-laiyae-yauuraenaiyama-bhai-eka-kaarana-hao-sakataa-haai
Post By: admin