भारत में सतत कृषि विकास हेतु नवाचार

भारत में सतत कृषि विकास हेतु नवाचार,फोटो क्रेडिट:-विकिपीडिया
भारत में सतत कृषि विकास हेतु नवाचार,फोटो क्रेडिट:-विकिपीडिया


भारत में कृषि, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा और सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र है। वैश्विक स्तर पर भारतीय कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में 8% योगदान है दुनिया की कृषि योग्य भूमि का केवल 9% और भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 2.3% होते हुए भी भारत वैश्विक स्तर पर 18% आबादी का भरण-पोषण करता है। एक तरफ जहां देश की लगभग एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है और हमारे भूमि द्रव्यमान का लगभग 80% क्षेत्र सूखा, बाढ़ और चक्रवात के प्रति संवेदनशील है वहीं दूसरी तरफ, भारत में पर्याप्त जैव विविधता है लगभग 8% दुनिया के प्रलेखित पशु और पौधों की प्रजातियां हमारे देश में पाई जाती हैं। कृषि क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में 18% का योगदान करता है तथा देश के 50% से अधिक लोगों को रोजगार भी देता है।

हरितक्रांति तथा कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान तथा प्रसार भारत को न सिर्फ खाद्यान्न में बल्कि दुग्ध उत्पादन में भी विश्व के शिखर पर खड़ा कर दिया और आज भारत फल एवं सब्जियों में, दूध, मसाले एवं जूट में वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा उत्पादक है। यद्यपि भूमि और श्रम की मात्रा में कमी आई, कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में 1950 से अभी तक 6-70  गुना वृद्धि हुई है जिससे देश ने खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा के क्षेत्र में विकास किया है। भारत में सतत कृषि विकास हेतु कई नवोन्मेषी पहल हुई हैं। भविष्य में कृषि को टिकाऊ बनाने हेतु इन क्षेत्रों को अनुसंधान एवं प्रसार के माध्यम से और मज़बूती प्रदान करनी होगी।"

हरितक्रांति तथा कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान तथा प्रसार ने भारत को न सिर्फ खाद्यान्न में बल्कि दुग्ध उत्पादन में भी विश्व के शिखर पर खड़ा कर दिया और आज भारत फल एवं सब्जियों में, दूध, मसाले एवं जूट में वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा उत्पादक है। धान एवं गेहूँ में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं वैश्विक स्तर पर भारत 80 प्रतिशत से अधिक फसलों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।

सतत कृषि विकास से तात्पर्य

सतत कृषि विकास तीन मुख्य लक्ष्यों को एकीकृत करता है: पर्यावरण सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि और आजीविका विकास। दूसरे शब्दों में, सतत कृषि विकास, उस प्रक्रिया को कह सकते हैं जिससे वर्तमान की कृषि आधारित सभी जरूरतें पूरी तो हो जाएं किन्तु भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों के साथ समझौता भी ना हो। इसलिए सतत कृषि विकास में, प्राकृतिक और मानव, दोनों ही संसाधनों के उचित प्रबंधन का प्रमुख महत्व है। मानव संसाधनों में वर्तमान और भविष्य के लिए सामाजिक जिम्मेदारियों पर विचार शामिल है जैसे किसान परिवारों के काम करने और रहने की स्थिति, ग्रामीण समुदायों की जरूरतों तथा सभी नागरिकों की खाद्य, स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के अंतर्गत भविष्य के लिए सभी प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण, उचित दोहन एवं रखरखाव शामिल है।

सतत कृषि विकास के अंतर्गत तीन आयाम

पारिस्थितिकीय सतत विकास 

पारिस्थितिकीय स्थिरता में वह सब कुछ शामिल है जो पृथ्वी के पारिस्थितिकीय तंत्र से जुड़ा है। इसमें जलवायु प्रणालियों की स्थिरता, हवा, भूमि और पानी की गुणवत्ता, भूमि उपयोग और मिट्टी का क्षरण, जैव विविधता, स्वास्थ्य और प्रदूषण एवं भूमि उपयोग पैटर्न शामिल हैं पारिस्थितिकीय सतत विकास को प्राप्त करने हेतु सतत वन प्रबंधन, स्थायी कृषि प्रणालियां, टिकाऊ भूमिगत निर्माण, अपशिष्ट प्रबंधन, टिकाऊ जल प्रबंधन, कुशल प्रकाश व्यवस्था एवं नवीकरणीय ऊर्जा के अधिक से अधिक उपयोग को बढ़ावा दिया जाता है।

सामाजिक स्थिरता 

सामाजिक स्थिरता लोगों को पहले रखने की आवश्यकता पर केंद्रित है। यह लोगों को सशक्त बनाकर एवं एकजुट कर समाज के सम्पूर्ण निर्माण पर ध्यान केन्द्रित करता है। साथ ही, संस्थानों को नागरिकों के लिए सुलभ और जवाबदेह बनाकर गरीबों और कमजोर लोगों के सामाजिक समावेश को बढ़ावा देता है। कृषि में सामाजिक स्थिरता सामाजिक स्वीकार्यता और न्याय के विचारों से संबंधित है विकास तब तक टिकाऊ नहीं हो सकता जब तक कि यह गरीबी को कम नहीं करता। टिकाऊ कृषि पद्धतियां स्थानीय एवं पारंपरिक तौर-तरीकों पर आधारित है। सामाजिक रीति-रिवाजों, परंपराओं आदि से परिचित होने के कारण स्थानीय लोग उन्हें स्वीकार करने और अपनाने की अधिक संभावना रखते हैं।

आर्थिक स्थिरता

 आर्थिक स्थिरता समुदाय के सामाजिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक पहलुओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित किए बिना दीर्घकालिक आर्थिक विकास को प्रेरित करती है आर्थिक स्थिरता का मतलब है कि कृषि फार्म के कार्य को इस तरह से प्रबंधित किया जाए जिससे कृषि फार्म की दीर्घकालिक लाभप्रदता सुनिश्चित हो इसके अंतर्गत फसल चयन, टिकाऊ फसल प्रबंधन तथा कृषि विपणन (कृषि उत्पाद की कटाई, मंडी की जानकारी एवं उत्पाद को बाजार तक लेकर जाने की प्रक्रिया) शामिल है।"
"संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों को 2030 तक प्राप्त करने के क्रम में सबसे बड़ी चुनौती सभी रूप में गरीबी को समाप्त करना है एवं 103 देशों में रहने वाले 689 मिलियन बच्चों सहित 1.45 बिलियन गरीब लोगों को पोषण युक्त भोजन प्रदान करना है। सतत विकास लक्ष्य पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बगैर, पृथ्वी पर संसाधनों को बनाए रखने के साथ-साथ कृषि उपज बढ़ाने । का लक्ष्य रखते हैं।"

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों को 2030 तक प्राप्त करने के क्रम में सबसे बड़ी चुनौती सभी रूप में गरीबी को समाप्त करना है एवं 103 देशों में रहने वाले 689 मिलियन बच्चों सहित 1.45 बिलियन गरीब लोगों को पोषण युक्त भोजन प्रदान करना है। सतत विकास लक्ष्य पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बगैर, पृथ्वी पर संसाधनों को बनाए रखने के साथ-साथ कृषि उपज बढ़ाने का लक्ष्य रखते हैं।

उद्यमिता एवं कृषि में सतत विकास हेतु विज्ञान केंद्रों में नवोन्मेषी पहल

नारी (NARI) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने पोषण से जोड़ने वाली पारिवारिक खेती को बढ़ावा देने के लिए, पोषक स्मार्ट गाँव, पोषक संवेदनशील कृषि संसाधन और नवाचार (NARI) कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत, केवीके द्वारा स्थानीय रूप से उपलब्ध, स्वस्थ और विविध आहार आधारित पोषण उद्यान मॉडल विकसित और प्रचारित किए जा रहे हैं। इस कार्यक्रम के तहत चावल, गेहूँ मक्का, बाजरा, मसूर, मूंगफली, अलसी, सरसों और सोयाबीन जैसी विभिन्न फसलों की 79 बायोफोर्टिफाइड किस्मों को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।

वाटिका (VATICA)

केवीके स्तर पर इनक्यूबेशन और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए केवीके परिसर में वैल्यू एडिशन एंड टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन सेंटर इन एग्रीकल्चर स्थापित किए जा रहे हैं आईसीएआर ने पूरे देश में 100 वाटिका केंद्र खोलने का लक्ष्य रखा है।

क्षमता

 देश के 125 आदिवासी बहुल जिलों में मौजूद पारंपरिक कृषि ज्ञान प्रणालियों के प्रलेखन और सत्यापन के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने जनजातीय क्षेत्रों में ज्ञान प्रणाली और होमस्टेड कृषि प्रबंधन (क्षमता) शुरू किया है।

नवोन्मेषी पहल

 देश भर में फैले 113 भारतीय अनुसंधान परिषद के संस्थानों और 74 से अधिक कृषि विश्वविद्यालयों, 732 कृषि विज्ञान केंद्रों, 6000 से अधिक वैज्ञानिकों एवं प्रति वर्ष 50,000 से अधिक शोध छात्रों के साथ यह दुनिया की सबसे बड़ी राष्ट्रीय कृषि प्रणालियों में से एक है भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने अपने अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के माध्यम से भारत में कृषि में हरितक्रांति, श्वेत (दुग्ध) क्रांति, नीली (मत्स्य) क्रांति, पीली (तेल) क्रांति, स्वर्णिम (फल एवं शहद) क्रांति से भारत के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है, जिसने देश के खाद्यान्न उत्पादन को लगभग 5.6 गुना बागवानी फसलों के उत्पादन को 10.5 गुना, मछली उत्पादन को 16.8 गुना बढ़ाने में सक्षम बनाया है।
यद्यपि भूमि और श्रम की मात्रा में कमी आई, कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में 1950 से अभी तक 6-70 गुना वृद्धि हुई है। जिससे देश ने खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा के क्षेत्र में विकास किया है। भारत में सतत कृषि विकास हेतु निम्नलिखित क्षेत्रों में कई नवोन्मेषी पहल हुई हैं। भविष्य में कृषि को टिकाऊ बनाने हेतु इन क्षेत्रों को अनुसंधान एवं प्रसार के माध्यम से और मजबूती प्रदान करनी होगी।  

जलवायु तन्यक एवं रोग प्रतिरोधी क्षमता हेतु फसल

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 1965 के बाद से, 5,587 उन्नत फसलों की किस्में विकसित की जिनमें अनाज की -2,777, तिलहन की 933, दलहन की 1,030, चारे की 210, रेशे वाली फसलों की 460, गन्ने की 134 उन्नत किस्में शामिल हैं। वर्ष 2020-21 के दौरान, चावल, गेहूँ मक्का, बाजरा, रागी, जौ, ज्वार, तिलहन, सरसों, मूंगफली सहित अन्य महत्वपूर्ण फसलों की 35 खास विशेषताओं वाली किस्मों को देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश को समर्पित और व्यावसायिक खेती के लिए जारी किया। वर्ष 2021-22 के दौरान, अनाज (156). तिलहन (58), दालें (69), फाइबर फसलें (69), चारा, फसले (19), गन्ना (12) सहित 45 फसलों की कुल 389 किस्में / संकर फसलें व्यावसायिक खेती के लिए जारी की गई। वर्ष 2022- 23 के दौरान, कुल 467 उच्च उपज वाली किस्में / संकर जिनमें अनाज की 218, तिलहन की 57, दलहन की 65, वाणिज्यिक फसलें 98, चारा और अन्य फसलें 29 शामिल थीं, व्यावसायिक खेती के लिए जारी की गई।

सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए आधुनिक आणविक प्रजनन तकनीक का उपयोग करके चना की उच्च उपज देने वाली सूखा सहिष्णु किस्म विकसित की गई है। अरहर में शीघ्र परिपक्वता को दो रोगों जैसे कि झुलसा और मोजेक के प्रतिरोध के साथ प्रभावी ढंग से जोड़ा गया है। सोयाबीन की अगेती पकने वाली किस्म भी विकसित की गई है, जो यांत्रिक कटाई के लिए उपयुक्त है। जलवायु समुत्थानशीलता के अन्य उदाहरणों में चावल की पांच किस्में शामिल हैं: तीन में दो अलग-अलग रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता एक में रोग प्रतिरोधक क्षमता और लवणता सहनशीलता, और एक में रोग और कम फास्फोरस के प्रति सहिष्णुता का समायोजन किया गया है। प्रधानमंत्री जी के 'समृद्ध राष्ट्र' के लिए उचित पोषण के दृष्टिकोण पर काम करते हुए, चार फसलों की 11 बायोफोर्टिफाइड किस्में विकसित की गई हैं जिनमें प्रोटीन, आयरन और जिंक से भरपूर गेहूँ की छह किस्में शामिल हैं। लौह और जस्ता से भरपूर बाजरा की दो किस्में प्रो-विटामिन ए लाइसिन और ट्रिप्टोफैन से समृद्ध मक्का की दो किस्में और उच्च प्रोटीनमात्रा के साथ चना, किनोवा बकव्हीट, विंग्ड बीन और फैबा बीन की एक-एक किस्म भी विकसित की गई है विशेष लक्षणों वाली 1 अन्य किस्मों में सोयाबीन की एक किस्म है जो सब्जी के रूप में उपयोग के लिए हरी फली देती है ज्वार की तीन किस्में जो जैव ईंधन उत्पादन और साइलेज बनाने के सिर भाषक्त हैं, बेबी कॉर्न की एक नर वंध्यता किस्म और चने में शाकनाशी सहनशीलता के लिए दो किस्में जो सीधे बुवाई के तहत खरपतवार प्रबंधन के लिए उपयुक्त है।

बागवानी फसलों में 15 फलों एवं 29 सब्जियों सहित 98 किस्मों की पहचान की गई और उन्हें फसल मानकों पर केंद्रीय उप समिति द्वारा अधिसूचित किया गया। जलवायु परिवर्तन और उभरते हुए चुनौतीपूर्ण जैविक स्ट्रेस को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने रायपुर में भा. कृ. अनुप. राष्ट्रीय जैविक स्ट्रेस  प्रबंधन संस्थान की स्थापना की है ताकि जैविक स्ट्रेस में और नीतिपरक अनुसंधान किया जा सके और मानव संसाधन मूल विकास के साथ-साथ नीति समर्थन प्रदान किया जा सके आदिवासी और पहाड़ी क्षेत्रों हेतु 17 फसलों की 47 जारी किस्म के लगभग 187 क्विंटल ब्रीडर बीज का उत्पादन किया गया विभिन्न हितधारकों को कुल 15.4725 क्विंटल बीज की आपूर्ति की गई। सतत कृषि विकास में विशेष गुण वाली क्रिस्मों क विकास एवं प्रसार एक महत्वपूर्ण कदम है जिसमें निकट भविष्य में और अधिक बढ़ावा देना चाहिए।

टिकाऊ उपज हेतु मिट्टी और जल प्रबंधन

 कृषि में घटती उपजाऊ भूमि एवं कम होते जलस्रोत एक बड़ा संकट है। उर्वरक के उपयोग से मृदा में उपस्थित पोषक तत्त्वों में होने वाली कमी दूर करने के उद्देश्य से वर्ष 2014-15 में शुरू की गई  मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। योजना के दूसरे चरण में बीते दो वर्षों में कृषि मंत्रालय ने किसानों को 11.69 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए हैं। इन कार्डों की सहायता से किसान अपने खेतों की मृदा के बेहतर स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार के लिए पोषक तत्वों का उचित मात्रा मे उपयोग करने के साथ ही मृदा की पोषक स्थिति की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। .

राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, मृदा स्वास्थ्य कार्ड पर सिफारिशों के तहत रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में 8 से 10 प्रतिशत तक की कमी आई है, साथ ही उपज में 5-6 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। भारत सरकार के इन प्रयत्नों के साथ-साथ नए अनुसंधान मिट्टी और जल के उचिन प्रबंधन में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। पूसा संस्थान द्वारा विकसित पूसा एसटीएफआर मीटर किट (पूसा मृदा परीक्षण और उर्वरक सिफारिश मीटर किट) एक उन्नत मृदा परीक्षण किट है। यह उन्नत मृदा परीक्षण किट एक मृदा चिकित्सक है जो मिट्टी के 14 मापदंडों का परीक्षण करती है, 100 से अधिक फसलों के लिए उर्वरक खुराक की सिफारिश करती है, इन-बिल्ट थर्मल प्रिंटर के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रिंट करती है, ब्लूटूथ के माध्यम से मोबाइल और यूएसबी के माध्यम से कम्प्यूटर पर मृदा परीक्षण रिपोर्ट भेजता है।

सब्जियों की उन्नत खेती हेतु एक विशिष्ट तरल पोषक तत्व 'अर्का सस्य पोषक रस' का निर्माण किया गया जो कि पोषक तत्वों (N, P, K, Ca Mg,S, Fe, Mn, Cu, Zn, B और Mo) का एक अनूठा संतुलित मिश्रण है। हाइपर स्पेक्ट्रल डाटा का उपयोग कर नवोन्मेषी डिजिटल मृदा मानचित्रण ढांचे का तथा अत्यधिक कुशल नमक सहिष्णु बैक्टीरिया से युक्त एक अद्वितीय बायो स्टीमुलेट 'ग्रो स्युर' का विकास मृदा एवं जल प्रबंधन में एक मील का पत्थर हैं।

जैविक कृषि प्रणाली एवं उचित फसल प्रबंधन

 अनुसंधान से पता चला है कि एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल जिसमें फसल डेयरी + मत्स्य कुक्कुट पालन बत्तख पालन+ मधुमक्खी पालन+ सीमा वृक्षारोपण + बायोगैस इकाई + वर्मी कम्पोस्ट शामिल हैं, द्वारा पारंपरिक धान-गेहूँ प्रणाली की तुलना में उच्चतम उत्पादकता तथा आय प्राप्त होती है। एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल से रोजगार में वृद्धि के साथ-साथ प्रति वर्ष 4.2 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर का शुद्ध लाभ प्राप्त होता है। एकीकृत जैविक कृषि प्रणाली (IOFS) मॉडल (0.43 हेक्टेयर क्षेत्र) को उनियाम, मेघालय में विकसित किया गया है ताकि पारंपरिक संसाधन को संरक्षित करते हुए कृषि की विविध आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। इस नवोन्मेषी मॉडल में 2.43 बी सी अनुपात के साथ 82,450 / वर्ष का औसत शुद्ध लाभ देने की क्षमता है। कृषक सहभागिता को बढ़ावा देते हुए 4 राज्यों (आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और हरियाणा) के लिए 8 नवोन्मेषी एकीकृत कृषि प्रणालियों को परिष्कृत भी किया गया है।

गांव-गांव में इंफ्रास्ट्रक्चर व सुविधाओं के विकास के लिए सरकार ने 1 लाख करोड़ रुपये के एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड का प्रावधान किया है। 20 लाख करोड़ रु. किसान क्रेडिट कार्ड से देना लक्षित किए हैं, ताकि किसानों की क्षमता बढ़ सकें, वे अपने उत्पादों को रोककर बाद में अच्छा दाम मिलने पर बेच सकें। छोटे किसानों की खेती की लागत कम हों, वे टेक्नालॉजी से जुड़ें, उत्पादों की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, मार्केटिंग कर सकें, इसके लिए 10 हजार एफपीओ बनाने का काम शुरू हो चुका है, जिस पर सरकार 6,864 करोड़ रु. खर्च कर रही है। किसानों की फसलों को प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की भरपाई के रूप में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से अब तक 1.30 लाख करोड़ रु. दिए जा चुके हैं। पीएम किसान सम्मान निधि के रूप में देश के करोड़ों किसानों के बैंक खातों में करीब ढाई लाख करोड़ रु. जमा कराए हैं।

मध्य भारत के लिए वर्षा आधारित कपास की खेती हेतु एकएकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) मॉडल विकसित किया गया जिसमें एक हेक्टेयर में 1.95 के लाभ लागत अनुपात के साथ 70.2 क्विंटल / हेक्टेयर कपास समतुल्य उपज का उत्पादन हुआ नवंबर के माह में धान की पराली प्रबंधन उत्तर भारत में एक चुनौती की तरह उभरा है। पूसा संस्थान द्वारा विकसित पूसा 'डी कम्पोजर' कृषि अवशेष के प्रभावी प्रबंधन हेतु प्रभावी पर्यावरण अनुकूल समाधान है। यह धान के त्वरित क्षरण के लिए कवक का एक माइक्रोबियल कंसोर्टियम है जो 20-25 दिनों में पुआल को खाद में परिवर्तित कर देता है। कृषि अवशेषों के यथास्थान प्रबंधन के लिए प्रोटोकॉल (एसओपी) भी विकसित किया गया है। वर्ष 2021 में पूसा डी कम्पोजर को दिल्ली सहित देश के विभिन्न राज्यों में 13,420 हेक्टेयर में अपनाया गया।

खाद्य प्रसंस्करण, मशीनीकरण और ऊर्जा प्रबंधन

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय किसानों को उपभोक्ताओं से जोड़ने में सर्वोत्कृष्ट भूमिका है भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग पिछले 5 वर्षों में 8.3% की औसत वार्षिक वृद्धि दर के साथ तेजी से बढ़ा है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MOFPI) मूल्य श्रृंखला में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सभी प्रयास कर रहा है। लगभग 1.93 मिलियन लोगों को रोजगार देने वाले सभी पंजीकृत फैक्ट्री क्षेत्र में सृजित रोजगार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की हिस्सेदारी 12.38% है।

भारत सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण क्षमता के निर्माण / विस्तार के तहत 41 मेगा फूड पार्क, 376 कोल्ड चेन परियोजनाएं 79 कृषि प्रसंस्करण क्लस्टर, 61 बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिकेज परियोजनाओं का निर्माण, 52 ऑपरेशन ग्रीन परियोजनाओं को मंजूरी दी है। बड़े किसानों के साथ छोटे एवं सीमांत किसानों एवं सब्जी विक्रेताओं के लिए जल्दी खराब होने वाली कृषि उत्पादों के भंडारण हेतु पूसा फ्रिज एक नवोन्मेषी तकनीक है जिसे किसानों द्वारा स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों से बनाया जा सकता इसे ठंडा रखने के लिए बिजली या बैटरी की आवश्यकता नहीं होती है 2 टन क्षमता एवं 12 सौर पैनलों के साथ यह दिन के तापमान को लगभग 4-6 डिग्री सेल्सियस तक कम कर सकता है।

पशुधन सुधार 

दुनिया की मवेशियों की आबादी का 15 प्रतिशत भारत में है (भैंस की आबादी का 58 प्रतिशत, बकरी की आबादी का 18 प्रतिशत, भेड़ की आबादी का 7 प्रतिशत एवं मुर्गी की आबादी का 5 प्रतिशत) दुग्ध उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है (विश्व दुग्ध उत्पादन का 18.5 प्रतिशत) । पशुधन सुधार हेतु कुछ नवीन पहल की गई हैं जैसे फ्राइजवाल में 4,140 कृत्रिम गर्भाधान किए गए जिनमें से 1,209 मादा संततियां पैदा हुईं और पहले ब्याने की उम्र तक पहुँची। पशुधन में, धारवाड़ी और मांडा भैंस की नस्लें और राजापलायम, चिप्पीपावा मुधोल हाउंड डॉग की नस्लों को भारत सरकार द्वारा अधिसूचित गुट में पंजीकृत किया गया। राष्ट्रीय पशु रोग रेफरल विशेषज्ञ प्रणाली * 
एक्सपर्ट सिस्टम का विकास किया गया जिसमें नवंबर 2020 से 2021 सितम्बर तक 3262 जिलेवार पशुधन रोग प्रकोप डेटा उपलब्ध है।     

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय कृषकों की आय बढ़ाने तथा कृषि के सतत विकास हेतु प्रतिबद्ध है। भारत सरकार विभिन्न परियोजनाओं के जैसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, गोकुल योजना, कृषि मंडियों का नवीनीकरण एवं विपणन हेतु कृषि पोर्टल, साहित्य आदि लगभग दर्जनों ऐसी परियोजनाओं का क्रियान्वयन कर रही है जिससे कृषि क्षेत्र में सतत विकास हो एवं टिकाऊ बने साथ ही, कृषकों की आमदनी में भी वृद्धि हो।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों को 2030 तक प्राप्त करने के क्रम में सबसे बड़ी चुनौती सभी रूप में गरीबी को समाप्त करना है एवं 103 देशों में रहने वाले 689 मिलियन बच्चों सहित 1.45 बिलियन गरीब लोगों को पोषण युक्त भोजन प्रदान करना है। सतत विकास लक्ष्य पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बगैर, पृथ्वी पर संसाधनों को बनाए रखने के साथ-साथ कृषि उपज बढ़ाने का लक्ष्य रखते हैं इसका अभिप्राय यह है कि स्मार्ट खेती में बीज, पानी, उर्वरक एवं रसायनों की उचित मात्रा का उपयोग होना आवश्यक है। प्राकृतिक संसाधनों के अधिक दोहन से सतत कृषि उत्पादन की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ है इस परिदृश्य में 'सतत विकास लक्ष्य' हितधारकों को एकजुट होकर साझेदारी करने तथा आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों के साथ सतत विकास करने की प्रेरणा देते हैं।


किसानों की आय बढ़ाने हेतु सार्थक प्रयास

फार्मर फर्स्ट (कृषि, नवाचार, संसाधन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी)

कार्यक्रम  

2016-17 के दौरान 1653.60 लाख रुपये के परिव्यय के साथ 52 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई जिसमें आईसीएआर संस्थानों / एसएयू द्वारा 45,000 कृषि परिवारों के 45000 किसानों को शामिल किया गया।

मेरा गाँव मेरा गौरव 

एमजीएमजी का मुख्य उद्देश्य 'प्रयोगशाला से भूमि' प्रक्रिया को तेज करने के लिए किसानों के साथ वैज्ञानिकों के सीधे संपर्क को बढ़ावा देना है। आईसीएआर संस्थानों / एयू के वैज्ञानिकों ने एमजीएमजी कार्यक्रम के तहत 13500. गाँवों को गोद लिया है।

कृषि आधारित स्टार्टअप

आईसीएआर राष्ट्रीय कृषि नवाचार कोष का उपयोग करके कृषि आधारित स्टार्टअप को बढ़ावा दे रहा है। इसके तहत 99 आईसीएआर इकाइयों में 50 कृषि व्यवसाय उष्मायन केंद्र कार्यरत हैं।

एफपीओ 

भारत में छोटे और सीमांत किसानों की समस्याओं को पहचानते हुए सरकार सक्रिय रूप से किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को बढ़ावा दे रही है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 10,000 एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) के गठन का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2020-21 में एफपीओ के गठन के लिए 2200 से अधिक एफपीओ उत्पादन क्लस्टर आवंटित किए गए। एसएफएसी (SFAC) द्वारा 10,000 एफपीओ के गठन और संवर्धन के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत जुलाई 2023 तक कुल एफपीओ 2,298 पंजीकृत किए गए और 1.871 एफपीओ पंजीकरण की प्रक्रिया में हैं।

आर्या परियोजना 100 केवीके में कार्यरत हैं। इन केवीके ने वर्ष 2020-21 में 775 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जिनमें 16,812 युवा लाभान्वित हुए जिनमें से 32% प्रशिक्षित ग्रामीण युवाओं ने ग्रामीण क्षेत्र में माइको एंटरप्रेन्योरियल यूनिट स्थापित की।"

स्मार्ट कृषि हेतु डिजिटल क्षेत्र में पहल

मोबाइल आधारित ऐप  

मोबाइल ऐप के महत्व को समझते हुए, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने एक विशेष मोबाइल ऐप गैलरी भी बनाई है जहां विस्तृत जानकारी और 355 कृषि मोबाइल ऐप के डाउनलोडिंग लिंक उपलब्ध हैं। (https://krishi.icar.gov.in/) 

आईसीएआर ने किसान 2.0 (एग्री ऐप्स नेविगेशन के लिए कृषि एकीकृत समाधान) लॉन्च किया है, जिसकी परिकल्पना ई-कृषि में मदद करने और भारत में स्मार्ट फोन आधारित कृषि को बढ़ावा देने के लिए की गई है। यह ऐप एक एग्रीगेटर एंड्रॉइड मोबाइल ऐप में आईसीएआर संस्थानों द्वारा विकसित 300 से अधिक कृषि संबंधी ऐप को एकीकृत करता है।

किसान सारथी

इसका उद्देश्य किसानों को नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकियों को मल्टीमीडिया के माध्यम से प्रदान करना है। यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन (DIC) और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY ) की एक संयुक्त पहल है। अब तक, 2014096 किसानों ने 368 केवीके के साथ 50124 गाँवों को कवर करते हुए किसान सारथी में पंजीकरण कराया है।

जैव विविधता में मधुमक्खियों एवं अन्य परागणकों की महत्वपूर्ण भूमिका

मधुमक्खियों द्वारा परागणकर्ताओं के रूप में और वन आवरण को बढ़ाने में अहम भूमिका है। परागण हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के अस्तित्व के लिए एक मूलभूत प्रक्रिया है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की लगभग 90 फीसदी जंगली फूलों वाली पौधों की प्रजातियां, पूरी तरह से, या आंशिक रूप से जीवों के परागण पर निर्भर करती हैं। दुनिया की 75 फीसदी से अधिक खाद्य फसलें और 35 फीसदी कृषि भूमि इनके भरोसे हैं। परागण न केवल सीधे खाद्य सुरक्षा में योगदान करते हैं, बल्कि वे जैव विविधता के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं। 

मधुमक्खियों और अन्य परागणकों की रक्षा के लिए उपायों को मजबूत करना समय की मांग है, जो दुनिया भर की खाद्य आपूर्ति से संबंधित समस्याओं को हल करने और विकासशील देशों में भूख को खत्म करने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। हम सभी परागणकों पर निर्भर हैं और इसलिए, उनकी गिरावट की निगरानी करना और जैव विविधता के नुकसान को रोकना महत्वपूर्ण है। 

विश्व मधुमक्खी दिवस हर साल 20 मई को दुनिया भर में मनाया जाता है। पर्यावरण, खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता हेतु मधुमक्खियों एवं अन्य परागणकों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। स्लोवेनिया के आधुनिक मधुमक्खी पालन के अग्रदूत एंटोन जानसा के जन्मदिन के उपलक्ष्य में इस तारीख को चुना गया। पहला विश्व मधुमक्खी दिवस 20 मई, 2018 को मनाया गया। इस दिन विश्व भर में मधुमक्खियों और मधुमक्खी पालन के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विश्व मधुमक्खी दिवस 2023 की थीम परागण अनुकूल कृषि उत्पादन में शामिल मधुमक्खी है, जो परागण - अनुकूल कृषि उत्पादन में मदद करने के लिए वैश्विक कार्रवाई का आह्वान करता है। 

मानवजनित प्रभावों के कारण मधुमक्खियों पर खतरा मंडरा रहा है। वर्तमान प्रजातियों के विलुप्त होने की दर सामान्य से 100 से 1,000 गुना अधिक है। लगभग 35 प्रतिशत अकशेरुकी परागणकों विशेष रूप से मधुमक्खियों और तितलियों, और लगभग 17 प्रतिशत कशेरुकी परागणकों, जैसे चमगादड़, विश्व स्तर पर विलुप्त होने की कगार पर हैं।

लेखक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के कृषि प्रसार संभाग और लेखिका कृषि प्रौद्योगिकी आकलन एवं स्थानांतरण केंद्र में वैज्ञानिक हैं। ई-मेल: girijeshmahra22@gmail.com

 सोर्स- कुरुक्षेत्र

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