भारत में जल उपलब्धता एवं जल गुणवत्ता (Essay on Water Availability and Water Quality in India)

प्राकृतिक जल, PC-Wikipedia
प्राकृतिक जल, PC-Wikipedia

ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तो सर्वप्रथम जल तत्व को बनाया। वेद के अनुसार जल दो शब्द 'ज' और 'ल' के मेल से बना है। 'ज' से जन्म और 'ल' से लय हो जाना अर्थात जन्म और मरण दोनों जल में सन्निहित हैं। जल ही जीवन है, जल के बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। "आपो हिष्ठा मयोभुवः " के द्वारा भी जल के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। कवि रहीम ने जल के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा था-

" रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून, पानी गये ना ऊबरे मोती मानुष चून । "

मनुष्य के शरीर का 3/4 भाग पानी है। पृथ्वी का भी 3/4 भाग पानी है, लेकिन फिर भी पानी की क्यों परेशानी है? आओ, इस पर विचार करें ।

भारत में जल की उपलब्धता

सृष्टि ने जल तत्व को अत्यधिक मात्रा में बनाया है। पृथ्वी के 3/4 भाग पर जल ही जल है। संसार में जल की मात्रा को परिभाषित करते हुए प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रायथ् 1992 में अपनी पुस्तक में जल से संबंधित कुछ आंकड़े दिये, जो निम्न प्रकार से हैं:-

  • धरती पर कुल जल 1600x106 घन कि.मी. -
  • मुक्त जल 1.37 ग 10x6 घन किमी.
  • नमकीन जल 97.2 प्रतिशत
  • साफ पीने योग्य जल 2.8 प्रतिशत
  • पीने योग्य जल में ध्रुवों पर जल 2.0 प्रतिशत
  • उपलब्ध जल 0.8 प्रतिशत (पीने योग्य जल)

इसमें भी कुछ जल सतह पर होता है, कुछ भूजल के रूप में धरती के अन्दर रहता है। भूजल का 50 प्रतिशत तो हम निकाल सकते हैं, 50 प्रतिशत इतना नीचे है कि मनुष्य की पहुंच से परे है। इस प्रकार जल की मात्रा अत्यधिक होते हुए भी पीने योग्य जल का प्रतिशत बहुत कम है।

भारतवर्ष में जल निम्न रूपों में मिलता है

  • सतही जल:  इसमें तालाब, झील, नदियाँ, समुद्र आते हैं। 
  • भूजल : इसके अन्दर पृथ्वी के अन्दर का जल जो मृदा जल के रूप में रहता है।

वायुमण्डलीय जल

वायुमण्डल में रहने वाले जल को वायुमण्डलीय जल कहते हैं। यह जल की कुल मात्रा का 0.001 प्रतिशत होता है और वर्षा के रूप में यही जल मिलता है। इन तीनों ही प्रकार की जल की भारत में अधिकता है लेकिन इनका समय एवं जगह के हिसाब से ही वितरण ठीक नहीं है। एक ही समय में कहीं बाढ़ आ रही है तो कहीं सूखा पड़ रहा है। उदाहरण के लिए पिछले वर्ष मानसून में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड बाढ़ की विभीषिका झेल रहे थे और बिहार में सूखा पड़ रहा था। इसका सीधा मतलब है कि जल की उपलब्धता के साथ-साथ इसका यदि वितरण भी ठीक हो जाये तो जल की कमी से निपटा जा सकता है। लेकिन इसके लिए जल के उचित प्रबंधन की आवश्यकता होगी। जिसमें डैम बनाकर जल रोकना इससे जल एवं विद्युत दोनों मिलेगी और बाढ़ भी रुकेगी। नदियों को आपस में जोड़ना यह भी एक महत्वपूर्ण कदम है और सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर रही है। कई देशों में नदियों को जोड़कर बाढ़ एवं सूखा पर विजय प्राप्त की गयी है। चीन इसका एक उदाहरण है। 

रेन वाटर हार्वेस्टिंग भी एक महत्वपूर्ण जल संरक्षण का कदम है इसमें वर्षा के जल को बेकार नहीं बहने दिया जाता उसको टैंकों या भूजल में स्टोर कर दिया जाता है और सूखे मौसम में इसका उपयोग किया जाता है।

जल चक्र

प्रकृति ने जल का एक चक्र बनाया है, इसमें जल बिना खर्च हुए घूमता रहता है, समुद्र से जल वाष्पीकरण, वर्षा फिर नदियों में बहना धरती में भूजल के रूप में इकट्ठा होना फिर बहकर समुद्र में मिलना ये चक्र चलता रहता है लेकिन यदि मानव इसमें अपना हस्तक्षेप करेगा तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। दिल्ली इसका एक उदाहरण है। दिल्ली वालों ने शान में आकर सब कुछ पक्का कर दिया, छत पक्की, सड़क पक्की नाली पक्की वर्षा का पूरा जल बहकर यमुना में चलता जाता और धरती के अन्दर एक बूंद भी नहीं जाती । परिणाम यह हुआ पहले हैंडपंप सूखे, फिर ट्यूबवेल सूख गये और लोग पानी को तरसने लगे। वैज्ञानिकों को अपनी भूल का एहसास हुआ फिर दिल्ली में कच्ची जमीन छोड़ी गयी, छोटे तालाब खोदे गये, रेन वाटर हार्वेस्टिंग की गयी तब जाकर कुछ भूजल में सुधार होने लगा है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत में जल की कमी नहीं है केवल उचित प्रबंधन की कमी है इसे अपनाकर हम इस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

जल गुणवत्ता

जल में उपलब्ध भौतिक, रासायनिक एवं जीवाणवीय तत्वों के आधार पर जल की गुणवत्ता निर्धारित की जाती है। जैसे-जैसे आदमी की प्रकृति पर बढ़ी सत्ता, बिगड़ गयी उतनी ही जल की गुणवत्ता।जी हाँ यह बिल्कुल अक्षरशः सत्य है। प्रकृति ने हमें निर्मल जल दिया था और उसके शुद्धीकरण के तरीके भी प्रकृति ने स्वतः ही दिये थे लेकिन दुखद पहलू यह है कि मानव ने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर प्रकृति के चक्र को बिगाड़ दिया जल में जहर घोल दिया जो आज मानव तो क्या जानवर के लिए भी पीने योग्य नहीं रहा।

जल हमें तीन सेक्टर में चाहिए और उसकी गुणवत्ता भी उसके अनुरूप होनी चाहिए।

 

  • सिंचाई के लिए - इसमें जल की मात्रा अत्यधिक लेकिन गुणवत्ता निम्न से काम चल जाता है।
  • उद्योग धंधों के लिए - इसमें जल कारखानों के लिए चाहिए इसमें जल की मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों मध्यम श्रेणी के चाहिए।
  • घरेलू उपयोग के लिए - इसमें जल पीने के लिए एवं घरेलू उपयोग के लिए चाहिए इसमें अन्य उपयोगों की अपेक्षा पानी कम चाहिए मगर उसकी गुणवत्ता सबसे अच्छी होनी चाहिए।

जल गुणवत्ता का निर्धारण

जल गुणवत्ता का निर्धारण तीन तरह की गंदगी के आधार पर किया जाता है:-
  • भौतिक अशुद्धिः पानी में कोई भौतिक गन्दगी नहीं होनी चाहिए। इसमें मिट्टी, तैरती गंदगी शामिल है।
  • रासायनिक अशुद्धिः इसमें पानी के अन्दर रासायनिक तत्वों का विश्लेषण किया जाता है और उसके आधार पर जल की गुणवत्ता निर्धारित की जाती है।
  • जीवाण्वीय अशुद्धिः इसमें पानी के अंदर जीवाणु बैक्टीरिया आदि की जाँच की जाती है और उसके आधार पर जल गुणता निर्धारित की जाती है।

भारतवर्ष में पानी की गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। पीलिया, हैजा, टाइफाइड इसके मुख्य रोग हैं। हमें जल की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना है। सरकार भी इस दिशा में कार्य कर रही है लेकिन सब कुछ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। हमारे भी कुछ कर्तव्य हैं, जो निम्न प्रकार हैं:-

  • जल का संरक्षण करें।
  • भूजल में गन्दगी ना डालें।
  • सैप्टिक टैंक के साथ सोकपिट बनायें व इसे जल स्रोत से दूर रखें।
  • गन्दगी बहते जल में ना डाले।
  • जल को बर्बाद न करें।
  • जल में जानवरों को ना नहलाएं व कपड़े न धोयें।
  • भूजल का अत्यधिक दोहन न करें।
  • जल धाराओं में मृत शरीर व मृत जानवर न डालें।

इस प्रकार जल गुणवत्ता को सुधार कर हम अपना व अपने समाज का स्वास्थ्य सुधार सकते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की गाइडलाइन अपनाकर शुद्ध जल पीएं, स्वस्थ रहें। जान है तो जहान है। धन के लिए स्वास्थ्य से समझौता न करें।

और अंत में 

इस प्रकार जल की उपलब्धता एवं जल की गुणवत्ता दोनों में तालमेल बैठाकर हम स्वस्थ जीवन जी सकते हैं " अति सर्वत्र वर्जयेत" बीच का रास्ता निकालें। प्रकृति के स्वास्थ्य का हम ध्यान रखें और प्रकृति हमारे स्वास्थ्य का ध्यान स्वतः ही रखने लगेगी, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब सोना, चाँदी, रुपया, डॉलर, सब होंगे पर सांस लेने को हवा नहीं होगी, पीने को पानी नहीं होगा। 


लेखक मुकेश कुमार शर्मा राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान में वरिष्ठ अवर अभियंता हैं। 

स्रोत - राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, 5 प्रवाहिनी अंक 18, (2010-11 )


 

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