कांग्रेस की चुप्पी भी कम चौकाने वाली नहीं है क्योंकि अधिकारियों का कांग्रेस एवं भाजपा के नेताओं तथा जनप्रतिनिधियों से अच्छा तालमेल बना हुआ रहता है। आठनेर जनपद की बोरपानी एवं गोंहदा की समितियों से राजीव गांधी जलग्रहण मिशन के परियोजना अधिकारी द्वारा बैंक के कोरे चैकों पर हस्ताक्षर लेकर अपनी मनमर्जी से रूपया निकालने का सनसनी मामला सामने आया है।
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी पूरी दुनिया के एक मात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे है जिन्होंने भ्रष्ट्राचार को स्वीकार करते हुए कहा कि उनके द्वारा भेजा गया एक रूपया भी पूरी तरह गांव तक नहीं पहुंच पाता है। राजीव गांधी के शब्दो में ''हम एक रूपया केन्द्र से भेजते है लेकिन गांव तक पहुंचते - पहुंचते वह एक रूपैया 15 पैसे हो जाता है........।” रास्ते में 85 पैसे के गायब होने की बाते कहने के बाद स्वर्गीय राजीव गांधी और उनकी सरकार की जमकर आलोचना हुई लेकिन सच किसी से छुप नहीं सका। आज हमारे बीच भले स्वर्गीय राजीव गांधी हमारे बीच नहीं है लेकिन अब उस 85 पैसे के गायब होने की परत दर परत खुलने लगी है। स्वर्गीय राजीव गांधी के नाम से संचालित जल ग्रहण मिशन के एक सनसनी खुलासे ने पूरे मामले की पोल खोल कर रख दी। बैतूल जिले के दुरस्थ ग्रामीण क्षेत्रो में हुए फर्जीवाड़े के बाद अब इस महत्वाकांक्षी योजना के भविष्य पर ही ग्रहण लग गया है। एक तरफ सरकार जलसंवर्धन के जरिए धरती के जल भंडारों को भरने के लिए करोड़ो रूपया खर्च कर रही है वहीं दुसरी ओर भ्रष्ट अधिकारियों के चलते जनहितैषी योजनाएं अपनी मंजिल तक पहुंचने के पहले ही दम तोड़ रही है। देश - प्रदेश - जिला - गांव तक पहुंचे भ्रष्ट अधिकारियों के नेटवर्क के चलते ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाओं लिए आए रूपयों ने भोपाल - दिल्ली - मुम्बई की आलिशान कोठियो का रूप ले लिया है।
बैतूल जिले के बहुचर्चित ताजे मामले में आठनेर ब्लॉक के राजीव गांधी जलग्रहण मिशन के लिए स्वीकृत सरकारी राशी को मिशन के ही एक भ्रष्ट अधिकारी ने राजीव गांधी मिशन की समितियों के पदाधिकारियों की साठगांठ से निकाल कर पूरा माल हजम कर लेने का नया कीर्तिमान स्थापित करने का प्रयास किया। अशिक्षित आदिवासियों को राजीव गांधी मिशन की समितियों का पदाधिकारी बनवा कर उनसे कोरे चैक लेकर मिशन के लिए जारी राशी का फर्जीनामो से भुगतान करने की एक नई मिसाल कायम की है। पंचायत स्तर तक पहुंचे तथाकथित भ्रष्टाचार कम शिष्टाचार की एक नई कहानी लिखने वाले अधिकारियों को पूरा मामला उजागर हो जाने के बाद भी जरा सा भी डर नहीं है क्योंकि भुगतान जारी करने वाली इकाई वह स्वंय न होकर समिति है। पूरे मामले पर जब इस अधिकारी से पूछा गया तो उसने चतुराई से पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए पूरा दोषारोपण राजीव गांधी जल ग्रहण मिशन की समितियों पर थोप कर पूरे मामले की जांच करके दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई तक करने की बात कह डाली। भ्रष्ट्राचार के मामले में सर से लेकर पांव तक लिप्त अधिकारी ने अपने बचाव में ऐसे तर्क प्रस्तुत किए कि सुनने वाला उसकी पीठ थपथपाने से स्वंय को नहीं रोक पाया। कोरे चेक के मामले में पहले तो अधिकारी द्वारा यह कहा गया कि भगवान महावीर का सिद्धांत है कि '' जीयो और जीने दो.....”, जिसका अधिकारी का अर्थ यह था कि ''खाओ और खाने दो ......” जब बात नहीं जमी तो अधिकारी अपनी पर आ गया और उसने कहा कि ''हमने आपके द्वारा दिखाये गए सभी कोरे चैक केन्सिल करवा दिए है........” इन पंक्तियो के लिखे जाने तक पूरे मामले की हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
इस मामले की यदि पूरी तरह निष्पक्ष जांच हुई तो पूरे जिले में बड़े वित्तीय घोटालों का पर्दाफाश हो सकता है। राजीव गांधी जलग्रहण मिशन में अनिमितताएं एवं भ्रष्टाचार की घटनाएं कोई नई बात नहीं है। पूरे मिशन की ऐसी सनसनी खेज खबरें अक्सर पिछले एक दशक से सुर्खियों में छपती रही। बैतूल जिले की बैतूल, भैसदेही, मुलताई तहसील की सीमा क्षेत्र के आठनेर जनपद क्षेत्र में भाजपा शासन काल में भ्रष्टाचार रूपी महापुराण का एक पर्व है। वैसे लोगो को यह सबसे बड़ा मामला लगता है लेकिन भाजपा और सरकार से जुड़े लोग इसे रूटीन कार्य मानते है। कांग्रेस की चुप्पी भी कम चौकाने वाली नहीं है क्योंकि अधिकारियों का कांग्रेस एवं भाजपा के नेताओं तथा जनप्रतिनिधियों से अच्छा तालमेल बना हुआ रहता है। आठनेर जनपद की बोरपानी एवं गोंहदा की समितियों से राजीव गांधी जलग्रहण मिशन के परियोजना अधिकारी द्वारा बैंक के कोरे चैकों पर हस्ताक्षर लेकर अपनी मनमर्जी से रूपया निकालने का सनसनी मामला सामने आया है। मिली जानकारी के अनुसार आठनेर जनपद में राजीव गांधी जलग्रहण मिशन के अंतर्गत एक दर्जन से अधिक ग्रामों में जल संवर्धन एवं संरक्षण के कार्य पिछले कई वर्षों से चल रहे हैं। इसी कड़ी में ग्राम गोंहदा एवं बोरपानी में भी 12 वें बेच के काम चल रहे है। इसमें निर्माण कार्यों के भुगतान की एक परम्परागत शासकीय प्रक्रिया होती है।
जिसे यहां पदस्थ अधिकारी द्वारा नजर अंदाज करते हुए अपनी मर्जी से राजीव गांधी जल ग्रहण मिशन के अध्यक्ष एवं सचिव तथा सरपंच के कोरे चैकों पर हस्ताक्षर ले लिये जाते है तथा बाद में यहां पदस्थ परियोजना अधिकारी अपनी मनमर्जी से राशि भरकर आहरण कर लेता है। नतीजा यह है कि उक्त ग्रामों के अध्यक्ष एवं सचिव तथा समिति के सदस्यों को आज तक यह नहीं मालूम कि उनके ग्रामों में जल ग्रहण मिशन के कार्यों पर कितना खर्च हुआ है और कितनी राशि शेष है। ऐसी स्थिति में 12 वें बेच के अंतर्गत आठनेर जनपद के जितने भी ग्रामों में कार्य हुए है। उनकी स्थिति उक्त ग्रामों के अनुसार ही है। जिन-जिन ग्रामों में राजीव गांधी जलग्रहण मिशन के अंतर्गत 12 वें बेच के तहत काम हुए है सभी जगह से उक्त परियोजना अधिकारी द्वारा कोरे चैकों पर ही हस्ताक्षर लिये गये है। किसी भी ग्राम के अध्यक्ष एवं सचिव को अब तक यह नहीं मालूम की हमारे गांव में कितना पैसा स्वीकृत हुआ था और आज तक कितना खर्च हुआ है। राजीव गांधी जलग्रहण मिशन के अंतर्गत जिन ग्रामों का चयन हुआ है। वहां पर शासकीय प्रक्रिया के अनुसार जलग्रहण प्रबंधन समिति को पैसा खर्च करने का पूरा अधिकारी मिला हुआ है सभी ग्रामों में एक समिति बनी हुई है जिसमें अध्यक्ष एवं सचिव के पास में सभी अभिलेख जिसमें चैक बुक, पास बुक से लेकर प्रत्येक कामों की छोटी सी लेकर बड़ी जानकारी अध्यक्ष, सचिव से लेकर समिति के पास रहनी चाहिए। आठनेर जनपद में हो ऐसा रहा है कि अभिलेख से लेकर पास बुक और चैक बुक यह सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज परियोजना अधिकारी एवं एपीओ अपने पास रखते है और अपनी सुविधा अनुसार चैक काटते है। जिस पर संबंधित सचिव, अध्यक्ष एवं सरपंच के हस्ताक्षर ले लेते है और अपनी मनमर्जी से राशि भरकर आहरण कर लेते है। सूत्रों के अनुसार आठनेर ब्लॉक में पदस्थ पीओ अपने तबादले के लिए जोड़-तोड़ करने में लगे हुए है, ताकि उनके द्वारा की गई अनियमितताओं से वो बच सकें। बैतूल के नवागत कलैक्टर बी चन्द्रशेखर ने पूरे मामले के बारे में कहा कि यदि इस प्रकार बिना राशि भरे हुए चैक लिए गए है तो यह गलत है।
इस पूरे मामले की जांच कर संबंधित अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। किसी भी कार्य के लिए शासकीय योजनाओं में बिना राशि भरे चैक लेना अति गंभीर अनियमितता है। मुझे जो चैक दिखाए गए है इस पर परियोजना अधिकारी द्वारा राशि नहीं भरी गई है न ही दिनांक लिखा गया है ऐसा मामला पूरी तरह धोखा-धड़ी का मामला है और उक्त अधिकारी पर प्रथमदृष्टा अपराध बनाता है। वैसे तो कहा यह भी जा रहा है कि आठनेर जनपद ही नहीं पूरी दस जनपदो में पूरी तरह लूट- खसोट मची हुई है। अधिकारी ऐसी समितियों के पदाधिकारियों के अशिक्षत होने का भरपुर फायदा उठा रहे है। खासकर आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायतो में जहां पर अधिकांश अध्यक्ष एवं सचिव गरीब एवं निरक्षर होते है जिसका फायदा उठाते हुए ऐसे भ्रष्ट अधिकारी इन भोले-भाले लोगों से कोरे चैक पर हस्ताक्षर ले लेकर उक्त भुगतान की पूरी राशी को हजम कर रहे है जो कि दंडनीय अपराध है। आठनेर जनपद के अधिकांश समिति पदाधिकारियों का आरोप है कि उक्त परियोजना अधिकारी द्वारा लगातार दी जा रही धमकियों से परेशान है। रामरतन अध्यक्ष हरियाली जल ग्रहण समिति, बोरपानी ने बताया कि पिछले तीन वर्षों से पीओ द्वारा हमसे कोरे चेकों पर साईन लिये जा रहे है, हमारे द्वारा विरोध करने के बाद भी पीओ हमें धमकियां देते इस लिए हम मजबूरीवश चेक साईन करके दे दिया करते थे। इसी कड़ी में अमरलाल, अध्यक्ष हरियाली जलग्रहण समिति गोंहदा का कहना है कि मैंने अनेक बार कोरे चेक पर साईन करने से मना किया इस आशय की शिकायत मेरे द्वारा दूरभाष पर तत्कालीन जिपं सीईओ को भी की गई थी। लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई इस लिए हम लोग पीओ के आगे कोरे चेकों पर साईन करने के लिए विवश थे।
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