भोपाल का बड़ा तालाब


भोपाल में एक कहावत है “तालों में ताल भोपाल का ताल बाकी सब तलैया”, अर्थात यदि सही अर्थों में तालाब कोई है तो वह है भोपाल का तालाब। भोपाल की यह विशालकाय जल संरचना अंग्रेजी में “अपर लेक” (Upper Lake) कहते हैं इसी को हिन्दी में “बड़ा तालाब” कहा जाता है। यह एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील भी कहा जाता है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के पश्चिमी हिस्से में स्थित यह तालाब भोपाल के निवासियों के पीने के पानी का सबसे मुख्य स्रोत है। भोपाल की लगभग 40% जनसंख्या को यह झील लगभग तीस मिलियन गैलन पानी रोज देती है। इस बड़े तालाब के साथ ही एक छोटा तालाब (Small Lake) भी यहाँ मौजूद है और यह दोनों जलक्षेत्र मिलकर एक विशाल “भोज वेटलैण्ड” का निर्माण करते हैं, जो कि अन्तर्राष्ट्रीय रामसर सम्मेलन के घोषणापत्र में संरक्षण की संकल्पना हेतु शामिल है।

 

भौगोलिक स्थिति –


बड़ा तालाब के पूर्वी छोर पर भोपाल शहर बसा हुआ है, जबकि इसके दक्षिण में “वन विहार नेशनल पार्क” है, इसके पश्चिमी और उत्तरी छोर पर कुछ मानवीय बसाहट है जिसमें से अधिकतर इलाका खेतों वाला है। इस झील का कुल क्षेत्रफ़ल 31 वर्ग किलोमीटर है और इसमें लगभग 361 वर्ग किमी इलाके से पानी एकत्रित किया जाता है। इस तालाब से लगने वाला अधिकतर हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र है, लेकिन अब समय के साथ कुछ शहरी इलाके भी इसके नज़दीक बस चुके हैं। कोलास नदी जो कि पहले हलाली नदी की एक सहायक नदी थी, लेकिन एक बाँध तथा एक नहर के जरिये कोलास नदी और बड़े तालाब का अतिरिक्त पानी अब कलियासोत नदी में चला जाता है।

 

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व –


11वीं शताब्दी में इस विशाल तालाब का निर्माण किया गया और भोपाल शहर इसके आसपास विकसित होना शुरु हुआ। इन दोनों बड़ी-छोटी झीलों को केन्द्र में रखकर भोपाल का निर्माण हुआ। भोपाल शहर के बाशिंदे धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से इन दोनों से झीलों से दिल से गहराई तक जुड़े हैं। रोज़मर्रा की आम जरूरतों का पानी उन्हें इन्हीं झीलों से मिलता है, इसके अलावा आसपास के गाँवों में रहने वाले लोग इसमें कपड़े भी धोते हैं (हालांकि यह इन झीलों की सेहत के लिये खतरनाक है), सिंघाड़े की खेती भी इस तालाब में की जाती है। स्थानीय प्रशासन की रोक और मना करने के बावजूद विभिन्न त्यौहारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ इन तालाबों में विसर्जित की जाती हैं। बड़े तालाब के बीच में तकिया द्वीप है जिसमें शाह अली शाह रहमतुल्लाह का मकबरा भी बना हुआ है, जो कि अभी भी धार्मिक और पुरातात्विक महत्व रखता है।

 

मनोरंजन और व्यवसाय –


बड़े तालाब में मछलियाँ पकड़ने हेतु भोपाल नगर निगम ने मछुआरों की सहकारी समिति को लम्बे समय तक एक इलाका लीज़ पर दिया हुआ है। इस सहकारी समिति में लगभग 500 मछुआरे हैं जो कि इस तालाब के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में मछलियाँ पकड़कर जीवनयापन करते हैं। इस झील से बड़ी मात्रा में सिंचाई भी की जाती है। इस झील के आसपास लगे हुए 87 गाँव और सीहोर जिले के भी कुछ गाँव इसके पानी से खेतों में सिंचाई करते हैं। इस इलाके में रहने वाले ग्रामीणों का मुख्य काम खेती और पशुपालन ही है। इनमें कुछ बड़े और कुछ बहुत ही छोटे-छोटे किसान भी हैं। भोपाल का यह बड़ा तालाब स्थानीय और बाहरी पर्यटकों को भी बहुत आकर्षित करता है। यहाँ “बोट क्लब” पर भारत का पहला राष्ट्रीय सेलिंग क्लब भी स्थापित किया जा चुका है। इस क्लब की सदस्यता हासिल करके पर्यटक कायाकिंग, कैनोइंग, राफ़्टिंग, वाटर स्कीइंग और पैरासेलिंग आदि का मजा उठा सकते हैं। विभिन्न निजी और सरकारी बोटों से पर्यटकों को बड़ी झील में भ्रमण करवाया जाता है। इस झील के दक्षिणी हिस्से में स्थापित वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भी पर्यटकों के आकर्षण का एक और केन्द्र है। चौड़ी सड़क के एक तरफ़ प्राकृतिक वातावरण में पलते जंगली पशु-पक्षी और सड़क के दूसरी तरफ़ प्राकृतिक सुन्दरता मन मोह लेती है।

 

जैव-विविधता (Biodiversity) –


इन दोनों तालाबों में जैव-विविधता के कई रंग देखने को मिलते हैं। वनस्पति और विभिन्न जल आधारित प्राणियों के जीवन और वृद्धि के लिये यह जल संरचना एक आदर्श मानी जा सकती है। प्रकृति आधारित वातावरण और जल के चरित्र की वजह से एक उन्नत किस्म की जैव-विविधता का विकास हो चुका है। प्रतिवर्ष यहाँ पक्षियों की लगभग 20,000 प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं, जिनमें मुख्य हैं व्हाईट स्टॉर्क, काले गले वाले सारस, हंस आदि। कुछ प्रजातियाँ तो लगभग विलुप्त हो चुकी थीं, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता अब वे पुनः दिखाई देने लगी हैं। हाल ही में यहाँ भारत का विशालतम पक्षी सारस क्रेन (Grusantigone) भी देखा गया, जो कि अपने आकार और उड़ान के लिये प्रसिद्ध है।

 

वनस्पति और प्राणीजाति (Flora & Fauna) –


मैक्रोफ़ाइट्स (Macrophytes) की 106 प्रजातियाँ, जिसमें 14 दुर्लभ प्रजातियाँ शामिल हैं, फ़ाइटोप्लेंक्टॉन (Phytoplanktons) की 208 प्रजातियाँ, क्लोरोफ़ाइसी (Chlorophyceae) की 106 प्रजातियाँ, साइनोफ़ाइसी (Cyanophyceae) की 37 प्रजातियाँ, युग्लीनोफ़ाइसी (Euglenophyceae) की 34 प्रजातियाँ, बेसिलेरियोफ़ाइसी (Bacilariophyceae) की 27 प्रजातियाँ और डिनोफ़ाइसी (Dinophyceae) की 4 प्रजातियाँ मौजूद हैं।

जबकि इसी प्रकार यदि प्राणी जाति (Fauna) को देखा जाये तो जूप्लेन्क्टॉन (Zooplankton) की 105 प्रजातियाँ, जबकि मछली के विभिन्न प्रकारों की 43 प्रजातियाँ, तथा कछुए समेत अन्य जीव-जन्तुओं की कई प्रजातियाँ इन झीलों को समृद्ध किये हुए हैं।

हाल ही में विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों ने प्रदूषण से बचाने के लिये इन दोनों झीलों के गहरीकरण और सफ़ाई का महती काम हाथ में लिया है, जिसे सरकार का भी पूरा समर्थन और आर्थिक मदद हासिल है, आखिर यही तालाब तो भोपाल की पहचान और उसकी जीवनरेखा हैं।

स्रोत – विकीपीडिया / अनुवाद – सुरेश चिपलूनकर

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