(1985 का अधिनियम संख्यांक 21)
{29 मार्च, 1985}
यह सुनिश्चित करने के लिये कि भोपाल गैस विभीषिका से उद्भूत होने वाले या उससे सम्बन्धित दावों के सम्बन्ध में शीघ्रता से, प्रभावी रूप से, साम्यापूर्ण रूप से और दावेदारों के सर्वोत्तम हित में कार्यवाही की जाये, केन्द्रीय सरकार को कतिपय शक्तियाँ प्रदान करने के लिये और उससेआनुषंगिक विषयों के लिये अधिनियम
भारत गणराज्य के छत्तीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम भोपाल गैस विभीषिका (दावा-कार्यवाही) अधिनियम, 1985 है।
(2) यह 20 फरवरी, 1985 को प्रवृत्त हुआ समझा जाएगा।
2. परिभाषाएँ
इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो:-
(क) “भोपाल गैस विभीषिका” या “विभीषिका” से 2 और 3 दिसम्बर, 1984 की घटना अभिप्रेत है, जिसमें भोपाल संयंत्र से (जो संयुक्त राज्य अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन की समनुषंगी यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड का संयंत्र है) अत्यधिक अनिष्टकारी और अत्यन्त खतरनाक गैस का निकलना अन्तर्वलित था और जिसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में जीवन-हानि और सम्पत्ति का नुकसान हुआ;
(ख) “दावा” से अभिप्रेत है,-
(i) प्रतिकर या नुकसानी के लिये विभीषिका से उद्भूत होने वाला या उससे सम्बन्धित कोई ऐसा दावा जो ऐसी जीवन-हानि या वैयक्तिक क्षति के लिये है, जो हुई है या जिसके होने की सम्भावना है;
(ii) विभीषिका से उद्भूत होने वाला या उससे सम्बन्धित कोई ऐसा दावा, जो सम्पत्ति के किसी ऐसे नुकसान के लिये है, जो हुआ है या जिसके होने की सम्भावना है;
(iii) ऐसे व्ययों के लिये दावा जो विभीषिका को नियंत्रण में रखने के लिये या विभीषिका के प्रभावों को कम करने या उसके साथ अन्यथा निपटने के लिये उपगत किया गया है या उपगत किये जाने के लिये अपेक्षित है;
(iv) विभीषिका से उद्भूत होने वाला या उससे सम्बन्धित कोई अन्य दावा (जिसके अन्तर्गत कारबार या नियोजन की हानि के रूप में भी कोई दावा है);
(ग) “दावेदार” से दावा करने के लिये हकदार कोई व्यक्ति अभिप्रेत है;
(घ) “आयुक्त” से धारा 6 के अधीन नियुक्त आयुक्त अभिप्रेत है;
(ङ) “व्यक्ति” के अन्तर्गत सरकार है;
(च) “स्कीम” से धारा 9 के अधीन बनाई गई स्कीम अभिप्रेत है।
स्पष्टीकरण
खण्ड (ख) और खण्ड (ग) के प्रयोजनों के लिये, जहाँ किसी व्यक्ति की मृत्यु विभीषिका के परिणामस्वरूप हुई है वहाँ ऐसे व्यक्ति की मृत्यु के लिये प्रतिकर या नुकसानी के लिये दावा उसके पति या पत्नी, सन्तान (जिसके अन्तर्गत गर्भस्थ शिशु भी है) और मृत व्यक्ति के अन्य वारिसों के फायदे के लिये होगा और वे उसके सम्बन्ध में दावेदार समझे जाएँगे।
3. दावेदारों का प्रतिनिधित्व करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति
(1) इस अधिनियम के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए, केन्द्रीय सरकार ऐसे प्रत्येक व्यक्ति का, जिसने ऐसे दावे से सम्बन्धित सभी प्रयोजनों के लिये दावा किया है या जो दावा करने का हकदार है, (चाहे भारत के भीतर या भारत के बाहर) उसी रीति से और उसी प्रभाव से, जो ऐसे व्यक्ति का है, प्रतिनिधित्व करेगी और उसके स्थान पर कार्य करेगी और उसे ऐसा करने का अनन्य अधिकार होगा।
(2) विशिष्टतया और उपधारा (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना उसमें निर्दिष्ट प्रयोजनों के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं-
(क) किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी के समक्ष (चाहे भारत के भीतर या भारत के बाहर) किसी वाद या अन्य कार्यवाही को संस्थित करना या किसी ऐसे वाद या अन्य कार्यवाही को वापस लेना, और
(ख) कोई समझौता करना।
(3) उपधारा (1) के उपबन्ध उन दावों के सम्बन्ध में भी लागू होंगे जिनके सम्बन्ध में इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व किसी न्यायालय में या अन्य प्राधिकारी के समक्ष (चाहे भारत के भीतर या भारत के बाहर) वाद या अन्य कार्यवाहियाँ संस्थित की गई हैं:परन्तु भारत के बाहर किसी न्यायालय में या अन्य प्राधिकारी के समक्ष इस अधिनियम के प्रारम्भ के ठीक पूर्वलम्बित किसी दावे के सम्बन्ध में किसी ऐसे वाद या अन्य कार्यवाही की दशा में, केन्द्रीय सरकार ऐसे दावेदार का, यदि ऐसा न्यायालय या अन्य प्राधिकारी इस प्रकार अनुज्ञा दे तो प्रतिनिधित्व करेगी और उसके स्थान पर या उसके साथ कार्य करेगी।
4. विधि-व्यवसायी द्वारा प्रतिनिधित्व का दावेदार का अधिकार
धारा 3 में किसी बात के होते हुए भी किसी दावे के सम्बन्ध में किसी व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने या उसके स्थान पर कार्य करने में, केन्द्रीय सरकार किसी ऐसे विषय का सम्यक ध्यान रखेगी, जिस पर ऐसे व्यक्ति द्वारा अपने दावे के सम्बन्ध में जोर दिया जाना अपेक्षित है और, यदि ऐसा व्यक्ति ऐसी वांछा करे तो ऐसे व्यक्ति के व्यय पर, उसके दावे से सम्बन्धित किसी वाद या अन्य कार्यवाही का संचालन करने में उसकी पसन्द के किसी विधि-व्यवसायी को सहयुक्त होने की अनुज्ञा देगी।
5. केन्द्रीय सरकार की शक्ति
(1) इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजन के लिये, केन्द्रीय सरकार को निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय की शक्तियाँ होंगी, अर्थात:-
(क) भारत के किसी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना और शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) किसी दस्तावेज के प्रकटीकरण और पेश किये जाने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथ पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना;
(ङ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिये कमीशन निकालना;
(च) कोई अन्य विषय जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे।
(2) उपधारा (1) के खण्ड (च) के अधीन निकाली गई प्रत्येक अधिसूचना, निकाले जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिये रखी जाएगी। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस अधिसूचना में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी। यदि उक्त अवधि के अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह अधिसूचना नहीं निकाली जानी चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगी। किन्तु अधिसूचना के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
6. आयुक्त तथा अन्य अधिकारी और कर्मचारी
(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने में अपनी सहायता करने के प्रयोजन के लिये, भोपाल गैस विभीषिका के शिकार व्यक्तियों के कल्याण के लिये आयुक्त के रूप में ज्ञात एक अधिकारी की और उसकी सहायता करने के लिये ऐसे अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकेगी जो वह सरकार ठीक समझे।
(2) आयुक्त ऐसे कृत्यों का निर्वहन करेगा, जो उसे स्कीम द्वारा समनुदेशित किये जाएँ।
(3) आयुक्त और उसके अधीनस्थ ऐसे अधिकारी, जिन्हें केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत करे स्कीम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने के लिये, ऐसी सभी या किन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकेंगे, जिनका केन्द्रीय सरकार धारा 5 के अधीन प्रयोग कर सकती है।
(4) सरकार के सभी अधिकारी और प्राधिकारी आयुक्त की सहायता के लिये कार्य करेंगे।
1{(5) आयुक्त और स्कीम के अधीन कृत्यों का निर्वहन करने के लिये प्राधिकृत उसके अधीनस्थ अधिकारी दंड संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजनों के लिये सिविल न्यायालय समझे जाएँगे।}
7. प्रत्यायोजन की शक्ति
केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी शर्तों और निर्बन्धनों के अधीन रहते हुए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएँ, इस अधिनियम के अधीन अपनी सभी या किन्हीं शक्तियों को (धारा 9 के अधीन स्कीम बनाने की शक्ति को छोड़कर) मध्य प्रदेश सरकार को या केन्द्रीय सरकार के किसी अधिकारी को, जो उस सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो या मध्य प्रदेश सरकार के किसी अधिकारी को, जो उस सरकार के सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो; 1{या आयुक्त को, प्रत्यायोजित कर सकेगी।
8. परिसीमा
(1) किसी दावे के प्रवर्तन के लिये किसी वाद या अन्य कार्यवाही को संस्थित करने के प्रयोजन के लिये परिसीमा की अवधि की परिसीमा अधिनियम, 1963 (1963 का 36) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन संगणना करने में उस तारीख के, जिसको ऐसा दावा स्कीम के उपबन्धों के अधीन और उसके अनुसार रजिस्टर किया जाता है, पश्चात की किसी अवधि को छोड़ दिया जाएगा।
(2) उपधारा (1) की कोई बात अपील के रूप में किसी कार्यवाही को लागू नहीं होगी।
9. स्कीम बनाने की शक्ति
(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये, इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात यथाशीघ्र, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, स्कीम बनाएगी।
(2) विशिष्टतया और उपधारा (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, स्कीम में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिये उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात: -
(क) स्कीम के अधीन दावों का रजिस्ट्रीकरण और ऐसे रजिस्ट्रीकरण से सम्बन्धित सभी विषय;
(ख) दावों का प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिये उनके सम्बन्ध में कार्यवाही और उनसे सम्बन्धित विषय;
(ग) दावों के सम्बन्ध में अभिलेखों और रजिस्टरों का रखा जाना;
(घ) स्कीम के प्रशासन और इस अधिनियम के उपबन्धों के सम्बन्ध में व्ययों की पूर्ति के लिये निधि का सृजन;
(ङ) वे रकमें जो केन्द्रीय सरकार, संसद द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा सम्यक विनियोग किये जाने के पश्चात, खण्ड (घ) में निर्दिष्ट निधि में जमा कर सकेगी और कोई अन्य रकम, जो ऐसी निधि में जमा की जा सकेगी;
(च) दावों की तुष्टि के लिये प्राप्त किसी रकम का संवितरण के रूप में (जिसके अन्तर्गत प्रभाजन है) या अन्यथा उपयोग;
(छ) वह अधिकारी (जो जिला न्यायाधीश की पंक्ति से निम्नतर पंक्ति का न्यायिक अधिकारी नहीं है) जो किसी विवाद की दशा में ऐसा संवितरण या प्रभाजन कर सकेगा;
(ज) खण्ड (ङ) और खण्ड (च) में निर्दिष्ट रकमों के सम्बन्ध में लेखाओं का रखा जाना और उनकी लेखापरीक्षा;
(झ) धारा 6 के अधीन नियुक्त आयुक्त और अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारियों के कृत्य।
(3) उपधारा (1) के अधीन बनाई गई प्रत्येक स्कीम, बनाई जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो कुल तीस दिन की अवधि के लिये रखी जाएगी। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस स्कीम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी। यदि उक्त अवधि के अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह स्कीम नहीं बनाई जानी चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगी। किन्तु स्कीम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
10. शंकाओं का दूर किया जाना
शंकाओं को दूर करने के लिये, यह घोषित किया जाता है, कि-
(क) ऐसी राशि के बारे में जो सरकार द्वारा किसी दावेदार को किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकरण द्वारा उसके दावे के न्यायनिर्णयन या परिनिर्धारण के परिणामस्वरूप प्राप्त प्रतिकर या नुकसानी के संवितरण के रूप से अन्यथा सन्दत्त की गई है, यह समझा जाएगा कि वह दावेदार के दावे की तुष्टि में प्रतिकर या नुकसानी को प्राप्त करने के लिये उसके दावे के ऐसे न्यायालय या अन्य प्राधिकरण न्यायनिर्णयन या परिनिर्धारण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना है और उसको ऐसे प्रतिकर या नुकसानी की रकम का, जिसका दावेदार अपने दावे की तुष्टि में हकदार है, अवधारण करने में ऐसे न्यायालय या अन्य प्राधिकरण द्वारा हिसाब में नहीं लिया जाएगा;
(ख) किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी द्वारा दावे के न्यायनिर्णयन या परिनिर्धारण के परिणामस्वरूप किसी दावे की तुष्टि में प्रतिकर या नुकसानी के रूप में प्राप्त रकम का स्कीम के अधीन संवितरण करने में ऐसी रकम में से वह राशि, यदि कोई हो, जो ऐसी रकम के संवितरण के पूर्व उस सरकार द्वारा दावेदार को सन्दत्त की गई है काट ली जाएगी।
11. अध्यारोही प्रभाव
इस अधिनियम के और उसके अधीन बनाई गई किसी स्कीम के उपबन्ध इस अध्यादेश से भिन्न किसी अधिनियमिति में या इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति के आधार पर प्रभाव रखने वाली किसी लिखत में उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे।
12. निरसन और व्यावृत्ति
(1) भोपाल गैस विभीषिका (दावा-कार्यवाही) अध्यादेश, 1985 (1985 का 1) इसके द्वारा निरसित किया जाता है।
(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी उक्त अध्यादेश के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन की गई समझी जाएगी।
सन्दर्भ
1. 1992 के अधिनियम सं० 24 की धारा 2 द्वारा अन्तःस्थापित।
2. 1992 के अधिनियम सं० 24 की धारा 3 द्वारा अन्तःस्थापित।
Path Alias
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Post By: Editorial Team