अभी केवल 350 टन कचरे के निपटान को लेकर प्रक्रिया चल रही है, किंतु उससे कही अधिक न दिखने वाला कचरा कारखाने के आसपास पानी और मिट्टी में पाया गया है उसका निपटान करना भी उतना ही जरूरी है। तीन किलोमीटर के क्षेत्र में किए गए अध्ययन से साफ हो गया है कि यहां घातक और जहरीले रसायन अंदर मिट्टी और पानी में मौजूद हैं। यहां तरह-तरह के विषैले पदार्थों से मिट्टी और पानी मे संक्रमण बढ़ता जा रहा है। 3 दिसम्बर 1984 को भोपाल के यूनियन कार्बाइड में हुई गैस त्रासदी के बाद के तीस वर्षों के दौरान कई तरह के अध्ययन हुए हैं। अभी हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेन्ट (सी.एस.ई.) दिल्ली द्वारा एक अध्ययन किया गया और देश भर के विशेषज्ञों के साथ बैठकर इस घातक प्रदूषण से मुक्ति पाने की कार्ययोजना बनाई ताकि वर्तमान और आने वाली पीढ़ी को इसका ख़ामियाज़ा न भुगतना पड़े। हादसे के बाद किसी संस्था ने पहली बार इस तरह के काम की सामूहिक पहल की है। दूसरी ओर तीस वर्षों से सतत संघर्षरत संगठनों ने भी कई बार सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया है कि इस घातक कचरे के कारण गैस पीड़ितों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है, इसलिए इसके निपटान को गंभीरता से लिया जाए। 3 दिसम्बर 2014 को गैस त्रासदी के तीस साल पूरे हो जाएंगे। अध्ययन को लेकर एकजुट हुए विशेषज्ञों साफ तौर पर कहा गया है कि यही अगले पांच वर्षों मे अगर कचरे का निपटारा नहीं होता है तो इसके घातक परिणाम सामने आएंगे क्योंकि ज़मीन के अंदर इन रसायनों के असर से जो खतरनाक संक्रमण हुआ है।
सी.एस.ई. के उप निदेशक चन्द्रभूषण ने बताया कि संयंत्र के बंद होने के बाद सालों से पड़े इस कचरे से वहां की मिट्टी और भूजल संक्रमित होने लगा है, जिससे आसपास रहने वाले लोगों की सेहत पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। सी.एस.ई ने अपनी रिपोर्ट मे पिछले 20 सालों में यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे पर हुए 15 अध्ययनों की रिर्पोटों को शामिल किया है, जिन्हें सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने तैयार किया है। मौजूद जहरीले कचरे के रिसाव के चलते भूजल प्रदूषण का दायरा लगातार बढ़ रहा है। भविष्य में यह 10 किलोमीटर तक भी फैल सकता है। सरकार द्वारा कोई कार्यवाही न करने पर हालात सुधारने के लिए सी.एस.ई. ने एक कार्ययोजना प्रारूप तैयार कर उसे भोपाल में जारी किया जिसे बाद में राज्य सरकार को सौंपा जाएगा। चन्द्रभूषण का कहना है बताए गए उपायों से भूजल व मिट्टी के प्रदूषण को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। सी.एस.ई. द्वारा इस मसले पर जुड़ी सभी संस्थाओं के साथ दिल्ली में भी एक बैठक का आयोजन किया गया था, जिसमें यहां की मिट्टी और भूजल को कचरे से मुक्त करने और यहां के जहरीले कचरे को समाप्त करने एवं संयंत्र की मशीनरी आदि पर विस्तार से चर्चा की गई थी। बैठक में विशेषज्ञों ने माना कि एक छोटी जगह पर पड़ा 350 टन कचरा तो इस पूरे प्लांट के मौजूद कचरे का मामूली हिस्सा भर है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती तो मिट्टी और भूजल को घातक संक्रमण से मुक्त बनाना है।
कार्ययोजना में सभी तरह के उपायों को शामिल किया गया है। सर्वप्रथम तात्कालिक उपाय दूसरे चरण के मध्य और लंबी अवधि के उपाय बताए गए हैं। संगठनों द्वारा तैयार इन रिपोर्टों में कुछ असमानताएं हैं, किंतु सभी ने यहां की मिट्टी व पानी में भारी मात्रा में धातुओं को पाया है।
1. पूरे क्षेत्र और सोलर पॉण्ड को अधिग्रहण करके उसके चारों ओर तार की बागड़ लगाई जाए ताकि रहवासी खासकर बच्चे इस क्षेत्र में नहीं आ सकें। सोलर पॉण्ड क्षेत्र में विनिर्माण गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। इसके साथ ही ऐसे उपाय हों जिससे कि बरसात के दौरान बरसने वाला पानी यहां ज़मीन के भीतर नहीं जा पाए।
2. क्षेत्र में जमा सारे कचरे को बाहर निकाला जाए इस कचरे में मौजूद रसायनों को उनकी प्रकृति के अनुसार उपचारित और नष्ट किया जाए।
3. संयंत्र में एक छोटी जगह पर पड़े 350 टन कचरे की पहचान करके लोगों को बताया जाए कि उनमें कौन-कौन से जहरीले रसायन मिले हुए हैं। पीथमपुर मे कचरे को नष्ट करने के काम के नतीजों के आधार पर इस कचरे को भी नष्ट किया जाए। यह काम केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या फिर किसी अन्य संबंधित एजेंसी के निर्देशन में होना चाहिए।
1. भूजल पर जहरीले रसायनों के असर को जानने के लिए वृहद अध्ययन और प्रयोगशाला परीक्षण किया जाए। इसके आधार पर इसे संक्रमण मुक्त करने के उपाय तलाशे जाएं।
2. सोलर क्षेत्र में पड़े जहरीले रसायनों की पहचान करके क्षेत्र को प्रदूषण मुक्त बनाने के उपाय तलाशे जाएं।
3. बेंट, बेंट स्क्रबर, स्टोरेज टैंक और कन्ट्रोल रूम समेत पूरे एम.आई.सी. संयंत्र को संरक्षित करके पूरे संयंत्र को जहरीले रसायनों से मुक्त करने के प्रयास होना चाहिए।
4. जहरीले रसायनों से मुक्त करने के बाद इस पूरी बिल्डिंग में एक स्मारक और सेंटर फॉर एक्सिलेंस फॉर इंडस्ट्रियल डिजास्टर मैनेजमेन्ट की स्थापना की जा सकती है।
भूजल प्रभावित इलाकों में जिंक, मेगनीज, कॉपर, मरकरी (पारा), क्रोमियम ,लैड (सीसा), निकिल, जैसे हानिकारक धातुओं की मात्रा मानक से अधिक मिली है।
अभी केवल 350 टन कचरे के निपटान को लेकर प्रक्रिया चल रही है, किंतु उससे कही अधिक न दिखने वाला कचरा कारखाने के आसपास पानी और मिट्टी में पाया गया है उसका निपटान करना भी उतना ही जरूरी है। तीन किलोमीटर के क्षेत्र में किए गए अध्ययन से साफ हो गया है कि यहां घातक और जहरीले रसायन अंदर मिट्टी और पानी में मौजूद हैं। यहां तरह-तरह के विषैले पदार्थों से मिट्टी और पानी मे संक्रमण बढ़ता जा रहा है। दरअसल पीथमपुर स्थित रामकी कंपनी के कर्मचारियों ने कारखाना से जहरीला कचरा उठाने की मात्र औपचारिकता की है। परिसर में ही कई स्थानों पर जहरीले कचरे को निपटान के नाम पर ज़मीन में दबाया जाता था जो अभी भी वहीं दबा हुआ है। कारखाने के कोकयार्ड में सिर्फ 350 टन जहरीला कचरा रखा हुआ है। जो कारखाने के एक दर्जन से ज्यादा जगहों से उठाया गया है, इस कचरे में 164 टन मिट्टी है।
चन्द्रभूषण का कहना है कि अभी तक जो अध्ययन हुए हैं वो तीन किलोमीटर के दायरे में हुए हैं। एक ही दिशा में बहने से पिछले 29 सालों मे भूजल कहां से कहां तक पहुंच गया होगा, यह किसी को नहीं मालूम। इसका दायरा दस किलोमीटर फैलने की आशंका है।
कारखाने से रिसी मिक गैस से प्रभावितों के स्वास्थ्य पर हुए असर के दूरगामी परिणामों पर शोध किया जा रहा है जो इस साल के अंत में पूरा होगा। यह जानकारी यहां भोपाल ग्रुप ऑफ इन्फॉरमेशन एंड एक्शन ने दी। आठ वैज्ञानिकों के दल द्वारा एक लाख बीस हजार लोगों पर यह अध्ययन किया जा रहा है।
गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के अब्दुल जब्बार का कहना था कि संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कारखाने को सील कर देना चाहिए तथा आसपास के रहवासियों का यहां आना-जाना रोका जाए तथा पानी व मिट्टी के संक्रमण को रोकने के लिए तत्काल उपाय किए जाना चाहिए। भूजल का प्रदूषण डेढ़ से दो किलोमीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से फैल रहा है। निराश्रित पेंशन भोगी महिला संगठन के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि इसके साथ ही हमें 32 एकड़ ज़मीन के कचरे के निपटान की बात करना होगी तथा पूरी प्रक्रिया मे पारदर्शिता हो। भोपाल ग्रुप ऑफ इन्फॉरमेशन एंड एक्शन के सतीनाथ शांडगी ने कहा कि भोपाल गैस त्रासदी के पूर्व से लेकर अभी तक का इतिहास बताया। उन्होंने सन् 1969 से लेकर अभी तक की गतिविधियों के बारे में विस्तार से बताया एवं गैस पीड़ितों के स्वास्थ्य की स्थिति को रखा।
ग़ौरतलब है कि पांच साल के अंदर इस पर काम नहीं हुआ तो इसके दूरगामी परिणाम अत्यंत घातक होगें। क्योंकि अब तक कचरे के निपटान की सिर्फ बातें हुई हैं।
सी.एस.ई. के उप निदेशक चन्द्रभूषण ने बताया कि संयंत्र के बंद होने के बाद सालों से पड़े इस कचरे से वहां की मिट्टी और भूजल संक्रमित होने लगा है, जिससे आसपास रहने वाले लोगों की सेहत पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। सी.एस.ई ने अपनी रिपोर्ट मे पिछले 20 सालों में यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे पर हुए 15 अध्ययनों की रिर्पोटों को शामिल किया है, जिन्हें सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने तैयार किया है। मौजूद जहरीले कचरे के रिसाव के चलते भूजल प्रदूषण का दायरा लगातार बढ़ रहा है। भविष्य में यह 10 किलोमीटर तक भी फैल सकता है। सरकार द्वारा कोई कार्यवाही न करने पर हालात सुधारने के लिए सी.एस.ई. ने एक कार्ययोजना प्रारूप तैयार कर उसे भोपाल में जारी किया जिसे बाद में राज्य सरकार को सौंपा जाएगा। चन्द्रभूषण का कहना है बताए गए उपायों से भूजल व मिट्टी के प्रदूषण को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। सी.एस.ई. द्वारा इस मसले पर जुड़ी सभी संस्थाओं के साथ दिल्ली में भी एक बैठक का आयोजन किया गया था, जिसमें यहां की मिट्टी और भूजल को कचरे से मुक्त करने और यहां के जहरीले कचरे को समाप्त करने एवं संयंत्र की मशीनरी आदि पर विस्तार से चर्चा की गई थी। बैठक में विशेषज्ञों ने माना कि एक छोटी जगह पर पड़ा 350 टन कचरा तो इस पूरे प्लांट के मौजूद कचरे का मामूली हिस्सा भर है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती तो मिट्टी और भूजल को घातक संक्रमण से मुक्त बनाना है।
कार्ययोजना में सभी तरह के उपायों को शामिल किया गया है। सर्वप्रथम तात्कालिक उपाय दूसरे चरण के मध्य और लंबी अवधि के उपाय बताए गए हैं। संगठनों द्वारा तैयार इन रिपोर्टों में कुछ असमानताएं हैं, किंतु सभी ने यहां की मिट्टी व पानी में भारी मात्रा में धातुओं को पाया है।
तात्कालिक उपाय
1. पूरे क्षेत्र और सोलर पॉण्ड को अधिग्रहण करके उसके चारों ओर तार की बागड़ लगाई जाए ताकि रहवासी खासकर बच्चे इस क्षेत्र में नहीं आ सकें। सोलर पॉण्ड क्षेत्र में विनिर्माण गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। इसके साथ ही ऐसे उपाय हों जिससे कि बरसात के दौरान बरसने वाला पानी यहां ज़मीन के भीतर नहीं जा पाए।
2. क्षेत्र में जमा सारे कचरे को बाहर निकाला जाए इस कचरे में मौजूद रसायनों को उनकी प्रकृति के अनुसार उपचारित और नष्ट किया जाए।
3. संयंत्र में एक छोटी जगह पर पड़े 350 टन कचरे की पहचान करके लोगों को बताया जाए कि उनमें कौन-कौन से जहरीले रसायन मिले हुए हैं। पीथमपुर मे कचरे को नष्ट करने के काम के नतीजों के आधार पर इस कचरे को भी नष्ट किया जाए। यह काम केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या फिर किसी अन्य संबंधित एजेंसी के निर्देशन में होना चाहिए।
मध्य और लम्बी अवधि के उपाय
1. भूजल पर जहरीले रसायनों के असर को जानने के लिए वृहद अध्ययन और प्रयोगशाला परीक्षण किया जाए। इसके आधार पर इसे संक्रमण मुक्त करने के उपाय तलाशे जाएं।
2. सोलर क्षेत्र में पड़े जहरीले रसायनों की पहचान करके क्षेत्र को प्रदूषण मुक्त बनाने के उपाय तलाशे जाएं।
3. बेंट, बेंट स्क्रबर, स्टोरेज टैंक और कन्ट्रोल रूम समेत पूरे एम.आई.सी. संयंत्र को संरक्षित करके पूरे संयंत्र को जहरीले रसायनों से मुक्त करने के प्रयास होना चाहिए।
4. जहरीले रसायनों से मुक्त करने के बाद इस पूरी बिल्डिंग में एक स्मारक और सेंटर फॉर एक्सिलेंस फॉर इंडस्ट्रियल डिजास्टर मैनेजमेन्ट की स्थापना की जा सकती है।
स्थल पर पाई गई धातुएं
भूजल प्रभावित इलाकों में जिंक, मेगनीज, कॉपर, मरकरी (पारा), क्रोमियम ,लैड (सीसा), निकिल, जैसे हानिकारक धातुओं की मात्रा मानक से अधिक मिली है।
अभी केवल 350 टन कचरे के निपटान को लेकर प्रक्रिया चल रही है, किंतु उससे कही अधिक न दिखने वाला कचरा कारखाने के आसपास पानी और मिट्टी में पाया गया है उसका निपटान करना भी उतना ही जरूरी है। तीन किलोमीटर के क्षेत्र में किए गए अध्ययन से साफ हो गया है कि यहां घातक और जहरीले रसायन अंदर मिट्टी और पानी में मौजूद हैं। यहां तरह-तरह के विषैले पदार्थों से मिट्टी और पानी मे संक्रमण बढ़ता जा रहा है। दरअसल पीथमपुर स्थित रामकी कंपनी के कर्मचारियों ने कारखाना से जहरीला कचरा उठाने की मात्र औपचारिकता की है। परिसर में ही कई स्थानों पर जहरीले कचरे को निपटान के नाम पर ज़मीन में दबाया जाता था जो अभी भी वहीं दबा हुआ है। कारखाने के कोकयार्ड में सिर्फ 350 टन जहरीला कचरा रखा हुआ है। जो कारखाने के एक दर्जन से ज्यादा जगहों से उठाया गया है, इस कचरे में 164 टन मिट्टी है।
चन्द्रभूषण का कहना है कि अभी तक जो अध्ययन हुए हैं वो तीन किलोमीटर के दायरे में हुए हैं। एक ही दिशा में बहने से पिछले 29 सालों मे भूजल कहां से कहां तक पहुंच गया होगा, यह किसी को नहीं मालूम। इसका दायरा दस किलोमीटर फैलने की आशंका है।
गैस प्रभावितों के स्वास्थ्य का अध्ययन
कारखाने से रिसी मिक गैस से प्रभावितों के स्वास्थ्य पर हुए असर के दूरगामी परिणामों पर शोध किया जा रहा है जो इस साल के अंत में पूरा होगा। यह जानकारी यहां भोपाल ग्रुप ऑफ इन्फॉरमेशन एंड एक्शन ने दी। आठ वैज्ञानिकों के दल द्वारा एक लाख बीस हजार लोगों पर यह अध्ययन किया जा रहा है।
गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के अब्दुल जब्बार का कहना था कि संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कारखाने को सील कर देना चाहिए तथा आसपास के रहवासियों का यहां आना-जाना रोका जाए तथा पानी व मिट्टी के संक्रमण को रोकने के लिए तत्काल उपाय किए जाना चाहिए। भूजल का प्रदूषण डेढ़ से दो किलोमीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से फैल रहा है। निराश्रित पेंशन भोगी महिला संगठन के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि इसके साथ ही हमें 32 एकड़ ज़मीन के कचरे के निपटान की बात करना होगी तथा पूरी प्रक्रिया मे पारदर्शिता हो। भोपाल ग्रुप ऑफ इन्फॉरमेशन एंड एक्शन के सतीनाथ शांडगी ने कहा कि भोपाल गैस त्रासदी के पूर्व से लेकर अभी तक का इतिहास बताया। उन्होंने सन् 1969 से लेकर अभी तक की गतिविधियों के बारे में विस्तार से बताया एवं गैस पीड़ितों के स्वास्थ्य की स्थिति को रखा।
ग़ौरतलब है कि पांच साल के अंदर इस पर काम नहीं हुआ तो इसके दूरगामी परिणाम अत्यंत घातक होगें। क्योंकि अब तक कचरे के निपटान की सिर्फ बातें हुई हैं।
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