![सुब्यवस्थित गैबियन बंध/ चेकडैम](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/hwp-images/check_dam_3_7.jpg?itok=lStNmPk5)
गुजरात के विभिन्न हिस्सों में पानी की उपलब्धता सामान्य नहीं है। राज्य के सभी हिस्सों में जल की उपलब्धाता सामान्य बनाए रखना एक चुनौती है। सत्तार वर्षीय भंजी भाई मथुकैया ने इस चुनौती को स्वीकार किया। वे चाहते थे कि ऐसे चेक डैम बनें जिनको किसान अपने सीमित साधनों की मदद से बना सकें। इसके लिए भंजी भाई ने रेलवे फलों की अर्धाचन्द्राकार संरचना का उपयोग करने का फैसला किया।
उन्होंने अपना पहला प्रयोग गांव में बहने वाली दराफद नदी पर किया। भंजी भाई ने नदी के दोनों छोरों तक 11 / 15 इंच के पत्थरों को थोड़ा-थोड़ा अंतर देकर जमा दिया। इनके बीच में नदी की रेत, छोटे-छोटे पत्थर व सीमेंट भर दिया और चेक डैम बनकर तैयार हो गया। इस चेक डैम को मात्र चार दिनों में पूरा कर लिया। पांच मजदूरों की सहायता से इसके निर्माण में 20 बोरी सीमेंट रेत का प्रयोग किया गया था। इस डैम की कुल लागत दस हजार रुपए आई। इससे उत्साहित होकर भंजी भाई ने दो अन्य चेक डैमों का निर्माण किया। दूसरा चेक डैम भी दराफद नदी पर ही बनाया गया। इसके निर्माण में कुल लागत 15,000 रुपए आई। इसे भंजी भाई ने गांव के 31 किसानों के साथ मिलकर एक संस्था के माध्यम से इकट्ठा किया था। तीसरा चेक डैम भंजी भाई ने कुछ अलग तरीके से बनाया। इसमें नदी के दोनों छोरों पर दीवारें खड़ी की गईं ताकि नदी का पानी अतिरिक्त रूप से बाहर निकल कर न बह जाए। भंजी भाई की कोशिश थी कि इन चेक डैमों को बनाने में आम किसानों की सहभागिता हो। इसलिए उन्होंने इसके लिए सरकारी मदद लेने की कोई कोशिश नहीं की। उन्होंने किसानों से ही इसके लिए धनराशि भी इकट्ठी की और उनसे ही श्रमदान भी करवाया।
भंजी भाई बताते हैं कि इन चेक डैमों की ताकत भार में न होकर इनकी संरचना में होती है। इसकी विशिष्ट संरचना पानी के तेज प्रवाह को पीछे धकेल कर पानी को कम मात्र में आगे बढ़ने देती है। उनका कहना है कि इनकी लागत भी अपेक्षाकृत कम है। इनके निर्माण के लिए भी किसी प्रकार से प्रशासन की मंजूरी का इंतजार नहीं करना पड़ता। स्थानीय लोगों की सहभागिता व उपलब्ध साधनों से बिना किसी इंजीनियर आदि के ही निर्माण संभव है। वहीं इन चेकडैमों के लाभ काफी हैं। मिट्टी का कटाव नहीं होता। सालभर तक पानी की उपलब्धता रहने के कारण किसानों को सिंचाई के लिए बरसात की राह नहीं देखनी पड़ती।
अब इस अनूठे एवं सफल प्रयोग के बाद चेक डैम की मदद से देश में हरित क्रांति लाना उनका एकमात्र उद्देश्य है। वे कहते हैं, 'प्रत्येक छोटी नदी में एक किलोमीटर की दूरी के बाद इनका निर्माण करवाना चाहिए ताकि सालभर नदी के प्रवाह को कम करके जल की उपलब्धता बनाए रखी जा सके। यह वर्तमान जल संकट के दौर में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।' अब भंजी भाई का यह अभिनव प्रयोग देश के अन्य भागों में भी आजमाया जाने लगा है।
राजस्थान के मोरारका फाउंडेशन ने भी जयपुर के समीप सियाफर गांव में ऐसा ही एक डैम भंजी भाई की मदद से बनवाया है। भंजी भाई को इस चेक डैम के निर्माण के लिए वर्ष 2002 में राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने राष्ट्रीय तकनीकी अविष्कार व परंपरागत ज्ञान पुरस्कार से सम्मानित भी किया है।
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