उत्तराखंड के टिहरी जनपद की भिलंगना घाटी में राज्य सरकार द्वारा ठीक खतलिंग ग्लेशियर से चीन की सीमा से सटे सीमांत गांव गंगी के नीचे रीह नामक स्थल तक कुल आधा दर्जन लघु विद्युत योजनाओं के सर्वे का कार्य इन दिनों प्रगति पर है। उल्लेखनीय है कि घनसाली के समीप फलेण्डा व घुत्तू के समीप देवलिंग नामक जगहों पर पहले ही 24-24 मेगावाट क्षमता वाले बांध बन चुके हैं। पर्यावरण से जुड़े शीर्ष कार्यकर्ताओं ने इन बांधों का तीव्र विरोध किया था और बांध प्रभावित दर्जनों गांवों के लोग आज स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
खतलिंग ग्लेशियर चीन की सीमा से सटा हुआ है। उत्तराखंड के गांधी कहलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता व राजनेता स्व. इन्द्रमणि बडोनी ने इस उपेक्षित किन्तु पर्यटन की दृष्टि से राष्ट्रीय महत्ता युक्त व राष्ट्र की संप्रभुता के लिए संवेदनशील इस क्षेत्र को पर्यटन की मुख्यधारा में लाने के लिए तत्कालीन आयुक्त श्री सुरेन्द्र सिंह पांगली के साथ मिलकर ऐतिहासिक खतलिंग महायात्रा का श्रीगणेश किया था। बड़ोनी जी के जीते जी देश भर के पर्यावरणविद्, संस्कृतिकर्मियों व सेनानी खतलिंग की यात्रा करते थे और खतलिंग को महादेव के पांचवे धाम के रूप में विकसित करने का स्वप्न देखते थे, किन्तु स्व. बडोनी की मृत्यु और पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के बाद खतलिंग महायात्रा, खतलिंग मेले में बदल गई और विगत 8-10 वर्षों से यहां लोगों का आवागमन एकदम बंद होने से इस क्षेत्र पर चीन के कब्जा कर लेने के समाचार मीडिया में आने लगे।
स्थानीय जनता में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित इन आधा दर्जन बांधों के प्रति आक्रोश इसी कारण से है कि, राज्य के शासन में संलग्न सभी सरकारों के मंत्री श्रीमती इंदिरा हृदयेश, हीरा सिंह बिष्ट, जनरल टी.पी. एस.रावत, मातवर सिंह कंडारी अथवा राज्य योजना आयोग में उपाध्यक्ष रहे वर्तमान सांसद विजय बहुगुणा हों अथवा वर्तमान केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री श्री हरीश रावत सभी ने यहां आकर खतलिंग सहस्त्रताल क्षेत्र को पांचवां क्षेत्र घोषित किया किन्तु यह क्षेत्र फिर भी प्रशासनिक दृष्टि से उपेक्षित रहा और अब निजी स्वार्थों के लिए जनप्रतिनिधि व राजनेता बांधों के विकास का पर्याय बता रहे हैं।
खतलिंग ग्लेशियर के ठीक नीचे 11 मेगावाट की खरसोली विद्युत परियोजना, उसके थोड़ी दूर पर रुद्रादेवी, कल्याणी, कंजरी, विरोद व रीड में भिलंगना नदी पर इन लघु बांधों का निर्माण प्रस्तावित है। दक्षिण भारत की कंपनी टंडा मुंडी सहित कई निजी बांध कंपनियों को निर्माण का ठेका दिया जा रहा है।
जून माह के द्वितीय सप्ताह में स्थानीय स्वैच्छिक संस्था भिलंगना समग्र विकास मंच, भिलंगना क्षेत्र विकास समिति व पर्वतीय लोक विकास समिति की स्थानीय इकाइयों के सामूहिक प्रयास से घुत्तू एवं बुगीलाधार में जनचेतना सम्मेलन आयोजित किए जिसका निष्कर्ष यह था कि जब भिलंगना हाइड्रोपावर घुत्तू के उपर देवलिंग बांध के बनने से दो दर्जन गांवों में नदी के प्रवाह पर प्रश्नचिह्न लग गया है और 30 गांवों के लगभग एक दर्जन से भी अधिक श्मशान घाटों में भिलंगना नदी के दोनों ओर मृतक संस्कार पूर्ण करने के लिए पानी नहीं है और लंगी सुरंग के अंदर होने वाले विस्फोटों से सारे परंपरागत जलस्रोत सूख चूके हैं और कई गांवों के मकानों में दरारें आ गई हैं। यह सत्य है कि विकास के लिए प्रकृति का दोहन आवश्यक है किन्तु एक ओर हम पर्यावरण सुरक्षा का ढोंग करें और दूसरी ओर हिमालय के सिर पर ही कुल्हाड़ी मारें यह उचित नहीं है। अभी इन बांधों का सर्वेक्षण का कार्य चल रहा है किन्तु नीति नियंताओं की नीयत पर शक तो जरूर होता है कि ओर सामरिक दृष्टि से संवेदनशील यह क्षेत्र जो चीन की सीमा रेखा पर स्थित है और दूसरी ओर इसका आध्यात्मिक महत्व है, खतलिंग महादेव का पावन स्थल है और यहां स्थित सहस्त्रताल यानी हजारों प्राकृतिक जल के उष्ण, शीत एवं मनोहारी ताल भारी विस्फोटों को कैसे झेलेंगे।
टिहरी जिला पंचायत के अध्यक्ष इंजीनियर रतनसिंह गुनसोला कहते हैं कि हम सरकार सहित मुख्यमंत्री जी से भी बात करेंगे, अभी सर्वे का कार्य है जो प्राथमिक चरण है। यह किसी एक घाटी अथवा गंगी गांव का विषय नहीं है यह राष्ट्रीय मुद्दा है और हिमालय के अस्तित्व का मसला है। स्वयं मुख्यमंत्री डा. निशंक इसमें हस्तक्षेप कर इसे रुकवा देंगे ऐसा हमारा विश्वास है।
वास्तव में अप्रतिम हरीतिमा से युक्त माट्या, बुग्याल, खतलिंग, सहस्त्रताल व पंवाली कांठा जैसे सुरम्य राष्ट्रीय महत्व के पर्यटन स्थलों का विकास करके राज्य सरकार ज्यादा लाभ प्राप्त कर सकती है। घुत्तू से लोक निर्माण विभाग की परंपरागत पंवाली-नियुगीनारायण-केदारनाथ सड़क के निर्माण से यात्रा मार्गों का दबाव भी कम होगा और इस क्षेत्र में चीन की घुसपैठ की आशंका भी कम होगी।
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