अभिषेक सिंघल
मीलों फैली सांभर झील में हजारों प्रवासी पक्षियों की मौत की आहट का सन्नाटा पसरा है। झील के पेट में झपोक बाँध से लेकर मां शाकम्भरी मन्दिर के सामने और पहाड़ी के पीछे झील में सौ मीटर अन्दर जाते ही हर दस फीट के दायरे में प्रवासी पक्षियों के शव दिखाई देते हैं। यही हाल नागौर जिले में नावा क्षेत्र का भी है। इस आपदा का दायरा कई किलोमीटर का क्षेत्र है। ग्रामीणों के मुताबिक पक्षियों की मौत का सिलसिला कई दिनों से जारी है। झील में सांभर साल्ट नमक उत्पादन की गतिविधियाँ संचालित करता है। इसके अलावा भी प्रशासन की अन्य एजेंसियाँ हैं, लेकिन किसी को भी मूक पक्षियों की मौत नजर नहीं आई। अब यह आपदा सुर्खिया बनी तो प्रशासन की नींद खुल रही है।
प्रदेश में वन्य जीवों, पशु-पक्षियों के संरक्षण की जिम्मेदारी जिन्हें है वे उस विश्वनोई समाज से आते हैं जिसने पर्यावरण और जीव मात्र की रक्षा के लिए कई बार सबकुछ दाव पर लगाया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री और वन मंत्री दोनों ही मारवाड़ से ताल्लुक रखते हैं और सांभर झील भी मारवाड़-ढूंढाड़ के संधिस्थल पर है। पशु-पक्षी संरक्षण को प्रथम रखने की मारवाड़ और ढूंढाड़ सहित पूरे प्रदेश में प्राचीन परम्परा रही है। हजारों प्रवासी पक्षियों के आगमन-प्रवास व विशिष्ट पर्यावास के चलते यह झील क्षेत्र रामसर साइट भी घोषित है। ऐसे में इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में हजारों मील से उड़ कर आए मेहमान परिंदों का यूँ एकाएक बड़ी तादात में मृत होना और उस पर जिम्मेदारों का लापरवाह अंदाज कई सवाल खड़े करता है। सांभर साल्ट जब नमक उत्पादन की व्यावसायिक हितपूर्ति में जुटा है तो झील के पर्यावास और वहाँ के मेहमान परिंदों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उसे लेनी होगी। अन्यथा सरकार को चाहिए कि इस सम्पूर्ण झील को ही संरक्षित क्षेत्र घोषित कर वन विभाग के अधीन करें ताकि वन विभाग यहाँ परिंदों की आवश्यकताओं के अनुरूप स्थाई इंतजाम कर सके।
अब सरकारी तंत्र जागा है और अमला झील के पेटे में उतरा है, लेकिन आधे अधूरे इंतजामों के साथ। अभी भी मृत पक्षियों के शवों और घायल पक्षियों को निकालने के लिए जितने संसाधनों को दरकार है उसके मुकाबले बहुत कम संसाधन हैं। राहत इंतजाम के नाम पर प्रशासन के अलग-अलग विभागों की इक्का-दुक्का टीमें पक्षियों के शवों को इकट्ठा करने में जुटी हैं। बदइंतजामी की हद तो यह है कि जो पक्षी घायल हैं उनके इलाज के लिए करीब 25 किलोमीटर दूर वन विभाग की काचरोदा नर्सरी में अस्थाई इतंजाम किए गए हैं। यदि यह शिविर झील के निकट ही लगाया जाए तो पक्षियों को जल्द चिकित्सकीय सहायता मिल सकेगी। पक्षियों की मृत्यु के कारण और उसके अनुरूप इंतजाम के लिए तो भले ही सरकार रिपोर्ट्स का इंतजार कर ले पर तत्काल राहत पहुँचाने के लिए इसकी आड़ लेना ठीक नहीं है।
एक मुद्दा झील के क्षेत्राधिकारी को लेकर उठ रहा है। जयपुर जिले और नागौर जिले के अधिकारी अपने-अपने हिस्से के इंतजाम की बात कह रहे हैं वहीं झील के बीच पक्षियों को मदद का इंतजार है। जरूरत है कि तत्काल झील को कई सेक्टर में बाँट कर प्रत्येक सेक्टर में समुचित इंतजाम करें ताकि आपदा फैलने से रुके। आश्चर्य है कि पक्षियों के इतने बड़े केन्द्र पर पक्षियों को पर्यटकों को दिखाने की तैयारियाँ तो खूब हैं लेकिन उन्हें चिकित्सकीय सुविधाएँ प्रदान करने के इंतजाम शून्य हैं। पर्यटन सुविधाओं के लिए करोड़ों खर्च करने वाली सरकार को पक्षियों के लिए भी स्थाई इंतजाम करना ही चाहिए। मारवाड़ में अभिवादन की ‘नून-प्रणाम’ की परम्परा है। अतः मुख्यमंत्री और वन मंत्री को ‘नून-प्रणाम’ का वास्ता है कि वे इन मूक मेहमानों की रक्षा के लिए अधिकारियों के बताए फौरी इंतजाम से ऊपर समय रहते सख्त एवं स्थाई कदम उठाएँ।
मंदिर के पीछे कदम कदम पर पड़े हैं मृत पक्षी
देवेंद्र सिंह राठौड़, राजीव श्रीवास्तव
विश्वविख्यात सांभर झील में आने वाले पक्षियों का इंतजार घर आने वाले मेहमानों की तरह रहता है। इस बार उनकी मौत से हर कोई दुखी है। मंदिर के पीछे झील किनारे कदम कदम पर मृत पक्षी पड़े हैं।
40 साल में हमने कभी इतने पक्षियों की मौत नहीं देखी। यह घटना बेहद दुखदायी है। यह कहना है सांभर झील स्थित प्राचीन मंदिर के पुजारी गौरी शंकर व्यास का। उन्होंने पत्रिका से बातीचीत करते हुए कहा कि इस बार पक्षियों की संख्या ज्यादा था और वे जल्दी भी आ गए थे। इससे लोग खुश थे। लेकिन 15-20 दिन से चल रहे मौत के मंज से सब परेशान हैं। इसमें साफ तौर पर प्रशासन की लापरवाही है। सूचना भी दे चुके, फिर भी नहीं चेते। वहीं स्थानीय निवासी सलामुद्दीन ने बताया कि झील क्षेत्र में कभी पक्षियों की मौत के बारे में किसी से सुना भी नहीं। संभवतः इनकी मौत पानी से हुई है। क्योंकि इस बार झील के उस भू-भाग में पानी भर गया था, जहां पहले नमक जमा हुआ था। वहीं वन्यजीव चिकित्सकों के मुताबिक रेस्क्यू में लाए गए कई पक्षियों के पैर में दिक्कत है। कुछ के पैर गायब मिले, तो कई लकवाग्रस्त हो गए। वहीं पशुपालन और वन विभाग के अधिकारी मौत का कारण स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार में हाथ में हाथ धरे बैठे हैं।
नमक बना दुश्मन
पक्षियों की मौत का कारण नमक ही है। झील क्षेत्र के झपोक से मंदिर तक करीब एक किलोमीटर की दूरी के नमक में रासायनिक परिवर्तनहो गया। इस बात का उल्लेख सासकटून विश्वविद्यालय के टीके बौलिंगर पी मिनेउ व एमएल विकस्टौम एक रिसर्च पेपर में कर चुके हैं। एक वाइल्ड लाइफ बुलेटिन में नमक का पक्षियों पर घातक असर के बारे में लिखा गया कि, खुराक में अत्याधिक नमक की मात्रा होने से हाइपरन्क्ट्रेमिया नामक असर पैदा होता है। जो पीने के सादे पानी की कमी से हो जाता है। इसका दूसरा नाम सोडियम इंटोक्सीकेशन है।
दूर बना दिया रेस्क्यू सेंटर
सांभर झील स्थित रतन तालाब से शाकंभरी माता मंदिर के समीप सर्वाधिक मृत पक्षी पाए गए। इसके बावजूद भी वन विभाग ने बीमार पक्षियों के बचाव के लिए कोई इंतजाम नहीं किए। वहीं रेस्क्यू सेंटर भी करीबन 10 किमी दूर बना दिया। जहां एकत्र करके पक्षी को भिजवाया जा रहा है। यह रेस्क्यू सेंटर रतन तालाब से करीब 18 किमी तो शाकंभरी माता मंदिर से 36 किमी दूर है। वहां इंतजाम भी नाकाफी नजर आए।
पर प्रजातियों पर खतरा
वन विभाग के मुताबिक मृत पक्षियों में सर्वाधिक विदेशी पक्षी हैं। इसमें ज्यादातर नार्थन शाउलर, काॅमन कूट, लिटिल टींक, कैंटिस प्लोवर, रफ, काॅमन टिल, ब्लैक हैड गल आदि प्रजातियां शामिल हैं। पशुपालन और वन विभाग के बड़े अफसर इस मामले में सुस्त नजर आ रहे हैं। अभी तक जिम्मेदार केवल 35 पक्षियों को ही बचा पाए हैं, जबकि तीन दिन में साढ़े चार हजार पक्षी दफन हो चुके हैं। मृत पक्षियों को उठाने, जीवित के इलाज के लिए स्टाफ बहुत कम है। इससे उपचार और मृत को दफनाने में देरी हो रही है।
यह है मौके की वर्तमान स्थिति
- माता मंदिर के पीछे झील क्षेत्र से लेकर रतन तालाब तक हजारों की तादाद में मृत पक्षी मिले।
- कई जगह पक्षियों के शव खराब अवस्था में दिखाई दिए।
- अन्य पक्षियों में संक्रमण की बढ़ी आशंका।
- दोनों विभाग केवल स्वयंसेवी संस्थाओं के भरोसे। अभी तक बता नहीं पा रहे हैं कि मौत का कारण और जीवित या मृत पक्षियों की संख्या।
- खासकर मृत पक्षियों में विदेशी प्रजातियां, एक फ्लेमिंगों भी बीमार हालात में मिला।
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