भेंट : अकाल का भोजन


धार्मिक महत्त्व होने के साथ ही भेंट के पौधे के सभी हिस्से स्वास्थ्य के रक्षक हैं। मेघालय में हो रहा है इसे विलुप्ति से बचाने का उपाय

भेंट के पूल के पकोड़ेठंड के मौसम की शुरुआत में बिहार में सफेद रंग के कमल का फूल बाजारों में बिकने आता है जिसे वहाँ की आम बोलचाल में भेंट का फूल कहा जाता है। भेंट के फूल को अंग्रेजी में ‘व्हाइट इजिप्शियन लोटस’ कहा जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम ‘निम्फिया लोटस’ है। इसकी भारतीय प्रजाति का वैज्ञानिक नाम ‘निम्फिया टेट्रागोना’ है और हिन्दी में इसे सफेद कमल या कुमुदिनी के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे पिग्मी वाटर लिली कहा जाता है। यह पूर्वी अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के कई हिस्सों में पाया जाता है।

सफेद कुमुदिनी का जिक्र वेदों में मिलता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार सफेद कमल पर विद्या की देवी सरस्वती विराजमान होती हैं। इसलिये उनकी पूजा में सफेद कुमुदिनी का इस्तेमाल किया जाता है। एक मान्यता के अनुसार इसका नाम भेंट का फूल इसलिये पड़ा क्योंकि इसका इस्तेमाल पूजा के समय देवी-देवताओं को भेंट के रूप में अर्पण करने के लिये किया जाता था।

कुमुदिनी को पहली बार वर्ष 1802 में ब्रिटेन के लॉडिजेंस नर्सरी में उगाया गया था। लॉडिजेंस नर्सरी 18वीं शताब्दी में जोचिम कौनराड लॉडिजेस द्वारा स्थापित ऐसी नर्सरी थी, जिसमें मुख्य रूप से अनोखे व असाधारण पौधे, झाड़ियाँ, फर्न और आर्किड उगाए और बेचे जाते थे। भेंट के फूल का इस्तेमाल अक्सर साफ पानी के एक्वेरियम प्लांट के तौर पर किया जाता है। कमल की अन्य प्रजातियों की तरह ही भेंट के पत्ते भी पानी के ऊपर तैरते हैं और फूल पानी से ऊपर खिलते हैं। भेंट के पौधे की ऊँचाई 45 सेमी तक होती है। यह मुख्यतः ऐसे तालाबों में पनपता है जिसका पानी साफ, गर्म, ठहरा हुआ और थोड़ा अम्लीय हो।

प्राचीन काल में मिस्र में भेंट के फूल की पूजा की जाती थी। वहाँ इसे सृष्टि के प्रतीक के तौर पर देखा जाता था। प्राचीन ग्रीस में इसे निष्कपटता और विनम्रता का प्रतीक माना जाता था। भेंट का फूल मिस्र का राष्ट्रीय फूल है और मिस्र के कॉप्टिक ईसाई समुदाय के ध्वज का एक अहम हिस्सा भी है। प्राचीन मिस्रवासी भेंट का फूल तालाबों और दलदलों में उगाते थे। प्राचीन मिस्र में इस फूल का इस्तेमाल अक्सर सजावट के लिये भी किया जाता था। उनकी मान्यता थी कि भेंट का फूल उन्हें ताकत और मजबूती प्रदान करता है। प्राचीन मिस्र के नवीन राज्य के उन्नीसवें वंश के तीसरे फैरो रामासेस द्वितीय की कब्र में भी इस फूल के अवशेष मिले हैं।

भेंट के पौधे की जड़ में अत्यधिक मात्रा में स्टार्च पाए जाने के कारण अफ्रीका के कुछ हिस्सों में इसे उबालकर, भूनकर या आटे की तरह पीसकर खाया जाता है। इसके बीज को भी भोजन में शामिल किया जाता है। भारत में भेंट का फूल, बीज और जड़ का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने के लिये किया जाता है। इसे भारत में अकाल के भोजन के रूप में भी जाना जाता है।

दिल्ली स्थित बहाई प्रार्थना स्थल ‘लोटस टेम्पल’ सफेद कमल के आकार का बनाया गया है। बहाई कमल मन्दिर का डिजाइन ईरानियन आर्किटेक्ट फरिबोर्ज सहबा ने किया था। दरअसल जब इस उपासना स्थल के निर्माण की योजना बनाई जा रही थी, तो इसका आकार ऐसा चुनने की बात की गई जो ज्यादातर धर्मों में स्वीकार्य हो। सफेद कमल की स्वीकार्यता हिन्दू और बौद्ध धर्मों के अलावा भी कई संस्कृतियों में है। इसलिये आखिरकार यह उपासना स्थल सफेद कमल के आकार का बनाने का निर्णय किया गया।

बांग्लादेश के राष्ट्रीय प्रतीक में सफेद कुमुदिनी को शामिल किया गया, क्योंकि यह बांग्लादेश का राष्ट्रीय पुष्प भी है। इसे वहाँ शाप्ला के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

बौद्ध धर्म की मान्यता के अनुसार सफेद कुमुदिनी आध्यात्मिक सिद्धि और मानसिक पवित्रता की स्थिति को दर्शाता है। वर्ष 2016 में प्रकाशित एडवर्ड हेजटेल शेफर की किताब “द गोल्डन पीचेस ऑफ समरकंद : अ स्टडी ऑफ त’अंग एग्जोटिक्स” के अनुसार सफेद कुमुदिनी हिन्दुओं की देवी लक्ष्मी का आसन होने के साथ ही अवलोकितेश्वर का भी आसन है। अवलोकितेश्वर महायान बौद्ध सम्प्रदाय के सबसे लोकप्रिय बोधिसत्वों में से एक हैं। चीन के दुन हुआंग नामक शहर में 10वीं शताब्दी में मिली एक चित्रकारी में भी अवलोकितेश्वर को सफेद कुमुदिनी पर विराजमान दिखाया गया है। पुस्तक के अनुसार चंद्रमा सफेद कुमुदिनी का देवता है, इसलिये चंद्रमा को कुमुदपति के नाम से भी जाना जाता है। सफेद कुमुदिनी रात के समय खिलता है और सूरज निकलने पर मुरझा जाता है।

लखनऊ स्थित बायोटेक पार्क के सीईओ प्रमोद टंडन द्वारा वर्ष 2010 में मेघालय में किए गए अध्ययन के अनुसार सफेद कुमुदिनी की यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। टंडन ने बताया कि इसके लिये अनियोजित मानवीय गतिविधियाँ जिम्मेदार हैं, जिसने इसके प्राकृतिक उत्पत्तिस्थान को काफी नुकसान पहुँचाया है। टंडन ने बताया कि शिलाँग स्थित नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्लांट बायोटेक्नोलॉजी ग्रुप द्वारा कुमुदिनी की इस प्रजाति के संरक्षण और संवर्धन के प्रयास किए जा रहे हैं।

औषधीय गुण


सफेद कुमुदिनी का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के रोगों के इलाज के लिये प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है। वर्ष 2014 में बायोमेड रिसर्च इंटरनेशनल नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार निम्फिया टेट्रागोना का सत्व दवा-प्रतिरोधी सालमोनेला जीवाणु के संक्रमण को दूर करने में कारगर है। सालमोनेला जीवाणु खाद्य विषाक्तता के लिये जिम्मेदार होता है। बांग्लादेश जर्नल ऑफ मेडिकल साइंस नामक जर्नल में जनवरी 2015 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार निम्फिया टेट्रागोना पौधे के सभी हिस्सों का इस्तेमाल साइबेरिया और चीन के पारम्परिक औषधि के तौर पर किया जाता है। गुर्दे की बीमारी में कुमुदिनी के पत्ते और डंठल का काढ़ा पीना फायदेमन्द होता है। कुमुदिनी की पंखुड़ियाँ ज्वरनाशक हैं और राईजोम दमा और फेफड़े के रोगों के उपचार में उपयोगी हैं। फरवरी 2016 में फार्माकोलोजी नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार निम्फिया टेट्रागोना त्वचा क्षय (झुर्रियाँ) को दूर रखने में भी कारगर है।

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