भौतिक पृष्ठभूमि
स्थिति एवं विस्तार :
ऊपरी महानदी बेसिन मध्य प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में स्थित है। इसका अंक्षाशीय विस्तार 19047’ उत्तरी अक्षांश से 23007’ उत्तरी अक्षांश और देशांतरीय विस्तार 80017’ पूर्वी देशांतर से 83052’ पूर्वी देशांतर तक 73,951 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। प्रशासनिक दृष्टि से इसके अंतर्गत बिलासपुर संभाग के बिलासपुर एवं रायगढ़ जिले (जशपुर तहसील को छोड़कर), रायपुर संभाग के रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव एवं बस्तर जिले के कांकेर तहसील का क्षेत्र आता है। इसकी जनसंख्या 1,33,26,396 (1991) व्यक्ति हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
ऐतिहासिक काल में ऊपरी महानदी बेसिन दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। रायगढ़ जिले के सिंघनपुर की गुफाओं तथा काबरा पहाड़ी में 50 हजार वर्ष तक के पुराने शिलाचित्र हुये हैं, (गुप्त 1973, 78) जिससे पता चलता है कि यह बेसिन 50 हजार वर्ष पूर्व से ही आबाद था। सन 1741 में इस बेसिन पर भोसला मराठों का अधिकार हुआ, परंतु अव्यवस्था के कारण यहाँ 1818 में अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया। सन 1830 में मराठों ने इस क्षेत्र पर पुन: अधिकार कर लिया। सन 1947 में इस क्षेत्र का विलय स्वतंत्र भारत में हो गया और यह मध्य प्रांत एवं बरार राज्य का हिस्सा बना। अंतत: सन 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के फलस्वरूप मध्यप्रदेश राज्य का हिस्सा बन गया।
भू-वैज्ञानिक संरचना :
भू-वैज्ञानिक संरचना, जल संसाधन विशेषताएँ एवं भू-गर्भजल के विकास में महत्त्वपूर्ण कारक है। ऊपरी महानदी बेसिन का मध्यवर्ती भाग कुडप्पा शैल समूह द्वारा निर्मित है, और सीमांत पठारी भाग में मुख्यतया धारवाड़ तथा गोंडवाना शैल समूह पाये जाते हैं। बेसिन के शैल समूह निम्नलिखित हैं -
(1) आद्य महाकल्पीय शैल समूह का विस्तार उच्च भूमि में है। इस क्रम की चट्टानों में रवेदार तथा रूपांतरित नीस की बाहुल्यता पाई जाती है। ये चट्टानें आर्थिक दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनमें अभ्रक, ग्रेफाइट आदि खनिज पाये जाते हैं। इसमें धारवाड़ समूह की चिल्पीघाट क्रम की अवसादी चट्टानें सम्मिलित हैं। दल्लीराजहरा क्षेत्र का लौह अयस्क का जमाव इसी शैल समूह में पाया जाता है।
(2) बेसिन के लगभग आधे भाग में कुडप्पा शैल समूह पाया जाता है। बेसिन के मध्य में इसके पंखाकार दृश्यांश पर छत्तीसगढ़ का मैदान निर्मित हुआ है। इस समूह के दो विभाग हैं :- निचली चंद्रपुर क्रम एवं ऊपरी रायपुर क्रम। चंद्रपुर क्रम 60 से 300 मीटर मोटी बलुआ पत्थर क्वार्टजाइट तथा कांग्लोमरेट आद्य शैल समूह के ऊपर विषम विन्यास के साथ पाये जाते हैं। रायपुर क्रम की चट्टानें अपेक्षाकृत अधिक मोटी हैं। इसके अंतर्गत मुख्यत: शैल तथा चूना पत्थर मिलती है। चूना पत्थर कहीं-कहीं 650 मीटर तक मोटी हैं। यहाँ का चूना पत्थर सीमेंट स्तर का है। जिसके आधार पर बेसिन में सीमेंट उद्योगों का विकास हुआ है।
1 नवंबर 1956 को जब पुनर्गठित मध्य प्रदेश अस्तित्व में आया उस समय राज्य में 43 जिले थे। 1972-73 में दो और जिले भोपाल जिला, सिहोर जिले में से और राजनांदगांव जिला दुर्ग जिले में से अलग कर बनाया गया और म. प्र. में कुल 45 जिले हो गये। इसी तरह 25 मई 1998 एवं 30 जून 1998 को म. प्र. में जिलों का पुनर्गठन किया गया और 16 नये जिले बनाये गये। वर्तमान में छत्तीसगढ़ में निम्नलिखित जिले हैं - रायपुर, धमतरी, महासमुन्द, बिलासपुर, जांजगीर, कोरबा, बस्तर, कांकेर, दन्तेवाड़ा, जशपुर, राजनांदगांव, कवर्धा, सरगुजा एवं कोरिया (पश्चिम सरगूजा बैकुण्ठपुर)। चूँकि आंकड़ों का संकलन पुरानी प्रशासनिक इकाइयों के आधार पर किया गया है। अत: संपूर्ण शोध प्रबंध में इन्हीं प्रशासनिक इकाइयों के आधार पर वर्णन किया गया है।
सारिणी क्रमांक - 1.1 (अ) ऊपरी महानदी बेसिन - प्रशासनिक विवरण, 1991 | |||||
क्र. | जिला | तहसील | विकासखण्ड | कुल क्षेत्रफल (वर्ग किमी.) | जनसंख्या |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 |
1 | 1 बिलासपुर 37,93,866 | 1 बिलासपुर
2. बिल्हा 3. तखतपुर 4. मुंगेली 5. लोरमी 6. पंडरिया
7. जांजगीर
8. चापा
9. पामगढ़ 10. सक्ति
11. डभरा 12. कोटा 13. पेण्ड्रारोड
14. कटघोरा
15. कोरबा | 1 बिलासपुर 2 मस्तुरी 3 मारवाही 1. बिल्हा 1. तखतपुर 1. मुंगेली 1. लोरमी 1. पंडरिया 2. पथरिया 1. जांजगीर 2. अकलतरा 1. चांपा 2. बलौदा 1. पामगढ़ 1. सक्ति 2. मालखरौदा 3. जैजैपुर 1. डभरा 1. कोटा 1. पेण्ड्रारोड 2. गौरेला 1. कटघोरा 2. पौडीउपरोरा 1. कोरबा 2. करतला 3. पाली | 736.88 737.76 786.47 ---- 707.97 594.49 500.92 882.14 514.66 577.01 377.28 326.66 347.25 428.42 311.29 340.66 339.26 418.64 751.28 326.30 496.56 438.45 1,266.50 840.66 651.87 991.89 | 2,63,196 1,95,287 96,810 --- 1,71,963 1,36,867 1,52,626 1,52,223 1,10,599 1,67,220 1,03,344 88,719 1,01,463 1,04,608 96,069 1,00,626 1,11,152 1,17,476 1,24,910 53,201 71,983 1,66,960 1,35,901 1,19,916 1,08,966 1,32,347 |
योग | 15 तहसील | 26 वि. ख. | 14,751.07 | 31,34,695 | |
2. | रायगढ़ (जशपुर तहसील को छोड़कर) 16,06,355 | 1 रायगढ़
2. खरसिया 3. सारंगढ़
4. घरघोड़ा
5. धर्मजयगढ़ 6. बगीचा 7. कुनकुरी | 1. रायगढ़ 2. पुसौर 1. खरसिया 1. सारंगढ़ 2. बरमकेला 1. घरघोड़ा 2. तमनार 3. लैलूंगा 1. धर्मजयगढ़ 1. बगीचा 1. कुनकुरी | 487.20 400.77 398.02 530.23 463.84 456.26 433.04 507.85 1188.95 1406.13 451.55 | 1,01,889 1,04,412 93,048 1,54,934 1,15,643 55,015 68,991 96,790 1,41,052 1,29,311 71,592 |
क्र. | जिला | तहसील | विकासखण्ड | कुल क्षेत्रफल (वर्ग किमी.) | जनसंख्या |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 |
2. | 2. रायगढ़ | 7. कुनकुरी
8. पत्थलगांव | 2. फरसाबहार 3. दुलदुला 4. कांसाबेल 1. पत्थलगांव | 619.98 421.14 440.91 723.05 | 89,069 40,064 61,796 1,35,244 |
| योग - | 8 तहसील | 15 वि. खंड | 90,22.92 | 26,69,805 |
3. | 3. राजनांदगांव 14,39,951 | 1. राजनांदगांव 2. कवर्धा
3. मोहला 4. छुईखदान 5. खैरागढ़ 6. डोंगरगढ़ 7. डोंगरगांव
8. अंबागढ़ | 1. राजनांदगांव 1. कवर्धा 2. बोड़ला 3. सहसपुर 1. मोहला 1. छुईखदान 1. खैरागढ़ 1. डोंगरगढ़ 1. डोंगरगांव 2. छुरिया 1. अंबागढ़ 2. मानपुर | 577.07 518.69 781.01 614.69 698.40 925.61 800.01 751.08 471.83 800.19 536.90 898.94 | 1,11,045 1,12,922 1,14,795 97,571 65,801 1,06,682 1,17,876 1,17,877 1,00,058 1,26,103 78,898 63,939 |
| योग | 8 तहसील | 12 वि. खण्ड | 8154.00 | 12,10,567 |
4. | 4. दुर्ग 23,97,134 | 1. दुर्ग 2. धमधा 3. गुण्डरदेही 4. पाटन 5. बालोद 6. गुरुर 7. साजा 8. बेमेतरा 9. बेरला 10. नवागढ़ 11. डौ. लोहारा | 1. दुर्ग 1. धमधा 1. गुण्डरदेही 1. पाटन 1. बालोद 1. गुरुर 1. साजा 1. बेमेतरा 1. बेरला 1. नवागढ़ 1. डौ. लोहारा 2. डौण्डी | 499.75 826.31 677.69 732.66 302.89 402.47 719.72 701.79 777.14 629.69 981.27 498.81 | 6,54,813 1,60,085 1,51,554 2,24,151 76,014 1,06,814 1,28,564 1,21,621 1,23,939 1,30,492 1,42,438 1,46,714 |
| योग | 11 तहसील | 12 वि. खण्ड | 7650.21 | 15,49,007 |
5. | 5. रायपुर 39,08,042 | 1. रायपुर
2. अभनपुर 3. तिल्दा 4. बलौदा बाजार 5. कसडोल | 1. धरसींवा (राय) 2. आरंग 1. अभनपुर 1. तिल्दा 1. बलौदा बाजार 2. पलारी 1. कसडोल | 606.42 879.62 589.81 718.88 623.81 544.42 678.12 | 1,32,962 1,89,512 1,35,815 1,42,484 1,49,991 1,33,026 1,38,615 |
क्र. | जिला | तहसील | विकासखण्ड | कुल क्षेत्रफल (वर्ग किमी.) | जनसंख्या |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 |
5 | 5. रायपुर | 6. सिमगा 7. भाटापारा 8. बिलाईगढ़ 9. धमतरी
10. नगरी 11. कुरुद 12. महासमुंद 13. पिथौरा 14. बागबाहरा 15. सरायपाली
16. गरियाबंद (बिंद्रानवागढ़)
17. देवभोग 18. राजिम | 1. सिमगा 1. भाटापारा 1. बिलाईगढ़ 1. धमतरी 2. मगरलोड 1. नगरी 1. कुरुद 1. महासमुंद 1. पिथौरा 1. बागबाहरा 1. सरायपाली 2. बसना 1. गरियाबंद 2. छुरा 3. मैनपुर 1. देवभोग 1. राजिम | 584.11 455.98 679.43 573.64 401.91 489.27 563.91 782.89 856.90 896.03 725.03 570.39 694.65 718.63 634.21 297.84 474.16 | 11,5,792 94,263 1,49,469 1,36,206 84,578 1,14,787 1,39,104 1,45,896 1,57,205 1,38,155 1,35,151 1,35,166 62,165 83,215 88,339 69,264 115,656 |
| योग | 18 तहसील | 24 वि. खण्ड | 14,998.36 | 39,08,042 |
6 | 6. बस्तर | 1. कांकेर 1,81,303 | 1. कांकेर 2. नरहरपुर | 523.23 719.07 | 71,075 89,571 |
| योग | 1. तहसील | 2. वि. खण्ड | 1,242.03 | 1,60,646 |
| ऊपरी महानदी बेसिन (73.915) | 61 तहसील | 90 वि. खण्ड | 55,818.86 | 1,33,26,396 |
स्रोत – जनगणना निदेशालय, म. प्र., भोपाल |
सारिणी क्रमांक – 1.1 (ब) ऊपरी महानदी बेसिन – प्रशासकीय विवरण, 1991 | ||||||||||
क्र. | जिला | कुल क्षेत्रफल (वर्ग किमी) | जनसंख्या (1991) | जनसंख्या वृद्धि दर (1981-91) | जनसंख्या घनत्व (व्व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) | गाँवों की संख्या | पंचायतों की संख्या | विकासखंड की संख्या | तहसील की संख्या | नगरों की संख्या |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 |
1. 2.
3. 4. 5. 6. | बिलासपुर रायगढ़ (जशपुर तह. को छोड़) राजनांदगांव दुर्ग रायपुर बस्तर (कांकेर तह.) | 19,897.00 11,879.00 11,127.00 8,537.00 21,258.00 1,253.00 | 37,93,566 16,06,355 14,39,915 23,97,134 39,08,042 1,81,348 | 28.45 19.34 23.34 26.80 26.90 23.25 | 191 135 129 281 184 145 | 3,588 2,593 2,406 1,851 4,065 220 | 1,436 742 606 879 1,488 61 | 25 15 12 12 24 2 | 15 8 8 11 18 1 | 26 6 8 2 15 1 |
| योग बेसिन | 73,951,00 | 1,33,26,396 | 24.84 | 180 | 14,723 | 5,239 | 90 | 61 | 68 |
| मध्य प्रदेश | 4,43,446.00 | 6,61,81,170 | 26.84 | 149 | 76,220 | 30,922 | 459 | 322 | 465 |
स्रोत – जनगणना निदेशालय, म. प्र., भोपाल |
(3) गाढ़वाना शैल समूह बेसिन के उत्तरी उच्च भूमि में हसदो, माद तथा केलो नदी घाटियों में विस्तृत है। इसमें बलुआ, पत्थर तथा शैल चट्टानें पाई जाती हैं। शैल सस्तरों के बीच-बीच में कोयले की परतें पाई जाती है।
(4) दफ्फन दरारी ज्वालामुखी उद्वेनों से नि:सृत बेसाल्ट चट्टानें प्रदेश के उत्तर पश्चिम सीमा पर मैकल श्रेणी लोरमी पठार में पाये जाते हैं।
अन्य शैल समूह में रायोलाइट-फेल्साइट (विंध्य समूह) का दृश्यांश प्रदेश की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर क्रिटेशियस कल्पीय चुना पत्थर का दृश्यांश बिलासपुर जिले में गौरेला के पश्चिम में और प्लास्टोसीन युगीन प्राचीन जलोढ़ लैटराइट उत्तर-पूर्व में उदयपुर की पहाड़ियों के एक छोटे से क्षेत्र में पाया जाता है।
उच्चावच :
ऊपरी महानदी बेसिन पूर्व की ओर थोड़ी झुकी हुई तस्तरी की भांति है। इसका केंद्रीय भाग समुद्र सतह से लगभग 300 मीटर तक ऊँचा है। इस भाग में उच्चावच कम है तथा धरातल समतल प्राय: है। बेसिन की उत्तरीय सीमा पर ऊँचाई कहीं-कहीं 1000 मीटर से भी अधिक है। उच्चावच की दृष्टि से बेसिन को दो उपविभागों में बाँटा जा सकता है :- 1. केंद्रीय पंखाकार छत्तीसगढ़ का मैदान, और 2. सीमांत की उच्चभूमि।
छत्तीसगढ़ का मैदान 31,600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इसकी उत्पत्ति एवं विकास कुडप्पा समूह की क्षैतिज अवसाद शैलों पर महानदी तथा इसकी सहायक नदियों के अपरदन के फलस्वरूप हुआ है। यह उप प्रदेश बेसिन का हृदय स्थल है। इसकी ऊँचाई 220 से 330 मीटर तक है।
इसका धरातल समतलप्राय: है। इसका औसत ढाल 10 है इसके अंतर्गत हसदो-मांद का मैदान, बिलासपुर का मैदान, शिवनाथ पार का मैदान, महानदी - शिवनाथ दोआब तथा महानदी पार क्षेत्र आता है।
सीमांत की उच्चभूमि, छत्तीसगढ़ के मैदान को घेरे हुए है। यह उच्च भूमि आद्य महाकल्पीय, गोंडवाना, दक्कन ट्रेप इत्यादि शैल समूहों पर निर्मित है। इसका विस्तार 36,464 वर्ग किलोमीटर में है। इसकी ऊँचाई 300 से 1,000 मीटर तक है। इसकी ऊँचाई मैदानी सीमा से किनारे की ओर बढ़ती जाती है भूवैज्ञानिक संरचना में विविधता और नदियों द्वारा विच्छेदन के कारण इस उच्चभूमि को निम्नलिखित तीन विभागों में बाँटा जा सकता है :-
1. उत्तरी उच्चभूमि - उत्तरी उच्चभूमि का विस्तार रायगढ़ और बिलासपुर जिले के उत्तरी भाग में पठारी एवं पहाड़ी उच्चभूमि द्वारा निर्धारित है। हसदो, अरपा और मांद नदियाँ उच्च भागों को विभाजित कर लोरमी पठार, पेण्ड्रा पठार, छुरी और रायगढ़ पहाड़ी क्षेत्र का निर्माण करती है। इन उच्च प्रदेशों की ऊँचाई 700-1000 मी. तक है।
2. मैकल श्रेणी - मैकल श्रेणी सतपुड़ा पर्वत का पूर्वी कगार है। इसकी ऊँचाई 1000 मीटर है। यह नर्मदा अपवाह प्रणालियों के मध्य जल विभाजक बनाती है। इसमें कई ऊँचे कगार है, जिन्हें घाट कहा जाता है जैसे - केपमर्घ घाट, बज्रपानी घाट और चिल्पी घाट। यह श्रेणी बिलासपुर और राजनांदगांव जिले की सीमा पर एक दीवाल की तरह है।
3. दक्षिणी उच्चभूमि - दक्षिणी उच्चभूमि का विस्तार राजनांदगांव, दुर्ग और रायपुर जिले के दक्षिणी भाग में है। इसकी ऊँचाई 300 से 950 मीटर तक है। इसमें सबसे ऊँचा भाग राजहरा पहाड़ (950 मीटर) है। दक्षिणी पूर्वी भाग में सोनबेरा पठार (943 मीटर), सिहावा कांकेर पहाड़ी (586 मीटर) और बसना पहाड़ी (300 मीटर) है। यहाँ स्थलाकृति विषमताएँ बहुत है। दक्षिण में सिहावा की पहाड़ी महानदी का उद्गम है।
अपवाह :
अपवाह का विकास धरातलीय संरचना, मिट्टी, भूतल का ढाल, जल की मात्रा एवं जल प्रवाह का वेग इत्यादि अनेक कारकों पर निर्भर करता है। महानदी प्रदेश की प्रमुख नदी है। यह छत्तीसगढ़ के 58.48 प्रतिशत क्षेत्र के जल का संग्रहण करती है।
ऊपरी महानदी बेसिन में प्रमुख रूप से महानदी एवं उसकी सहायक नदी शिवनाथ, हसदो, मांद, पैरी, अरपा, खारुन, जोक, केलो एवं तेल इत्यादि नदी का अपवाह प्रतिरूप है। ये नदियाँ सीमांत उच्चभूमि से निकलकर केंद्रीय मैदान की ओर प्रवाहित होती है, इसके जल का निकास पूर्व की ओर है। महानदी अपनी सहायक नदियों के साथ पादपाकार अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करती है। यह रायपुर उच्चभूमि में सिहावा पहाड़ी से निकल कर उत्तर-पूर्व से पश्चिम की ओर 20 किमी तक बहती हुई बस्तर जिले में प्रवेश करती है, जहाँ कुछ दूर तक प्रवाहित होने के बाद उत्तर-पूर्व की ओर मुड़कर रायपुर जिले में प्रवेश करती है। यह नदी उत्तर पूर्व में शिवनाथ नदी के संगम तक प्रवाहित होकर प्रदेश से बाहर निकल जाती है। महानदी सततवाहिनी है। उल्लेखनीय है कि महानदी के उत्तरी-पूर्वी मार्क के दोनों किनारों पर तीव्र मोड़ है, जिससे नदी सरिता अपहरणों द्वारा विकसित हुई है। इसके तट पर राजिम, सिरपुर, शिवरीनारायण जैसे कुछ ऐतिहासिक स्थल है। इसके दक्षिणी किनारे से सुखा, जोंक एवं पैरी सहायक नदियाँ मिलती है।
महानदी बेसिन के उत्तर पश्चिमी सीमा पर पेन्ड्रा पठार में गंगा नदी की सहायक सोन का अपवाह क्षेत्र, पश्चिमी किनारे पर मैकल श्रेणी में नर्मदा नदी की सहायक बंजर का अपवाह क्षेत्र और दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर राजनांदगांव उच्चभूमि में गोदावरी नदी की सहायक कोटरी तथा बाघ के अपवाह क्षेत्र हैं।
महानदी की प्रमुख सहायक नदी शिवनाथ है जो राजनांदगांव उच्चभूमि से निकलती है और लीलागर, अरपा, मनियारी, हाप, सुरही, अमनेर, खारुन इत्यादि सहायक नदियों के साथ बिलासपुर जिले के पश्चिम भाग तथा संपूर्ण राजनांदगांव तथा दुर्ग जिले को अपवाहित करती है। बेसिन में शिवनाथ नदी की कुल लंबाई 176 किमी एवं अपवाह क्षेत्र 2,025 वर्ग किमी है। महानदी की अन्य सहायक नदियाँ उत्तर से आकर मिलने वाली हसदो तथा मांद और दक्षिण से आकर मिलने वाली पैरी, जोंक, सुरगी तथा तेल हैं। सुरगी तथा तेल प्रदेश के बाहर मुख्य नदी में मिलती हैं।
महानदी की लंबाई रायपुर जिले में 256 किमी है इसका जल संग्रहण क्षेत्र 8200 वर्ग किमी है। इसकी औसत चौड़ाई शिवरी नारायण के पास शिवनाथ नदी के मिलने से 1400 मीटर हो जाती है। इस नदी में क्षेत्र के अनेक छोटे-बड़े नाले के मिलने से अपवाह की गति तेज हो जाती है। इनमें प्रमुख नाला सीतानदी, छुरा, नामदेव, सूखा, सीतली, दलाला एवं बिरली नाला है। ये सभी नाले पूर्वी किनारे से आकर नदी में मिलते हैं। इसकी कुल लंबाई 980 किलो मीटर है। महानदी का अपवाह क्षेत्र रायपुर जिले में अधिक (27.91 प्रतिशत) एवं बस्तर जिले के कांकेर में कम (3.51 प्रतिशत) क्षेत्र में है। खारुन नदी रायपुर जिले की पश्चिमी सीमा बनाते हुए बहती है तथा सिमगा के पास शिवनाथ में आकर मिल जाती है। यह 101 किमी लंबी है एवं इसका जल संग्रहण क्षेत्र 2,350 वर्ग किलोमीटर है।
पैरी नदी का उद्गम स्थान बिंद्रा नवागढ़ तहसील का माढ़ीगाद (मैनपुर) है। यह नदी अपने उद्गम स्थान से उत्तर-पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है और लगभग 126 किलोमीटर बहने के बाद गरियाबंद से 5 किमी आगे मालगांव के पास सोंढूर में मिल जाती है। इस नदी पर सिकासार बांध बनाया गया है। इसकी लंबाई 140 किमी एवं जल ग्राफ क्षेत्र 2,975 वर्ग किलोमीटर है।
जोंक नदी पूर्व में उड़ीसा राज्य के गौरागढ़ पहाड़ी से निकलती है तथा रायपुर जिले के महासमुंद तहसील से प्रवाहित होते हुए बलौदा बाजार तहसील में प्रवेश कर उत्तर की ओर महानदी में मिल जाती है। इसकी लंबाई 129 किलो मीटर एवं जल संग्रहण क्षेत्र 2,100 वर्ग किलो मीटर है। सुरंगी नदी, पूर्वी भाग में स्थित शिशुपाल की पहाड़ी से निकलकर दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। इसका सामान्य प्रवाह उत्तर से दक्षिण की ओर है। इस नदी की लंबाई 85 किलो मीटर एवं जल संग्रहण क्षेत्र 1,150 वर्ग किलो मीटर है।
तांदुला नदी दुर्ग एवं रायपुर जिले में प्रवाहित होती है। इस नदी पर बालोद के समीप तांदुला जलाशय का निर्माण किया गया है। इस नदी की लंबाई 111 किलोमीटर एवं जल संग्रहण क्षेत्र 240 वर्ग किलो मीटर है।
खरखरा नदी दुर्ग जिले से प्रवाहित होती है। यह दक्षिणी पहाड़ी से निकलकर 30 किलोमीटर उत्तर की ओर बहती हुई शिवनाथ नदी में मिल जाती है। इस नदी पर भी बांध बनाया गया है। जिसमें पूरक नहर निकाल कर तांदुला नहर से जोड़ा गया है। इसकी लंबाई 35 किलो मीटर एवं जल संग्रहण क्षेत्र 570 वर्ग किमी है। इस नदी के जल से भिलाई इस्पात संयंत्र को जलापूर्ति की जाती है।
हसदो नदी की लंबाई 233 किलोमीटर एवं जल संग्रहण क्षेत्र 3,500 वर्ग किलो मीटर है। हसदो एवं मांद उत्तर की ओर तथा पैरी और जोंक दक्षिण की ओर प्रवाहित होती हुई महानदी में मिलती है। विभिन्न दिशाओं के उच्च प्रदेशों से प्रारंभ होकर ये नदियाँ बेसिन को विभाजित करती हुई संपूर्ण मैदानी और पहाड़ी भागों को उपविभागों में विभाजित करती है। मांद एवं अरपा नदी की लंबाई 39 किलोमीटर एवं जल संग्रहण क्षेत्र 7,521 वर्ग किलो मीटर है, लीलागर, सोन का प्रवाह क्षेत्र 2.32 वर्ग किमी, मनियारी 109 (725 वर्ग किमी) हाफ-बोराई नदी की लंबाई 18 किमी (2,535 वर्ग किमी) है। ये सभी नदियाँ बिलासपुर जिले में प्रवाहित होती है।
बेसिन के कुछ क्षेत्र में गंगा नदी की सहायक सोन का अपवाह क्षेत्र है। मैकाल श्रेणी में नर्मदा नदी की सहायक बंजर में अपवाह क्षेत्र और राजनांदगांव की उच्च भूमि में गोदावरी नदी की सहायक कोटरी तथा बाघ के अपवाह क्षेत्र हैं। इन सभी के अपवाह क्षेत्रों का विस्तार प्रदेश में मात्र 5.81 प्रतिशत है।
जलवायु :
ऊपरी महानदी बेसिन की जलवायु उष्ण कटिबंधीय मानसूनी है। शुष्क शीतल शीत ऋतु, गर्म ग्रीष्म ऋतु और पर्वतीय वर्षा से प्रभावित वर्षा ऋतु इस प्रदेश की प्रमुख विशेषताएँ हैं। प्रदेश की जलवायु उष्ण एवं आर्द्र है।
तापमान :
ऊपरी महानदी बेसिन में तापमान मैदान की तुलना में उच्च भूमि में अधिक रहता है। यहाँ ठंडा महीना दिसम्बर है। दिसम्बर में पेंड्रा पठार पर स्थित पेंड्रा का औसत तापमान 17.20 सेल्सियस रहता है जबकि रायपुर का तापमान 20.30 सेल्सियस तथा रायगढ़ का 20.90 सेल्सियस होता है। बेसिन में न्यूनतम तापमान फरवरी में 7.20 सेल्सियस राजनांदगांव में अंकित किया गया है। फरवरी में मई तक तापमान में वृद्धि पाई जाती है। मई सबसे गर्म महीना है। इस समय औसत तापमान पेंड्रा में 32.70 सेल्सियस रायपुर में 35.60 सेल्सियस और रायमगढ़ में 35.90 सेल्सियस होता है। बेसिन में अधिकतम मई माह में 46.20 सेल्सियस दुर्ग में अंकित किया गया है। जुलाई से सितंबर तक तापमान में विशेष परिवर्तन नहीं होता है, अक्टूबर के बाद तापमान तेजी से कम होने लगता है और दिसंबर में न्यूनतम हो जाता है।
वर्षा :
ऊपरी महानदी बेसिन में वार्षिक वर्षा 111 से 160 सेंटीमीटर होती है। न्यूनतम वर्षा 111 सेंटीमीटर शिवनाथ - पार में कवर्धा के आस-पास तथा अधिक वर्षा 160 सेंटीमीटर रायपुर उच्चभूमि के पूर्वी भाग में एवं उदयपुर की पहाड़ियों के दक्षिणी भागों में होती है। कुल वर्षा का 92 प्रतिशत जून से अक्टूबर के मध्य होती है। जुलाई एवं अगस्त अधिक वर्षा के महिने हैं। कवर्धा क्षेत्र में कम वर्षा होने के कारण प्रमुख है :- 1. ऊँची मैकल श्रेणी का पूर्वी भाग एक वृष्टि छाया प्रदेश है, एवं 2. बंगाल की खाड़ी मानसूनी हवाएँ यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते क्षीण हो जाती है।
वार्षिक वर्षा की मात्रा में एक वर्ष से दूसरे वर्ष विषमता पाई जाती है। वार्षिक वर्षा के वितरण के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि 500 मिलीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्र, राजनांदगांव, डोंगरगढ़, दक्षिणी रायपुर, आरंग, अभनपुर, महासमुंद एवं बागबाहरा है। 500-800 मिलीमीटर वर्षा बोड़ला, कवर्धा, राजनांदगांव, छुईखदान, खैरागढ़, साजा, धमधा, छुरिया, डोंगरगांव, पाटन अभुनपुर का मध्य भाग है। 800-1100 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र बेसिन के उत्तरी पश्चिमी भाग एवं मध्यवर्ती भाग हैं। रायगढ़ जिले के बगीचा, कुनकुरी, लैलूंगा एवं तमनार में 1700 मिलीमीटर से अधिक वर्षा आंकी गई है। बेसिन में क्रमश: वार्षिक वर्षा का वितरण उत्तर से पूर्व की ओर बढ़ता जाता है।
मिट्टी :
बेसिन की अधिकतर मिट्टियाँ ग्रेनाइट, नीस एवं बलुवा पत्थर की चट्टानों से बनी हैं। ये उपोष्ण कटिबंधीय लाल-पीली वर्ग की मिट्टियाँ हैं। इन मिट्टियों में अधिकांश जीवांश उर्वरता की कमी मिलती है। इनमें नाइट्रोजन एवं पोटाश की मात्रा भी अधिक नहीं है। सामान्य सर्वेक्षण शस्य प्रतिरूप मिट्टियों के रंग संरचना, उच्चावच तथा उर्वरता के आधार पर मिट्टियों का निम्नानुसार स्थानीय विभाजन किया गया है :- 1. कन्हार या काली मिट्टी 2. मटासी मिट्टी 3. डोरसा मिट्टी 4. भाठा मिट्टी एवं कछार मिट्टी।
1. कन्हार या काली मिट्टी :
यह गहरी काली चूना पोटाश, जीवांश एवं लौहयुक्त मिट्टी है। इसका पी-एच मान 7.5 से 7.7 के बीच होता है। यह मिट्टी क्षारीय होती है। यह मिट्टी महानदी, शिवनाथ, खारून, तेल एवं जोंक नदी के किनारे पाई जाती है। इसका विस्तार मुंगेली, राजनांदगांव, बालौद, धमतरी, रायपुर, बिलासपुर के हृदय क्षेत्र तथा महासमुंद तहसीलों में अधिक है। इसमें धान, गेहूँ, कोदा, अरहर, तिवरा, अलसी आदि फसलें पैदा की जाती है। इसमें जलधारण की क्षमता अधिक होती है।
सारिणी क्रमांक – 1.2 ऊपरी महानदी बेसिन – तापमान, 1995 | |||||||||||||||
(डिग्री सेल्सियस) | |||||||||||||||
क्र. | स्थान | विवरण | जनवरी | फरवरी | मार्च | अप्रैल | मई | जून | जूलाई | अगस्त | सितंबर | अक्टूबर | नवंबर | दिसंबर | औसत |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 |
1. | रायपुर | अधिकतम न्यूनतम औसत | 27.7 13.5 20.6 | 30.13 16.2 23.3 | 34.7 20.4 24.6 | 39.2 25.1 32.2 | 42.3 28.8 35.6 | 37.5 26.8 32.2 | 30.3 24.1 27.2 | 30.1 21.1 27.1 | 30.0 24.1 27.6 | 31.2 21.5 26.3 | 29.1 16.0 22.6 | 27.3 13.0 20.3 | 32.5 21.1 26.9 |
2. | कांकेर | अधिकतम न्यूनतम औसत | 27.9 12.1 20.0 | 30.2 14.6 22.4 | 34.4 18.8 26.6 | 37.8 23.8 30.7 | 40.3 27.1 33.7 | 35.4 26.0 30.7 | 29.1 23.6 26.3 | 29.9 23.5 26.6 | 29.9 23.1 26.5 | 30.2 20.1 25.1 | 28.3 14.2 21.2 | 27.1 11.2 19.1 | 31.6 19.8 25.7 |
3. | चांपा | अधिकतम न्यूनतम औसत | 21.5 13.8 17.6 | 31.1 16.2 23.6 | 35.3 20.0 27.6 | 39.9 24.9 32.2 | 43.0 28.9 35.9 | 38.9 27.8 33.3 | 31.4 24.9 28.1 | 30.8 24.9 27.8 | 31.5 24.7 28.1 | 31.4 22.0 26.7 | 29.3 16.1 22.7 | 27.8 13.7 20.7 | 32.6 21.4 27.4 |
4. | रायगढ़ | अधिकतम न्यूनतम औसत | 28.4 13.6 21.0 | 31.9 15.9 23.9 | 35.7 20.2 27.9 | 40.3 25.9 32.8 | 42.8 28.9 35.8 | 38.6 27.7 33.1 | 31.5 25.0 28.2 | 31.0 24.9 27.9 | 31.8 24.7 28.2 | 31.9 22.3 27.1 | 29.8 16.4 23.1 | 28.0 13.4 20.9 | 33.5 21.5 27.0 |
5. | पेण्ड्रा | अधिकतम न्यूनतम औसत | 24.0 10.9 17.5 | 26.5 12.5 19.5 | 31.5 17.6 24.6 | 26.0 22.3 29.2 | 39.3 36.1 32.7 | 33.6 25.0 29.3 | 28.7 22.8 25.8 | 28.3 22.5 25.4 | 28.9 22.0 25.5 | 28.4 18.4 23.5 | 26.3 13.4 19.9 | 28.2 10.1 17.2 | 28.8 18.6 24.2 |
6. | दुर्ग | अधिकतम न्यूनतम औसत | 27.8 09.9 18.8 | 32.5 10.5 21.5 | 34.5 16.6 25.5 | 40.5 23.4 31.9 | 46.2 27.3 36.7 | 36.2 25.5 30.8 | 30.4 23.4 26.9 | 29.9 23.3 26.6 | 32.0 21.5 25.8 | 32.2 21.5 23.8 | 29.3 15.3 22.3 | 27.0 12.9 19.9 | 34.4 19.4 26.2 |
7. | राजनांदगांव | अधिकतम न्यूनतम औसत | 27.6 09.7 18.7 | 31.1 07.2 19.1 | 36.1 12.6 24.3 | 39.9 17.4 28.6 | 42.1 21.6 31.8 | 41.1 21.1 31.1 | 32.5 20.9 26.7 | 31.2 20.3 25.8 | 30.8 14.6 22.7 | 30.8 14.6 22.7 | 29.0 09.4 19.2 | 27.3 07.3 17.3 | 33.3 15.2 24.2 |
स्रोत – संबंधित तापमापी केन्द्र |
सारिणी क्रमांक – 1.4 ऊपरी महानदी बेसिन – मिटि्टयों का रासायनिक संघटन | ||||||||
मिट्टी | गहराई (से. मी.) | रासायनिक संघटन (%) | जल धारण क्षमता % | पी. एच. मान | कार्बन की मात्रा % | उत्पादकता (मि. मी. / से. मी.) | ||
रेत % | सिल्ट % | क्ले % | ||||||
1. कन्हार मिट्टी | 0-25 25-50 50-75 75-100 | 15.60 10.05 11.30 9.45 | 31.40 31.32 42.12 43.20 | 49.10 19.18 39.62 39.62 | 38.72 39.61 39.62 39.62 | 06.4 06.6 06.3 06.4 | 0.52 0.26 0.22 0.92 | 0.18 0.18 0.18 0.18 |
2. मटासी मिट्टी | 2-23 23-41 41-78 78-107 107-32 | 75.00 68.95 50.10 53.95 63.80 | 6.64 6.60 15.60 17.68 3.32 | 14.78 22.90 32.06 25.98 29.90 | 19.17 25.64 23.34 33.60 30.19 | 5.8 5.8 6.1 6.3 6.4 | 0.61 0.91 1.09 0.90 0.88 | 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18 |
3 भांठा मिट्टी | 0-10 10-22 22-27 | 56.50 60.20 60.00 | 23.20 13.16 15.08 | 17.74 19.90 19.42 | 24.64 24.00 22.47 | 5.9 6.0 5.9 | 0.28 0.19 0.30 | 0.23 0.23 0.23 |
स्रोत – इंदिरा गांधी कृषि वि. विद्धालय, गया |
2. मटासी मिट्टी :
यह मिट्टी शिस्ट तथा नीस के विघटन से निर्मित है। इसका रंग हल्का पीला एवं भूरा होता है। इसकी जल धारण क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है। इसका पीएच मान 6.65 है। यह मिट्टी अम्लीय होती है। इसका विस्तार रायपुर एवं दुर्ग जिले के उच्च भागों में है। इसमें धान, कोदो, कुटकी, अरहर, कुल्थी एवं तिल का उत्पादन किया जाता है।
3. डोरसा मिट्टी :
इसमें कन्हार एवं मटासी मिट्टियों के गुण पाये जाते हैं। इसकी जलधारण क्षमता 12 सेंटीमीटर तथा पी-एच मान 7.3 से 7.6 है। यह क्षारीय प्रकार की मिट्टी है। इसका विस्तार बेसिन के उत्तरी-दक्षिणी भाग में है। इसमें धान, अलसी, तिवरा, गेंहू का उत्पादन होता है।
4. भाठा मिट्टी :
चीका एवं रेतयुक्त कछारी मिट्टी का जमाव नदी नालों के किनारे मिलता है। इसमें रासायनिक तत्वों की प्रधानता होने के कारण उत्पादन अच्छा होता है। बेसिन में इसका विस्तार महानदी, शिवनाथ और उसकी सहायक नदियों के घाटी क्षेत्रों और अत्यधिक उपजाऊ होने के कारण इनका उपयोग सघन कृषि में किया जाता है। इसमें धान, गेहूँ, मौसमी फल एवं सब्जियों की खेती की जाती है। इसे जलोढ़ मिट्टी भी कहते है।
वनस्पति :
किसी भी प्रकार की वनस्पति मुख्य रूप से वहाँ की धरातल मिट्टी एवं जलवायु द्वारा निर्धारित होती है। यह मृदा एवं जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उष्ण कटिबंधीय मानसून जलवायु के कारण प्रदेश में उष्ण कटिबंधीय (आर्द्र और शुष्क) वनस्पति की प्रधानता है। बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से वनों का महत्व बढ़ गया है। बेसिन में वनों का विस्तार उच्च भूमि एवं उबड़-खाबड़ क्षेत्र में है।
वर्तमान में बेसिन के कुल क्षेत्र का 38.2 प्रतिशत भाग वनों द्वारा ढंका है जो मध्य प्रदेश के वन क्षेत्र का 34.8 प्रतिशत से अधिक है। बेसिन के विभिन्न भागों में वनों का क्षेत्र समान नहीं है। वन क्षेत्रों के विस्तार की दृष्टि से अग्रणी बिलासपुर जिला (42.64 प्रतिशत) है। इसके पश्चात रायपुर (36.5 प्रतिशत), राजनांदगांव (35.2 प्रतिशत) और रायगढ़ (31.0 प्रतिशत) जिले का स्थान है। बेसिन में दुर्ग एक मात्र जिला है जहाँ वन क्षेत्र सबसे कम (11.0 प्रतिशत) है।
बेसिन के 20,497.11 (38.87 प्रतिशत) वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में आरक्षित वन, 29,192.55 (55.36 प्रतिशत) वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में संरक्षित वन एवं 3,037.92 (5.77 प्रतिशत) वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अवर्गीकृत वनों का विस्तार है। बेसिन के कुल 52,727.58 वर्ग किलो मीटर वन क्षेत्र उत्तर, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण व दक्षिण पूर्व के उच्च प्रदेशों में केंद्रित होने के बावजूद वनों का वितरण असमान है। वर्तमान वन क्षेत्रों में साल वृक्षों की प्रमुखता है, क्योंकि यह कई भौतिक विशेषताओं और अनुकूल पर्यावरण के कारण दक्षिणी भागों के बहुत बड़े भाग में उगता है। साल लकड़ी काफी मजबूत होती है तथा इसका उपयोग रेल के स्लीपर और इमारती लकड़ी के रूप में निर्माण कार्य में किया जाता है। बेसिन के दक्षिणी भाग में सागौन वनों की प्रमुखता है।
यहाँ के प्रमुख वृक्ष साल एवं सागौन है, इनके अतिरिक्त तेंदू, महूआ, बीजा, सलई, साजा, धौरा, खैर, बांस एवं बबूल इत्यादि अन्य वृक्ष है। इनका उपयोग फर्नीचर, निर्माण कार्य, इमारती और जलाऊ लकड़ी के रूप में होता है।
बेसिन से प्राप्त वनोपजों को दो भागों में बाँटते हैं - वृहद वनोपज और लघु वनोपज। वृहद वनोपजों के अंतर्गत इमारती एवं जलाऊ लकड़ी को शामिल किया जाता है, इसमें लकड़ी की लट्ठे बल्लियां एवं चिरी हुई लकड़ी सम्मिलित है जबकि लघु वनोपजों के अंतर्गत तेंदूपत्ता और बांस आदि प्रमुख है। तेंदूपत्ता में बिड़ी उद्योग, बांस से कागज उद्योग, महुआ से नशीले पेयपदार्थ, हर्रा से चमड़ा शोधक सामग्री, कुसुम व पलाश से लाख खैर से कत्था तथा साल और बीजा वृक्षों से गोंद तैयार की जाती है। बगई एवं सांभर घास का उपयोग रस्सी व कुंभी बनाने में किया जाता है। यह उद्योग बेसिन के विभिन्न क्षेत्रों में केंद्रित है। तेंदूपत्ता का अधिक उत्पादन बिलासपुर जिले में तथा बांस की अधिक उत्पादन बस्तर एवं बिलासपुर में होता है।
वन्य जीवों में शेर, चीता, जंगली भैंसा, भेड़िया, भालू, सांभर, नीलगाय, बारहसिंगा, चिकारा, लोमड़ी एवं बंदर आदि हैं। वनों से कुछ उत्पादन भी प्राप्त होते है जैसे - लाख, मधु तथा मोम आदि।
प्रदेश की लकड़ियों में प्राप्त वन राजस्व का लगभग 37 प्रतिशत जलाऊ लकड़ी का 14 प्रतिशत एवं हर्रा बेहरा का 41 प्रतिशत लाख का 37 प्रतिशत, बांस का 18 प्रतिशत एवं गोंद का 13 प्रतिशत वन राजस्व बेसिन के वनों से ही प्राप्त होता है।
खनिज :
ऊपरी महानदी बेसिन विभिन्न प्रकार के खनिजों और उपयोगी चट्टानों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। यहाँ लौह अयस्क, बाक्साइट, कोयला, चूनापत्थर, डोलोमाइट, अग्निसह मिट्टी, क्वार्टज, मैगनीज, सीसा और फ्लोराइट खनिजों के जमाव पाये जाते हैं। यहाँ के धारखाड़, कुडप्पा और गोंडवाना शैल समूह में कोयला, चूना पत्थर और लौह अयस्क का पर्याप्त भंडार है।
यहाँ कोयला उत्तरी उच्चभूमि, चूनापत्थर केंद्रीय मैदान एवं लौह अयस्क दक्षिणी उच्चभूमि में पाया जाता है। बिलासपुर जिले के कोरबा क्षेत्र और रायगढ़ जिले के मांद बेसिन में 500 वर्ग कि. मी. क्षेत्र में लगभग 1,387 करोड़ टन कोयले का भंडार है। चूना खनन प्रदेश के रायपुर जिले में तेलीबांधा, रावणभाठा, महादेवघाट, कुशालपुर, बिलासपुर जिले में अकलतरा एवं जयराम नगर, दुर्ग जिले के नंदिनी - खुंदनी व जामुल क्षेत्र, रायगढ़ जिले में खरसिया, सारंगढ़ तथा राजनांदगांव जिले के रनजीतपुरा, रनवीरपुर आदि में होता है। यहाँ सीमेंट बनाने योग्य चूना पत्थर का भंडार 464 करोड़ टन है। दुर्ग जिले के दल्लीराजहरा एवं बस्तर जिले के रावघाट तथा व बैलाडीला में लगभग 206 करोड़ टन लौह (हेमेटाईट किस्म) अयस्क का भंडार है। इसमें से 22 करोड़ टन दुर्ग जिले में संग्रहित है। बैलाडीला से लौह अयस्क का निर्यात जापान को किया जाता है।
बेसिन में संभावित और उत्पादित चूना पत्थर का उपयोग सीमेंट उद्योग (जामुल, मांढ़र, बैकुण्ठ और अकलतरा) और भिलाई इस्पात संयंत्र के लिये किया जाता है। इसी क्षेत्र में उपलब्ध लैटराइट का उपयोग स्थानीय लौह धातु गलाने में किया जाता है। जिनमें दुर्ग जिले के नंदिनी टोला, अकलबेरिया और राजघर तथा रायपुर के कुछ स्थान महत्त्वपूर्ण हैं। बेसिन में बाक्साइट, अल्युमिनियम तथा खनिज अयस्कों का भंडार है। बेसिन में इसका अधिकांश जमाव बिलासपुर जिले की कोरबा तहसील के पुटका पहाड़ क्षेत्र, राजनांदगांव की कवर्धा तहसील क्षेत्र, बस्तर जिले के कांकेर क्षेत्र में है। परिवहन एवं विद्युत उद्योग इसके प्रमुख उपभोक्ता है। अग्रिसह मिट्टी का जमाव बेसिन के दुर्ग, रायगढ़ और बिलासपुर जिले में गोंडवाना चट्टानों में है। क्वार्टज का जमाव रायपुर, बिलासपुर और राजनांदगांव की खैरागढ़ तहसील के अंतर्गत पनियाजोग टोला और बोर तालाब तथा बिलासपुर जिले में है। सीसा दुर्ग जिला की बेमेतरा तहसील (चांदनी डोंगरी) क्षेत्र से प्राप्त होता है। प्रदेश में उत्पादित अधिकांश कोयला का उपयोग कोरबा ताप विद्युत संयंत्र की चार इकाईयों क्रमश: (100, 200, 120 और 120) मेगावॉट द्वारा किया जाता है। इसी क्षेत्र में स्थित भिलाई इस्पात संयंत्र और रेल परिवहन भी उत्पादित कोयला के महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता हैं। डोलोमाइट चूना पत्थर के साथ में बेसिन क्षेत्र के मध्य कुडप्पा समूह में पाया जाता है। बिलासपुर, रायपुर और दुर्ग जिलों में इसके मुख्य भंडार है।
सांस्कृतिक पृष्ठभूमि - जनसंख्या एवं मानव अधिवास :
जनसंख्या :
जनसंख्या के घनत्व एवं वितरण में जल एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक तत्व है। जल मानव की प्राथमिक आवश्यकता है अत: धरातल पर जल उपलब्धता एवं मानव निवास एक दूसरे के पूरक है।
ऊपरी महानदी बेसिन की जनसंख्या वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार 1,33,26,396 व्यक्ति हैं। मध्य प्रदेश का सघन बसा भाग है, जहाँ राज्य के 16.67 प्रतिशत क्षेत्र में 20.13 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। मध्य प्रदेश में जनसंख्या की दृष्टि से रायपुर जिला प्रथम, बिलासपुर जिला द्वितीय, दुर्ग जिला चतुर्थ, बस्तर जिला पंचम, रायगढ़ जिला नवें एवं राजनांदगांव जिला सोलहवें क्रम पर है।
बेसिन में जनसंख्या का केंद्रीयकरण दक्षिणी-मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्रों में हुआ है। इन क्षेत्रों में जल संसाधन का पर्याप्त विकास हुआ है, साथ ही धरातलीय जल उपलब्धता भी पर्याप्त है। बेसिन के बिलासपुर जिले में बिलासपुर, मुंगेली, तखतपुर, अकलतरा एवं जांजगीर विकासखंड में, रायपुर जिले में धमतरी, मगरलोड, कुरुद, अभनपुर, राजिम, भाटापारा एवं बलौदा बाजार में, दुर्ग जिले में बालोद, गुरुर, पाटन, राजनांदगांव में डोंगरगढ़, कवर्धा विकासखण्ड में जनसंख्या का घनत्व अधिक है। यहाँ जल के अंतर्गत भूमि का प्रतिशत (10-15) है। इसके विपरीत बेसिन के शेष विकासखण्डों में जल संबंधी पर्याप्तता के भाव में जनसंख्या का विकास कम हुआ है।
सारिणी क्रमांक – 1.5 ऊपरी महानदी बेसिन – वनों का क्षेत्रीय वितरण, 1993 – 94 (क्षेत्रफल वर्ग किलोमीटर में) | |||||||||
|
| आरक्षित वन (वर्ग किमी) | संरक्षित वन वर्ग किमी | अवर्गीकृत वन (वर्ग किमी) | कुल वन (वर्ग किमी) | ||||
क्र. | वनवृत | क्षेत्र | प्रतिशत | क्षेत्र | प्रतिशत | क्षेत्र | प्रतिशत | क्षेत्र | प्रतिशत |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 |
1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. | रायपुर दुर्ग बिलासपुर राजनांदगांव कांकेर रायगढ़ बस्तर | 4,441.20 1,932.73 4,267.14 2,007.50 3,780.90 3,997.80 5,890.314 | 22.66 9.43 20.82 09.80 18.74 19.55 38.87 | 2,912.95 2,762.00 8,918.84 2,253.82 4,215.07 8,093.87 2,393.199 | 10.00 09.47 30.55 07.80 15.00 27.18 55.36 | 196.19 - 897.72 - 1,943.29 - 2,138.50 | 6.48 - 29.58 - 63.94 - 5.77 | 7,550.88 4,694.73 14,083.70 4,331.94 9,975.94 12,091.67 10,421.99 | 14.32 08.90 26.71 08.21 18.91 22.95 - |
| योग - | 20,497.11 | 100.00 | 29,192.55 | 100.00 | 3,037.92 | 100.00 | 52,727.58 | 100.00 |
स्रोत – संभागीय सांख्यिकीय कार्यालय रायपुर (म. प्र.) |
सारिणी क्रमांक – 1.5 (अ) प्रमुख खनिजों का तुलनात्मक उत्पादन, 1991 (टन में) | ||||
क्र. | खनिज | छत्तीसगढ़ | मध्य प्रदेश | अनुपात |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 |
1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. | कोयला लौह अयस्क डोलोमाइट बाक्साइट चूना पत्थर क्वार्टजाइट केओलिन टिन अयस्क (कि. ग्रा.) | 3,06,68,820 13,74,40,420 5,45,487 2,08,890 7,55,50,691 41,186 6,809 1,09,238 | 6,55,16,000 1,37,97,000 5,46,233 5,40,609 9,22,94,000 41,186 23,794 1,09,238 | 46.11 99.59 99.86 38.64 39.13 100.00 28.62 100.00 |
स्रोत – भौमिकी एवं खनिज संचालनालय, रायपुर (म. प्र.) |
सारिणी क्रमांक – 1.5 (ब) ऊपरी महानदी बेसिन – महत्त्वपूर्ण खनिज भण्डार, 1991 | ||||
क्र. | जिला | खनिज | सुरक्षित भण्डार (करोड़ टन में) | उत्पादन (टन में) |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 |
1.
2.
3.
4.
5.
6. | रायपुर
दुर्ग
राजनांदगांव
बिलासपुर
रायगढ़
बस्तर | 1. चूना पत्थर 2. डोलोमाइट 1. लौह अयस्क 2. चूना पत्थर 3. क्वर्टाजाइट 4. डोलोमाइट 5. केओलिन 1. अग्नि सहमिट्टी (फायर फ्ले) 2. लौह अयस्क 3. चूना पत्थर 4. केओलिन 1. बॉक्साइट 2. कोयला 3. डोलोमाइट 4. फायर फ्ले 5. चूना पत्थर 1. बॉक्साइट 2. मिट्टी 1. लौह अयस्क 2. चूना पत्थर 3. डोलोमाइट 4. बॉक्साइट 5. कोरंडम 6. टिनअयस्क 7. लेपिडोलाइट 8. मिट्टी 9. क्वार्टज | 642.00 13.20 16,400.00 300.00 2.00 - - 12.50
5.00 5.00 - 3.79 358.73 522.00 0.37 2,212.43 50.00 9.20 4,064.00 850.00 45.115 9.00 25.00 1,212.73 3,455.00 2.5 4.5 | 29,22,500 - 6 4,84,420 22,45,320 2,66,058 130 709 -
- - 6,100 1,52,506 - 5,45,357 - 23,19,46 0 - - 72,56 000 38,164 - 18,110 - 1,09,238 |
स्रोत – भौमिकी एवं खनिज संचालनालय, रायपुर (म. प्र.) |
जनसंख्या वितरण एवं घनत्व :
बेसिन में जनसंख्या का वितरण काफी असमान है जो धरातलीय स्वरूप, वन, कृषि और उद्योग द्वारा प्रभावित हुआ है। यहाँ 1,33,26,396 (1991) व्यक्तियों में 67,05,044 (50.31 प्रतिशत) पुरुष एवं 66,21,352 (49.69 प्रतिशत) महिला जनसंख्या है। यहाँ जनसंख्या घनत्व 180 व्यक्ति प्रति वर्ग किलो मीटर है जो मध्य प्रदेश के जनसंख्या घनत्व (149 व्यक्ति) से अधिक है। यहाँ के मैदानी क्षेत्रों में सतही एवं भूगर्भिक जल पर्याप्त मात्रा में है, तथा समतल उपजाऊ भूमि के कारण सिंचाई का पर्याप्त विकास हुआ है। अत: इस क्षेत्र में जनसंख्या का केंद्रीयकरण अधिक है। बेसिन के केवल दो जिलों (रायगढ़ - 135 एवं राजनांदगांव - 129) का घनत्व मध्य प्रदेश और बेसिन से कम है।
अधिक जनसंख्या घनत्व वाले (300 व्यक्ति से अधिक) विकासखंड रायपुर, धरसींवा, दुर्ग, लोरमी, कटघोरा एवं सक्ति है, जबकि कम घनत्व वाले (100 व्यक्ति से कम) विकासखंड मोहल्ला, मानपुर, गरियाबंद, बगीचा एवं लैलूंगा है। कम घनत्व होने का प्रमुख कारण उच्चभूमि ढाल एवं सघन वन क्षेत्र है। बेसिन के शेष विकासखंडों में 150-300 व्यक्ति प्रति किलो मीटर जनसंख्या घनत्व है।
जल संसाधन के समुचित विकास, समतल उपजाऊ भूमि, फसल उत्पादन, उच्च नगरीयकरण एवं औद्योगिक विकास के कारण घनत्व अधिक है।
ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या :
ऊपरी महानदी बेसिन में पुरुषों और महिलाओं का प्रतिशत क्रमश: 50.31 एवं 49.69 है। यहाँ अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। बेसिन की कुल जनसंख्या का 80.05 प्रतिशत 14,723 ग्रामों में निवास करती है, जबकि बेसिन की 19.05 प्रतिशत जनसंख्या 68 नगरों में निवास करती है। बेसिन की नगरीय जनसंख्या दुर्ग-भिलाई नगर, रायपुर और बिलासपुर नगरों में निवास करती है। बेसिन में 1951-81 के बीच नगरीय जनसंख्या में तीव्र वृद्धि (21.30 प्रतिशत) हुई है, इसका कारण औद्योगिकरण, खनन उद्योग के विकास एवं अन्य संभावनायें हैं।
जनसंख्या वृद्धि :
बेसिन में जनसंख्या वृद्धि 1951-61, 1961-71, 1971, 81 के बीच सबसे अधिक रही है। दुर्ग एवं रायपुर ही ऐसे जिले है जिनमें जनसंख्या वृद्धि की दर 1951-61 से 1971-81 तक यथावत रही। बिलासपुर और राजनांदगांव में वृद्धि की गति तुलनात्मक दृष्टि से धीमी रही है। बेसिन में रायगढ़ ही ऐसा जिला है, जिसमें पहले अधिक और बाद में वृद्धि की गति धीमी रही है। बेसिन में औसत जनसंख्या वृद्धि दर 24.69 प्रतिशत है जो राज्य के औसत से कुछ कम है। बेसिन में 1901-1911 का दशक जनसंख्या वृद्धि का दशक था। यहाँ 1921 की अवधि में जनसंख्या वृद्धि कम रही है, जब जलजनित रोग तथा हैजे एवं इनफ्लूएन्जा का प्रकोप था, शेष अवधि में क्रमश: वृद्धि हुई है। इसका प्रमुख कारण यहाँ कृषि एवं उद्योगों के क्षेत्रों में वृद्धि, रोजगार की सुविधा, प्रवास एवं मृत्यु दर में वृद्धि होना है। बेसिन के कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रण में रही है। इसका प्रमुख कारण परिवार नियोजन के प्रयासों की आंशिक सफलता, अप्रवास में कमी आदि।
लिंगानुपात :
बेसिन में प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 992 है। यह अनुपात राजनांदगांव जिले में सर्वाधिक 1,012 एवं दुर्ग जिले में कम 970 है। राजनांदगांव जिले में लिंगानुपात अधिक है। इसका मुख्य कारण महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में स्वास्थ्य सेवाओं का विकास ठीक नहीं है। बेसिन में लिंगानुपात क्रमश: राजनांदगांव (1012), बस्तर (1002), रायगढ़ (1000), रायपुर (993), बिलासपुर (978) एवं दुर्ग (967) है।
बेसिन में ग्रामीण एवं नगरीय लिंगानुपात में भिन्नता देखने को मिला है। वर्ष 1971 में नगरीय लिंग अनुपात का औसत 909 है, 1981 में 922 एवं 1991 में 926 है। इन्हीं वर्षों में ग्रामीण लिंगानुपात क्रमश: 1016, 1099, 1007 है। यहाँ 0-14 आयु वर्ग की कुल जनसंख्या 46.56 प्रतिशत, 15-59 आयु वर्ग की 48.55 प्रतिशत एवं 60 वर्ष से अधिक जनसंख्या 10.29 प्रतिशत है।
साक्षरता :
बेसिन में कुल 51,67,568 (38.78 प्रतिशत) व्यक्ति साक्षर है। बेसिन का दुर्ग जिला साक्षरता की दृष्टि से अग्रणी है। यहाँ कुल जनसंख्या 23,97,134 में 11,4742 व्यक्ति (47.86 प्रतिशत) साक्षर है। अन्य जिलों में साक्षरता रायपुर में 39.01 प्रतिशत, बिलासपुर में 36.31 प्रतिशत, राजनांदागांव में 35.89 प्रतिशत, काकेर तहसील में 34.97 प्रतिशत एवं रायगढ़ में 33.46 प्रतिशत है। बेसिन की कुल साक्षर जनसंख्या में 69.38 प्रतिशत ग्रामीण एवं 80.62 प्रतिशत नगरीय है। यहाँ पुरुषों में साक्षरता 67.74 प्रतिशत एवं महिलाओं में 32.26 प्रतिशत है, अर्थात पुरुषों की तुलना में महिलाओं में साक्षरता दर कम है, जबकि बेसिन में मध्य प्रदेश की तुलना में साक्षरता दर अधिक है। मध्य प्रदेश में साक्षरता दर 35.45 प्रतिशत है, जबकि बेसिन में 38.78 प्रतिशत है। यह विभिन्नता सामाजिक मापदंड, अर्थदंड, तकनीकी विकास, शिक्षा, नगरीयकरण की मात्रा, आवागमन की सुविधाएँ एवं सार्वजनिक सेवाओं आदि के द्वारा प्रभावित होती है।
सामाजिक वर्ग :
ऊपरी महानदी बेसिन में 14.27 प्रतिशत व्यक्ति अनुसूचित जाति एवं 23.23 प्रतिशत व्यक्ति अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं, शेष 62.50 प्रतिशत जनसंख्या पिछड़े वर्ग एवं सामान्य वर्ग के हैं। बेसिन में अनुसूचित जाति की जनसंख्या क्रमश: बिलासपुर जिले में 18.11 प्रतिशत, रायपुर जिले में 14.92 प्रतिशत, दुर्ग जिले में 12.76 प्रतिशत, रायगढ़ जिले में 11.79 प्रतिशत, राजनांदगांव जिले में 10.27 प्रतिशत एवं कांकेर तहसील में 4.61 प्रतिशत है। जनजातियों में गोड़, कंवर, बैगा, हल्बा एवं ऊंराव प्रमुख है आदिवासियों में सर्वाधिक गोंड़ जाति की है, ये आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं। ये कृषि मजदूरी तथा वनोपज आदि पर निर्भर रहते हैं। इनमें साक्षरता की कमी पाई जाती है।
कार्यशील जनसंख्या एवं अकार्यशील जनसंख्या :
ऊपरी महानदी की कार्यशील जनसंख्या को सामाजिक एवं आर्थिक कारक प्रभावित करता है। अत: प्रादेशिक एवं क्षेत्रीय वितरण के आधार पर व्यावसायिक संरचनाओं का विकास हुआ है। कार्यशील जनसंख्या में मुख्य रूप से कृषक, खेतिहर श्रमिक एवं कृष्येत्तर श्रमिक आते हैं। बेसिन में मुख्य कार्यशील जनसंख्या 34 प्रतिशत है। जो मध्य प्रदेश की कार्यशील जनसंख्या (38 प्रतिशत) से अधिक है। इसका प्रमुख कारण यहाँ कृषकों के कृषि कार्य के साथ-साथ कृषि संबंधी अभिनव तकनीकी जानकारी एवं औद्योगिक जमाव है। यहाँ कृषकों, औद्योगिक श्रमिकों एवं विभिन्न व्यावसायिक कार्यों में साक्षरता के मध्य सह संबंध पाया जाता है। कम साक्षरता कृषि श्रमिकों में है। यहाँ कुल कार्यशील जनसंख्या में 52.97 प्रतिशत कृषक, 25.41 प्रतिशत कृषि श्रमिक, 1.62 प्रतिशत पशुपालन, 0.68 प्रतिशत खनिज निर्माण कार्य, 6 प्रतिशत व्यापार, एवं 13.32 प्रतिशत व्यक्ति कार्यों में संलग्न है। यहाँ साक्षरता एवं ग्रामीण विकास का प्रत्यक्ष संबंध देखा गया है। बेसिन में कुल जनसंख्या का 15.11 प्रतिशत सीमांत कार्यशील एवं 18.74 प्रतिशत अकार्यशील व्यक्ति है।
अर्थव्यवस्था - भूमि उपयोग :
कृषि, ऊपरी महानदी बेसिन की अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग है। बेसिन की कुल कार्यशील जनसंख्या का 52.97 प्रतिशत जनसंख्या कृषक, 25.41 प्रतिशत जनसंख्या कृषि श्रमिक के रूप में कार्य कर रही है।
बेसिन में कृषि के लिये अनुकूल उच्चावच है। बेसिन की कृषि निर्वाह प्रकार की है। बेसिन के पर्वतीय एवं वनाच्छादित क्षेत्र को छोड़कर सर्वत्र बेसिन में 60.12 प्रतिशत निराफसली क्षेत्र, 18.37 प्रतिशत दुफसली क्षेत्र, 13.18 प्रतिशत कृषि के लिये अप्राप्त भूमि, 12.71 प्रतिशत ग्रामीण वन, 9.44 प्रतिशत पड़ती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि एवं 4.55 प्रतिशत पड़ती भूमि है। यहाँ कृषि क्षेत्रों का विस्तार रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव एवं बिलासपुर मैदानी जिलों में है।
यहाँ 94.97 प्रतिशत क्षेत्रों में खाद्यान्न फसलें उत्पन्न की जाती हैं, जिसमें 88.97 प्रतिशत में धान, 2.80 प्रतिशत में गेहूँ, 8.23 प्रतिशत भाग में मोटे अनाज मक्का, ज्वार, बाजरा एवं कोदो का उत्पादन होता है। यहाँ 28.28 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है। प्रदेश में नहरें 58.93 प्रतिशत, नलकूप 25.32 प्रतिशत, तालाब 5.92 प्रतिशत, कुआँ 4.09 प्रतिशत, एवं 5.74 प्रतिशत अन्य साधनों से सिंचित है। नहरों के द्वारा सिंचाई में रायपुर जिले का मध्य प्रदेश में प्रथम स्थान है। सिंचाई का अधिक विस्तार महानदी शिवनाथ दोआब क्षेत्र में है।
बेसिन में 73.18 प्रतिशत क्षेत्र में खरीफ फसल एवं 26.82 प्रतिशत क्षेत्र में रबी फसल बोई जाती है। इस क्षेत्र में जहाँ सिंचाई की सुविधा प्राप्त है वहाँ रबी फसल के क्षेत्रों में विस्तार हो रहा है। प्रदेश में फसलों का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 620 किलो ग्राम तथा प्रति व्यक्ति अनाज की उपलब्धता 570 किलोग्राम है। वर्तमान में यहाँ कृषि कला की उन्नति में सुधार हो रहा है, क्योंकि उर्वरकों एवं उन्नत कृषि तकनीकों का प्रयोग, कुशल श्रम, सिंचित क्षेत्रों में यंत्रीकरण से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हो रही है, जिससे व्यक्तियों के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है।
ऊपरी महानदी बेसिन में प्रति हेक्टेयर उत्पादन में भिन्नता मिलती है। यह धरातलीय विषमता एवं सुविधाओं में अंतर होने के कारण है। साथ ही भूमि का अपखंडन, चकबंदी का अभाव, तकनीकी ज्ञान की कमी, उचित खाद भंडारण, उन्नत बीज, कृषकों की गरीबी, कृषि पद्धति, सिंचाई आदि कारणों से उत्पादन एवं जीवन स्तर प्रभावित होता है।
सारिणी क्रमांक - 1.7 ऊपरी महानदी बेसिन - भूमि उपयोग, 1995 (क्षेत्रफल हेक्टेयर में) | |||
क्र. | भूमि विवरण | क्षेत्रफल | प्रतिशत |
1 | 2 | 3 | 4 |
1. 2. 3. 4. 5. | ग्रामीण वन कृषि के लिये अप्राप्त भूमि पड़ती के अतिरिक्त अन्य कृषि भूमि पड़ती भूमि निराफसली क्षेत्रफल | 7,36,824 7,62,970 5,46,834 2,63,043 34,83,116 | 12.71 13.18 9.44 4.55 60.12 |
| योग | 57,92,787 | 100.00 |
6. 7. | दुफसली क्षेत्रफल कुल फसली क्षेत्रफल | 7,98,492 42,81,608 | 13.78 73.91 |
स्रोत - संभागीय सांख्यिकी कार्यालय, रायपुर (म. प्र.) |
सारिणी क्रमांक - 1.8 ऊपरी महानदी बेसिन - फसल प्रतिरूप 1995 (क्षेत्रफल हेक्टेयर में) | |||
क्र. | फसल का विवरण | क्षेत्रफल | प्रतिशत |
1 | 2 | 3 | 4 |
1. 2. 3. | चावल गेहूँ अन्य अनाज | 26,24,432 82,688 2,42,560 | 88.97 2.80 8.23 |
| योग - संपूर्ण अनाज | 29,49,680 | 100.00 |
4. 5. 6. 7. | कुल दलहन फसलें कुल तिलहन फसलें व्यापारिक फसलें शाक सब्जियाँ | 9,77,957 2,40,275 19,563 65,026 | 16.53 41.47 0.33 1.12 |
1. 2. | खरीफ फसलें रबी फसलें | 30,84,155 11,29,823 | 73.18 26.18 |
| योग - (खरीफ+रबी फसलें) | 42,13,978 | 100.00 |
स्रोत - संभागीय सांख्यिकी कार्यालय, रायपुर (म. प्र.) |
सिंचाई के साधन :
बेसिन में सभी साधनों से सिंचित क्षेत्रफल 11,55,536 हेक्टेयर है। प्रदेश के 63.14 प्रतिशत क्षेत्र में नहरों से सिंचाई होती है। नलकूप से 25.90 प्रतिशत, तालाबों से 6.57 प्रतिशत एवं कुओं आदि से 4.39 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई होती है। सबसे ज्यादा नलकूप रायपुर जिले में (44.07 प्रतिशत) तथा कम बिलासपुर जिले में (8.79 प्रतिशत) है। अधिक कुआँ रायपुर जिले में (28 प्रतिशत) एवं कम राजनांदगांव जिले में (0.57 प्रतिशत) तथा तालाब अधिक बिलासपुर जिले में (37.27 प्रतिशत) एवं सबसे कम राजनांदगांव जिले में (0.92 प्रतिशत) है।
उद्योग :
ऊपरी महानदी बेसिन आज भी औद्योगिक रूप से पिछड़ा हुआ है। यहाँ 5 प्रतिशत उद्योग में कार्यरत हैं। हालाँकि इस प्रदेश में कृषि, खनिज, ऊर्जा, उद्योग, जूट, एल्यूमिनियम, सीमेंट, रसायन, विस्फोटक सामग्री एवं बर्तन निर्माण आदि उद्योग है। वृहत उद्योग में सूती कपड़े के कारखाने राजनांदगांव तथा जूट का कारखाना रायगढ़ में है। कोरबा, रायपुर, भिलाई क्षेत्रों में भी औद्योगिक विकास हुआ है। भिलाई इस्पात संयंत्र, एन. टी. पी. सी. ब्लॉकों व डी एम. सी. (रसायन उद्योग, कुम्हारी- दुर्ग) आदि महत्त्वपूर्ण औद्योगिक इकाईयाँ है। यहाँ पर कृषि, खनिज एवं वनोपज पर आधारित उद्योगों की संभावनाएं हैं। जिससे क्षेत्र में वृहत एवं लघु उद्योग की स्थापना की जा सकती है। लघु उद्योग में चावल, दाल, तेल आटा, मिल व कोसा, बीड़ी, लकड़ी उद्योग, पत्थर तोड़ना, फर्नीचर बनाना, साबुन आदि उद्योग भी बेसिन में है।
मानव अधिवास :
बेसिन में अधिवासों का वितरण असमान है। ग्रामीण तथा नगरीय अधिवासों के कार्यों में भिन्नता के कारण उनकी स्थिति तथा वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों में भी अंतर है। यहाँ 14,723 ग्रामीण एवं 68 नगरीय अधिवास है। अधिवासों का औसत घनत्व प्रति 100 वर्ग कि. मी. क्षेत्र में 20 अधिवास है। ग्रामीण अधिवास मूलत: कृषि कार्य पर निर्भर है।
ग्रामीण अधिवास :
ऊपरी महानदी बेसिन में ग्रामीण अधिवास प्रतिरूप में धरातलीय, स्थलाकृति, मैदानी तथा पठारी क्षेत्रों के बीच काफी अंतर पाया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में प्रति 100 वर्ग किमी में 25 अधिवास है जबकि सीमांत उच्चभूमि में 15 अधिवास है। उच्चभूमि में मात्र औसत 06 अधिवास है। बेसिन के केंद्रीय भाग में अधिवासी का आकार 800 से अधिक तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में 800 से कम है। रायपुर, जांजगी तथा दुर्ग जिलों में अधिवासों का आकार बड़ा एवं बिलासपुर, सक्ति, बेमेतरा, उदयपुर तथा बलौदाबाजार तहसीलों में मध्यम और शेष तहसीलों में कम है।
बेसिन में जन शून्य क्षेत्र उच्च पहाड़ियों एवं वनों के क्षेत्र (मैकल के उच्च भाग, उदयपुर तहसील, रायगढ़ पठार आदि में धरातलीय विभिन्नता के कारण कम जनसंख्या पाई जाती है। यहाँ गृहों के समूहन के आधार पर सघन, अर्धसघन एवं विकीर्ण ग्रामीण अधिवास देखने को मिलते हैं।
नगरीय अधिवास :
ऊपरी महानदी बेसिन में 16.82 प्रतिशत व्यक्ति नगरों के निवासी है। यहाँ कुल 68 नगर हैं। अधिकांश नगरों की उत्पत्ति नवीन है। स्वतंत्रता के बाद भिलाई नगर, कोरबा, दल्लीराजहरा जैसे औद्योगिक एवं खनिज नगरों का अभ्युदय हुआ है। यहाँ बड़े ग्रामीण बाजारों ने नगर का रूप ले लिया है तथा पुराने नगर बड़े आकार में हो गये हैं। यहाँ नगरीय अधिवास की वृद्धि दर ग्रामीण अधिवास के अधिक है।
बेसिन में अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि (100 प्रतिशत) महासमुंद, कटघोरा, दुर्ग तहसील, मध्यम वृद्धि (50-100 प्रतिशत) सक्ति, कवर्धा, राजनांदगांव, बेमेतरा, बालोद एवं रायपुर तहसील तथा न्यून वृद्धि (50 प्रतिशत) से कम मुंगेली, जांजगीर, रायगढ़ व सारंगढ़ तहसील में है। यहाँ 10,000 से 19,999 जनसंख्या वाले नगर 41.07 प्रतिशत है और 5,000 जनसंख्या वाले 3.58 प्रतिशत हैं।
नगरीय अधिवास में वृद्धि का प्रमुख कारण तीव्र औद्योगीकरण, प्रशासनिक, शैक्षणिक, रोजगार की सुविधा आदि है। ग्रामीण अधिवासों में कृषि की प्रधानता रहती है।
बेसिन में एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले 7 नगर हैं। दुर्ग-भिलाई, रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, धमतरी, दल्लीराजहरा आदि विकसित औद्योगिक एवं खनिज नगर हैं।
परिवहन :
परिवहन के साधनों पर किसी प्रदेश का विकास निर्भर करता है। बेसिन में भी परिवहन के तीन प्रमुख साधन हैं - सड़क मार्ग, रेलमार्ग एवं वायु मार्ग।
1. सड़क मार्ग :
बेसिन में कच्ची एवं पक्की दोनों तरह की सड़कें हैं। बेसिन की संपूर्ण पक्की सड़कों की लंबाई 15,491 किमी तथा कच्ची सड़कों की लंबाई 11,922 किमी है। बेसिन में प्रति सौ वर्ग किमी क्षेत्रफल पर पक्की सड़कों की लंबाई 20.35 किमी एवं कच्ची सड़कों की लंबाई 28.57 किमी है
बेसिन में राष्ट्रीय राज्य मार्ग 06 (मुंबई से कलकत्ता) और 43 (रायपुर से विशाखापट्टनम) मुख्य रूप से है। सड़क मार्ग में राष्ट्रीय मार्ग, राजमार्ग, जिला मार्ग एवं ग्रामीण मार्ग (पगडंडी) प्रमुख हैं।
बेसिन में म. प्र. राज्य सड़क परिवहन निगम की 493 बसें 1,28,061 किलोमीटर की दूरी प्रतिदिन तय करती है। अन्तरराज्यीय बस सेवाओं के अंतर्गत 38 बसें हैं जो उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश तथा बिहार तक जाती है।
2. रेलमार्ग :
बेसिन का प्रमुख रेलमार्ग मुंबई हावड़ा रेलमार्ग है। यह सभी जिला मुख्यालयों से होकर जाता है। यह बड़ी रेल लाइन है, जिसका निर्माण 1890 ई. में हुआ था। इससे कई शाखा रेलमार्ग जुड़े हैं। बेसिन में रेलमार्ग की कुल लंबाई 5,739 किमी है। बेसिन के प्रमुख रेलमार्ग निम्नलिखित है :-
1. मुंबई-कलकत्ता रेलमार्ग व हावड़ा-अहमदाबाद (बड़ी लाइन)
2. रायपुर-धमतरी (संकरी लाइन)
3. रायपुर-राजिम (संकरी लाइन)
4. रायपुर-महासमुंद वाल्टेयर (बड़ी लाइन)
5. बिलासपुर-कटनी (बड़ी लाइन)
6. चांपा-कोरबा-गेवरा रोड (बड़ी लाइन)
7. रायगढ़-झारसुगड़ा
8. बिलासपुर-बीरसिंहपुर
9. चिरमिरी-विश्रामपुर
10. मरौदा-दल्लीराजहरा
11. दुर्ग-मरौदा
12. अभनपुर-राजिम
3. वायु मार्ग :
बेसिन में रायपुर से 14 किमी दक्षिण में स्थित माना में एक मात्र हवाई अड्डा है। जहाँ से भोपाल, जबलपुर, दिल्ली, नागपुर, मुंबई के लिये वायु सेवाएं उपलब्ध है।
संचार :
ऊपरी महानदी बेसिन में प्रति डाक तार घर द्वारा सेवित जनसंख्या 5,766 है एवं प्रति लाख जनसंख्या पर टेलीफोन कनेक्शनों की संख्या 82 है। यहाँ संचार के साधनों का विकास खंड स्तर पर किया जा रहा है जो विकास का सूचक है।
व्यापार :
बेसिन की अर्थव्यवस्था में कृषि सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में 53 कृषि उपज मंडिया एवं 1964 साप्ताहिक बाजार है। नगरों में विशिष्टीकृत बाजार विकसित हो चुके है। बेसिन से देश के विभिन्न भागों को बड़ी मात्रा में चावल का निर्यात किया जाता है। निर्यात व्यापार में वनोंपज का भी स्थान महत्त्वपूर्ण है। यहाँ से बड़ी मात्रा में तेंदूपत्ता, लकड़ी तथा बांस आदि अन्य प्रदेशों को भेजा जाता है। भिलाई से इस्पात उत्पाद, सीमेंट कारखानों से सीमेंट, कोरबा से अल्युमिनियम, रायगढ़ से कोसा, रेशम जैसे औद्योगिक उत्पादों का निर्यात केवल देश ही नहीं विदेशों को भी होता है।
बेसिन में दूसरे क्षेत्रों से कपड़े, होजियारी के सामान, गेहूँ, तेल, चमड़े का सामान, चीनी आदि उपभोग वस्तुओं का आयात किया जाता है। कई औद्योगिक कच्चे माल जैसे कोयला, मैगनीज, बॉक्साइट, कपास तथा पटसन आदि का आयात देश के अन्य भागों से करना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय तथा साप्ताहिक बाजार होता है। जहाँ व्यापारियों से दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।
सारिणी क्रमांक - 1.9 ऊपरी महानदी बेसिन - परिवहन एवं संचार, 1991 (लंबाई किलोमीटर में) | ||||||||
क्र. | जिला | पक्की सड़कों की लंबाई | कच्ची सड़कों की लंबाई | प्रति सौ वर्ग किमी. पर पक्की सड़कों की लंबाई | प्रति सौ वर्ग किमी पर कच्ची सड़कों की लंबाई | आबाद गाँवों से प्रतिशत | प्रति डाकतार पर सेवित जनसंख्या | प्रति लाख जनसंख्या पर टेलीफोन कनेक्शनों की संख्या |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 |
1. 2.
3. 4. 5. 6. | बिलासपुर रायगढ़ (जशपुर तह. को छोड़) राजनांदगांव दुर्ग रायपुर बस्तर (कांकेर तह.) | 3,900.00 1,951.44
1,747.07 2,392.42 2,499.00 - | 1,118.00 2,707.00
1,118.00 1,962.07 2,660.00 - | 25.75 19.59
19.19 30.84 14.57 12.16 | 27.95 24.12
33.78 53.30 29.16 03.16 | 54.96 43.13
45.62 42.53 58.83 20.44 | 7,937 4,260
6,864 5,861 6,311 3,368 | 133 41
40 44 84 150 |
| औसत बेसिन | 15,490.23 | 11,921.87 | 20.16 | 28.57 | 44.25 | 5,766 | 82 |
स्रोत - आर्थिक एवं सांख्यिकीय संचालनालय म. प्र., भोपाल |
ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास, शोध-प्रबंध 1999 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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11 | सारांश एवं निष्कर्ष : ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास |
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