नई दिल्ली : भारतीय शोधकर्ताओं ने सिंथेटिक रेशों के ताने-बाने से नैनो-फाइबर युक्त एक नया पोर्टेबल 2डी-मैट बनाया है, जो पानी से आर्सेनिक जैसी भारी धातुओं को अलग करने के साथ-साथ उसमें मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने में भी मददगार साबित हो सकता है।
किसी झिल्ली की तरह दिखने वाला यह छिद्र युक्त 2डी-मैट है, जिसे इलेक्ट्रोस्पिनिंग विधि से खास हाइब्रिड नैनो मैटेरियल का उपयोग करके बनाया गया है। इस 2डी-मैट को पॉलीएक्रीलोनाइट्रील नामक सिंथेटिक कार्बन नैनो-फाइबर और सिल्वर नैनो कणों के साथ रासायनिक रूप से बंधे कार्बन नैनोट्यूब को मिलाकर बनाया गया है।
रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के शोधकर्ताओं द्वारा बनाया गया यह 2डी-मैट पानी में मौजूद विषाक्त तत्वों को सोख लेता है और कीटाणुओं का शोधन करने में भी इसे प्रभावी पाया गया है। इसे बनाने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि नैनो तकनीक से बनाए गए इस मैट का उपयोग भविष्य में वाटर फिल्टर यंत्र बनाने में हो सकता है।
शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व कर रहे आईआईटी-रुड़की की नैनो-बायोटेक्नोलॉजी लैब से जुड़े प्रोफेसर पी. गोपीनाथ ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “आमतौर पर घरों में उपयोग होने वाले ज्यादातर वाटर फिल्टर पॉलिमर से बने होते हैं। जबकि इस मैट में प्रदूषकों को हटाने के लिये खासतौर पर बनाए गए हाइब्रिड नैनो मैटेरियल के गुणों का उपयोग किया गया है। स्वास्थ्य सुरक्षा के पैमाने पर भी इस मैट को खरा पाया गया है क्योंकि इसकी मदद से शोधित किया गया पानी पीने के लिए पूरी तरह सुरक्षित है।”
इस मैट को बनाने वाले शोधकर्ताओं के अनुसार पारम्परिक गुरुत्वाकर्षण प्रवाह विधि पर आधारित यह 2डी-मैट सस्ता है और इसे आम लोग भी आसानी से उपयोग कर सकते हैं। इसे सामान्य तरीके से भी उपयोग किया जा सकता है, जैसे पानी से प्रदूषकों को छानने के लिये किसी कपड़े का उपयोग किया जाता है। इसमें उपयोग किए गए जीवाणु-रोधी एजेंट (सिल्वर नैनो कण) अशुद्धियों को सोख लेते हैं। यही नहीं, दूषित पानी में इस मैट को डुबोने से उसमें मौजूद बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। मैट के परीक्षण में पाया गया है कि यह एक घंटे में प्रदूषित पानी से दस लाख बैक्टीरिया हटाने के साथ-साथ आर्सेनिक जैसी भारी धातुओं को 89 प्रतिशत तक हटा सकता है।
प्रोफेसर गोपीनाथ के अनुसार “भारत में जल जनित बीमारियों का खतरा बहुत अधिक है, जिसका प्रमुख कारण स्वच्छ पानी की कमी है। कई इलाकों में तो लोग आर्सेनिक युक्त जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं। इसलिए हम प्रदूषकों को हटाने के लिये प्रभावी जल शोधन प्रणाली की खोज में जुटे थे। साफ पेयजल की उपलब्धता चुनौती से जूझ रहे ग्रामीण इलाकों में रहने वाली बहुसंख्य आबादी इससे लाभान्वित हो सकती है।”
प्रोफेसर पी. गोपीनाथ के अलावा शोधकर्ताओं की टीम में राजकुमार सदाशिवम और शानिद मोहियुद्दीन शामिल थे। यह अध्ययन हाल में एसीएस ओमेगा नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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