जल इंसान की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है, लेकिन जैसे-जैसे धरती पर इंसानों की आबादी का बोझ बढ़ता गया, इंसानों ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति का दोहन शुरु किया। लोगों को लगा कि जल सहित अन्य प्राकृतिक संसाधन धरती पर असीमित मात्रा में हैं, तो वें अतिदोहन पर उतर आए। प्रकृति के संसाधनों को केवल आर्थिक लाभ अर्जित करने का माध्यम समझा गया। संसाधनों के दोहन की इस पूरी प्रक्रिया में ‘प्रकृति के विज्ञान’ की जगह ‘मानवीय विज्ञान’ को महत्व दिया गया। इसका परिणाम आज भीषण जल संकट और ग्लोबल वार्मिंग के रूप में पूरे विश्व के सामने है। फिलहाल इन समस्याओं में इंसान को प्रत्यक्ष तौर पर जल संकट प्रभावित कर रहा है। आबादी का बोझ बढ़ने के साथ ही पानी की उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है, जो वैश्विक स्तर पर जल संबंधित विवादों का रूप धारण कर रही हैं। इन विवादों के बढ़ने से कई बार लोगों की जान तक चली जाती है, तो कभी-कभी यें दो देशों के बीच तकरार का कारण भी बनते हैं।
वर्ल्ड वाॅटर डाॅट ओआरजी के आंकड़ों के अनुसार ‘‘दुनियाभर में वर्ष 1187 से 2019 पानी से संबंधित 897 विवाद हुए हैं। इनमें साल 2000 से 2009 के बीच 220 विवाद और 2010 से 2019 के बीच 466 विवाद हुए हैं। भारत में वर्ष 2000 से 2009 के बीच 11 विवाद और 2010 से अभी तक जल से संबंधित 32 विवाद हुए हैं।’’ दुनिया भर में पानी के विवादों में 111 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि भारत में वृद्धि दर 118 प्रतिशत रही है। दरअसल, धरती की 45 प्रतिशत वैश्विक सतह पर जल बेसिन हैं। दुनियाभर में 279 ट्रांसबाउंड्री बेसिन हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार ‘‘805 ईसवीं से अब तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 3600 जल संधियां हो चुकी हैं।’’ 148 देश इन्हीं अंतर्राष्ट्रीय बेसिनों में स्थित हैं। इसलिए इन विवादों का कारण घटता जल और अंतर्राष्ट्रीय संधियां दोनो ही हैं। क्योंकि इन विवादों में कई घटनाएं देश के अंतर भी घटित हुई हैं, तो कुछ विवाद संधियों को लेकर भी। हालांकि भारत के संदर्भ में जल ये स्थिति काफी अलग और विकट भी है।
भारत इतिहास के सबसे भीषण जल संकट से जूझ रहा है। हर साल जल संकट की समस्या और बढ़ती जाती है, लेकिन समाधान के तौर पर सरकार और जनता के प्रयास धरातल पर नजर नहीं आते। परिणामतः कई इलाकों में जल संकट एक बड़ा संघर्ष बन जाता है और संघर्ष बढ़ने पर ये आपसी विवाद का रूप धारण कर लेता है। एनसीआरबी की रिपोर्ट की बात करें तो बिहार में पानी को लेकर 228 आपराधिक घटनाएं दर्ज की गई, जिनसें 327 लोग पीड़ित हैं, जबकि दिल्ली और चंड़ीगढ़ में एक एक, पश्चिम बंगाल में दो, मध्य प्रदेश में सात, केरल में एक, झारखंड में तीन, हिमाचल में एक, आंध्र प्रदेश में 12, गुजरात में 32, तमिलनाडु में 39, कर्नाटक में 53, हरियाणा में 56, और उत्तर प्रदेश में 79 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं महाराष्ट्र में 255 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 285 लोग पीड़ित हैं। वर्ष 2018 तक कोर्ट में 3028 मामले लंबित हैं। हालाकि कोलकाता से स्पष्टीकरण मांगा गया था।
राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2017 में पानी के कारण 432 आपराधिक घटनाएं दर्ज की गई थी, जो वर्ष 2018 में बढ़कर 838 हो गई। इनमें से वर्ष 2018 में पानी को लेकर हुए विभिन्न झगड़ों में 92 लोगों की हत्याएं भी कर दी गई थीं। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में गुजरात में 18 हत्याएं हुईं, जो कि सबसे ज्यादा हैं, जबकि बिहार पानी के कारण हत्याओं के मामले में दूसरे नंबर पर है। यहां 15 हत्याएं हुई थीं। तो वहीं महाराष्ट्र में 14, उत्तर प्रदेश में 12, राजस्थान में 10, झारखंड में 10, देश की राजधानी में एक, तमिलनाडु में एक, मध्य प्रदेश में दो, तेलंगाना में दो, पंजाब में तीन और कर्नाटक में 4 हत्याएं हुई थीं। वर्ष 2018 में 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें 10 महिलाएं थीं। ऐसे में हमारी सरकारों को जल की समस्या को प्राथमिकता देते हुए समाधान की दिशा में कार्य करना होगा। जनता भी अपने अपने स्तर पर वर्षा जल संग्रहण करे।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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