भारत, पाकिस्तान, चीन और पानी के पेंच

भारत, पाकिस्तान और चीन का जल विवाद
भारत, पाकिस्तान और चीन का जल विवाद

पानी आज दुनियां का सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। सही बात है कि पानी ही जीवन है। इस वर्ष भारत में एक ऐसी अप्रत्याशित तबाही हुई है जिसका संबंध पानी से है। लेह में बादल फटना पूर्णतः असाधारण घटना थी। जगह-जगह आ रही बाढ़ें पानी का पाठ हमें पढ़ा रही हैं, पानी के उचित प्रबंध की आवश्यकता पर हमारा ध्यान दिला रही है। पानी बचाओं का नारा जरूरी है लेकिन यह काफी नहीं है। पानी का कुप्रबंध चारों तरफ दिखाई दे रहा है। इसे रोकना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। पानी को प्रदूषण से बचाना, पानी का सही तरीके से उपयोग करना और उसके ड्रेनेज की सही व्यवस्था करना हमारी सोच तथा हमारी जीवन पद्धति के आवश्यक भाग होने चाहिए।

जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भी पानी पर ध्यान जाता है। जलवायु परिवर्तन कई तरह की तबाही कर सकता है जिसमें वर्षा की अनिश्चितता के साथ-साथ बाढ़ों की बढ़ोतरी हो सकती हैं। हमारी नदियां बुरी तरह प्रदूषित हो रही हैं। हिमालय से जल प्राप्त करने वाली नदियां भी सूख रही हैं। हिमालय के ग्लेशियर पिघलने के कारण गंगा कैसे बचेगी? वैसे गंगा तो आज भी एक गंदा, बड़ा नाला बन गई है जिसमें गंदगी के साथ-साथ रसायन और औद्योगिक कचरा भी डाला जा रहा है। सारी शुद्धता और पवित्रता को हमने खत्म कर दिया है। गंगा केवल भारत की नदी नहीं है। इसका उद्गम भारत में नहीं है। यह भारत में बहती-बहती बंगलादेश में जाकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। पानी के बंटवारे को लेकर दोनों देशों में कई बार तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। नेपाल और भूटान से भी जल परियाजनाओं को लेकर, बिजली परियोजनाओं को लेकर, कई तरह के विवाद हैं। पिछले वर्ष नेपाल से आये पानी ने बिहार के कुछ भागों में जबरदस्त तबाही मचाई थी।

भारत-पाकिस्तान वार्ताओं के सफल होने में एक बड़ी बाधा पानी को लेकर है। इन्डस वाटर ट्रीटी के बावजूद पाकिस्तान कश्मीर में पानी के लिए भी प्रत्यक्ष युद्ध लड़ रहा है। विश्व बैंक ने तीन पूर्वी नदियां सतलुज, व्यास और रवि भारत को दी तथा तीन पश्चिमी नदियां चिनाब, झेलम और इन्डस पाकिस्तान को दी थीं। इस संधि को लेकर भी विवाद है, इसकी व्याख्या को लेकर विवाद है, इसके प्रभावों को लेकर भी विवाद है। चीन पाकिस्तान का पक्का मित्र है और कई वर्षों से चीन द्वारा महान तिब्बती नदियों पर बांध बनाने व अन्य परियोजनाओं बनाने की खबरें भारत को चिन्तित करती रही हैं। ब्रह्मपुत्र को लेकर काफी चिंता है। भारत की हिमालयी नदियों का पानी चीन की भूमि से आता है। इस तरह पानी एक एशियाई मसला है तथा भारत तथा पाकिस्तान दोनों के लिए जीवन मरण का प्रश्न है।

भारत में भी पानी को लेकर अन्तर्राज्यीय विवाद बीच-बीच में उफान पर आ जाते हैं। कावेरी विवाद, रावी-व्यास विवाद, नर्मदा विवाद इसमें से ज्यादा उल्लेखनीय हैं। इन विवादों से कई जटिल सवाल जुड़े हैं। फिर इनको तय करने के लिए कोई गंभीर प्रयास राज्यों के दबावों या न्यायिक हस्तक्षेप के कारण नहीं किये गये हैं। समय आ गया है कि हम इस पर सोचें तथा इन मसलों को सुलझायें। हर राज्य के लिए पानी का और नदियों का सवाल प्रतिष्ठा का प्रश्न भी है, जनता की मांग भी है। जनसाधारण की आवश्यकता से सोचना चाहिए और अनुच्छेद 262 के अन्तर्गत बनाये इंटर-स्टेट वाटर ट्राइब्यूनल के अधिकारों को बढ़ाया जाना चाहिए किंतु भारत की एकता और अखंडता की बातें किसी भी स्थिति में नहीं होनी चाहिए। पानी न तो एक क्षेत्र का मामला है न एक राज्य का, न एक देश का। पानी एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है जो भविष्य में अधिक विकट स्वरूप धारण करेगी। दुनियां में मिलने वाले पानी का केवल दो प्रतिशत पानी ही पीने लायक है। पानी पीने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है और पानी मितव्ययता मानव स्वभाव से गायब होती जा रही है। पानी के लिए विश्व युद्ध होगा या नहीं, युद्ध से भी अधिक भयंकर तबाही भी आ सकती है।
 

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