भारत में जन-निजी भागीदारी

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की प्रस्तावना कहती है ‘‘निम्न गुणवत्ता का बुनियादी ढाँचा भारत की मध्यम अवधि में विकास संभावना को गंभीर रूप से सीमित कर रहा है और ग्यारहवीं योजना शहरी और ग्रामीण दोनों के बुनियादी ढाँचों के विकास के लिए व्यापक कार्य योजना की रूपरेखा प्रस्तुत करती है’’। 15 ग्यारहवीं योजना का अनुमान है कि 9% की वार्षिक औसत विकास दर बनाए रखने के लिए बुनियादी ढाँचे में वर्ष 2007-2008 के खर्च $ 2,59,839 करोड़ को बढ़ाकर 2011-2012 में $ 5,74,093 करना होगा। 2006-07 की कीमत के आधार पर कुल मिलाकर पाँच वर्षों में $ 20,11,521 करोड़ खर्च होंगे। 16 2006-07 में यह निवेश सकल घरेलू उत्पाद का 5% था जो योजना के अंतिम वर्ष में बढ़कर 9% हो जायेगा।

सावर्जनिक वितरण प्रणाली हेतु खाद्य सब्सिडी 2010.11 में $ 60,600 करोड़ थी जिसे घटाकर 2011.12 में $ 60,573 कर दिया गया है । अन्य सामाजिक क्षेत्र जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, जल आरै स्वच्छता सेवाओं का सम्मिलित खर्च 2010-11 में 2.06% से घटकर 2011.12 मे 1.96% कर दिया है।17

यह बहुत बड़ी धनराशि है और सरकार के अनुसार बिना निजी क्षेत्र के सहयोग से इसे इकट्ठा कर पाना शायद संभव न हो सकेगा। इसलिए सरकार ने तर्क दिया है-‘‘चूँकि विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों का तथा गरीबों के लिए चलाए जा रहे जीवनयापन सहायता योजनाओं को सार्वजनिक संसाधनों का सर्वप्रथम लाभ मिलना चाहिए। इसलिए बुनियादी ढाँचागत विकास की रणनीति इस प्रकार तय की गई है कि वह पीपीपी के विभिन्न प्रकारों के माध्यम से निजी क्षेत्र के निवेश पर अधिक से अधिक निर्भर करें’’। 18,19 उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि सरकार ने सार्वजनिक धन का निवेश सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में करने का तय किया है। इसलिए बुनियादी ढाँचा विकास हेतु निजी क्षेत्र से निवेश की अपेक्षा की है। हालांकि आँकड़े यह भी बताते हैं कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में भी आनुपातिक रूप से निवेश नहीं किया जा रहा है।

देश में लगभग 660 पीपीपी परियोजनाएँ सूचीबद्ध हैं। आर्थिक मामलों के विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार की वेबसाइट 20 पर दिए गए पीपीपी के क्रियान्वयन विवरण के अनुसार इन 660 परियोजनाओं में से सर्वाधिक 371 सड़क क्षेत्र की परियोजनाएँ हैं। इसके अलावा 46 ऊर्जा, 56 बंदरगाह, 131 शहरी विकास, 5 हवाई अड्डों, 4 रेलवे, 6 शिक्षा और 3 स्वास्थ्य से संबंधित परियोजनाएँ हैं। पानी से संबंधित परियोजनाएँ शहरी विकास क्षेत्र की सूची में है जलक्षेत्र से संबंधित कुल 30 परियोजनाएँ हैं जिनमें निम्न जलप्रदाय परियोजनाएँ हैं -

1. विशाखापट्टनम औद्योगिक जलप्रदाय परियोजना, आंध्रप्रदेश
2. आदित्यपुर जलप्रदाय योजना, चरण-1, झारखण्ड़
3. कर्नाटक शहरी जलक्षेत्र सुधार परियोजना
4. देवास औद्योगिक जलप्रदाय परियोजना, मध्यप्रदेश
5. खण्ड़वा (मध्यप्रदेश) में जल आवर्धन परियोजना
6. पुर्नचक्रीकृत जल का पुर्नउपयोग तृतीयक जलशोधन संयत्र, जयपुर राजस्थान (रियूस ऑफ रिसाइकल्ड वाटर टर्शरी ट्रिटमेंट वाटर प्लांट)
7. 100 एमएलडी समुद्री जल का शुद्धिकरण संयंत्र, चेन्नई (100 एमएलडी सी वाटर डेसेलिनेशन प्लांट रिवर्स आस्मोसिस, चेन्नई)
8. अलन्दूर जल-मलनिकास परियोजना, तमिलनाडु
9. तिरूपुर औद्योगिक जलप्रदाय परियोजना, तमिलनाडु
10. शिवपुरी जलप्रदाय परियोजना, मध्यप्रदेश
11. जलप्रदाय आवर्धन का प्रबंधन अनुबंध, भिवंडी, महाराष्ट्र
12. हल्दिया (पश्चिम बंगाल) के जलशोधन संयंत्र का संचालन, सधारण और प्रबंधन परियोजना
13. कोलकाता के साल्टलेक में जलप्रदाय और मलनिकासी परियोजना

हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि मंत्रालय की वेबसाइट पर जलक्षेत्र से संबंधित इतनी कम परियोजनाएँ ही क्यों सूचीबद्ध की गई हैं जबकि इससे अधिक पीपीपी परियोजनाओं का विभिन्न स्तरों पर क्रियान्वयन जारी है। सूची में दी गई सभी पीपीपी परियोजनाओं की कुल लागत रुपए 3,35,453 करोड़ रुपए है। लागत के आधार पर परियोजनाओं का अधिकतम अंश सड़क और बंदरगाह के क्षेत्र के लिए है जबकि शहरी विकास के लिए न्यूनतम है जो रुपए 26,898 करोड़ रुपए है।

मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा भारत में जलक्षेत्र में कार्यरत पीपीपी परियोजनाओं 21 की विस्तृत सूची तैयार की गई है जिसमें इससे कहीं अधिक परियोजनाएँ हैं।

जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) और छोटे तथा मझौले शहरों की अधोसंरचना विकास योजना (यूआईडीएस एसएमटी) जैसी भी परियोजनाएँ हैं जो शहरी नागरिक सेवाओं पीपीपी को बढ़ावा दे रही हैं।

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