विश्व के अनेक देशों की तुलना में भारत में अधिक मात्रा में भूमि तथा जल संसाधन उपलब्ध हैं। किन्तु बढ़ती हुई जनसंख्या और जल से संबंधित मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध जल संसाधन सीमित हैं। इस कारण उपलब्ध सतह और भूमिगत जलस्रोतों की सही-सही मूल्यांकन जल संसाधन के निर्धारण, विकास एवं प्रबंध हेतु अत्यन्त आवश्यक है। केंद्र और राज्य सरकारों के अधीनस्थ सिंचाई एवं जल संसाधन विभागों में जलविज्ञान विषय को विशेष महत्व न देकर सामान्य रूप से जिला अभियन्ताओं द्वारा जल उपलब्धि की मूल्यांकन तथा जल संसाधन परियोजनाओं संबंधित जलविज्ञान अभिकल्पना किया जा रहा है।
इन कार्यरत अभियन्ताओं को जलविज्ञान क्षेत्र में विशेष शिक्षा, प्रशिक्षण अथवा अनुभव प्राप्त न होने के कारण इन के द्वारा किया गया विश्लेषण और मूल्यांकन कसौटी पर खड़े नहीं हो पाते। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय ने विश्व बैंक की सहायता प्राप्त करने के लिए जलविज्ञान परियोजना की परिकल्पना की थी। जलविज्ञान में प्रशिक्षण इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसका दायित्व राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान को सौंपा गया है। इस पुनरावलोकन पत्र में भारत में जलविज्ञान में प्रशिक्षण से संबंधित कुछ समस्याएं और उनके समाधान के लिए किए जा रहे प्रयासों की चर्चा की गई है।
इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
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इन कार्यरत अभियन्ताओं को जलविज्ञान क्षेत्र में विशेष शिक्षा, प्रशिक्षण अथवा अनुभव प्राप्त न होने के कारण इन के द्वारा किया गया विश्लेषण और मूल्यांकन कसौटी पर खड़े नहीं हो पाते। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय ने विश्व बैंक की सहायता प्राप्त करने के लिए जलविज्ञान परियोजना की परिकल्पना की थी। जलविज्ञान में प्रशिक्षण इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसका दायित्व राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान को सौंपा गया है। इस पुनरावलोकन पत्र में भारत में जलविज्ञान में प्रशिक्षण से संबंधित कुछ समस्याएं और उनके समाधान के लिए किए जा रहे प्रयासों की चर्चा की गई है।
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