भारत में जल की समस्या पर निबंध (Essay on water problem in India)

सारांश


वर्षाजल संग्रहणपिछले कुछ दशकों से जल संकट भारत के लिये बहुत बड़ी समस्या है। इन दिनों जल संरक्षण शोधकर्ताओं के लिये मुख्य विषय है। जल संरक्षण की बहुत सी विधियाँ सफल हो रही हैं। जल संकट और जल संरक्षण से सम्बन्धित अनेक विषयों पर इस लेख में विचार किया गया है।

Abstract - Water crisis has been a huge problem for past few decades in India. Water conservation is an investigative area for researchers these days. There are many successful methods implemented so for to conserve water. Various issues related to water crisis & its conservation has been discussed briefly in this paper.

आधारभूत पंचतत्वों में से एक जल हमारे जीवन का आधार है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिये कवि रहीम ने कहा है- ‘‘रहिमन पानी राखिये बिना पानी सब सून। पानी गये न उबरै मोती मानुष चून।’’ यदि जल न होता तो सृष्टि का निर्माण सम्भव न होता। यही कारण है कि यह एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसका कोई मोल नहीं है जीवन के लिये जल की महत्ता को इसी से समझा जा सकता है कि बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ नदियों के तट पर ही विकसित हुई और अधिकांश प्राचीन नगर नदियों के तट पर ही बसे। जल की उपादेयता को ध्यान में रखकर यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम न सिर्फ जल का संरक्षण करें बल्कि उसे प्रदूषित होने से भी बचायें। इस सम्बन्ध में भारत के जल संरक्षण की एक समृद्ध परम्परा रही है और जीवन के बनाये रखने वाले कारक के रूप में हमारे वेद-शास्त्र जल की महिमा से भरे पड़े हैं। ऋग्वेद में जल को अमृत के समतुल्य बताते हुए कहा गया है- अप्सु अन्तः अमतं अप्सु भेषनं।

जल की संरचना - पूर्णतः शुद्ध जल रंगहीन, गंधहीन व स्वादहीन होता है इसका रासायनिक सूत्र H2O है। ऑक्सीजन के एक परमाणु तथा हाइड्रोजन के दो परमाणु बनने से H2O अर्थात जल का एक अणु बनता है। जल एक अणु में जहाँ एक ओर धनावेश होता है वहीं दूसरी ओर ऋणावेश होता है। जल की ध्रुवीय संरचना के कारण इसके अणु कड़ी के रूप में जुड़े रहते हैं। वायुमण्डल में जल तरल, ठोस तथा वाष्प तीन स्वरूपों में पाया जाता है। पदार्थों को घोलने की विशिष्ट क्षमता के कारण जल को सार्वभौमिक विलायक कहा जाता है। मानव शरीर का लगभग 66 प्रतिशत भाग पानी से बना है तथा एक औसत वयस्क के शरीर में पानी की कुल मात्रा 37 लीटर होती है। मानव मस्तिष्क का 75 प्रतिशत हिस्सा जल होता है। इसी प्रकार मनुष्य के रक्त में 83 प्रतिशत मात्रा जल की होती है। शरीर में जल की मात्रा शरीर के तापमान को सामान्य बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जल संकट और भारत - आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत भी जल संकट से जूझ रहा है। यहाँ जल संकट की समस्या विकराल हो चुकी है। न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी जल संकट बढ़ा है। वर्तमान में 20 करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में जहाँ पानी की कमी बढ़ी है, वहीं राज्यों के मध्य पानी से जुड़े विवाद भी गहराए हैं। भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण धरती की कोख सूख रही है। जहाँ मीठे पानी का प्रतिशत कम हुआ है वहीं जल की लवणीयता बढ़ने से भी समस्या विकट हुई है। भूगर्भीय जल का अनियंत्रित दोहन तथा इस पर बढ़ती हमारी निर्भरता पारम्परिक जलस्रोतों व जल तकनीकों की उपेक्षा तथा जल संरक्षण और प्रबन्ध की उन्नत व उपयोगी तकनीकों का अभाव, जल शिक्षा का अभाव, भारतीय संविधान में जल के मुद्दे का राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में रखा जाना, निवेश की कमी तथा सुचिंतित योजनाओं का अभाव आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिसकी वजह से भारत में जल संकट बढ़ा है। भारत में जनसंख्या विस्फोट ने जहाँ अनेक समस्याएँ उत्पन्न की हैं, वहीं पानी की कमी को भी बढ़ाया है। वर्तमान समय में देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 1.5 करोड़ प्रतिशत बढ़ रही है। ऐसे में वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 150 से 180 करोड़ के बीच पहुँचने की सम्भावना है। ऐसे में जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना कितना दुरुह होगा, समझा जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में 60 प्रतिशत की कमी आयी है।

जल संरक्षण एवं संचय के उपाय - जल जीवन का आधार है और यदि हमें जीवन को बचाना है तो जल संरक्षण और संचय के उपाय करने ही होंगे। जल की उपलब्धता घट रही है और मारामारी बढ़ रही है। ऐसे में संकट का सही समाधान खोजना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व बनता है। यही हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी बनती है और हम अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से भी ऐसी ही जिम्मेदारी की अपेक्षा करते हैं। जल के स्रोत सीमित हैं। नये स्रोत हैं नहीं, ऐसे में जलस्रोतों को संरक्षित रखकर एवं जल का संचय कर हम जल संकट का मुकाबला कर सकते हैं। इसके लिये हमें अपनी भोगवादी प्रवित्तियों पर अंकुश लगाना पड़ेगा और जल के उपयोग में मितव्ययी बनना पड़ेगा। जलीय कुप्रबंधन को दूर कर भी हम इस समस्या से निपट सकते हैं। यदि वर्षाजल का समुचित संग्रह हो सके और जल के प्रत्येक बूँद को अनमोल मानकर उसका संरक्षण किया जाये तो कोई कारण नहीं है कि वैश्विक जल संकट का समाधान न प्राप्त किया जा सके। जल के संकट से निपटने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव यहाँ बिन्दुवार दिये जा रहे हैं-

1. प्रत्येक फसल के लिये ईष्टतम जल की आवश्यकता का निर्धारण किया जाना चाहिए तद्नुसार सिंचाई की योजना बनानी चाहिए। सिंचाई कार्यों के लिये स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई जैसे पानी की कम खपत वाली प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। कृषि में औसत व द्वितीयक गुणवत्ता वाले पानी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, विशेष रूप से पानी के अभाव वाले क्षेत्रों में।

2. विभिन्न फसलों के लिये पानी की कम खपत वाले तथा अधिक पैदावार वाले बीजों के लिये अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

3. जहाँ तक सम्भव हो ऐसे खाद्य उत्पादों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें पानी का कम प्रयोग होता है। खाद्य पदार्थों की अनावश्यक बर्बादी में कमी लाना भी आवश्यक है। विश्व में उत्पादित होने वाला लगभग 30 प्रतिशत खाना खाया नहीं जाता है और यह बेकार हो जाता है। इस प्रकार इसके उत्पादन में प्रयुक्त हुआ पानी भी व्यर्थ चला जाता है।

4. जल संकट से निपटने के लिये हमें वर्षाजल भण्डारण पर विशेष ध्यान देना होगा। वाष्पन या प्रवाह द्वारा जल खत्म होने से पूर्व सतह या उपसतह पर इसका संग्रह करने की तकनीक को वर्षाजल भण्डारण कहते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि तकनीक को न सिर्फ अधिकाधिक विकसित किया जाय बल्कि ज्यादा से ज्यादा अपनाया भी जाय। यह एक ऐसी आसान विधि है जिसमें न तो अतिरिक्त जगह की जरूरत होती है और न ही आबादी विस्थापन की। इससे मिट्टी का कटाव भी रुक जाता है तथा पर्यावरण भी संतुलित रहता है। बंद एवं बेकार पड़े कुँओं, पुनर्भरण पिट, पुनर्भरण खाई तथा पुनर्भरण शॉफ्ट आदि तरीकों से वर्षाजल का बेहतर संचय कर हम पानी की समस्या से उबर सकते हैं।

5. वर्षाजल प्रबंधन और मानसून प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाय और इससे जुड़े शोध कार्यों को प्रोत्साहित किया जाय। जल शिक्षा को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में जगह दी जाय।

6. जल प्रबंधन और जल संरक्षण की दिशा में जन जागरुकता को बढ़ाने का प्रयास हो। जल प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया जाय तथा संकट से निपटने के लिये इनकी सेवाएँ ली जाय।

7. पानी के इस्तेमाल में हमें मितव्ययी बनना होगा। छोटे-छोटे उपाय कर जल की बड़ी बचत की जा सकती है। मसलन हम दैनिक जीवन में पानी की बर्बादी कतई न करें और एक-एक बूँद की बचत करें। बागवानी जैसे कार्यों में भी जल के दुरुपयोग को रोकें।

8. औद्योगिक विकास और व्यावहारिक गतिविधियों की आड़ में जल के अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिये तथा इस प्रकार से होने वाले जल प्रदूषण को रोकने के लिये कड़े व पारदर्शी कानून बनाये जाएँ।

9. जल संरक्षण के लिये पर्यावरण संरक्षण जरूरी है। जब पर्यावरण बचेगा तभी जल बचेगा। पर्यावरण असंतुलन भी जल संकट का एक बड़ा कारण है। इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं। हिमालय पर्यावरण के कारण सिकुड़ने लगे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सन 2030 तक ये ग्लेशियर काफी अधिक सिकुड़ सकते हैं। इस तरह हमें जल क्षति भी होगी। पर्यावरण संरक्षण के लिये हमें वानिकी को नष्ट होने से बचाना होगा।

10. हमें ऐसी विधियाँ और तकनीकें विकसित करनी होगी जिनसे लवणीय और खारे पानी को मीठा बनाकर उपयोग में लाया जा सके। इसके लिये हमें विशेष रूप से तैयार किये गये वाटर प्लांटों को स्थापित करना होगा। चेन्नई में यह प्रयोग बेहद सफल रहा जहाँ इस तरह स्थापित किये गये वाटर प्लांट से रोजाना 100 मिलियन लीटर पानी पीने योग्य पानी तैयार किया जाता है।

11. प्रदूषित जल का उचित उपचार किया जाय तथा इस उपचारित जल की आपूर्ति औद्योगिक इकाईयों को की जाय।

12. जल प्रबंधन व शोध कार्यों के लिये निवेश को बढ़ाया जाय।

13. जनसंख्या बढ़ने से जल उपभोग भी बढ़ता है ऐसे में विशिष्ट जल उपलब्धता (प्रतिव्यक्ति नवीनीकृत जल संसाधन की उपलब्धता) कम हो जाती है। अतएव इस परिप्रेक्ष्य में हमें जनसंख्या पर भी ध्यान देना होगा।

14. हमें पानी के कुशल उपयोग पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। जल वितरण में असमानता को दूर करने के लिये जल कानून बनाने होंगे।

 

 

 

जल संचय की विधियाँ


नलकूपों द्वारा रिचार्जिंग - छत से एकत्र पानी को स्टोरेज टैंक तक पहुँचाया जाता है। स्टोरेज टैंक का फिल्टर किया हुआ पानी नलकूपों तक पहुँचाकर गहराई में स्थित जलवाही स्तर को रिचार्ज किया जाता है। उपयोग न किये जाने वाले नलकूप से भी रिचार्ज किया जा सकता है।

गड्ढे खोदकर - ईंटों के बने ये किसी भी आकार के गड्ढे का मुँह पक्की फर्श से बंद कर दिया जाता है। इनकी दीवारों में थोड़ी-थोड़ी दूर पर सुराख बनाये जाते हैं इसकी तलहटी में फिल्टर करने वाली वस्तुएँ डाल दी जाती हैं।

सोक वेज या रिचार्ज साफ्टस - इनका उपयोग वहाँ किया जाता है जहाँ मिट्टी जलोढ़ होती है। इसमें 30 सेमी व्यास वाले 10 से 15 मीटर गहरे छेद बनाये जाते हैं, इसके प्रवेश द्वार पर जल एकत्र करने के लिये एक बड़ा आयताकार गड्ढा बनाया जाता है। इसका मुुँह पक्की फर्श से बन्द कर दिया जाता है। इस गड्ढे में बजरी, रोड़ी, बालू, इत्यादि डाले जाते हैं।

खोदे कुएँ द्वारा रिचार्जिंग - छत के पानी को फिल्ट्रेशन बेड से गुजारने के बाद कुओं तक पहुँचाया जाता है। इस तरीके में रिचार्ज गति को बनाये रखने के लिये कुएँ की लगातार सफाई करनी होती है।

खाई बनाकर - जिस क्षेत्र में जमीन की ऊपरी पर्त कठोर और छिछली होती है वहाँ इसका उपयोग किया जाता है। जमीन पर खाई खोदकर उसमें बजरी, ईंट के टुकड़े आदि को भर दिया जाता है। यह तरीका छोटे मकानों, खेल के मैदानों, पार्कों इत्यादि के लिये उपयुक्त होता है।

रिसाव टैंक - ये कृत्रिम रूप से सतह पर निर्मित जल निकाय होते हैं। बारिश के पानी को यहाँ जमा किया जाता है। इससे संचित जल रिसकर धरती के भीतर जाता है। जिससे भूजलस्तर ऊपर उठता है। संग्रहित जल को सीधे बागवानी इत्यादि कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है। रिसाव टैंकों को बगीचों, खुले स्थानों और सड़क के किनारे हरित पट्टी क्षेत्र में बनाया जाना चाहिए।

सरफेस रनऑफ हार्वेस्टिंग - शहरी क्षेत्रों में सतह माध्यम से पानी बहकर बेकार हो जाता है। इस बहते जल को एकत्र करके कई माध्यम से धरती के जलवाही स्तर को रिचार्ज किया जाता है।

रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग - इस प्रणाली के तहत वर्षा का पानी जहाँ गिरता है वहीं उसे एकत्र कर लिया जाता है। रूफ टॉप हार्वेस्टिंग में घर की छत ही कैचमेन्ट क्षेत्र का काम करती है। बारिश के पानी को घर की छत पर ही एकत्र किया जाता है। इस पानी को या तो टैंक में संग्रह किया जाता है या फिर इसे कृत्रिम रिचार्ज प्रणाली में भेजा जाता है। यह तरीका कम खर्चीला और अधिक प्रभावकारी है।

वास्तव में यह आज की जरूरत है कि हम वर्षाजल का पूर्ण रूप से संचय करें। यह ध्यान रखना होगा कि बारिश की एक बूँद भी व्यर्थ न जाए। इसके लिये रेन वॉटर हार्वेस्टिंग एक अच्छा माध्यम हो सकता है। आवश्यकता है इसे और विकसित व प्रोत्साहित करने की। इसके प्रति जनजागृति और जागरुकता को भी बढ़ाना समाज की आवश्यकता है।

सन्दर्भ
1. अग्रवाल, अनिल (2014-15) परीक्षा मंथन पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, इलाहाबाद, पृ.-207।
2. ‘‘पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी’’ अरिहन्त प्रकाशन, वर्ष 2014 पृ. 180।
3. प्रसाद, अनिरुद्ध (2009) पर्यावरण एवं पर्यावरणीय संरक्षण विधि की रूपरेखा सेण्ट्रल लॉ पब्लिकेशन, इलाहाबाद- पृ.-41।
4. श्रीवास्तव, डी.के. एवं राव, वी.पी. (1998) पर्यावरण और पारिस्थितिकी, पृ.-259।
5. विज्ञान प्रगति-वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, भारत, अक्टूबर 2011, पृ. 17-18।

 

 

 

 

लेखक परिचय


राजीव कुमार सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर, गणित विभाग
पी.बी.पी.जी. कॉलेज, प्रतापगढ़ सिटी,- प्रतापगढ़-230002 उ.प्र., भारत
dr.rejeevthakur2012@gmail.com

Rejeeve Kumar Singh
Assistant Professor, Department of Mathematics P.B.P.G. College, Pratapgarh City, Pratapgarh-230002, U.P., India, Email- dr.rejeevthakur2012@gmail.com

प्राप्त तिथि - 23.07.2016 स्वीकृत तिथि - 14.09.2016

 

 

 

 

 

 

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