प्रेम के शाश्वत प्रतीक ताजमहल से लेकर दक्षिण भारत के मन्दिरों और राजस्थान के भव्य किलों जैसे स्मारक देशभर में फैले हुए हैं। इसी तरह बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियाँ, घने जंगल, सुनहरे तट और रेतीले मरुस्थल भारत को पर्यटकों के लिये सही मायने में ‘अतुल्य’ गन्तव्य बनाते हैं। चिकित्सा, आरोग्य और गोल्फ जैसे खेलों के खास मकसद से यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिये भी भारत के पास देने को बहुत कुछ है।
समूचे विश्व में आज पर्यटन उद्योग विचार और मान्यताओं की दृष्टि से बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है। लोगों की क्रयशक्ति में भारी बढ़ोत्तरी और यात्रा के तेज व सस्ते साधनों के उपलब्ध हो जाने से अब लोग अधिक संख्या में देश-विदेश की यात्राएँ करने लगे हैं। इस तरह की यात्राओं का उद्देश्य आमतौर पर फुर्सत के पलों का आनन्द उठाना होता है। वैसे अब ऐसे लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है जो नई-नई बातें जानने-समझने और विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों, खान-पान के तौर-तरीकों, परम्पराओं आदि का अनुभव प्राप्त करने के लिये सैर-सपाटे पर निकलते हैं। इस तरह की यात्राओं को ‘अनुभवमूलक यात्राओं’ के रूप में जाना जाता है। आज के विचारशील पर्यटक पूरी जाँच-पड़ताल के बाद सैर-सपाटे के लिये दूर-दराज की अनजान जगहों की यात्राएँ करने को उत्सुक रहते हैं ताकि उन्हें अनोखा यात्रा अनुभव हासिल हो। अब पर्यटक ज्यादा जिम्मेदार भी हो गये हैं और जहाँ की यात्रा पर जाते हैं वहाँ के जन समुदाय को अपने सुखद अनुभवों के बदले में कुछ लौटाना चाहते हैं। वे मेजबान समुदाय से संवाद स्थापित करना चाहते हैं ताकि उस क्षेत्र के विकास में कुछ भागीदारी निभा सकें।
जैसाकि हम सब जानते ही हैं, भारत में पर्यटन की दृष्टि से आकर्षण के केन्द्र दूर-दूर तक फैले हैं और उनमें व्यापक विविधताएँ हैं। हमारी अति प्राचीन सामासिक संस्कृति ही पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। हमारे देश में पर्यटन स्थलों की कोई कमी नहीं है। प्रेम के शाश्वत प्रतीक ताजमहल से लेकर दक्षिण भारत के मन्दिरों और राजस्थान के भव्य किलों जैसे स्मारक देशभर में फैले हुए हैं। इसी तरह बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियाँ, घने जंगल, सुनहरे तट और रेतीले मरुस्थल भारत को पर्यटकों के लिये सही मायने में ‘अतुल्य’ गन्तव्य बनाते हैं। चिकित्सा, आरोग्य और गोल्फ जैसे खेलों के खास मकसद से यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिये भी भारत के पास देने को बहुत कुछ है।
महात्मा गाँधी ने एक बार कहा था कि भारत गाँवों में बसता है। भारत का ग्राम्य जीवन ‘असली भारत’ की तस्वीर प्रस्तुत करता है। हमारे गाँव देश की संस्कृति और परम्पराओं का खजाना हैं। महानगरों की गहमा-गहमी से दूर गाँवों में जीवन को अपेक्षाकृत सहज गति से जीने का अनुभव मन में नई स्फूर्ति का संचार करता है। हमारी अनोखी कलाओं और शिल्प के सिद्धहस्त कलाकार और दस्तकार गाँवों में ही निवास करते हैं और कलाओं व शिल्प को अपने मूल रूप में अब तक सहेज कर रखे हुए हैं। ये कलाएँ व शिल्प शहरों में मुश्किल से ही दिखाई पड़ती हैं। यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले आमतौर पर कृषक समाज के लोग हैं और कई बार उनकी आमदनी शहरों में रहने वालों की तुलना में कम होती है। गाँवों में पर्याप्त संख्या में रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हैं और बेहतर अवसरों की तलाश में शहरों को पलायन करने वाले युवक-युवतियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। नतीजा यह हुआ है कि गाँवों की कुछ परम्परागत कलाएँ और शिल्प धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं।
ग्रामीण पर्यटन एक ऐसा समाधान है जो ऊपर उठाए गए सभी सवालों के उत्तर दे सकता है। इस तरह के पर्यटन में पर्यटक ग्रामीण जीवनशैली में सक्रिय होकर भागीदारी निभाते हैं। वे किसी ग्रामीण स्थान तक पहुँचते हैं और गाँव की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में भाग लेते हुए वहाँ के जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करते हैं। इससे उन्हें उस क्षेत्र की परम्पराओं और संस्कृति को आत्मसात करने का अवसर भी प्राप्त होता है। ग्रामीण पर्यटन में पर्यटक रात को गाँव में ठहरता है जिससे उसे गाँव की अनोखी जीवनशैली की झलक बहुत नजदीक से देखने को मिलती है। इससे ग्रामीण समाज को भी फायदा होता है क्योंकि आमतौर पर खेती या कम कौशल वाले व्यवसायों पर निर्भर इन लोगों को पर्यटन से अपनी आमदनी बढ़ाने का अवसर मिलता है। ग्रामीण पर्यटन से गाँव के लोग मेहमानों की संस्कृति के सम्पर्क में आते हैं जिससे उनकी जानकारियों के दायरे का विस्तार होता है और वे पर्यटक की संस्कृति की भी कुछ बातों को ग्रहण कर सकते हैं। ग्रामीण पर्यटन के कई मामलों में स्वैच्छिक सेवा का पुट भी रहता है और पर्यटक स्थानीय स्कूल में पढ़ाकर या खेती-बाड़ी में हाथ बँटाकर स्थानीय लोगों की मदद भी करते हैं।
पर्यटकों को नये तरह का अनुभव दिलाने के लिहाज से पर्यटन मंत्रालय ने ग्रामीण पर्यटन बड़ा उपयोगी पाया है। इसके अलावा पर्यटन उत्पादों में विविधता लाने, ग्रामीण समुदाय की आमदनी बढ़ाने और लुप्त होती जा रही ग्रामीण कला विधाओं के संरक्षण में भी ग्रामीण पर्यटन से बड़ी मदद मिल रही है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की सहायता से 2003-04 में देशभर के 31 गाँवों में परीक्षण परियोजना के तौर पर एंडोजीनस टूरिज्म प्रोजेक्ट यानी अन्तर्जात पर्यटन परियोजना शुरू की गई। इसके लिये गाँवों का चयन सुस्थापित टूरिस्ट सर्किटों से उनकी निकटता और किसी अनोखी कला/शिल्प या संस्कृति की उपस्थिति को ध्यान में रखकर किया गया ताकि उस जगह की विशिष्टता के रूप में बाजार में उसका लाभ उठाया जा सके। बाद में, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के परियोजना से अलग हो जाने पर भी पर्यटन मंत्रालय ने इस परियोजना के लिये विभिन्न योजनओं के माध्यम से धन देना जारी रखा और उत्पाद अवसरंचना विकास तथा स्वदेश दर्शन कार्यक्रम के जरिये परियोजना चलती रही।
ग्रामीण पर्यटन मॉडल की कई गौरव गाथाएँ सामने आई हैं और इसके अन्तर्गत कई परियोजनाएँ वित्तीय दृष्टि से व्यावहारिक साबित हो रही हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं : गुजरात में होडका गाँव में शाम-ए-सरहद परियोजना। शाम-ए-सरहद एक पर्यटक शिविर का नाम है जिसका निर्माण, स्वामित्व और प्रबन्धन होडका समुदाय के पास है। पर्यटन जन समुदायों को अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने में सक्षम बनाता है। ऐसा आजीविका के और अधिक विकल्प मिलने से होता है और साथ ही इससे स्थानीय समुदाय को अपनी अनोखी संस्कृति के विकास और संरक्षण का भी अवसर प्राप्त होता है।
कई अन्य राज्यों ने भी अब इस अवधारणा को अपना लिया है। ग्रामीण पर्यटन के मॉडल के विकास में केरल हमेशा अग्रणी रहा है और राज्य में ‘उत्तरदायी पर्यटन’ के वृहतर दायरे में ग्रामीण पर्यटन का विकास किया गया है। केरल में कुमारकोम, वायनाड और अन्य स्थानों पर उत्तरदायी पर्यटन की पुरस्कृत परियोजनाएँ एक अनोखे मॉडल के रूप में उभरकर सामने आई हैं। इनमें आगन्तुकों को ग्रामीण जीवन का आनन्द लेने का मौका मिलता है और पर्यटन से जुड़े स्थानीय लोग कथा सुनाने वाले सूत्रधार की भूमिका में रहते हैं। इससे गाँव के लोगों में ग्रामीण जीवन के अपने तौर-तरीकों के बारे में गौरव की भावना पैदा होती है। यही भावना उन्हें अपने परम्परागत तौर-तरीकों पर कायम रहने और शहरी जीवनशैली की नकल करने से रोकती है।
एक अन्य प्रेरक कथा सिक्किम से है जहाँ कई ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाकर होम स्टे यानी पर्यटकों को घर में ठहराने के कार्यक्रमों के जरिये पर्यटक उत्पादों का परम्परागत पर्यटन स्थलों से हटकर अन्य स्थानों पर भी सामान रूप से विस्तार करने का प्रयास किया गया है। इससे पर्यटन उत्पादों की क्षमता बढ़ाने में भी मदद मिली है। भारत के पहले ऑर्गेनिक राज्य के रूप में ख्याति अर्जित करने के बाद सिक्किम अपनी ग्रामीण पर्यटन क्षमताओं का भी भरपूर फायदा उठा रहा है। विकास के इस तरह के मॉडलों में समाज के सबसे निचले स्तर पर सामुदायिक भागीदारी होती है और हर एक व्यक्ति को समूची प्रक्रिया में बराबरी का अवसर मिलता है।
सरकारी प्रयासों की सफलता के बाद निजी क्षेत्र की तरफ से भी कुछ उल्लेखनीय पहल की गई है। समोद और मंडावा सहित राजस्थान में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के मॉडल पर आधारित कुछ परियोजनाएँ सामने आई हैं। इसी तरह महाराष्ट्र में गोवर्धन इको-विलेज भी उल्लेखनीय है जिसने पिछले साल नवसृजन के लिये संयुक्त राष्ट्र के विश्व पर्यटन संगठन का यूलीसीज पुरस्कार जीता। इस संगठन ने गाँव को एक ऐसे समुदाय के रूप में विकसित किया है जिसका पर्यटकों के साथ एक-दूसरे पर आश्रित सहजीवी सम्बन्ध है। इसने सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाया है और एक जमाने में पिछड़े हुए इस इलाके के लोगों की आमदनी और शिक्षा के स्तर को उन्नत बनाने में मदद की है।
इसलिये देशभर में ग्रामीण पर्यटन और ग्राम जीवन के अनुभव की अवधारणा के विकास के लिये पर्याप्त गुंजाईश है। फिर भी, इसमें कुछ चुनौतियाँ भी हैं और सबसे बड़ी चुनौती तो मार्केटिंग यानी विपणन की है। ग्रामीण समुदायों के पास स्वाभाविक रूप से उत्पादों की देश-विदेश में मार्केटिंग के लिये बहुत कम अवसर होते हैं। इसलिये विपणन का पर्याप्त आधारभूत ढाँचा न होने से जो परियोजनाएँ पारम्परिक पर्यटन सर्किट से जुड़ी नहीं हैं, वे बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी हैं। पर्यटन मंत्रालय ने ग्रामीण पर्यटन-स्थलों को अपनी वेबसाइट में प्रमुखता से स्थान देकर ग्रामीण पर्यटन के विपणन के प्रयासों में अपना योगदान किया है। केरल का ग्रामीण पर्यटन मिशन राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे सफल विपणन प्रयासों का एक अन्य उदाहरण है। टूर ऑपरेटरों को अन्ततः ग्रामीण पर्यटन स्थलों को संरक्षण देना ही होगा और उन्हें वित्तीय दृष्टि से सफल बनाने के लिये अपनी यात्रा-सूची में शामिल करना होगा। इसलिये घरेलू और अन्तरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर इस तरह के और प्रयास करने की आवश्यकता है।
महात्मा गाँधी का एक और उद्धरण है : “अगर गाँव नष्ट गये तो भारत नष्ट हो जायेगा।” इसलिये हमारे लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि गाँवों का संरक्षण किया जाए और आने वाली पीढ़ियों के लिये गाँवों की सरल जीवनशैली को सम्भालकर रखा जाये। ग्रामीण और उत्तरदायी पर्यटन से इस परम्परा को बचाये रखने में बड़ी मदद मिल सकती है।
लेखक परिचय
रश्मि वर्मा
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय में सचिव हैं। ई-मेल : sectour@nic.in
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